Dastak Dil Par - 5 in Hindi Love Stories by Sanjay Nayak Shilp books and stories PDF | दस्तक दिल पर - भाग 5

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दस्तक दिल पर - भाग 5

"दस्तक दिल पर" किश्त- 5

मैं बिस्तर छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और जल्दी से तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया, मेरे साथी भी साथ थे। हमने एक ऑटो ले लिया था, ऑटो अपनी गति से ऑफिस की और चल पड़ा। मुझे थोड़ी सुस्ती महसूस हो रही थी पूरी रात सोया जो नहीं था, और परसों रात की भी नींद थी । मैं थोड़ा सा उनींदा था मगर सुस्त नहीं था, मैं चिर परिचित रास्ते से गुजर रहा था।

इस रास्ते से मुझे बड़ा लगाव था क्योंकि रास्ते के एक मोड़ से मेरे ऑफिस को रास्ता जाता था, उसी मोड़ पर उसके घर की तरफ से एक सड़क आकर मिलती थी और वहीं से दूसरा रास्ता उसके ऑफिस की ओर जाता था । या यूँ कहा जा सकता था हम दोनों के ऑफिस से वो रास्ता एक बार मिलकर जुदा होता था ।

जैसे ही वो मोड़ आता था जाने क्यूँ मुझे अजीब सी ख़ुशी महसूस होती थी। मुझे याद है जब मैं पिछली बार उसके शहर आया था हम दोनों दो बार इस मोड़ पर मिले थे, एक बार वो मेरे साथ थी दूसरी बार अलग थी।

वो दोनों बार ही दो अलग अलग मनोस्तिथि वाली घटनाएँ थी पर दोनों ही अपने आप में यादगार थीं। हुआ यूँ था कि पिछली बार भी मैं ऑफिस के काम से यहाँ आया था, तब तक हम दोनों की केवल एक ही मुलाकात हुई थी। पर जो पिछली दो मुलाकातें थी उसने हमें बहुत करीब ला दिया था।

वो मुलाकातें जिनमें से एक मुकम्मल मुलाकात थी एक को मैं मुलाकात तो कह रहा हूँ पर वो सही में मुकम्मल मुलाकात थी ये नहीं कहा जा सकता । मुझे याद है उस रोज़ मैं ऑफिस के पास वाले होटल में ही रुका था, उस वक़्त उसकी बेटी उसके घर आयी हुई थी।

मैं उससे लगातार मैसेजिंग के ज़रिए जुड़ा हुआ था। जब भी उसके शहर आता था, मैं बहुत खुश रहता था, उस दिन भी था..., जब मैंने बताया कि मैं अपने ऑफिस के पास ही रुका हूँ, तो उसने बताया तुम्हारे ऑफिस के पास जो स्क्वायर सर्किल है, मैं वहाँ से गुजरूंगी । मुझे ठीक 8.30 पर मिलो अंडरपास के अगले मोड़ पर। मैंने घड़ी देखी 7.40 हुए थे मैं जल्दी से तैयार हुआ। ऐसा करने में आधा घंटा लग गया, फिर मैं पैदल ही स्क्वायर सर्किल के पास पहुंच गया। वो अपनी रेग्युलर टैक्सी से आ रही थी, मेरे कदम ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। मन में एक अजीब खुशी छाई हुई थी। उसे देखकर ही मन अति प्रसन्नता से भर जाता था, जैसे किसी रेगिस्तान में बारिश की फुहार के साथ, हजारों रँग बिरँगे फूल खिल उठते हों।

ठीक 8.33 पर उसकी टेक्सी आकर मेरे पास रुकी तब तक मैं पचासों बार घड़ी देख चुका था। मैंने अपना फेवरेट सफ़ेद रंग का शर्ट पहना हुआ था, और ब्लू पेंट पहनी थी, उसने गुलाबी कुर्ता और सफ़ेद सलवार पहन रखी थी। वो बहुत खुबसूरत लग रही थी , मैं उसे परियों की शहज़ादी कहता था।

मैं उसे अपलक निहारे जा रहा था, और उसने मुस्कुराते हुए कहा "यूँ ही मुझे देखते रहेंगे या टैक्सी में बैठेंगे भी....", मैं झेंप गया और झट से उसकी बगल मैं बैठ गया। जस्मीन की भीनी खुश्बू में पूरा माहौल महक गया था। मैं कनखियों से उसे देख लेता था और वो मुझे, दोनों के चेहरों पर एक मोहक मुस्कान छाई थी। उस वक़्त यदि कोई भी हमें देखता तो कह देता हम दोनों प्यार में हैं। ऐसा लग रहा था, हम इस दुनिया में हैं ही नहीं , हमारी टैक्सी बादलों पर चल रही थी।

उसने बात शुरू की "नाश्ता किया आपने?", वैसे तो मैसेजिंग में हम बहुत बातें कर लेते थे पर आमने सामने आने पर हम दोनों को थोड़ी सकुचाहट होती थी। उसी सकुचाहट का नतीजा था की उसने पूछा था 'नाश्ता किया', मैंने झेंपते हुए "ना" में गर्दन हिला दी, वो मुस्कुरा कर बोली "जानती थी नाश्ता नहीं किया होगा... मैं आपके खाने के लिए कुछ लाई हूँ", ये कहकर उसने मेरी तरफ एक बैग बढ़ा दिया, मैंने वो बैग अपने हाथ में ले लिया, और मुस्कुरा दिया।

