This is not bondage - 4 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | यह बंधन नही है - 4

Featured Books
Categories
Share

यह बंधन नही है - 4

औरत का अकेले रहना पहले भी आसान नही था और आज भी नही है।अकेली औरत को अनेक समस्यों का साम्बा करना पड़ता है।अनेक परेशानी आती है अकेली औरत के सामने।मुझे भी अनेक छोटी बड़ी मुसीबतों परेशानियों का सामना करना पड़ता था।लेकिन मैं कभी नही घबराई।हर परेशानी,दिक्कत का मैने सामना किया।लेकिन एक दिन एक ऐसी घटना घटी की मेरी सारी स्वतंत्रता धरी रह गयी।
इतवार यानी बैंक की छुट्टी का दिन।मैं बाजार कुछ खरीददारी करने के लिए गयी थी।मेरा घर एक गली में था।करीब एक घण्टे बाद मै बाजार से लौटी तो गली के नुक्कड़ से मुझे ऐसा लगा कि मेरा कोई पीछा कर रहा है।मैने मुड़कर देखा तो पाया कि खेमा मेरा पीछा कर रहा है।खेमा जिस मोहल्ले में मैं रहती थी।उसी मोहल्ले में रहता था।वह गुंडा था।औरतों को राह चलते देखकर उन्हें छेड़ना, छिटकसी करना और गन्दी बाटे बोलना उसकी आदत थी।मुझे देखकर भी वह गन्दी बाते बोलने और फिकरे कसने लगा।लेकिन मैंने कभी उसकी इस हरकत की परवाह नही की।उसकी इस आदत से सब वाकिफ ही नही परेशान भी थे।वह गुंडा बदमाश था इसलिए उससे सब डरते थे।किसी की हिम्मत न थी कि उसका सामना कर सके या पुलिस में रिपोर्ट कर सके।
उस दिन मैं गली में कुछ कदम ही चली थी कि खेमा ने मेरी कलाई पकड़ ली।मै अप्रत्याशित रूप से हुए इस हादसे से घबरा गई।मेरी हालत ऐसी हो गयी मानो बिल्ली ने दौड़कर चूहे को दबोच लिया हो।गली में से लोग आ जा रहे थे।लेकिन दिन दहाड़े एक औरत की बेइज्जती होते देखकर भी लोग चुप रहे। किसी माई के लाल में विरोध करने की हिम्मत नही थी।सब आंखे बचाकर उधर इधर किसके गए।
मेरे सारे सिद्धान्त धरे रह गए।मैं बड़े ओजस्वी भाषण देती थी।नारी मुक्ति आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेती थी।मैं औरत की स्वतंत्रता की हिमायती थी लेकिन उस दिन मेरी आजादी किसी काम नही आई।उस गुंडे के सामने मैं बेबस और असहाय खड़ी थू।बचने के कोई आसार न देखकर मैने सिर उठाकर ऊपर इस तरह देखा मानो नीली छतरी वाले को मदद के लिए पुकार रही हूँ।

द्रौपदी को भी भरी सभा मे कोई बचाने नही आया तब उसने कृष्ण को पुकारा था।और द्रौपदी की पुकार को कृष्ण ने सुनकर उसकी अस्मिता की रक्षा की थी।मेरी पुकार भी बेकार नही गयी।फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बनाकर सतीश मेरे पास चला आया था।उसने गली में माजरा देखा तो उसे समझते देर नही लगी।
"इसे क्यो पकड़ रखा है?"
"तू कौन है।इसका यार?"
"हा,"सतीश बोला,"इसका हाथ छोड़।"
"नही छोडूंगा।क्या कर लेगा?"
बस इतना सुनते ही सतीश खेमा पर पिल पड़ा।मारते मारते उसका बुरा हाल कर दिया।जिससे लोग डरते थे।आंखे नही मिलाते थे।जो दादागिरी का दम भरता था।वह सतीश के आगे नाक रगड़कर माफी मांग रहा था।
मैं सतीश का पौरूष देखकर दंग रह गयी।
उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि आदमी औरत का दुश्मन नही है।औरत के अधिक्कारो की बात उसके साथ रहकर भी की जा सकती है।औरत की अस्मत लूटने वाला आदमी है,तो उसकी इज्जत की रक्षा करने वाला भी आदमी है।और उस दिन मुझे एहसास हुआ कि शादी भ जरूरी है।यह बंधन नही है।और मैने सतीश से शादी कर ली।
क्या मेरी बेटी की जिंदगी में भी कोई सतीश आएगा