Hanuman Prasad Poddar ji - 9 in Hindi Biography by Shrishti Kelkar books and stories PDF | हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 9

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 9

व्यवस्थाके लिये अपरिचित व्यक्तिको स्वप्नादेश

बम्बई प्रवासके समय एक और विचित्र घटना घटित हुई। भाईजी एक बार किसी कार्यवश इन्दौरके पास एक महू नामक नगरमें गये। वे पहुँचे तबतक रात्रि हो गयी थी। वे एक धर्मशालामें गये और वहाँके व्यवस्थापकसे रहनेके लिये स्थान माँगा। व्यवस्थापकने कह दिया यहाँ कोई कमरा खाली नहीं है। भाईजीने पुनः कहा मुझे तो केवल रात्रि-विश्राम करना है, कोई छोटा स्थान भी दे दें तो काम चल जायगा। व्यवस्थापकने कुछ रुखाईके साथ कहा— आपको एक बार कह दिया यहाँ कोई कमरा खाली नहीं है। किसी होटलमें ठहर जाइये। होटलमें ठहरनेका भाईजीके लिये प्रश्न ही नहीं था। अतः वे चुपचाप बाहर आ गये। सोचने लगे काफी देर हो गई है पर शेष रात्रिको गुजारनेके लिये कहीं विश्राम तो करना ही है। उनकी दृष्टि धर्मशालाके पास एक स्थानपर गई। वहाँ जाकर देखा तो एक अस्तबल था। एक किनारे घोड़ा बाँधनेका स्थान था, दूसरा किनारा खाली था। भाईजीने सोचा यहीं रात्रि विश्राम किया जाय। उन्होंने उस स्थानको हाथसे ही साफ किया। दिनभरके थके हुए थे, बिस्तर खोला और बिना खाये-पीये ही सो गये। थकानके कारण सोते ही नींद आ गयी। उस धर्मशालाका मालिक बड़ा आस्तिक एवं धर्मपरायण था। उसी रात्रिमें उसे स्वप्न हुआ--भगवान् कह रहे हैं तुम्हारी धर्मशालाके पास जो अस्तबल है उसमें मेरा एक भक्त भूखा सो रहा है। तुम जाकर उसके खाने-पीने और ठहरने-सोनेकी समुचित व्यवस्था करो।
धर्मशालाके मालिककी नींद खुल गयी। वे हड़बड़ाकर उठे। रात्रिमें तत्काल धर्मशाला आये और देखा कि बगलके अस्तबलमें एक व्यक्ति सो रहा है। स्वप्नकी बात सच्ची देखकर हृदय गद्गद हो गया। प्रभुकी अद्भुत अनुकम्पा देखकर भाव-विभोर हो गया। निकट जाकर बड़े आदरसे भाईजीको
जगाया, आदरसे प्रणाम किया। भाईजीने बड़े प्रेमसे पूछा— आप कौन हैं? इस समय आपका आना कैसे हुआ ? मेरे लायक कोई बात हो तो कहिये।
उसके मुखसे भाव-विभोर अवस्थामें शब्द ही नहीं निकल रहे थे। नेत्र सजल हो रहे थे। उसी अवस्थामें भाईजीके चरणोंपर अपना मस्तक रख दिया। भाईजीने उसकी पीठ हाथसे सहलाते हुए कहा— कहिये, क्या बात है ?
कुछ रुककर उसने कहा— आपकी कृपासे आज मुझे भगवान्ने अपना लिया और अपने भक्तकी सेवा सौंपी है। फिर स्वप्नकी सारी घटना सुनाई। उसने बिस्तर अपने हाथसे समेट लिया और भाईजीको अपने साथ चलनेकी प्रार्थना की। भाईजीको उसका आतिथ्य स्वीकार करना पड़ा। अपने घर लाकर भाईजीको भोजन कराया एवं वहीं शयनकी व्यवस्था की। दोनोंके हृदय प्रभु अनुकम्पासे आप्यायित थे।

