Dastak Dil Par - 9 in Hindi Love Stories by Sanjay Nayak Shilp books and stories PDF | दस्तक दिल पर - भाग 9

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दस्तक दिल पर - भाग 9

"दस्तक दिल पर" किश्त-9


मैं वहीं एक चाय वाले कि दुकान पर बैठ गया चाय बनवा ली, उसकी चुस्कियाँ लेने लगा। मुझे उसके मैसेज का इन्तज़ार था, पता नहीं था ,मुझे वहाँ से ही वापस लौट जाना था कि उससे मिल पाना सम्भव होने वाला था, कुछ भी नहीं पता था। मैं उसके बारे में ही सोच रहा था, कैसे दो अजनबी जो कभी एक दूजे से नहीं मिले, जानते भी नहीं थे , फिर इतना लगाव ,प्यार कैसे हो गया था....?


मुझे उस दिन बड़ा अपमान महसूस हुआ था जब पहली बार उसका फ़ोन आया था। मैंने अपनी lic पॉलिसी पर लोन लिया हुआ था, और उसे री पे नहीं कर पा रहा था, पहले मोबाइल पर मैसेज आने शुरू हुए, फिर वहाँ के कर्मचारियों का फ़ोन आना शुरू हुए।


अबकी बार , अबकी बार में दो तीन महीने बीत गए, एक दिन आफिस में यूँ ही अभी की तरह चाय की चुस्कियाँ ले रहा था कि एक लैंडलाइन फोन से मेरे मोबाइल पर कॉल आई, उधर से एक महिला की रोबदार आवाज गूंजी “मिस्टर……. बोल रहे हैं।”


“जी, बोल रहा हूँ कहिये, आप कौन बोल रही हैं।”


“मैं lic से मैनेजर बोल रही हूँ, आपकी एक पॉलिसी का लोन ओवर ड्यू चल रहा है, श्रीमान , आप तो सम्मानित कर्मचारी हैं। आपकी तीन- तीन पॉलिसी चल रही हैं फिर इस तरह से एक पॉलिसी को खराब करना अच्छा नहीं है। इससे ना केवल आपकी छवि ही खराब हो रही है बल्कि आपकी पॉलिसी से मिलने वाले फायदे भी आपको नहीं मिल पाएंगे,आप बतायें कब तक लोन री पे कर रहे हैं।”


“मैडम , इन दिनों मैं आर्थिक रूप से तंगी का सामना कर रहा हूँ, तो अभी खुद को असमर्थ समझ रहा हूँ आपका लोन चुकाने में। आप कोई रास्ता सुझाएँ, आप ऐसा कीजिये मैं पॉलिसी सरेंडर कर देता हूँ, आप अपना लोन काटकर बकाया अमाउंट मुझे दे दीजिए।”मैंने कहा।


“मिस्टर……..आप पॉलिसी बंद न करवाएं, इससे आपको बहुत नुकसान होगा। आप ऐसा करें कोई गोल्ड लोन वगैरह लेकर ,ये लोन भर दीजिये। फिर जब आपका पॉलिसी पर बोनस आएगा तो अपना गोल्ड फ्री करवा लीजिएगा। अगर फिर भी नहीं हो पाया तो आप अपनी एक एप्लीकेशन स्कैन कर के हमें ई मेल कर दें हम आपकी पॉलिसी बंद करके आपको बकाया दे देंगे, पर ये सोच लें आपको बहुत नुकसान होगा। आप कल तक मुझे बता देना मैं कल आपको दोपहर में फोन करूंगी।”


मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई थी, मैं उस दिन चैन से सो नहीं पाया, मैंने सारे हाथ पैर मार लिए थे मगर मुझसे पैसे की व्यवस्था नहीं हुई थी। मैंने अपना एक एप्लिकेशन भर कर पास रख लिया था ,उस दिन मैं उसे ई मेल करने वाला था, उसके फ़ोन का इन्तज़ार कर रहा था।


लंच के बाद फिर उसका फ़ोन आया, “मिस्टर…….आपकी व्यवस्था बैठी, लोन चुका रहें हैं आप?”


“नहीं मैडम, मैं नहीं कर पाया व्यवस्था।”


“अरे…., नहीं हुई? मैंने बताया था, गोल्ड लोन ही ले लीजिए, आपने क्यों नहीं लिया?"


