Agnija - 131 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 131

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अग्निजा - 131

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-131

केतकी को विश्वास ही नहीं हो रहा था। सामने से ट्रॉली खींचते हुए मालती आ रही थी। केतकी अपनी ट्रॉली भूलकर मालती की ओर दौड़ी। मानो कई सालों से बिछड़ी हुई सगी बहन उसे मिल गयी हो, ऐसा आनंद उसके चेहरे पर दिख रहा था। उसने मालती का हाथ पकड़  लिया। उससे गले मिलने की इच्छा हो रही थी। उसके कंधे पर अपना सिर रखकर रोने का मन कर रहा था। केतकी को बहुत खुशी हो रही थी लेकिन मालती के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे केतकी से मुलाकात होने की जरा भी खुशी हुई हो। इसके उलट, उसे केतकी को इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते देखकर आश्चर्य हो रहा था। सिर पर एक भी बाल न होते हुए भी वह यहां कैसे आ गयी? मालती को लग रहा था कि वह खुद को चिकोटी काटकर देखे कि यह सच है या नहीं। उसका एक हाथ केतकी के हाथ पर था, दूसरा ट्रॉली पर। केतकी सामने खड़ी है इस पर मालती को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। केतकी उसे इस तरह यहां मिल जाएगी, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने इस प्रतियोगिता का फॉर्म भरा था, लेकिन किसी को इस बारे में बताया नहीं था। ऑडिशन में उसका चयन हो ही जाएगा, इस बात का पक्का भरोसा था। इसके बाद जब वह मॉडल बनकर विज्ञापनों में काम करने लगेगी तो सभी सहेलियों को उससे ईर्ष्या होगी, यह पक्का। लेकिन अब इस प्रतियोगिता में केतकी कहां से आ गयी?

केतकी को देखकर उसे जो झटका लगा था, उससे उबरते हुए मालती ने हॉल में चारों तरफ नजरें घुमायीं, लेकिन उसके पैरों में जैसे जान ही नहीं रह गयी थी। उसे रोना आ गया। यहां उसे कोई भाव नहीं मिलने वाला, इस बात का अहसास होते ही वह सोफे पर निढाल होकर बैठ गयी। उसका फक्क पड़ा चेहरा देखकर केतकी डर गयी, ‘मालती, क्या हुआ, तुम्हरारी तबीयत तो ठीक है न? क्या हो रहा है तुमको?’ मालती ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सामने के दरवाजे से आ रही एक नवयुवती की तरफ देखती रह गयी। केतकी का भी ध्यान उस तरफ गया। पहले तो केतकी को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन बाद में लगा कि उस लड़की ने एकदम मालती की ही तरह कपड़े पहन रखे थे। रंग, डिजाइन सबकुछ सेम टू सेम। उसके बाद केतकी ने हॉल में सभी तरफ नजरें घुमायीं तो देखा कि और तीन-चार लड़कियों ने मालती की ही तरह कपड़े पहन रखे हैं। यह सब देखकर मालती का धीरज चुक गया। उसे बेचैन देखकर केतकी ने उसके कानों में कहा, ‘इसमें इतना परेशान होने जैसी कौन सी बात है? कपड़े बदल डालो न?’ मालती ने जैसे-तैसे उत्तर दिया, ‘मैं अपना यही एक बेस्ट ड्रेस लेकर आयी हूं। अब क्या करूं?’ केतकी को याद आया, भावना ने उसकी बैग में दो और अच्छे ड्रेस रख दिए थे, ‘इस ड्रेस में असहज लगे तो ड्रेस बदल लेना...ठीक है न?’ यह सलाह भी उसने दी थी। उसमेंसे एक केतकी का बेहद पसंदीदा पीच ब्लू कलर का एक ड्रेस भावना ने जिद करके, कसम देकर खरीदने के लिए कहा था। ‘इसे रख लो...हो सके तो अपने जन्मदिन पर पहन लेना...’ केतकी, मालती को लेकर ड्रेसिंग रूम में गयी। और खुशी-खुशी अपनी ट्रॉली बैग खोलकर उसे दिखा दिया। मालती ने तुरंत पीच ब्लू ड्रेस उठाया। बिना धन्यवाद दिये वह ड्रेस बदलने के लिए भीतर चली गयी। जब वह उसे पहनकर बाहर निकली तो बहुत अच्छी दिख रही थी। दोनों सोफे पर आकर बैठ गयीं तब चार-पांच प्रतियोगियों ने मालती के ड्रेस की तारीफ की, ‘नाइस ड्रेस।’ मालती को बहुत खुशी हो रही थी। वह केतकी की ओर देखे बिना ही सभी को थैंक्स कहती रही। उसके कारण मालती इतनी खुश है, यह देखकर केतकी को अच्छा लग रहा था। वरना बेचारी कितनी नर्वस हो गयी थी। अचानक मालती के ध्यान में आया कि केतकी उसकी तरफ ही देख रही है। वह जरा तनकर बैठ गयी और अपने लंबे काले बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘मुझे पक्का भरोसा है कि इस राउंड में मेरा चयन अवश्य हो जाएगा। अच्छा उम्मीदवार न मिला और तुम्हारा नसीब जोरदार रहा तो तुम्हारा भी नंबर लग सकता है...निराश मत होना.. ’ केतकी को बुरा लगा कि मालती ने औपचारिकता के नाते भी धन्यवाद तो दिया ही नहीं, पर इस तरह से बोलना? कोई इतना एहसानफरामोश कैसे हो सकता है? जाने दो... केतकी ने मालती की ओर ध्यान नहीं दिया और सामने देखने लगी। ऑडिशन देकर एक लड़की बाहर निकली। सभी उससे पूछने लगीं कि क्या पूछते हैं? कितने जज हैं? कैसे हैं, क्या उत्तर दिया जाना चाहिए? केतकी को ऐसा नहीं लगा कि किसी से जाकर पूछा जाए, पर मालती भागकर गयी। उस भीड़ में गुम हो गयी। केतकी को लगा कि लीक हो चुके प्रश्नपत्र के सहारे पढ़ाई करके पास होना उस जैसी शिक्षिका को शोभा नहीं देता। अब यह अपने आपको समझाने का बहाना था या फिर परिणाम का भरोसा था कि वह निश्चिंत बैठी थी, पता नहीं।

