Haweli - 12 in Hindi Love Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | हवेली - 12

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हवेली - 12

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सुबह सात बजे का समय है। दूसरे दिन जंगल में जाने की तैयारियाँ चल रही थी। प्रोफेसर सुनील और फातिमा मैम आगे का प्रोग्राम तैयार कर चुके थे। नाश्ता खत्म कर नौ बजे निकलने का प्रबंध किया गया था। जंगल की सुंदरता को देखकर सारे विद्यार्थी खुश थे, लेकिन आज इन सबके साथ पढ़ाई भी आंशिक रूप में शामिल थी। कुछ नये-पुराने वृक्ष के गुण और उनकी आयुर्वेदिक उपयोगिता के साथ-साथ उनकी उपलब्धता के बारे में आज जानकारी हासिल करना विद्यार्थियों के प्रसंग में था।

स्वागता और अन्वेशा भी बहुत खुश थीं। वे जंगल की रोमांचक जगह और सौंदर्य के प्रति मुग्ध होकर हर पल का मज़ा ले रहे थे। पलंग पर बैठे वे दोनों जुई और अभिषेक के बीच हुई लड़ाई के बारे में मेंहदी को बताते हुए मजा ले रहे थे। कमरे में पड़े कपड़ों को घड़ी करते हुए, अन्यमनस्क उनकी बातों पर “हूँ, हूँ", कर रही थी मेंहदी। लेकिन वह यह सब सुनने के मूड में नहीं थी। वह कुछ और ही सोच में डूबी हुई थी। अब तक वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि उसने जो भी देखा वह नज़र का धोखा था या कुछ और था निश्चित नहीं कर पा रही थी ?

"हेय ! गाईस क्या कर रहे हो ?" अजनीश ने कमरे में प्रवेश किया। अंदर पैर रखते हुए कहा, "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?"

“आप आ चुके हैं।" मेंहदी ने गुस्से में कहा ।

“अगर ऐतराज है तो चला जाऊँगा।” आड़े आँख से मेंहदी की तरफ देखते हुए कहा।

"नहीं सर आप अंदर आ सकते हैं। हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है।" स्वागता ने हँसते हुए कहा। अंदर आकर वहीं रखी कुर्सी पर बैठ धीरे से स्वागता की तरफ झुककर चुपके से प्रश्न किया अजनीश ने "क्या बात है, तुम्हारी दीदी बहुत गुस्से में लग रही है कहो तो बाद में आऊँगा।"

"नहीं सर, लगता है दीदी का मूड कुछ ठीक नहीं है और कोई बात नहीं है।"

मेंहदी की तरफ देखते हुए कहा, "तो फिर तुम्हारी दीदी का मूड ठीक करने के लिए कुछ करना पड़ेगा।'

"सर आप बताओ क्या करना है? आप आपकी पत्नी को कभी-कभी मनाते होंगे न? कोई रास्ता निकालिए।”

"अरे शांत शांत, पहली बात तो ये है कि मेरी अब तक कोई शादी नहीं हुई है। और आप लोग मुझे शादीशुदा बनाने पे तुले हो और दूसरी बात यह है कि मुझे आज तक किसी को मनाने की नौबत नहीं आयी। शुक्र है भगवान का।" ऊपर देखकर दोनों हाथ जोड़कर मजाकिया ढंग से नमस्ते करने लगा।

स्वागता उनकी इस हरकत पर हँस पड़ी और बोली, “सॉरी सर, लेकिन गर्लफ्रेंड तो होगी न सर।" स्वागता ने अन्वेशा की तरफ आँख मारते हुए कहा। अन्वेशा समझ गई कि स्वागता अजनीश का पैर खिंचाई करने पर तुली हुई है।

"ऐसी कोई बात नहीं, न ही मेरी शादी हुई है, न ही कोई गर्लफ्रेंड है।"

""फिर कैसे मनाएँ दीदी को? कुछ तो आइडिया दीजिए न अजनीश जी ।"

“इसके लिए शादीशुदा होना जरूरी थोड़े ही है। ठीक है चलो सोचते हैं क्या कर सकते हैं।"

"कहीं घुमाने ले जाएँ या कोई जोक सुनाएँ?” फुसफुसाते कहा।

“नहीं सर, हम कोशिश कर चुके हैं। कुछ और रास्ता निकालिए न भैया।” अन्वेशा ने कहा।

"तुम जादू-टोने में विश्वास करते हो ?" अजनीश ने पूछा।

"वह क्या होता है?” अन्वेशा ने पूछा।

"जैसे कि भूत-प्रेत होते हैं।"

