## 9 ##
अभिषेक, अजनीश और मानव ने एक-एक कर सबके कमरे देखा सभी गहरी नींद में सोये हुए थे। अन्वेशा कहीं नज़र नहीं आ रही थी। सभी लोग बरामदे में इकट्ठे हुए। वहाँ से सीढ़ियाँ उतरकर एक खुला हुआ दरवाजा देखकर वहाँ से नीचे जाने का फैसला किया। अंधेरे में एक साथ हाथ पकड़े सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। अचानक ही पीछे से आवाज आयी।
"आप लोग यहाँ क्या रहे हैं ? नीचे कहाँ जा रहे हैं ?"
सबने एक साथ पीछे मुड़कर देखा। वहाँ वॉचमैन खड़ा था। उस वक्त चौकीदार को वहाँ देखकर सबने आश्चर्य हुए। अजनीश ने पहले खुदको सँभाला, वॉचमैन को देखकर लम्बी साँसे लेते हुए अन्वेशा के गायब होने की खबर दी।
"ठीक है, आप सब यहीं रुक जाइए, मैं अभी वापस आता हूँ..." कहकर अंदर चला गया।
"वॉचमैन इस वक्त यहाँ क्या कर रहा है? देखने को भी अजीब-सा चेहरा, मैं तो डर गयी थी। दिन में भी एक बार देख ले तो सपने में भी भूल नहीं सकते।" स्वागता ने कहा।
"मैंने भी कुछ देर पहले किसी को हवेली के अंदर आते हुए देखा था। ठीक उस समय अन्वेशा का गायब हो जाने से मैं यह बात भूल गयी। शायद वह चौकीदार ही था।” मेंहदी ने कहा।
"मगर इतनी रात गये वह यहाँ क्या करने आया है? एक तो हम पहले से ही डरे हुए हैं, अन्वेशा का भी कोई पता नहीं है। अगर अन्वेशा के साथ कुछ हुआ तो ... ।" आगे कहने से स्वागता को रोक लिया अजनीश ने।
"देखो, ये अनजान जगह है हमें इस जगह के बारे में कुछ नहीं पता। इस वक्त अन्वेशा को ढूँढने में कोई मदद कर सकता है, तो वह चौकीदार ही है। इसलिए बिना कोई सवाल किए पूरा साथ देना। समझ गये।" अजनीश ने सबको समझाते हुए कहा। इतने में वॉचमैन एक हाथ में लालटेन, दूसरे में एक लम्बी सी लकड़ी लेकर पहुँचा। वह आगे-आगे सीढ़ियों से उतरने लगा, पीछे बाकी सब एक-दूसरे के हाथ पकड़कर उतरने लगे। एक अजीब-सी गँध चारों ओर फैली हुई थी।
"ये कैसी दुर्गन्ध है?" सभी अपने नाक पर रुमाल रखकर धीरे-धीरे उतरने लगे।
"ये जगह हमेशा बंद रहती है। चूहे, चमगादड़ से भरी है इसीलिए ये दुर्गन्ध है।" वाचमैन ने कहा।
कोठरी में पूरी तरह से अंधेरा राज कर रहा था। अचानक प्रकाश प्रवेश करने से घबराए हुए चमगादड़ एक साथ अपने पंख फड़फड़ाते इधर-उधर उड़ने लगे।
"आवाज़ मत करो घबराकर ये आक्रमण कर सकते हैं।" धीरे से वाचमैन ने चेतावनी दी। वहाँ की दीवारें कुछ हद तक धँस गई थीं। लग रहा था कि जमाने से किसी ने अंदर पैर भी ना रखा हो। अँधेरे के साथ-साथ चूहे और चमगादड़ की भयानक आवाजें उस जगह को बहुत भयानक बना रही थी। जगह-जगह मकड़ी के जाले भरे पड़े थे। अँधेरे में साँप काटने का डर भी था। सावधानी से एक-एक कर आगे बढ़ने लगे।
"इतने अंधेरे में अन्वेशा यहाँ क्यों आएगी भला? बहुत डर लग रहा है। चलो चलते हैं। इस अँधेरे में घुटन-सी महसूस हो रही है। " अभिषेक ने कहा।
स्वागता अपने आपको रोक नहीं पाई, “क्या आपको पहले से पता था ऐसा कुछ होने वाला है। जो आप इस वक्त हमारी मदद करने यहाँ टपक पड़े।" स्वागता ने दाँत चबाते हुए धीमी आवाज़ में कहा।
"स..., बात मत करो।" वाचमैन ने चुप कराया। कुछ दूर जाने के बाद स्वागता ने मुँह खोला, "ये कैसी जगह है, इतना भयानक ।"
“राजा-महाराजाओं के समय में यह जगह कैदखाना हुआ करता था। झूठ कहना, चोरी, दंगे जैसे छोटे-छोटे अपराध के लिए उन्हें इस जगह पर बंदकर दिया जाता था। सजा ख़त्म होने के बाद उसके सिर मुंडवाकर उन्हें छोड़ दिया जाता था। मगर कोई बड़ा अपराध या गुनाह करने पर उन्हें कालकोठरी में बंद कर दिया जाता था। वह जगह जो दिख रही है इसे कालकोठरी कहा जाता है। यहाँ दिन में भी सूर्य की रोशनी अंदर नहीं आ सकती।” वॉचमैन कहने लगा।
"सूरज की रोशनी तो क्या शायद हवा भी अंदर आने से घबरा जाए।" जुई ने पीछे से कहा।