“मैडम गोल्ड के नाम पर मेरे पास अंगूठी है एक, उसका आठ हज़ार मिल रहा है। पत्नी ने अपने गहने देने से इनकार कर दिया है। प्लीज़ आप तो मेरी पॉलिसी बन्द कर दें और लोन भर लें।” मैंने सच्चाई बयान कर दी, शायद मन दुखी था इसलिए सच कह गया।


उधर कुछ देर चुप्पी रही, फिर आवाज़ आई “मिस्टर……., आप बुरा ना माने तो एक बात पूछुं आपने किस लिए लिया था लोन? ”


“जी इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं, मैंने अपने बेटे की IIT की कोचिंग की फ़ीस के लिए लोन लिया था। उसकी कोचिंग का ख़र्च इतना हो रहा है कि अभी लोन नहीं चुका पा रहा हूँ.....आप मेल एड्रेस दें, मैं पॉलिसी सरेंडर का आवेदन भेज रहा हूँ।”


“ठीक है।” उधर से फ़ोन डिस्कनेक्ट हो गया।


कुछ देर बाद मेरे मोबाइल पर एक मोबाइल नम्बर से टेक्स्ट मैसेज आया उसमें lic ऑफिस की ई मेल का एड्रेस था। मैंने उस पर अपना आवेदन मेल कर दिया। मैं सन्तुष्ट था चलो एक क़र्ज़ से पीछा छूटा।


अगले दिन फिर मुझे लैंडलाइन से फोन आया “हम lic से मैनेजर बोल रहे है, आपका आवेदन हमें मिल गया है। फिर भी हम चाहते हैं, आप फिर विचार कर लीजिये कहीं से व्यवस्था बन जाये, आपका बहुत नुकसान होगा।


“नहीं हो पायेगा मैम....बिल्कुल नहीं हो पायेगा।”


“हम्म, कोई नहीं है जो आपको लोन दे सके...?”


“मैम, जब बीवी ने ही अपने गहने देने से इनकार कर दिया तो और कौन देगा?”


“अच्छा….., ठीक है।” फ़ोन कट गया।


कुछ देर में फिर फ़ोन आया “मिस्टर……., हम आपकी हेल्प कर दें? आप पॉलिसी सरेंडर मत करें, आपका जब बोनस आ जाये, पॉलिसी का, तो आप मुझे चुका देना, ब्याज लूँगी। आप मुझे सच्चे इंसान लगे, इसलिए मैं आप पर तरस नहीं खा रही हूं, आपकी हेल्प करना चाहती हूँ। आपको कुछ देर में फ़ोन करूंगी, विचार कर लीजिए तब तक।” फोन कट गया।


मैं हतप्रभ था, वो अनजान महिला जिसे मैं जानता तक नहीं था, वो मेरी हेल्प करना चाहती थी। क्या करूँ क्या न करूँ, क्या मुझे हेल्प लेनी चाहिए या इनकार कर दूँ? कहीं कुछ गलत तो नहीं... पर क्या गलत हो सकता था। वो मुझे जानती नहीं मैं उसे नहीं जानता, क्या हेल्प ले लूं? सही कह रही रही है, नुकसान हो जायेगा बहुत।


कुछ देर बाद उसका फ़ोन आ गया “क्या सोचा आपने?”


“मैम मैं आपको पॉलिसी के बोनस पर ही आपका लोन चुका पाऊंगा अगर आपको उचित लगे तो, आप हेल्प कर दीजिए।”


“ठीक है, आप अपना एक चैक मुझे ऑफिस के पते पर भेज भेज दीजिये, अमाउंट मत भरना, मैं ब्याज जोड़कर भर लूँगी। आप इस नम्बर पर व्हाट्सएप चलाते हैं? मैं पता भेज रही हूं ऑफिस का।”


“जी चलाता हूँ, भेज दीजिये ।”


कुछ देर में उसका एक मैसेज आया , उसमें उसके ऑफिस का एड्रेस लिखा था मैंने उसे डायरी में लिख लिया, उसकी प्रोफाइल फोटो देखी कि देखें तो ये मददगार आखिर कैसी दिखती है, मैं उसे देखता ही रह गया, वो किसी फ़िल्मी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी। उसने बहुत सुंदर चश्मा लगा रखा था, उसकी आँखें नहीं दिख रही थीं।”