“सर कोई सस्पेन्स स्टोरी है क्या?" बड़ी उत्सुकता से पूछा स्वागता ने।

सब कुछ भूलकर बड़ी-बड़ी आँखों से देखने लगीं अन्वेशा और स्वागता।

"अन्वेशा पता है कल रात को क्या हुआ ?" अचानक कहा अजनीश ने।

"क्या हुआ सर ?" दोनों उत्सुकता से देख रही थीं।

"अन्वेशा तुम्हारे वह चौकीदार काका तो बड़े भुलक्कड़ हैं कल टेबल पर अतृप्त आत्माओं के बारे में लंबे-चौड़े भाषण दे रहे थे वह खाली डरपोक हैं।"

"क्यों क्या हुआ सर ?

"तुमने देखा नहीं उस दिन भूत से लड़ने कैसे एक लाठी लेकर चले थे।

भला भूतों को कोई लाठी से हरा सकता है?

"लेकिन उस रात को तो उन्होंने चूहे और चमगादड़.....।"

"ये कब की बात है ?" अन्वेशा ने प्रश्न किया।

"कल रात को जब तू... । "कहकर चुप हो गयी।

"मैं मैं ... क्या?"

“स......." बीच में मेंहदी ने रोक दिया।

" चल जाने दें तू सो गई थी।" स्वागता ने बात को टाल दी।

"क्या आपको यकीन है, भूत या आत्मा नाम की कोई चीज है ?" मेंहदी ने अचानक ही अजनीश को प्रश्न किया।

"नहीं, मुझे तो नहीं लगता भूत नाम की कोई चीज है लेकिन हो भी सकता है और नहीं भी ... क्यों अन्वेशा ?" मुस्कराते हुए कहा अजनीश ने ।

“अब भूत बीच में कहाँ से आ गया।” अचानक अन्वेशा पूछ बैठी।

“आपको क्या लगता है ? ऐसे अनाप-शनाप बातें करके मेरा मूड ठीक कर देंगे? काका कोई भाषण नहीं दे रहे थे, बिल्कुल सही कह रहे थे। अतृप्त आत्मा होती हैं कि नहीं ये तो मैं नहीं जानती, लेकिन काका की बातों में कुछ गहराई छिपी हुई है। इसलिए उन्होंने हमें चेतावनी देते हुए बाहर निकलने से मना किया था। उसे बकवास कहकर टालने की कोशिश न करें तो अच्छा होगा।"

अचानक बेवजह ही मेंहदी के गुस्से का कारण समझ नहीं पाया अजनीश लेकिन कुछ बात तो है जो मेंहदी को परेशान कर रही है, यह बात वह अच्छी तरह समझ गया। बात हल्की होने की बजाए गंभीर होते हुए देखकर अजनीश ने बात को टालने की कोशिश की।

"मैं मज़ाक कर रहा था। आपको बुरा लगा हो तो माफी चाहूँगा।" लेकिन मैं ने ऐसी कोई बात नहीं कही कि आप इतनी सीरियस हो जाएँ। आपको क्या लगता है इस हवेली में भूत हैं ? इस जमाने में भी भूतप्रेत की बातों पर विश्वास करती हैं। आपके मुँह से ऐसी बात सुनकर कोई भी सच में डर जाएगा।" मेंहदी अजनीश का इशारा समझकर चुप हो गई।

"बाकी बातें बाद में होती रहेगी, चलो नाश्ते का वक्त हो गया है। जल्दी से नाश्ता करते हैं।" अजनीश, अन्वेशा और स्वागता को कहकर बाहर निकल गया।

"चलो ना दीदी" स्वागता ने इशारा किया।

"नहीं तुम चलो मैं कुछ देर में आती हूँ।"

अन्वेशा को यह सब बातें कुछ समझ में नहीं आ रही थी। वह स्वागता से प्रश्न करने लगी और स्वागता ने इस बात को समझदारी से टाल दिया। "चल न बाद में बात करते हैं। बहुत भूख लगी है।"

"नहीं पहले मुझे यह बता अंदर सब किस बारे में बात कर रहे थे। कुछ तो है जो आप सब जानते हो मगर में नहीं।"

"अन्वेशा... ऐसी कोई बात नहीं है, मुझ पर विश्वास कर अगर ऐसी कुछ भी बात होती तो तुम्हें जरूर बताती, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है।"

"ठीक है, अगर तू सच कह रही है तो, मान लेती हूँ लेकिन अगर....."