वो टैक्सी उसी मोड़ से गुजर रही थी, वो मुझसे बोली "आप पर सफ़ेद शर्ट बहुत सूट कर रहा है" , "मैंने कहा मैं आपके लिए ये बात कहने वाला था, पर आपने मेरे मुँह की बात छीन ली।" हम दोनों खिलखिला के हँस पड़े।

इन्हीं बातों में सफ़र कट रहा था, उसका ऑफिस आने वाला था, उसने कहा "मैं आज ऑफिस से लंच आवर्स में आ जाउंगी आप भी आ जाना जगह मैं आपको मैसेज में सेंड कर दूंगी साथ बैठकर कॉफ़ी पियेंगे। ये टैक्सी आपको वापस वहीँ ड्राप कर देगी, जहाँ से आप बैठे थे।" उसका ऑफिस आ गया था।

मैंने कहा "मैं टैक्सी से नहीं उतरूंगा, मैं नहीं चाहता मुझे आपका कोई ऑफिस स्टाफ देखे।आप भी टैक्सी से उतरकर, मुड़कर मत देखना।", मैं उसे अपलक निहार रहा था , और वो परियों की शहज़ादी टैक्सी से उतरकर, अपने ऑफिस चली गई। मैं जानता था …..वो पलटकर देखना चाहती थी, मगर मेरे मना करने के कारण उसने पलटकर नहीं देखा, वो मुझसे दूर जाते हुए यूँ महसूस हो रहा था जैसे ज़िन्दगी मुझसे दूर जा रही थी।

टैक्सी घूम गई और मुझे वहीं ड्रॉप कर दिया जहाँ से पिक किया था, इस दौरान उसका मैसेज आया था, “रूम पर पहुँचते ही नाश्ता कर लेना, फिर आपको भी ऑफिस निकलना है। वहाँ बिज़ी हो जाओगे तो कुछ खा नहीं पाओगे। आपको देखकर बहुत अच्छा लगा , काश …आप हमारे शहर में रहते तो हम जब मन होता आपको देख लेते …...आज हमने आपको चार महीने बाद देखा है, आपको कहाँ आना है ये हम आपको मैसेज कर देंगे, आप अपना काम लन्च तक निबटा लेना, तब तक बाय।”

मैंने रूम में पहुंचकर काफी देर तक खुद को शीशे में निहारा उसने कहा था “आप पर सफ़ेद शर्ट बहुत सूट कर रहा है।” मेरे गाल लाल हो गये थे, बड़े प्यार से मैंने उसका दिया बैग खोला, उसमें एक, दो खानों का छोटा सा टिफिन था, एक प्रोबायोटिक दही का पैकेट था, दो गुलाबी टिश्यु पेपर थे।

मैंने टिफिन खोल कर देखा, एक खाने में दो लड्डू थे , एक में तीन परांठे और उसपर कच्चे आम का आचार था। मैंने नाश्ता करना शुरू किया हर एक कौर खाते हुए मुझे उसका चेहरा याद आ रहा था , कितने प्यार से मेरे लिए नाश्ता बनाया होगा, जितनी ख़ुशी मुझे इसे खाकर हो रही है, उतनी ही उसे नाश्ता बनाते वक़्त महसूस हुई होगी।

मेरे होठों पर एक खुबसुरत मुस्कुराहट तैर गई थी। नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था, आचार के तीन पीस थे मुझसे एक और आधा पीस ही खाया गया। मैंने बाकी आचार टिफिन में ही छोड़ दिया| मुझे उसके मरमरी हाथों के छुअन का एहसास हो रहा था, तभी उसका मैसेज आया “ये आचार और लड्डू भी हमारे बनाये हुए हैं,कैसे लगे आपको?” मैंने उसे। “😋👌👌.” मैसेज किया तो उधर से मैसेज आया “😊😊🙏,बाय।”

मैंने ऑफिस जाने के बाद जल्दी ही अपना काम निबटा लिया कोई ज्यादा काम नहीं था बस कुछ ज़रूरी दस्तावेज जमा करवाने थे जो पहले से ही मैं तैयार कर के लाया था। उसके शहर में हमारे विभाग का क्षेत्रीय कार्यालय था मेरा कोई तीन चार महीने से आना जाना होता रहता था वहाँ।

उसका मैसेज आया “हम आपको केलकर म्यूजियम में मिलेंगे आप ठीक 2.30 पर मिले हम 3.30 तक आपके साथ रह सकते हैं|” मैं जल्दी से वहाँ से निकल गया मेरे लिए जगह नई थी इसलिए मुझे समय नहीं गंवाना था, क्यूंकि हमारे पास केवल 60 मिनट थे वहाँ एक दूजे के साथ रहने के लिए। मैं नियत समय पर वहाँ पहुँच गया था, मगर तब तक वो नहीं आ पाई थी, मैं बेचैनी में इधर उधर नजरें दौड़ा रहा था , ये इन्तज़ार भी बहुत बेकार चीज़ है, हर लम्हा घंटों सा बीत रहा था ।

संजय नायक"शिल्प"
क्रमशः