दूसरे दिन मेरे मोबाइल पर लोन जमा होने का मैसेज आया lic की तरफ से , मैं खुश हो गया, मैंने उसे व्हाट्सएप मैसेज किया “शुक्रिया, आप मददगार बनी,🙏🙏🙏।”


“स्वागत, लोन चुकाना भी है, 😊।”


उसके बाद हममें कोई बातचीत नहीं हुई, मैंने उसका नम्बर मोबाइल से हटाया नहीं, लोन जो चुकाना था उसका। कई बार मैंने उसकी प्रोफाइल पिक देखी उसने तीन चार बार बदली अपनी प्रोफाइल पिक हर बार उसकी आँखों पर चश्मा लगा रहता था। मुझे अजीब लगा, आँखें दिख ही नहीं रही थी उसकी, मैंने इस दौरान अपनी प्रोफाइल पिक चेंज नहीं की थी। कोई तीन चार महीने बीत गए थे, एक रोज़ नए साल पर उसका मैसेज आया “हैप्पी न्यू ईयर” मैंने भी रिप्लाई किया “सैम टू यू।” मैसेज अनसीन रहा। मतलब उसने सभी जो नम्बर उसके पास थे सबको न्यू ईयर मैसेज किया था।


कोई दस दिन बाद मेरे मोबाइल पर lic का बोनस मिलने का मैसेज आया। दूसरे दिन उसका शाम को फ़ोन आया, उस दिन मैं घर पर था, उसने कहा कि आपका बोनस आ गया है। मैं आपके बैंक अकाउंट में जमा करवा रही हूं। अपना अमाउंट ब्याज सहित कितना बना व्हाट्सएप कर रही हूं कल मेरे खाते में डाल दीजिएगा, अपना पता दीजिये, मैं आपका दिया चैक वापस भेज दूँ आपको।”


“मैं कल बात करूंगा कहकर मैंने फोन काट दिया।”


उसका व्हाट्सएप मैसेज आया जिसमें उसने ब्याज सहित रुपये बताये थे, और अपना अकाउंट नम्बर बताया था। मैंने वो एक काग़ज़ पर उतार कर उसका मैसेज डिलीट कर दिया। उस दिन भी उसका प्रोफाइल पिक चेंज था, पर एक बात सेम थी , चश्मा लगा था।


दूसरे दिन मेरे खाते में पैसे जमा हो गए। मैंने ख़ुद उसे फोन किया “मैम आपका पैसा आपके खाते में जमा करवा दिया है, आपसे एक रिक्वेस्ट है आप बुरा नहीं मानना, आप मुझे यूँ ऑफिस टाइम के अलावा फ़ोन नहीं करें, शायद आपको अटपटा लगे पर इससे घर मे कलह हो जाती है।”


“ओह, माफ़ करें, आगे से नहीं आएगा फ़ोन, वैसे भी अब लेनदेन खत्म हुआ है तो बात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” मुझे उसे यूँ कहते हुए बड़ा अजीब लग रहा था, पर मजबूरी थी मैं अपनी शांति नहीं खोना चाहता था।


मैंने 26 जनवरी को उसे व्हाट्सएप मैसेज किया “गणतंत्र दिवस की बधाई।”


उधर से मैसेज आया “आप कौन ।”


“मैं....आपने वो.... मेरा लोन भरा था।”


“ओह, हाँ माफ़ कीजिये मैंने आपका नम्बर हटा दिया था, इसलिए पहचान नहीं पाई। आप घर पर तो नहीं हैं, घर पर तो आप को फोन भी नहीं करना था।”


“जी, बाहर हूँ।” मैं उसके ये कहने पर झेंप गया था, आज भी प्रोफाइल पिक चेंज था, वही चश्मा लगा था, बड़ा सा आँखें नहीं दिख रही थी।”


दूसरे दिन ऑफ़िस में आया तो उसका गुड मॉर्निंग मैसेज आया हुआ था। मैंने भी उसे विश किया । इस तरह रोज हमारी , हाय हैलो होने लगी थी।


संजय नायक "शिल्प"

क्रमशः