मालती ने ऑनलाइन फॉर्म पहले भरा था, इस लिए उसका नंबर पहले आया। ऑडिशन रूम से जब वह बाहर निकली तो उसके चेहरे पर खुशी थी। आत्मविश्वास और अभिमान था। एक महिला जज ने उसके ड्रेस के लिए ‘नाइस कलर’ कहकर टिप्पणी की थी। लेकिन यह बात उसने केतकी को बतायी ही नहीं उल्टा इस रंग को खोजने के लिए उसने कैसे चार दिन बिताए, यह झूठ वहां पर बोला। अब केतकी के मन में भी मालती को लेकर किसी तरह की कोई भावना नहीं थी। उसने ड्रेसिंग रूम की तरफ ऊंगली दिखाते हुए उससे कहा, ‘ड्रेस बदलकर वापस करो।’ मालती अंदर चली गयी। कुछ ही देर में अपना पहले वाला ड्रेस पहन कर आ गयी। केतकी का ड्रेस वापस करते हुए बोली, ‘ड्रेस का रंग बहुत गहरा है। पैटर्न भी कुछ खास नहीं और फिटिंग भी नहीं थी। लेकिन जजेस को प्रभावित करने के लिए मुजे किसी भी ड्रेस की आवश्यकता नहीं थी। चलो...मैं निकलती हूं...’

कुछ आगे निकलने के बाद उसने मुड़कर कहा, ‘जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है, यही विचार करके जो भी फैसला हो उसका बुरा मत मानना। मुझसे बाद में मिलना। मैं तुमको कुछ अच्छी टिप्स दूंगी।’ इतना सुनकर दो-तीन प्रतियोगी लड़कियां केतकी की तरफ देखने लगीं। और उनके चेहरे पर उसका मजाक उड़ाने वाला भाव आ गया।

केतकी ने सब कुछ अपने मन से उतार दिया। आंखें बंद करके बैठ गयी, तो उसकी नजरों के सामने प्रभुदास बापू, लखीमां, जनार्दन का धुंधला चेहरा, यशोदा, भावना, पुकु, निकी दिखने लगे। और दूर कोने में प्रसन्न शर्मा। पहली बार उसने विचार किया कि उसकी सफलता से इन सभी लोगों को कितना आनंद होगा।

 

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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