This is not bondage - 3 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | यह बंधन नही है - 3

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यह बंधन नही है - 3

"आप तो लेक्चरार है,उन्हें समझा सकते हैल"
"हम किस किस का मुह पकड़ेंगे।"
मुझे अपने पापा से बहस करना उचित नही लगा।मैं नही चाहती थी कि मेरे निर्णय के कारण मा बाप पर किसी तरह का आक्षेप लगे।या मेरे शादी न करने के निर्णय से मा बाप का नाते रिश्तेदारी में नाम नीचा हो।मैं किसी पर आश्रित नही थी।अपने पैरों पर खड़ी थी।इसलिए मैंने अपने माता पिता का घर छोड़ दिया।और मैं अलग मकान लेकर अकेली रहने लगी।
मेरे साथ बैंक में मर्द भी कम करते थे।राहुल भी था।राहुल का मथुरा ट्रांसफर हो गया और मथुरा से ट्रांसफर होकर सतीश आगरा आया था।
सतीश लंबे कद काठी का सुंदर नोजवान था।वह संजीदा किस्म का खुले विचारों का था।मेरा काम या जॉब पब्लिक था।रोज सैकड़ो लोगो के सम्पर्क में आती थी।जिनमे युवक भी होते थे.।लेकिन किसी भी युवक को देखकर या मिलकर मेरे दिल मे कुछ नही हुआ था।लेकिन सतीश पहला युवक था जिससे मिलकर मेरे दिल मे कुछ कुछ हुआ था।मैं शुरू से ही पुरषो से दूर भागती थी।कोई मेरा पुरुष मित्र नही था।मैं आदमियों से उतनी ही बात करती थी जितनी जरूरी हो। लेकिन सतीश की तरफ दोस्ती का हाथ मैने बढ़ाया था।सतीश भी मेरी तरफ आकर्षित हुआ था।बैंक में तो हम साथ रहते ही थे।अब छुट्टी के दिन भी हमारे साथ गुजरने लगे थे।छुट्टी के दिन कभी हम ताजमहल जाते,कभी सिकंदरा या फतेहपुर सीकरी।हम साथ खाते पीते,पिक्चर देखते और शॉपिंग करते।लेकिन मैं इस तरह साथ रहने या समय गुजरने को प्यार नही मानती थी।जब दो मर्द दोस्त हो सकते है।दो औरते दोस्त हो सकती है।तो एक मर्द और एक औरत दोस्त क्यो नही हो सकते।जैसा मैं पहले ही कह चुकी हूँ।मैं शादी के बंधन में नही पड़ना चाहती थी।सतीश से मेरी घनिष्ठता को मैं दोस्ती ही मानती थी।लेकिन सतीश इस निकटता को प्यार समझने लगा।वह मानता था कि मैं उसे चाहने लगी हूँ।प्यार करने लगी हूँ।इसलििि एक दिन जब हम ताज महल के बगीचे में बैठे थे।तब अपने प्यार का इजहार करते हुए बोला,"हम दोनों अगर जिंदगी भर
के लिये एक सूत्र में बंध जाए तो?"
सतीश की बात सुनने के बाद में बोली,"तुम्हारा मतलब शादी से है।"
"तुमने बिल्कुल सही समझा।मैं तुम्हे चाहता हूँ।तुमसे प्यार करता हूँ।और तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।"
"सतीश मैं आजाद ख्यालो की औरत हूँ।मैं अपनी जिंदगी अपनी तरीके से जीना चाहती हूँ।जबकि शादी एक बंधन है।विवाह नारी के लिए परतंत्रा है।"मैं बोली थी।
",मैं भी आजाद ख्यालो का हूँ।मैं भी औरत की स्वतंत्रा का हिमायती हूँ।तुम शादी को बंधन कह रही हो लेकिन शादी बंधन नही है,"सतीश बोला,"शादी के बाद तुम्हारी स्वतंत्रता में कोई खलल नही पड़ेगा।मैं अपने विचार तुम पर नही थोपुंग।तुम अपनी मर्जी की जिंदगी जीना।"'
"औरत जब तक कुंवारी है तब तक ही स्वतंत्र है।औरत के पत्नी बनते ही वह चूल्हे चौके और गृहस्थी में फंसकर रह जाती है,"मैने कहा था,"उसे इतनी फुर्सत ही कहा मिलती है कि वह कुछ सोच सके।"
सतीश ने मुझे हर तरह से समझाने का प्रयास किया था।उसकी बात सुनकर मैं बोली,"नही सतीश।तुम मेरे दोस्त हो और मैं तुम्हे अपना दोस्त ही रखना चाहती हूँ।मैं तुम्हे अपना पति नही बनाना चाहती हूँ।दोस्त ही रखना चाहती हूँ।"