"अगर मगर छोड़, पहले ये बता तू मुझ पर विश्वास करती है कि नहीं..."

"हो" मुँह फुलाकर अन्वेशा ने कहा ।

"तो बस चल नाश्ता करते हैं।" स्वागता अन्वेशा का हाथ पकड़कर ले गई।

अजनीश दोनों के चले जाने के बाद वापस लौट आया तब तक मेंहदी ऐसी ही बैठी हुई थी। सुबह की बात दिमाग से निकल नहीं पा रही थी। अजनीश, मेंहदी के सामने पड़ी चेयर खींचकर उसके पास बैठ गया।

अजनीश को देखकर भी मेंहदी उसे अनदेखा कर पीछे मुड़ गई। अजनीश थोड़ी देर चुप रहकर फिर वहाँ से चले जाने के लिए उठकर खड़ा हुआ।

"आप कुछ कहने आये थे।" बिना कुछ कहे वापस जा रहे हैं। अजनीश से प्रश्न किया मेंहदी ने ।

"अगर कोई बात करना ही नहीं चाहता हो तो कुछ कहने से क्या फायदा।" पीछे न देखते ही जवाब दिया।

"कहिए क्या कहने आए थे ?"

"कहने नहीं कुछ पूछने आया था।”

"पूछिए..."

‘सुबह जब आप मेरे कमरे तक आयी थीं, आप कुछ घबराई हुई सी लग रही थीं। क्या मैं आपकी घबराहट का कारण पूछ सकता हूँ।"

इस बात पर मेंहदी सोच में पड़ गई। क्या रात को जो देखा वह सब अजनीश को बता देना चाहिए? क्या अजनीश विश्वास करेगा उसकी बातों का। अगर हँसी उड़ा दी तो, क्या इज्जत रह जाएगी ?"

मेंहदी की चुप्पी देखकर अजनीश ने कहा, “अगर आप जवाब देना नहीं चाहतीं तो मैं चला जाता हूँ। "

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं। अगर होती तो बता देती। जब दोनों को कमरे में नहीं देखा तो थोड़ी-सी घबराहट हो गई थी बस और कुछ नहीं।” मेंहदी अजनीश से आँख नहीं मिला पा रही थी। उसे डर था कहीं अजनीश उसका झूठ पकड़ न ले।

"बस और कुछ नहीं ?" अजनीश ने जोर देकर पूछा।

"नहीं।"

"ठीक है आप कह रही हैं तो मान लेता हूँ लेकिन याद रखिए कि अगर कोई ऐसी बात है तो हमेशा मैं आपके साथ हूँ।" पीछे मुड़कर देखे बिना वहाँ से चला गया। कुछ ही देर में अन्वेशा और स्वागता वापस आ गये।

"दीदी आप नाश्ता करने नहीं आयी।" स्वागता ने मेंहदी से पूछा।

"हाँ, बस मन नहीं कर रहा था।" मेंहदी ने अन्यमनस्क ही जवाब दिया।

"आप ऐसे खोए-खोए क्यों हो? क्या हुआ दीदी बताइए न क्या हुआ ?"

"नहीं कुछ नहीं जाओ तैयार हो जाओ, आज जंगल के वृक्षों के बारे में और उनकी यूटिलिटी के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध करनी हैं। फातिमा मैम दो बार ताकीद कर चुकी हैं। जल्दी से तैयार हो जाओ।"

जी दीदी, लेकिन आप भी तो आ रही हो न ?

"हाँ, पहले तुम चलो ।”

सच कहें तो मेंहदी कहीं जाने की स्थिति में नहीं थी। लेकिन सच जानने के लिए हवेली से बाहर निकलना जरूरी था। रात को मन में उठते सवालों को दिन के उजाले में ही समाधान करना पड़ेगा।

"मगर कैसे? अगर इस बात को सबको बताया जाए तो, क्या विश्वास करेंगे। नहीं ! अगर मैं खुद इस संशय में हूँ तो कौन मेरी बात पर भरोसा करेगा।" अचानक मेंहदी के मन में चौकीदार की छवि झलक उठी।

“हाँ, अगर कोई मेरी मदद कर सकता है तो वह है, हवेली का चौकीदार। "

