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रात के बारह बजे, बारिश अभी थमी नहीं थी। मेंहदी अपने कमरे में टहल रही थी, मन खूब व्याकुल था। कुछ हालात और कुछ नजारों ने मेंहदी की आँखों से नींद चुरा ली थी।
वह बहुत देर तक कमरे में टहलती रही। आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। डायरी खोलकर कुछ लिखना चाहा। मगर दिमाग साथ नहीं दे रहा था। कलम बंदकर फिर सोच में डूब गई। स्वागता नींद में थी। मगर अन्वेशा पलंग पर छटपटा रही थी। चेहरा कुछ परेशान, पसीने से सारा मुँह भीग रहा था। जैसे कुछ बुरा सपना देख रही हो। बेचैनी से रजाई को जोर से पकड़कर कुछ बड़बड़ा रही थी। अचानक अन्वेशा "कबीर-कबीर।" कहकर पलंग से उछलकर बैठ गई।
अन्वेशा की इस हरकत से मेंहदी घबरा गई।
“अन्वेशा, क्या हुआ?" दोनों हाथों से पकड़कर उसे जोर से हिलाया। अचानक ही अन्वेशा रोने लगी।
धीरे से पीठ थपथपाते हुए मेंहदी ने शाँत आवाज से पूछा, “अन्वेशा क्या हुआ? चुप हो जाओ। कुछ बुरा सपना देखा? टेबल पर से पानी का गिलास उठाकर अन्वेशा को पिलाया। गिलास भर पानी एक घूँट में पी गई अन्वेशा। सामने मेंहदी को देखकर वह कुछ हिम्मत जुटाई और थोड़ी ही देर में शाँत हो गई।"
“अन्वेशा क्या हुआ कुछ बुरा सपना देखा? तुम नींद में कुछ बड़बड़ा रही थी। क्या हुआ?"
“दीदी...., कोई जेल है, एक आदमी, जंगली-सा दिख रहा था। उसका मुँह बाल से ढँका हुआ था। जंगल की ओर भाग रहा था। अचानक ही वह गिर पड़ा और छटपटाने लगा, और..... और थोड़ी देर बाद शांत हो गया। मैं जब उसके पास गई तो देखा, दीदी वह बेहोश पड़ा है, उसके चारों ओर खून ही खून। दीदी, उस आदमी के पीछे दो आदमी भी थे और उनके हाथों में राइफल थी । दीदी कौन था वह? उन लोगों ने उसे क्यों मार डाला? दीदी मैं, मैं उसे बचा नहीं पाई। मेरी आँखों के सामने सब कुछ हो गया और मैं उसे बचा नहीं पाई। उसने बार-बार बचाओ, बचाओ सुलेमा कहकर मुझे पुकार रहा था। कौन था वह? मुझे वह क्यों बुला रहा था।"
मेंहदी , "शांत हो जाओ, अनु...पहले शांत हो जाओ। बुरा सपना होगा। तुम चिंता मत करो सो जाओ, मैं यहीं तुम्हारे पास बैठी हूँ।"
"दीदी उस आदमी के शरीर से बहुत ख़ून बह रहा था। क्या वह सब सच से था? क्या सपने कभी सच होते हैं?" बेचैनी और भय से अन्वेशा मेंहदी के हाथ ज़ोर से पकड़े रखी थी। शरीर उसका काँप रहा था। मेंहदी उसके पास बैठकर धीरे-धीरे थपथपाने लगी।
“सो जाओ। वह एक सपना था और कुछ नहीं। सपने कभी सच नहीं होते।" मेंहदी उसे दिलासा दे रही थी।
“दीदी मुझे छोड़कर मत जाओ। यहीं बैठे रहना, मुझे बहुत डर लग रहा है।" कहकर मेंहदी के हाथ को जोर से पकड़े रखा। थोड़ी ही देर बाद गहरी नींद में चली गई।
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दूसरे दिन अजनीश और मेंहदी रघु काका के घर जाने के लिए निकल पड़े। बारिश की वजह से उस दिन की सारा कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। सभी अपने-अपने कमरे से निकलकर बाहर हॉल में आ गये। जुई, अन्वेशा, अंकिता, स्वागता हवेली देखने के लिए निकल ही रहे थे, अभिषेक और मानव भी आकर पहुँचे।
"चलो हम भी चलते हैं हवेली देखने।" अभिषेक ने कहा।
निखिल सुहाना के साथ बैठकर कैरेम खेल रहा था।
"तुम लोग जाओ। हम बाद में देख लेंगे।" उनकी तरफ बिना देखे ही जवाब दिया। सुहाना और सौरभ जुड़वाँ हैं , लेकिन किसी कारण सुहाना को अकेले ही आना पड़ा। सुहाना, निखिल के साथ नीरज और संजय भी कैरम खेल रहे थे।
"चलो, हम चलते हैं।" जुई आगे-आगे चल पड़ी। अन्वेशा और स्वागता हवेली को गौर से देखते हुए धीरे-धीरे चल रहे थे।
"दीवार पर लगे जंगली पशुओं के चेहरे देखो कितने भयानक लग रहे हैं।” अन्वेशा ने कहा।
“राजा महाराजाओं के समय जंगली जानवर के शिकार करने के बाद उनके सिर को हवेली की दीवार पर टाँग दिया जाता था। ये सब राजा-महाराजाओं की शान कहलाती थी।” स्वागता भी अपनी जानकारियों को अन्वेशा के साथ शेयर कर रही थी।
"देखा, उस जमाने की एयर कूलर, कहा जाता है कि हवा की गतिविधियों पर नजर रखते हुए एयर कूलर बनाया जाता था।" अन्वेशा ने स्वागता को बताया।
"ये कैसा एयर कूलर है ?"