पारसी प्रेतसे बातचीत

भाईजीके बम्बई-निवासके समय लगभग सं० १६८२ की घटना है। भाईजीने इसका विवरण एक प्रसंगमें बताया था—
साधना प्रारम्भ होनेपर उसमें तीव्रता आने लगी थी। मैं प्रतिदिन सायंकाल भोजन करनेके पश्चात चौपाटीमें समुद्रके किनारे चला जाता था। बहुत-सी बेन्चें पड़ी रहती थीं, वहाँ बैठकर नाम-जप एवं भगवच्चिंतन करता था। एकान्त रहता था, कुछ अंधेरा-सा रहता था। एक दिन मैं बेंचपर बैठा नाम-जप कर रहा था। अचानक मेरी बेन्चके ठीक सामने मेरे पैरोंकी तरफ एक पारसी सज्जन खड़े दिखायी दिये। पारसियोंके पुरोहित बहुत देर
हुए थे। विशेष प्रकारकी पोशाक पहनते हैं, वैसी पोशाक पहने तक मैं नाम-जप करता रहा, वे खड़े रहे। फिर सभ्यतावश मैंने कहा— "साहेबजी! आप बैठ जाइये, खड़े-खड़े आपको बहुत देर हो गयी।" वे बोले— "आप डरियेगा नहीं, मैं प्रेत हूँ" यह सुनते ही मैं भयभीत हो गया, मुझे पसीना आ गया। उन्होंने फिर कहा "आप डरिये नहीं, मैं आपका अनिष्ट नहीं करूँगा। मैं आपसे सहायता चाहता हूँ, आपका मंगल होगा।" यह सुनकर मैं कुछ आश्वस्त हुआ। उन्होंने कहा— "यदि आप पहले मुझसे बात नहीं करते तो मैं बोल नहीं पाता। मुझमें ऐसी ताकत नहीं है कि यहाँके लोगोंसे मैं पहले बोल सकूँ। इसीलिये मैं प्रतिक्षा करता रहा कि आप बोलें। प्रेत लोकमें अनेक स्तर हैं, प्रेतोंकी विभिन्न शक्तियाँ हैं। मैं सब जगह जा सकता हूँ, हर एकको दिखायी दे सकता हूँ, पर मुझसे कोई पहले नहीं बोले तो मैं बोल नहीं सकता। प्रेत-लोकमें मेरी स्थिति अच्छी नहीं है। आप कृपा करके किसीको भेजकर गयामें मेरे लिये पिण्डदान करवा दें तो मेरी सद्गति हो जायेगी।" मैंने उनसे कहा--"आप पारसी हैं, आप लोग श्राद्धपर विश्वास नहीं करते, फिर श्राद्ध करनेकी बात कैसे कहते हैं।" उन्होंने उत्तर दिया सत्य यदि सत्य है तो जाति सापेक्ष नहीं है। जीवमें जातिका भेद नहीं होता।" उन्होंने अपने बम्बईके निवास स्थानका नाम-पता बताया। इसके पश्चात् वे अन्तर्धान हो गये। दूसरे दिन उनके कथनानुसार मैंने उनका पता लगाया। वे बम्बईके बाँदरा नामक अञ्चलमें रहते थे। छः महीने पहले उनकी मृत्यु हुई थी। उनका नाम आदि सब पता मिल गया। वे पारसी होनेपर भी गीतापाठ किया करते थे। सब बातोंका ठीक-ठीक पता लग जानेपर मैंने अपने पास रहनेवाले हरीराम ब्राह्मणको गया। भेजकर उनका श्राद्ध एवं पिण्डदान करवाया। जिस दिन गयामें उनके लिये पिण्डदान हुआ, उसी दिन चौपाटीमें ही मुझे उनके फिर दर्शन हुए। "मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने आया हूँ।"
उन्होंने कहा— "आपने मेरा काम कर दिया। अब मैं प्रेतलोकसे उच्च लोकमें जा रहा हूँ।" उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा सन्तोष हुआ।
मैंने प्रेतसे प्रेतलोककी स्थिति, वहाँके जीवन-कर्मोंके फल आदिके बारेमें बहुत-सी बातें पूछी। उन्होंने सब बातोंका सविस्तार उत्तर दिया। उन्होंने बताया— "किसीके प्रति बैर लेकर मरने वालेकी बहुत दुर्गति होती है। उसे नरकोंमें बड़ा कष्ट होता है। सब नरक सत्य है। नाना प्रकारके पाप करने वालोंकी भी बहुत दुर्गति होती है। प्रेत लोकमें बहुतसे सद्भावनायुक्त प्रेत हैं, बहुतसे दुर्भावनायुक्त। वृत्तिके अनुसार उनके स्वभाव एवं कर्म होते हैं। इस जीवनके सम्बन्ध उनको स्मरण रहते हैं और उसी प्रकारका बर्ताव यहाँके व्यक्तियोंके प्रति करनेकी चेष्टा करते हैं। अच्छे प्रेतोंको कुछ दिन वहाँ रखकर पितृलोकमें भेज दिया जाता है। वहाँ भी पहले अभ्यासके अनुसार भजनकी प्रवृत्ति होती है। प्रेतलोकके प्राणियोंके लिये अन्न-जल वस्त्रादिका दान उनके नामपर घरवालोंको सदा करते रहना चाहिये। प्रेतोंको सद्गति प्राप्त करानेके लिये गयाश्राद्ध, पिण्डदान, गायत्रीजप, भागवत-पारायण, विष्णुसहस्रनाम-पाठ और अपने-अपने धर्मानुसार भगवान् की प्रार्थना करनेसे उन्हें लाभ होता है।
इसके पश्चात् भाईजीने उस प्रेतके माध्यमसे वहाँकी कुछ आत्माओंसे सम्पर्क स्थापित कर लिया। कुछ दिव्य लोकोंसे भी सम्बन्ध हो गया। किसी व्यक्तिकी मृत्युके बाद क्या स्थिति है, इसका पता वहाँके कुछ प्राणियों के माध्यमसे, जिनसे भाईजीने घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित कर लिया था, लगाया करते थे। भाईजीके निकट सम्पर्कमें आने वाले लोग अपने स्वजनोंकी गतिके विषयमें पता लगाया करते थे। भाईजी मृत व्यक्तिका नाम, गोत्र, जिस स्थानपर मृत्यु हुई तथा उसके दाह-संस्कारके स्थानका पता उन लोकोंके प्रणियोंको दे देते थे। उनके प्रयत्नसे कुछ व्यक्तियोंका ठीक-ठीक पता लग जाता था, कुछका अधूरा एव कुछका बिलकुल ही नहीं लगता था। ऐसे दस-बीस 'केस' बराबर पता लगानेके लिये रहते थे।
कुछ वर्ष पूर्व बनारसके एक होटलमें एक व्यक्ति द्वारा अपने मित्रकी हत्या कर दी गयी। उसकी पत्नी गोरखपुरकी बालिका थी। वह बहुत दुःखी थी। भाईजीने उसके कहनेपर अन्य लोकोंके प्राणियोंसे पता लगाया और उनका बताया हुआ उपाय करवाया। उस व्यक्तिकी सद्गति हो गयी। ऐसे ही कलकत्तेके एक सज्जनने अपने पिताकी स्थितिका पता लगानेके लिये भाईजीसे प्रार्थना की तो कुछ दिनों बाद भाईजीने पता लगाकर बताया कि वे ऊँचे लोकोंकी ओर जा रहे हैं।