फिर मेंहदी मन ही मन आगे का प्लान तय करने लगी। इस रहस्य को छेदना ही पड़ेगा। अन्वेशा भी कहीं ऐसे ही कुछ दृश्य देखकर बेहोश तो नहीं हुई थी, पता करना होगा। "

“अन्वेशा मैं नीचे जा रही हूँ, तुम भी आ जाना। आप भी आइये दीदी ।" स्वागता चली गई।

“अन्वेशा तुम अभी तक यहीं पर हो ।”

“हाँ दीदी मैं भी जा रही हूँ। मेरे जूते नहीं मिल रहे थे इसीलिए......, अच्छा दीदी आप नहीं आ रही हैं अभी तक आप तैयार भी नहीं हुई?”

"मैं भी आ रही हूँ, मगर उससे पहले तुमसे कुछ पूछना है।

“हाँ, पूछिए दीदी ।”

“उस दिन क्या हुआ था तुम्हें कुछ याद है ?”

"कब दीदी ?”

"जिस दिन हम यहाँ आए थे, उस रात के बाद तुम बीमार पड़ गई थी। उस रात....।"

“हाँ, उस रात क्या हुआ था मुझे ख़ास कुछ याद तो नहीं, मगर पता नहीं, शायद कुछ डरावना सपना था। बहुत ही सरल और सहज स्वर में जवाब दिया अन्वेशा ने। लेकिन बात इतनी सरल नहीं है, ये बात मेंहदी भी खूब अच्छी तरह समझ गई है।

"क्या देखा था सपने में ?" जानने की उत्सुकता मेंहदी को बेचैन कर रही थी।

"मैं अँधेरे में किसी कुएँ की ओर चलती जा रही हूँ, जैसे कि मुझे कोई बुला रहा हो। एक सपना-सा गहरे अँधेरे में से कोई बार-बार मुझे पुकार रहा था। कुछ और ही नाम से, जैसे कि वह मुझे जानता हो।" याद करते हुए जवाब दिया अन्वेशा।

"कौन था वह ?"

"एक डरावना चेहरा, लंबे-लंबे बाल जंजीर से जकड़ा हुआ एक आदमी.. .....ऐसा लगा कि जैसे वह मुझसे मदद के लिए पुकार रहा है और हाँ, दीदी मुझे ऐसा लगा कि मैंने उस आदमी को शायद कभी कहीं देखा है। एक अजीब-सी दुर्गंध का एहसास हो रहा था, ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा। खैर छोड़िए ये बातें, आप तो अभी तक तैयार नहीं हुई। चलिए जल्दी से तैयार हो जाइए फिर नीचे चलते हैं। "

"ठीक है तुम जाओ, मैं थोड़ी देर में आ जाऊँगी।”

अन्वेशा चली गई। मेंहदी समझ गई, उसका अंदाजा बिल्कुल सही था। अन्वेशा जिस दुर्गंध के बारे में कह रही थी वह दुर्गन्ध उस कैदखाने की थी जहाँ अन्वेशा बेहोश पड़ी मिली थी। अन्वेशा समझ रही है उसने जो देखा था वह सिर्फ एक सपना था। शायद यही समझना इस लड़की के लिए ठीक है। मेंहदी सोच में पड़ गई। अन्वेशा के जाने के बाद मेंहदी अपने कमरे को ठीक करने लगी। दरवाजे पर दस्तक होने से काम छोड़कर मेंहदी ने दरवाजा खोला। अजनीश को संदेह से देखा।

“आपको सबके साथ न देखकर फातिमा मैडम ने मुझे भेजा है, क्या आप नहीं आ रही हैं।" इस बार वह बिना कुछ जवाब दिए कमरे को लॉक कर अजनीश के साथ चल पड़ी। सब जाकर बस में बैठ गए। बस हवेली छोड़कर जंगल की दिशा में निकल पड़ी। कुछ दूर जाने के बाद एक कुटिया दिखाई दी। इसी कुटिया से जंगल शुरू होता है। यह कुटिया वहाँ रहने वाले वॉचमैन की है।