"हाँ, उस जमाने में बिजली नहीं होती थी, लेकिन जिस तरफ से हवा हवेली के अंदर प्रवेश करती थी, उस जगह पर पानी का एक पर्दा बनाया जाता था। देख छत के ऊपरी भाग में छोटे-छोटे रंध्र जो एक कतार में दिख रहे हैं, इन रंध्रों से पानी का एक प्रवाह छोड़ा जाता। उन्हीं सारे रंध्रों से जब पानी एक साथ नीचे की तरफ बहने लगता तब पानी के एक पर्दे का एहसास होता था। जिससे होकर गर्म हवा अंदर प्रवेश करती तब यह ठंडे पानी से टकराकर हवा को ठंडा कर देती थी। हम जब पापा के साथ राजस्थान घूमने गये थे वहाँ भी ऐसा पर्दा देखने को मिला था।” स्वागता यह सब बड़े आश्चर्य से सुन रही थी।
"उस समय में भी उनकी सोच और ज्ञान वाकई चौंकाने वाले हैं।" विज्ञान के कई अद्भुत कारनामे आज के इंजीनियर को भी हैरान कर देते हैं।" तारीफ करने से रोक नहीं पाई स्वागता।
"अरे, बाकी सब कहाँ चले गए? हम तो यहीं रह गये। बातों-बातों में ख्याल ही नहीं रहा। "
“आगे मिल ही जाएँगे, चल चलते हैं।"
"देख यहाँ एक दरवाजा है, वहाँ चलते हैं, देखते हैं कि अंदर क्या है ?" अन्वेशा ने एक दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"लेकिन वह दरवाजा तो बंद है। "
“तो क्या हुआ, चाबी तो नहीं है ना । देखने में क्या हर्ज है ?”
दोनों उस तरफ चल पड़े। स्वागता ने दरवाजे को हाथ से धकेला। दरवाजा आवाज करते हुए खुल गया। अंदर धूल-मिट्टी भरी हुई थी। मकड़ी के जाले जगह-जगह भरे थे। हवेली के सभी टूटे-फूटे सामान एक कोने में जमा किए गए थे। ऐसा लग रहा था कई दिनों से सफाई भी नहीं की गई। जैसे ही दरवाजा खोला नाक-आँख में धूल भर गयी। अन्वेशा खाँसने लगी। अन्वेशा ने खाँसते हुए कहा, “चल लगता है ये स्टोर रूम है। बहुत धूल भी जमी हुई है। चल यहाँ से बाहर निकलते हैं।"
अन्वेशा रुक यहाँ कुछ मिल सकता है। कोई ऐतिहासिक चीजें जो फेंक दी गई हो और हमारे काम आ जाए।
“यहाँ तो खाली पुरानी कुर्सी, टेबल के अलावा कुछ नहीं है। लगता है ये खाने के टेबल उस समय के हैं।" स्वागता ने कहा।
"लेकिन इसकी ऊँचाई बहुत कम है।”
"हाँ, शायद उस समय, लोग नीचे आसन पर बैठकर इन टेबल पर खाना खाते थे।” स्वागता
"अन्वेशा इधर आ देख, यहाँ कुछ तस्वीरें रखी हुई हैं। "
“कैसी तस्वीरें? चल यहाँ से बहुत धूल-मिट्टी भरा हुआ है।" स्वागता को देखने का मन तो नहीं था लेकिन अन्वेशा की वजह से उसे पीछे आना ही पड़ा।
जैसे ही कमरे से बाहर आए दरवाजा बंद करने की आवाज से एक पुरानी तस्वीर दीवार से नीचे गिर पड़ी। उस तस्वीर पर तो धूल-मिट्टी जम गई थी लेकिन तस्वीर के एक कोने में उर्दू में सुलेमा-मुहम्मद अली लिखा हुआ था। जो कि साफ-साफ अक्षरों में नजर आ रहा था।
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अजनीश और मेंहदी रघु काका से मिलने उनके घर पहुँचे। रघु काका एक फटी हुई चारपाई पर सोए हुए थे। अजनीश ने दरवाजे पर आहिस्ते से दस्तक दिया।
