Agnija - 142 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 142

Featured Books
Categories
Share

अग्निजा - 142

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-142

केतकी के लिए दिल्ली बिलकुल ही अनजान थी। हवाई अड्डे से होटल तक पहुंचने में ही दिल्ली ने उसे ठेंगा दिखा दिया। ऑटो वाले ने सात सौ रुपए मांगे। केतकी विचार में पड़ गयी तो उसने कहा, ‘बिटिया चलो छह सौ ही दे देना।’ उसने वहीं पास के एक काउंटर से, जहां पर टैक्सी स्टैंड लिखा हुआ था, वहां जाकर बुकिंग करवाई। केवल दो सौ सत्तर रुपए में उसे टैक्सी मिल गयी।

होटल का दरबान दौड़ता हुआ आया और उसने सलाम बजाया। बाकी लोग भी उसकी तरफ देखते रह गये। केतकी असमंजस में पड़ गयी थी। उसे इस बात का कारण समझ में नहीं आ रहा था। बिना बालों के क्या वह बहुत अजीब दिखाई दे रही है क्या? क्या इसी लिए लोग उसे ध्यान से देख रहे हैं? काउंटर पर रजिस्ट्रेशन करने के बाद उसे कमरा मिल गया। उसे देखकर उसकी रूम पार्टनर राधा मानकोटिया हैरत में पड़ गयी। ‘आप कंटेस्टेंट हो? मुझे तो लगा कि आप जज होंगी।’ केतकी को यह सुन कर अच्छा लगा। लेकिन फ्रेश होकर जब वह बाथरूम से बाहर निकली तो उस लड़की का फोन पर चल रहा वार्तालाप सुनकर उसकी सारी खुशी खो गयी। राधा अपनी मां से फोन पर बात कर रही थी, ‘मम्मा, मेरी रूम पार्टनर कोई टकरी है, टकली।’ केतकी को बाहर आते देख उसने फोन बंद करते हुए कहा, ‘बाद में बात करती हूं मम्मा, बाय...’

दो दिन अलग-अलग बातें सिखायीं गयीं। उस समय ट्रेनर्स के साथ तीन जज हाथ में नोटपैड लेकर एक कोने में टेबल के पास बैठे हुए थे। इन जजों में दिल्ली के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी मनोहर कपूर, सोशल वर्कर वीना कुकरेजा और टीवी कलाकार अदिति करमरकर थे। मनोहर कपूर ने उससे सवाल किया, ‘ये बालों की समस्या आपको कब से है?’ वीना कुकरेजा ने उससे जरा स्टाइल से पूछते हुए आशंका व्यक्त की, ‘क्या आप बिकिनी राउंड कर लेंगी?’ अदिति ने कुछ नहीं पूछा, बस उसकी तरफ देखती रही और बोली, ‘लुकिंग एट यू, आई गेट गूज बंप।’

केतकी ने सभी राउंड उम्मीद से ज्यादा अच्छे किये। अब सवाल केवल एक ही था। इन सौ प्रतिभागियों में से अगले राउंड में जाने वाले साठ प्रतिभागियों में उसका नंबर लगेगा या नहीं? मनोहर कपूर ने केतकी को लॉबी में आवाज देकर रुकवाया। ‘वैसे तो मैं ब्यूटी कॉन्टेस्ट देखता नहीं। पहली बार यहां जज बनकर आया हूं। मगर खुशी है कि मैं यहां आया वरना आपसे मिलने का मौका मेरे हाथ से चला जाता। आप बहुत आगे जाएंगी जीवन में। यह तो बस शुरुआत है। ’

केतकी जैसे-तैसे ‘थैंक्यू’भर बोल पायी।

‘मेरी एक बात मानेंगी?’

‘जी ज़रूर।’

‘देखिए, ये जीवन एक रंगमंच है। यहां जो भी रोल मिले, उसे जरूर निभाइएगा। ऊपर वाले के स्क्रीनप्ले में सबके लिए कुछ न कुछ है। मुझे तुममें बहुत सारी उम्मीदें दिखाई देती हैं। अब हम नहीं मिलेंगे मगर तुम मेरे जेहन में हमेशा रहोगी। और मेरी शुभकामना और आशीर्वाद तुम्हारे साथ हरदम रहेंगे।’

केतकी हतप्रभ थी। भारतीय रंगमंच के भीष्मपितामह माने जाने वाले, पद्मभूषण कलाकार-अभिनेता उससे ये बातें कह रहे थे?

‘बहुत बहुत शुक्रिया सर। इस कॉम्पीटिशन के लिए नहीं, मगर जीवने के लिए कोई एक टिप देना चाहेंगे मुझे?’