इतनी बड़ी हवेली में बहुत खाली कमरे होते हुए भी वॉचमैन वहाँ छोटे-से मकान में रहना पसंद करता था, उस छोटे-से मकान के चारों ओर छोटा-सा बगीचा,जो रघु काका ने बड़े चाव से बनाया था। बस जाकर उस कुटिया के पास रुकी। यहाँ जंगल में भटक जाने का खतरा था। इसलिए उन्होंने वॉचमैन को साथ लेकर चलने का फैसला किया। रघु काका बस के पीछे बैठ गए। शरीर पर सफेद धोती-कुर्ता जो समय के साथ-साथ पीला पड़ चुका है। सिर पे लाल रंग की पगड़ी और हाथ में बड़ी-सी एक लकड़ी है। जो कभी सहारे के काम आती है तो कभी बचाव के। पैरों में पुराने जमाने के जूते, जो कभी भी टूट सकते हैं। बस आगे बढ़ने लगी। उन्हें देखकर मेंहदी के मन में एक ख्याल आया। मन में उठते हर सवाल का जवाब रघु काका से मिल सकता है। ये ख्याल आने पर मेंहदी की बेचैनी कुछ कम हुई। वक्त आने पर रघु काका से वास्तव घटनाओं के बारे में आलोचना, समालोचना करने का फैसला लिया।

समय दस बजकर पन्द्रह मिनट हुए। वे लक्ष्य स्थल के आस-पास पहुँच गये। जैसे-जैसे जंगल की गहराई बढ़ने लगी वैसे-वैसे जंगल का रास्ता भी संकीर्ण होने लगा। पंछियों की आवाज़ कानों में गूँजने लगी। कुछ जाने-पहचाने तो कुछ अनजान और मिठास भरी, कुछ भयानक ध्वनि भी जंगल में प्रतिध्वनित होकर पहुँच रही थी। बस का जंगल में और आगे बढ़ना नामुमकिन था इसलिए वे बस को वहीं छोड़कर पैदल ही चलने लगे। घासप्राय कँटीली लताएँ पैरों में चुभ रहीं थीं । चारों ओर अन्य जंगली प्राणी होने का अंदेशा हो रहा था।

आकाश साफ था। सूरज, बादलों के पीछे रहकर आँख मिचौली खेल रहा था। बिन मौसम के बादल बारिश का अंदेशा दे रहे थे। प्रोफेसर सुनील के कहने पर विद्यार्थी अपने-अपने कागज़ कलम लेकर तैयार हो गए। अजनीश भी अन्वेशा और बाकी सबको अपनी जानकारी तक वृक्ष और उनकी गुण की पहचान में मदद कर रहा था। साथ-साथ प्रोफेसर सुनील से कुछ नए पौधों की जानकारी भी ले रहा था। मेंहदी मन ही मन सोच रही थी कि लगता है बारिश होने वाली है।

मानव,अभिषेक और अन्य सभी वृक्षों के बारे में सवाल करते रहे और प्रोफेसर सुनील उन्हें उन गुणकारी वृक्षों के बारे में बताते रहे। बाकी सबने भी उनके साथ रहकर जानकारियाँ अपने नोटबुक में लिखने लगे। प्रोफेसर सुनील कुछ दूरी पर जाकर एक छोटे से पौधे के पास रुक गए।

“ये देखो यह पत्ते जो दिख रहे हैं इसे ब्राह्मी कहते हैं। यह ऐसी जगह पर बहुत कम देखने को मिलते हैं। यह पानी में भी बढ़ते हैं। तब इनके जड़ अंदर रहती है और पत्ते पानी में फैल जाते हैं। इन्हें 'गोटुकोला', 'उम्बेल्लिफेरे', बोटानिकल नाम से जाना जाता है।"

"सर, इसे तेल के रूप में इस्तेमाल करते हुए सुना है।"

"ब्राह्मी बहुत गुणकारी होती है। तेल के अलावा और भी बहुत काम आता है। इसका उपयोग चर्म रोग जैसे कि एक्जिमा, लेप्रसी और बुखार के साथ-साथ डायरिया जैसे रोगों के उपचार में भी होता है। कहा गया है गोटुकोला एक जादू की पुड़िया है। इसमें कई सारी गुणकारी शक्तियाँ हैं। लिचिन्ग युन जो गोटुकोला के साथ-साथ और भी कुछ जड़ीबूटी मिलाकर चाय बनाकर रोज सेवन करते थे। जिस कारण वे २५६ साल तक जिंदा रहे। यह २००० साल से चीन में दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। "