"कौन है भाई अंदर आ जाओ?" एक पतली सी आवाज सुनाई दी। यह आवाज रघु काका की थी। बुखार की वजह से कमज़ोर पड़ गए थे। मेंहदी और अजनीश दोनों अंदर गए। खाली कमरा और कोने में एक कुर्सी रखी थी। एक ओर बुझा हुआ चूल्हा, कुछ बर्तन एक कोने जमा करके रखे गए थे। एक जोड़े कपड़े दीवार पर टँगे थे।
"कैसी तबियत है रघु काका ?"
"कुछ बेहतर महसूस कर रहा हूँ। मगर कमज़ोरी साथ नहीं छोड़ रही।" खाँसते हुए उन्होंने कहा।
"आपने क्यों कष्ट किया बाबूजी, मामूली बुखार ही तो है दो दिन में कम हो जाएगा।”
“आपने तो हमारे लिए बहुत कुछ किया है ना काका, हमें भी कुछ करने का मौका दीजिए।” कहते हुए अजनीश माटी के घड़े में से गिलास भर पानी निकालकर साथ में लाई हुई दवा उनके हाथ में दी। अजनीश का अपनापन देखकर रघु काका की आखें भर आईं।
“आप अकेले यहाँ क्यों हैं काका? किसी को मदद के लिए बुला क्यों नहीं लेते ?” मेंहदी ।
“मेरा है ही कौन जो मेरे लिए यहाँ आने का कष्ट करेगा? सब ऊपर वाले की दया है कि आज तक किसी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा। आगे भी ऊपर वाले की मर्जी।"
“लेकिन आपका परिवार ?" मेंहदी ने उत्सुकता से पूछा।
"मेरा परिवार, जो परिवार कभी बसा ही नहीं उसके बारे में क्या कहूँ?” मेंहदी जानबूझकर धीरे-धीरे हवेली और उसमें रहने वालों के बारे में पूछने लगी। पहले तो रघु काका इन बातों से कोई उत्सुकता नहीं दिखा रहे थे लेकिन अजनीश और मेंहदी के बार-बार पूछने पर धीरे-धीरे हवेली से जुड़ी सारी बातें एक-एक कर बताने लगे। मेंहदी सवाल करती रही और रघु काका सारे सवालों का जवाब देते रहे।
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कभी चकाचौंध करती इस हवेली का इतिहास बहुत गौरवशाली था। इस हवेली की शान और शौकत चारों दिशाओं में मशहूर थी। नाम, ताकत, शोहरत से ही नहीं बल्कि खानदान, पेशावर परंपरा और संस्कृति से भी जाना जाता था। पड़ोस में रहते छोटे-छोटे राजा-महाराजा अपने आपको सौभाग्यशाली और अपने राज्य को सुरक्षित मानते थे।
राजा मुहम्मद अली और उनके छोटे भाई आहम्मद अली दोनों के परिवार साथ-साथ रहा करते थे। उनके पिताजी महाराज हसरत अली खान के गुजर जाने के बाद मुहम्मद अली ने 15 साल की उम्र में ही राज्यभार सँभाला था। अहम्मद अली, मुहम्मद अली से मात्र आठ साल छोटे थे। उस समय उनके मंत्री शाजिद खान थे। जो कि एक विद्वान, साहसी बंदे थे। साथ-साथ वह राजा हसरत अली के समय राज्य की कई मुश्किलें आसानी से हल कर दिया करते थे। उनकी होते हुए सारा राज्य भार सँभालना मुहम्मद अली को ज्यादा कष्ट साध्य महसूस नहीं हुआ। २१ साल की उम्र में वे मुमताज से विवाह के पवित्र बंधन में बँध गए।