‘भगवान नटराज को जानने की कोशिश करो।’ इतना कहकर उन्होंने केतकी के सिर पर हाथ रख दिया और वहां से निकल गये। दूसरे दिन शाम को मालूम पड़ा कि नतीजा अगले दिन मिलेगा।

केतकी बड़ा संतोष और अनुभव लेकर दिल्ली से वापस लौटी। उसे नतीजे की चिंता नहीं थी। जो हो सो हो। अगले दिन आयोजकों की तरफ से एक युवती का फोन आया, ‘सेमीफाइनल के लिए साठ लोगों में आपको चुना गया है। कॉन्ग्रेचुलेशन्स मैम। फरवरीके सेकंड वीक में सेमीफाइनल दुबई में होगा। तीन दिनों के लिए। शीघ्र ही डिटेल्स आपको मिल जाएंगे।’ केतकी के चेहरे पर खुशी फैल गयी। लेकिन भावना तो खुशी के मारे उछलने ही लगी। केतकी उसे शांत करते हुए बोली, ‘अभी मेरे साथ मैदान में साठ प्रतिभागी हैं...समझी न...और यदि मैं स्वयं जज रहूं तो भी मेरा नंबर नहीं लग पाएगा, इतनी होशियार लड़कियां हैं इस प्रतियोगिता में। ’

‘होंगी कई होशियार...लेकिन मेरी केतकी बहन सरीखी तो कोई नहीं होगी न?’

केतकी सोच में पड़ गयी। दुनिया कितनी दोगली और दंभी होती है। मुंह पर केतकी, केतकी करेगी और पीठ फेरते ही टकली, टकली कहेगी। तिरस्कार और मजाक के कारण ही एलोपेशिया से ग्रस्त लोग...खासकर हमारे देश में अपराधभावना के शिकार हो जाते हैं। और इसी लिए ये लोग समाज में घुलने मिलने से डरते हैं। अज्ञानी लोग टकली शब्द का इस्तेमाल हथियार की तरह करते हैं और उसके समान एलोपेशिया से पीड़ित लोगों को रक्तरंजित करते रहते हैं। इस हथियार का सामना कैसे किया जाए? अपना नाम बदल कर केतकी जानी की जगह केतकी टकली कर दिया जाए तो कैसा रहेगा? तब न रहेगा शस्त्र, न मिलेंगे घाव।

केतकी दिल्ली फतह करके आयी इस खुशी में प्रसन्न केतकी के लिए, उसके मित्र द्वारा दी गयी वाइन की बोतल लेकर आया। उसको देते हुए बोला, ‘नाम बदलने से कुछ नहीं होने वाला। उससे बेहतर है अधिकाधिक आत्मविश्वास प्राप्त करके लोगों को दिखा दो कि हम भी किसी से कम नहीं। सामान्य लोग भले ही तुम्हारे आत्मविश्वास से वाकिफ न हो पाएं लेकिन तुम्हारी तरह एलोपेशिया से पीड़ित लोगों के लिए तो तुम प्रेरणा रहोगी। उन्हें भी तुम्हारी ही तरह समाज में निडर होकर घूमने-फिरने का आत्मविश्वास प्राप्त होगा तुम्हारी वजह से। ऐसे दो-चार लोगों के भीतर भी यदि आत्मविश्वास जाग गया तो हमारी जीत होगी। हमारे लक्ष्य प्राप्ति की शुरुआत होगी वह।’

केतकी उसका कहना मान रही थी, उसी समय तारिका चिनॉय और प्रिंसिपल मेहता मैडम केतकी जानी के विरोध मे शिकायत पत्र लिख रही थीं। इस पत्र में विद्यार्थियों के पालकों के हस्ताक्षर लेकर ट्रस्टी को देने वाली थीं। लेकिन दोनों को लग रहा था कि शिकायत करने का कोई ठोस कारण होना चाहिए और उन्हें कारण अब मिल गया था। एक दिन पहले केतकी ने खुद ही उसके बारे में अपनी कक्षा में विद्यार्थियों के सामने प्रदर्शन कर दिया। हरेक शिक्षक  को अपनी कक्षा के लिए साल में एक बार एक स्पेशल प्रोजेक्ट करना पड़ता था। केतकी ने अपने प्रोजेक्ट के बारे में सूचना दी। उसका विषय था ‘सौंदर्य प्रतियोगिता’। उसे लगा कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए यह प्रोजेक्ट बहुत अच्छा रहेगा। ‘अगले शनिवार को सुबह आठ से रात आठ बजे के दौरान ये प्रतियोगिता होगी। सुबह आठ से बारह बजे तक ग्रूमिंग यानी तैयारी करवायी जाएगी। बाद में दोपहर को दो बजे से प्रतियोगिता शुरू होगी। इसमें क्या करना है और क्या बनना है, इसकी सूची कल सभी को दे दी जाएगी। ’

इस प्रोजेक्ट के कारण बच्चे बिगड़ जाएंगे। ये सब हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। ऐसे कई झूठे कारण बताकर तारिका ने आवेदन बनाया। बच्चों के मन पर ऐसी प्रतियोगिताओं का किस तरह से बुरा असर हो सकता है और इससे किस तरह के नागरिक तैयार होंगे? बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना ठीक है क्या ? ये सब बातें लिखकर इस पत्र पर हस्ताक्षर करवाने थे। लेकिन ये काम आसान नहीं था। विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के बीच केतकी इतनी लोकप्रिय थी कि ये दांव उन पर उलटा भी पड़ सकता था।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

======