गनिमी कावा का अर्थ इस प्रकार समझे 'गनिमी' यानी छिपकर और 'कावा' यानी आक्रमण 'गनिमी कावा' यानी छापामार युद्ध।
'गनिमी कावा' को 'शिव-सूत्र' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह शिवाजी महाराज ही थे जिन्होंने छापामार युद्ध को न केवल इजाद किया बल्कि इतना विकसित भी किया जितना विश्व में आज तक कोई नहीं कर सका। आधुनिक विश्व के जितने भी नेताओ या सेनापतियो आदि ने छापामार युद्ध के पैतरो को अपनाकर जीत हासिल की, उन सभी ने एकमत से स्वीकार किया है कि उन्होंने 'गनिमी कावा' के ही अध्ययन से छापामारी सीखी और अपने मुट्ठीभर सैनिकों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि दुश्मन की महाशक्तिशाली फौज के भी छक्के छूट गए।
द्वितीय विश्व युद्ध (बीसवीं सदी) के बाद गनिमी कावा का महत्व बहुत बड़ा। चीन में माओत्से तुंग और वियतनाम में जनरल ज्याप ने 'गनिमी' के सूत्रों को अपनाकर असीमित यश प्राप्त किया।
सन् 1958 के अंतिम दिनों में क्यूबा में जो क्रांति हुई, उसकी सफलता का श्रेय 'गनिमी कावा' के ही कुशल संचालन को दिया जाता है। क्यूबा के तानाशाह बतिस्ता के खिलाफ क्रांतिकारियों ने जो विद्रोह किया वह बरसों-बरस तक चलता रहा। क्रांतिकारियों ने बहुत त्याग किया, बहुत बलिदान दिया। क्रांतिकारियों का नेतृत्व फिडेल कास्त्रो, चे ग्युवेरा व साथियों के हाथ में था। तानाशाह बतिस्ता को महाशक्ति अमेरिका का भरपूर आर्मी सपोर्ट खुलेआम मिल रहा था, लेकिन फिडेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के छापामारो ने उस महाशक्ति को ऐसा परेशान किया कि आखिर उसे अपनी नाक कटाकर पीछे हटना पड़ा। इन छापामारो ने 'शिव सूत्र' उर्फ 'गनिमी कावा' में दी गई पद्धतियों का अक्षरशः पालन किया था।
क्रांति के सुधारों ने यह बात स्वयं स्वीकार की है।
वियतनाम में भी अमेरिका की खूब किरकिरी हुई। वियतनामी जनरल ज्याप ने घने जंगलों में अमेरिकी फौजियों के साथ खूंखार छापामार युद्ध लड़कर उन्हें हक्का-बक्का कर दिया। जनरल ज्याप ने भी 'शिव-सूत्र' में दी गई सलाह के मुताबिक अपने मोर्चे तैयार किये और ऐसी जीत हासिल की जिसने जनरल ज्याप को विश्व-विख्यात कर दिया।
स्वयं जनरल ज्याप ने 'शिव-सूत्र' को अपना प्रेरणा स्त्रोत बताया है।
गौर करना होगा कि क्यूबा और वियतनाम इन दोनों देशों ने अमेरिका पर जो जीत हासिल की, उसमें शिवाजी महाराज की बुद्धि-संपदा ने अपना जादू दिखाया। एक तरह से स्वयं शिवाजी ने ही अमेरिका को हराया। ऐसी उपलब्धियों के कारण ही इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम एक अंतरराष्ट्रीय योद्धा के तौर पर दर्ज है।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शिवाजी महाराज के 'गनिमी कावा' की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी थी।
प्राचीन चीनी युद्ध-कला विशेषज्ञ सून त्सू ने अपनी पुस्तक 'बुक ऑफ द वार' में 'गनिमी कावा' में दिए गए छापामारी के पैतरो की चर्चा की है जिसमे बिल्कुल अचानक जबरदस्त तेजी से आक्रमण कैसे करें, शत्रु को अचानक हक्का-बक्का कर देने के तरीके क्या है, शत्रु को धोखे में कैसे रखा जाए, इत्यादि अनेक पैतरो का जिक्र करते हुए उन्होंने 'गनिमी कावा' की प्रशंसा की है।
सून त्सू को माओत्से तुंग का प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है। सून त्सू के मौलिक विचारों का अधिक विकास एवं विस्तार माओत्से ने किया।