(चेतावनी: गोटुकोला और इस मिश्रण के बारे में जानकारी इंटरनेट से तलाश कर ली गई है, इसकी सही जानकारी के बिना सेवन करने से हुए परिणाम के लिए लेखिका या प्रिंटर्स उत्तरदायी नहीं होंगे।)

“सर, ब्राह्मी के पत्तों से भी चाय बनती है ?” अभिषेक ने आश्चर्य से पूछा।

"हाँ, ब्राह्मी को सुखाकर चाय की पत्ती जैसा इस्तेमाल किया जा सकता है।" पानी में १-२ टी स्पून सूखे ब्राह्मी की पत्तियों को उबालकर ठंडा होने के उपरांत इसे पिया जा सकता है। वैसे दिन में ३ कप चाय भी पी सकते हैं।

"सर, मैं कुछ पत्ते तोड़ लूँ।" अचानक जुई ने प्रश्न किया।

"ठीक है, लेकिन ध्यान रखना कि पौधे को कोई नुकसान न पहुँचे, क्योंकि इन्हें दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और ऐसी महत्वपूर्ण जड़ें बहुत कम मिलती हैं। अनावश्यक जानबूझकर पौधों को नष्ट न करें, आप लोगों की जानकारी के लिए इस पौधे को हमारी बायोलोजिकल लैब में सुरक्षित किया गया है। ...जल्दी करो, बारिश आने की संभावना है। समय भी हमारे पास बहुत कम है। आगे चलिए अभी बहुत कुछ बाकी है।" सर आगे बढ़ गये। उनके पीछे बाकी सब भी।

लेकिन जुई कहाँ किसी की बात सुनने वाली है ? उसने आगे बढ़कर कुछ पत्ते तोड़कर अपने बैग में भर लिए। अचानक आउच कहते हुए पैर उठाकर पीछे हटा लिया।

"क्या हुआ? कहीं लगी तो नहीं?" स्वागता ने जुई का हाथ पकड़कर उसे सहारा दिया।

"कुछ तो काटा। ओह, बहुत जलन हो रही है।" स्वागता, अन्वेशा, मानसी और निखिल ने चारों ओर ध्यान से देखा। उन्हें कहीं कुछ नज़र नहीं आया। मानसी ने आवाज देकर सबको रुकने को कहा। प्रोफेसर सुनील ने ध्यान से उस घाव को देखकर कहा, "चिंता करने की कोई बात नहीं है जंगली कीड़े ने काटा है। यह साँप डसने का चिह्न नहीं है। फिर भी, कोई विषाक्त प्राणी हो भी सकता है। एक मिनट....।" कहकर वहीं एक पौधे से कुछ पत्तों को तोड़कर हाथ से निचोड़कर उस रस को उस घाव पर लगा दिया।

"यह एंटी एजेंट जैसे काम करता है। इसलिए अब डरने की कोई बात नहीं है। कुछ देर में जलन भी कम हो जाएगा।" रुमाल से पट्टी बाँधते हुए कहा।

अब चलें। सुनील सर आगे चलने लगे। जुई सबके पीछे धीरे-धीरे चलने लगी।

“सर ये कैसा पौधा है? ये किसके लिए उपयोगी है ? बहुत सुंदर दिख रहा है।" मानसी ने एक जगह रुककर पूछा।

"अरे, ये तो अस्पिरागश है।" जुई ने कहा। सारे विद्यार्थी उसकी तरफ देखने लगे।

"हाँ जुई ने बिल्कुल ठीक कहा। ये है अस्पिरागश। यह भी डायरिया के लिए लाभकारी है। इसे व्हाईट मुशली भी कहते हैं। सद्यजात शिशु की माँओं के लिए ये बहुत लाभकारी है। यह माँ में अपने बच्चों के लिए दूध की क्षमता बढ़ाती है।” प्रोफेसर सुनील ने जवाब दिया।

वैसे तो जुई बहुत ही चपल और चंचल लड़की मगर वह पौधे और वृक्षों में बहुत ही रूचि रखती है। सब कँटीले रास्ते पार करते हुए कुछ आगे बढ़ गये।

"अब ये देखो, एलोवीरा, यह तो आप सब जानते ही होंगे। जगह-जगह पर कई घरों में भी यह देखने को मिलता है। इसके पत्ते में एक गाढ़े जूस जैसी चीज रहती है। यह जूस पीने से पेट की गड़बड़ी में सुधार लाता है और सनबर्न, एक्सरे बर्न, रसायन जलन आदि चर्म संबंधित जलन से राहत मिलती है। यह एक लिली परिवार का पौधा है। साथ ही साथ गर्मी से राहत पाने, इसे कपोल भाग में लगाते हैं और यह एक अच्छा कंडिशनर भी है।” एक टुकड़े पत्ते को छीलकर उससे निकले जूस को दिखाते हुए कहा। "यह ग्लिसरिन जैसा काम करता है। "

