शिवा उपर पेड़ पर देखता है तो उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है
साहब.....साहब
पेड़ पर सियाराम की लाश लटकी हुई थी,यह देखते ही उसकी सांसें अटक जाती है वह कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि ये इतनी सी देर में कैसे हो गया उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया था।
सियाराम की लाश की ऐसी हालत हो गई थी की यकीन करना मुश्किल था,
उसके पुरे शरीर पर बहुत सारी कीलें चुभी हुई थी जिनसे खून निचे टपक रहा था, उसकी आंखों की जगह खून ही खून निकल रहा था , जैसे किसी ने उसकी आंखें ही निकाल ली हो ।
वहां पेड़ के नीचे खुन ही खुन हो गया था, जैसे किसी ने खून के गुब्बारे फोड़े हो ,
शिवा कुछ सोचता उससे पहले ही वहां एक जोर की आवाज आती है यह आवाज इतनी तेज थी कि पुरी घाटी गुंज उठती हैं
जा मूर्ख इंसान, जाकर बता दें अपने गांव वालों को उनका काल आ गया है और ये भी बता देना की जो यहां पर मेरी जगह पर आएगा उसका यही हाल होगा जा....
और एक जोर की हंसी सुनाई देती है
हाहाहाहाहाहाहा....................आ
(गांव में)
सरपंच साहब के घर की दीवार का गेट खुलने की आवाज आती है, आवाज सुनते ही रामू काका दौड़कर चिल्लाते हैं साहब..अ
क्योंकि शिवा सियाराम को अपने कंधे पर लेकर आया था,
रामू काका की आवाज सुनते ही रुक्मणी के हाथों से पानी का गिलास छूट जाता है
वह दौड़ते हुए छत से आती है और देखती है तो उसके पति की लाश उसके सामने पड़ी थी सियाराम की लाश को देखकर उसे यकीन नहीं हो रहा था वह वही रोने लगती है ,
उसके रोने की आवाज सुनते ही गांव वाले वहां जमा होने लगते हैं
थोड़ी देर बाद शिवा की मां रेणुका भी वहीं आ जाती है
रेणुका- शिवा क्या हुआ
तभी उसकी नजर सियाराम की लाश पर पड़ती है
सियाराम की लाश को देखकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होता है
रेणुका- शिवा कैसे हुआ ये सब और तुम्हारे पिता कहा है
लेकिन शिवा कोई जवाब नहीं देता है
रेणुका- शिवा, में तुमसे पुछ रही हूं। जवाब दो मुझे
तभी भीड़ में से एक आदमी कहता है अरे वह क्या जवाब देगा ये सब तुम्हारे कारण हुआ है
और एक आदमी कहता है
हां हमने कहा था कि वहां पर जाना अपनी मौत को दावत देना लेकिन फिर भी उन्होंने नहीं माना और वहां पर चले गए।
अगर हमारी बात मान ली होती तो आज यह सब देखना नहीं पड़ता।
शिवा- मेरी वजह से ही यह सब हुआ है इसलिए आप जो भी मुझे सजा देना चाहे वह मुझे मंजूर है
तभी रुक्मणि अपने आंसू पोंछते हुए कहती है
रुक्मणि- जो भाग्य में लिखा होता है उसे कोई नहीं बदल सकता , सियाराम का साथ यही तक था ।
लेकिन शिवा तुम्हें मेरे पति का बदला लेना है और अपने पिता को ढूंढना है
जाओ शिवा और तब तक मत आना जब तक उस राक्षस का अंत नहीं कर दो। जाओ
रेणुका- हां बेटा जाओ
तभी सभी लोग वहां से चले जाते हैं और शिवा व रेणुका भी अपने घर की ओर जाने लगते हैं ।
(घर पर)
रेणुका- जाओ बेटा अपने पिता को ढूंढ के लाओ और उस राक्षस के अंत का तरीका निकालो
शिवा- हां मां मैं जा रहा हूं, जब तक पिताजी को नहीं ढूंढ लेता और साहब की मौत का बदला नहीं ले लेता तब तक मैं आपको अपनी शक्ल नहीं दिखाउंगा।
रेणुका - जाओ सफल होकर आना , और अपना ख्याल रखना।
शिवा - आप भी।
यह कहते ही शिवा वहां से जाने लगता है।
वह बहुत से गांव में जाता है बहुत से साधु-संतों से मिलता है
लेकिन कोई भी उससे उस राक्षस के बारे में कुछ नहीं बता पाता है
धीरे-धीरे शिवा का होंसला टुटने लगता है
लेकिन उसे अपने पिता को ढूंढना था और सिया राम की मौत का बदला लेना था ।
ढुंढते- ढुंढते उसे एक महिना हो जाता है
वह ऐसे ही जाते-जाते एक गांव मे पहुंच जाता है जिसका नाम होता है हिमनगर
हिमनगर गांव में वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ होता है तभी भी उसे सामने से बहुत सारे लोग आते हुए दिखाई देते हैं
शिवा - इतने सारे लोग कहां जा रहे हैं ।
तभी वह एक आदमी से पूछता है कि आप लोग कहां जा रहे हैं, तब वह आदमी कहता है कि तुम्हें नहीं पता आज विश्वनाथ महाराज हमारे गांव में पधारे हैं , उनसे कोई भी समस्या कहो वह सबका हल निकाल देते हैं,हम भी वहीं जा रहे हैं, उस व्यक्ति की बात सुनकर शिवा को एक नई आशा की किरण दिखाई देती है
शिवा भी उनके साथ बाबा के आश्रम में जाता है
वह आश्रम एक छोटे से पहाड़ की चोटी पर स्थित था,
जिसके चारों ओर पेड़ ही पेड़ थे , उनके बीच में स्थित थी एक छोटी सी कुटिया, कुटिया के सामने एक बहुत बड़ा नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चबूतरा बना हुआ था, जिस पर विश्वनाथ महाराज बैठे हुए थे ,
उनके पास दो शिष्य भी थे जो उनकी सेवा में तत्पर रहते थे।
वहां पर लोगों की एक लंबी कतार लगी हुई थी , जिसमें शिवा भी था ।
विश्वनाथ महाराज सभी लोगों की समस्या एक एक करके देख रहे थे और उन्हें उपाय बता रहे थे,
शिवा भी अपनी बारी आने का इंतजार ही कर रहा था , की विश्वनाथ महाराज की नजर उसपर पड़ती है , और वह अपने शिष्य से कान में कुछ कहता है ।
शिष्य उनकी बात सुनकर शिवा की तरफ देखता है और उसके पास आने लगता है।
शिष्य को अपने पास आते देखकर शिवा कुछ समझ पाता
उससे पहले ही शिष्य ने कहा कि
शिष्य- आपको गुरुजी ने अपनी कुटिया में पधारने को कहा है
शिवा - मुझे, पर क्यों ?
शिष्य- थोड़ी देर बाद गुरुजी से ही बात कर लेना
शिवा- ठीक है चलो ।
शिवा उसके पीछे पीछे जाता है और कुटिया में चला जाता है, थोड़ी देर बाद गुरुजी वहां पर आते हैं और शिवा का नाम लेते है ।
विश्वनाथ- कैसे हो शिवा
(आखिर गुरु जी शिवा का नाम कैसे जानते थे , और क्या अब वह शिवा की मदद करेंगे , आगे पढ़ने के लिए फॉलो कर लो )