संसार प्रसिद्ध युद्ध-कला विशेषज्ञ क्लाजविट्ज ने भी अपने ग्रंथ 'ऑन वॉर' के चौथे खंड में 'गनिमी कावा' में आलेखित छापामार युद्ध-पद्धति की चर्चा की है उसने इस युद्ध को 'जनता का युद्ध कहा' है। ऐसा युद्ध जनता के आक्रोश एवं प्रतिकार की भावना से प्रेरित होता है जनता जब पूर्ण निष्ठा से प्रेरित होती है तब ऐसा युद्ध होने लगता है।
आधुनिक युग की पृष्ठभूमि में देखें तो मनुष्य का युद्ध अनुभव बहुत समृद्ध हो चुका है 'गनिमी कावा' का इस समृद्धि में अहम योगदान है। 'गनिमी कावा' की परिपूर्ण चर्चा पढ़ने को मिलती है इन तीन हस्तियों की लिखी पुस्तकों में —
१.) माओत्से तुंग २.) जनरल ज्याप ३.) चे ग्यूवेरा।
वैसे तो इन तीनों ने एक जैसी ही चर्चा की है किंतु भाषा की कसौटी पर तीनों स्वतंत्र प्रतीत होती है। माओत्से तुंग, जनरल ज्याप, चे ग्यूवेरा, ये तीनों मूल रूप से क्रांतिकारी थे अतः 'गनिमी कावा' को भी इन्होंने क्रांति के ही साधन की दृष्टि से देखा। इन तीनों का उद्देश्य एक जैसा था। ये सिर्फ उस राजनीतिक सत्ता को समाप्त करना नहीं चाहते थे जिसने उनके प्रदेशों पर कब्जा कर रखा था बल्कि उन्हें तो एक व्यापक क्रांति करनी थी ऐसी क्रांति जो जितनी राजनयिक थी, उतनी ही सामाजिक भी थी। ऐसी व्यापक क्रांति के शत्रु बहुत शक्तिशाली थे। आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित उनकी सेना अत्यंत संगठित थी। उन्हें केवल 'गनिमी कावा' में वर्णित पद्धति से हराया जा सकता था। उपरोक्त तीनों हस्तियों का एक ही उद्देश्य था कि समाज एवं शासन को एड़ी से चोटी तक बदल देने वाली व्यापक क्रांति! इससे कम कुछ नहीं। इसलिए इन तीनों ने 'गनिमी कावा' के सिद्धांतों और पद्धतियों को एक जैसी हार्दिकता के साथ अपनाया।
माओत्से तुंग के अनुसार चीनी क्रांति बुनियादी तौर पर किसानों की क्रांति थी। किसान ही माओ के 'गनिमी कावा' के सैनिक थे। माओ ने किसान और सैनिक में कभी अंतर नहीं किया।
जनरल ज्याप के अनुसार वियतनाम जैसे पिछड़े देश में केवल वही युद्ध 'लोक युद्ध' के रूप में उभर सकता था जो मजदूरों के नेतृत्व में लड़े गए किसानों के युद्ध जैसा होता। वियतनाम के 'गनिमी सैनिको' में 90% से अधिक किसान ही थे।
चे ग्यूवेरा के अनुसार 'गनिमी युद्ध' जनता का मुक्ति-संग्राम है। 'गनिमी सैनिक' समाज सुधारक भी होता है। नए समाज की रचना के लिए ही वह शस्त्र धारण करता है। 'गनिमी सैनिक' यदि समाज सुधारक है तो 'गनिमी किसान' क्रांतिकारी है
उपरोक्त क्रांतिकारियों ने 'गनिमी युद्ध' की प्रेरणा का अधिकतम श्रेय शिवाजी महाराज को दिया है। अनेक जगहों पर इन क्रांतिकारियों ने लिखा है कि छापामार युद्ध की प्रेरणा उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज से मिली हम उनके ऋणी हैं।
शिवाजी महाराज की युद्ध-कला आधुनिक युग में भी अनुकरणीय है। जैसा कि श्री मोहन धारिया ने 1 मई 1978 के दिन वक्तव्य दिया था, "वियतनाम के राष्ट्रपति 'हो ची मिन्ह' जब भारत पधारे थे तब उनसे चर्चा करते हुए मैंने कहा था कि वियतनाम की जनता ने अपनी लड़ाई जिस तरह लड़ी, उसे देखकर मुझे शिवाजी महाराज के 'गनिमी कावा' की याद आती रही, इस पर 'हो ची मिन्ह' ने कबूल किया था कि जी हां आपका मानना सही है। हमने अमरीकी सरकार से लड़ते समय जिस तरह मोर्चाबंदी की थी और जो युद्ध-नीति अपनाई थी, उसके लिए हमने शिवाजी राजे के युद्ध-तंत्र का अध्ययन किया था।"
–(महाराष्ट्र टाइम्स, 10 मई 1978)
निस्संदेह भारतवर्ष के इतिहास को शिवाजी महाराज ने एक नई दिशा दी। उनका युद्ध-तंत्र केवल तत्कालीन ना होकर सर्वकालीन एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व का है। उपरोक्त साक्ष्य के आधार पर शिवाजी के युद्ध-तंत्र का महत्व सिद्ध हो जाता है।