मेंहदी ने चारों ओर देखा। कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे रघु काका अकेले बैठे हुए हैं। उसने आकाश की तरफ देखा। आकाश बादल से घिर रहा है। काले बादल बारिश होने की सूचना दे रहे हैं। सूरज और बादलों के बीच लुकाछिपी बहुत देर से चल रही है। कभी सूरज आगे तो कभी बादल। बादल सूरज को ढँकने की कोशिश करता लेकिन सूरज बादल के सामने हार मानने को बिल्कुल तैयार नहीं। सूरज पूरी ताकत से बादल को अपने रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहा है। उसने आकाश से नजर हटाकर रघु काका की ओर देखा। बातों-बातों में उलझाकर सच्चाई जानने का यही सही वक्त था। वह सीधे रघु काका के पास पहुँची।

"रघु काका आपको क्या लगता है कि आज बारिश होगी ?"

“ये तो हमेशा का खेल है बीबी जी। हम कैसे बता सकते हैं।"

"फिर भी आप तो यहाँ सालों से हैं, यहाँ का मौसम, हवा कब, किस और रुख लेती है इन सबके बारे में आपको तो अच्छी तरह पता होगा।"

"हवा का रुख पहचानना किसके बस में है? हम तो सिर्फ कठपुतली हैं, सबकुछ देखते हुए भी चुप हैं। क्या होना है क्या नहीं होना किसके बस में है?'' कहते-कहते चुप हो गये। इस बात पर रघुकाका की चुप्पी देखते मेंहदी ने बात को अलग मोड़ दिया।

"काका आप कब से इस जगह को,मेरा मतलब इस हवेली की देखभाल कर रहे हो?" इस बात पर भी रघु काका का निरुत्तर रहना, उसे निराश कर रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद रघु काका ने चुप्पी तोड़ी। "मैंने जब से होश सँभाला है तब से यहीं पर हूँ। मेरे बाप-दादा भी इसी हवेली में काम करते थे।"

"तो फिर आपको इस जगह के बारे में सब कुछ मालूम होगा।”

‘जी नहीं, मैं यहाँ कुछ सालों से यहाँ रहता हूँ। इससे पहले मैं दूसरे गाँव में हवलदार की नौकरी करता था। मेरा बाप अचानक ही चल बसा। ये बाप-दादा की नौकरी है, इस काम को मुझे ही सँभालना पड़ा। हवलदार की नौकरी छोड़कर यहाँ इस सरकारी गेस्ट हाउस में आकर चौकीदारी कर रहा हूँ और फिर मेरा है भी कौन, अकेला प्राणी कैसे भी हो दिन गुजारना है।"

"फिर आप हवेली में न रहकर अलग मकान में क्यों रहते हैं?" इस बात का भी कोई जवाब नहीं मिला। मैं निराश नहीं हुई।

"क्या आपके बीवी-बच्चे कोई नहीं है ? क्या वे लोग यहाँ नहीं रहते ?”

एक लंबी साँस लेकर, “जाने दीजिए न बीबी जी,सब खत्म हुए अरसा बीत गया, बाद में मैं हवेली छोड़कर अलग मकान में आ गया। मेरी बीवी-बच्चे वह एक लंबी कहानी है, फिर किसी दिन बताऊँगा।" अब बात आगे बढ़ाने का कोई फायदा नहीं था। साढ़े बारह बज चुके थे, खाने के पास सब इंतज़ार कर रहे होंगे।

बादल का रास्ता काटकर सूरज अपनी जीत का झण्डा फहरा चुका था। मेंहदी को कोई जरूरी जानकारी न मिली, मगर वह जानती थी कि इन सबका राज रघु काका ही बता सकते हैं। वही एक इंसान हैं जो इस हवेली का राज बेपर्दा कर सकते हैं। रघु काका से जानकारी हासिल करने के लिए अजनीश की मदद लेनी पड़ेगी। मेंहदी और मानव ने अभिषेक को गाड़ी की तरफ आते हुए देखा। दोनों पानी की बोतल लेकर चले गए। अजनीश कहीं नज़र नहीं आ रहा था। मेंहदी ने उनके पीछे जाकर सबके साथ जॉइन किया। सब अपना-अपना काम कुछ देर के लिए रोककर खाना खाने एक जगह इकट्ठा हुए।

"यहाँ कुछ दूर एक वर्कशॉप है,जहाँ इस जंगल से लाई गई चीजों को किस तरह से उपयोग किया जाता है जान सकते हैं। जैसे कि गुणकारी जड़ीबूटी से विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि और तेल बनाया जाता है। युकिलिप्टस तेल, ब्राह्मी तेल, अलिव तेल जिससे बच्चों और बूढ़ों को मसाज करने से काफी फायदा मिलता है। जोड़ों का दर्द कम करने में बहुत कारगर है। क्या आप लोग नहीं जाना चाहोगे रघु काका ने प्रश्न किया।

"जरूर चलेंगे, पहले कुछ खा लेते हैं।" सुनील सर ने कहा और जुई को देखकर प्रश्न किया, "जुई! हाव आर यू फीलिंग नाव?"

"बेटर सर । "

पूर्णिमा जाकर चाय नाश्ते की थैलियाँ उठा लाई।

फातिमा मैम बैग से एक-एक चीज़ें निकालकर प्लेट में सजाने लगी। जुई और स्वागता उनकी मदद कर रहे थे। अन्वेशा चौपाई पर बैठ गई। मानसी सजाए गये प्लेट्स सबके हाथ में दे रही थी। मेंहदी इस काम में मानसी की मदद कर रही थी। कुछ नमकीन, समोसे और फ्लास्क में गरम-गरम चाय देखकर जुई बहुत खुश हो गई। सब थोड़ी देर के लिए अपना-अपना काम स्थगित कर नाश्ते की प्लेट पर टूट पड़े।

अजनीश को वहाँ न पाकर मेंहदी की आँखें अजनीश को चारों ओर ढूँढ रहीं थीं। छात्र-छात्राएँ जोर-जोर से बातें करते हुए हँस रहे थे लेकिन मेंहदी का मन इन बातों से दूर था। इन सबसे कुछ दूर खड़ा अजनीश,मेंहदी की बेचैनी देख रहा था। सबसे अलग रहकर अपना वजूद बनाए रखने की कोशिश कर रही थी मेंहदी । मगर उसके चेहरे पर कुछ अनजाना-सा भय अजनीश को परेशान कर रहा था। वह समझ गया जो भी कुछ हो जाए मेंहदी अपने आपको कभी कमजोर बनने नहीं देगी। वह खुद नहीं चाहती थी कि किसी के आगे कमजोर पड़ जाए। अजनीश भी मेंहदी के ख्यालों की कद्र करता है।

“किसे ढूँढ रहे हैं आप ?” अचानक पीछे से आवाज सुनकर चौंक गई। मुड़कर देखा तो अजनीश मुस्कराते हुए खड़ा है।

अचानक अजनीश को सामने पाकर घबराकर "नहीं, नहीं सभी लोग तो यहीं हैं, तो फिर..." ऐसे हड़बड़ा गई जैसे कि चोरी पकड़ी गई हो ।

"मेरा मन तो कुछ और ही कह रहा था।"

"क्या ?"

“कहीं आप मुझे तो नहीं ढूँढ रही थीं।"

"ऐसा सोचिए भी मत "

क्यों मैंने क्या पाप कर दिया ? कि आप मुझे ये समोसा भी नहीं दे सकती। आप मुझे ही देने के लिए..." मेंहदी के हाथ से समोसा लेकर अपने मुँह में डालकर खाने लगा और कहने लगा। "वाह क्या टेस्टी है।"

"अरे ये क्या किया आपने...., मेरा आधा खाया हुआ समोसा।"

"क्या मेंहदी जी आधा समोसा भी मेरे साथ शेयर नहीं कर सकती ?"

"लेकिन मेरा जूठा किया हुआ...।"

"तो फिर आपने पहले क्यों नहीं बताया? अब तो अंदर जाकर हजम भी हो गया।" मेंहदी की बात पर ध्यान न देते हुए वह वहाँ से उठकर चला गया। अजनीश की इस हरकत पर हैरान मेंहदी कुछ देर के लिए पिछली रात की सारी बात भूल गई और अजनीश भी यही चाहता था।