ठीक कहा बेटा, "यहाँ साधारण कर्मचारियों का प्रवेश भी मना था। इसके लिए खास सिपाही नियुक्त थे। वे रात-दिन इन कैदियों पर पहरा देते थे। कभी-कभी राजा के आदेश से इन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता तो कभी-कभी लोहे की जंजीर से बाँधकर पीटा जाता था। बड़ी सख्त सजा दी जाती थी। जब से यह सरकारी गेस्ट हाउस में बदल दिया गया तब से इस जगह को बंद कर दिया गया।"
"दिन के उजाले में भी कोई अंदर आने का साहस नहीं करता फिर अकेली लड़की रात के अंधेरे में दरवाजा खोलकर बिना कोई बत्ती के सहारे अंधेरे में क्यों भला अंदर आएगी ?" चौकीदार अपने ढंग से बोलते जा रहा था।
"देखो वहाँ कुछ है।" स्वागता मेंहदी का हाथ ज़ोर से पकड़कर चिल्लाई। सब लोग उस ओर चल पड़े। जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगे वहाँ नज़ारा का कुछ-कुछ साफ होने लगा। अंधेरे में कैद खाने के दीवारों के बीचोंबीच अन्वेशा बेहोश पड़ी थी।
अन्वेशा को वहाँ देखकर सबके होश उड़ गए। भागते हुए वहाँ पहुँचे, जगाने की कोशिश की, मगर अन्वेशा बिल्कुल बेहोशी की हालत में थी। तब मानव और अजनीश की मदद से अन्वेशा को उठाकर कमरे में ले आए और पलंग पर सुला दिया। चेहरे पर पानी के छींटे डालने के बाद अन्वेशा होश में आ तो गई, मगर कोई भी सवाल का जवाब देने की हालत में नहीं थी। सारी रात स्वागता और मेंहदी ने अन्वेशा के पास जागते हुए बिताई।
"काका यहाँ कोई डॉक्टर का इंतज़ाम हो सकता है?" अजनीश ने प्रश्न किया लेकिन उसे पता था कि यहाँ जंगल में इस वक्त कोई डॉक्टर का होना नामुमकिन है।
"बेटा अब यहाँ कोई डॉक्टर तो नहीं मिल सकता, लेकिन यहाँ पास के गाँव में एक महिला रहती है, जो जड़ी-बूटियों से लोगों का इलाज करती है। सुबह तक का इंतजार करना पड़ेगा।"
अन्वेशा बेहोशी की हालात में रात भर बड़बड़ाती रही। उसमें एक भी शब्द दोनों को समझ में नहीं आ रहा था। बारबार कबीर का नाम अन्वेशा के होठों पर सुन दोनों को आश्चर्यचकित कर रहा था।
"क्या तुम आज से हमारे साथ जॉइन कर सकती हो?"
“यस मैम। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। बस थोड़ी-सी कमज़ोरी है ।"
‘‘अगर चाहो तो तुम कमरे में आराम कर सकती हो। क्यों ?"
"नहीं, मैम मैं ठीक हूँ।"
"वैसे अमृता मैडम आज का प्रोग्राम क्या है, सब कितने बजे निकल रहे हैं।" मेंहदी ने पूछा।
"आज के प्रोग्राम के बारे में मुझे भी ठीक से मालूम नहीं। सर से डिस्कस करके मैं बता दूँगी, आप सब तैयार रहना।" कहते हुए फिर अन्वेशा से कहा, "कुछ देर आराम कर लेना, ठीक लगे तो बाहर चले आना अच्छा अन्वेशा...?" अमृता मैडम अन्वेशा से कुछ पूछने जा रही थी मगर उस वक्त कुछ और पूछना ठीक नहीं समझा। “अच्छा आराम कर लो बाद में बात करेंगे।" अमृता कमरे से बाहर चली गई। मानव, अभिषेक, अजनीश ने एक के बाद एक आकर अन्वेशा की सेहत के बारे में पता किया।
“अन्वेशा, अगर तुम चाहो तो आराम कर लेना, मैं भी तुम्हारे साथ रुक जाऊँगी। ठीक है। "
"नहीं दीदी, मैं आ सकती हूँ।'
"ठीक है, फिर अपना ख़्याल रखना। मैं जरा देखकर आती हूँ, स्वागता अभी तक क्यों नहीं आयी।”
“ठीक है दीदी।” पीछे तकिए पर सिर रखकर आँखें बंद कर ली अन्वेशा ने।
“ये लो बेबी जी चाय पी लो। देखो तबियत एकदम बरोबर हो जाएगी।” अन्वेशा ने आवाज़ सुनकर आँखें खोली। एक ४५-५० साल की औरत सामने खड़ी है। वह शुद्ध मराठी पहनावा पहनी हुई थी। नाक पर एक नथ पहनी थी। मराठी फिल्म की माँ के जैसे दिख रही थी। "आप कौन हैं ?" अन्वेशा ने पूछा ।
"मुझे यहाँ का चौकीदार पास वाले गाँव से लाए हैं। आप भले मानुष की देखभाल करने के लिए देखो बेबी आपके लिए क्या लाई। मैंने अपने हाथ से चाय बनाई है। मेरे हाथ के चाय में बड़ा दम है। काए साँगतों, चाय पीकर देखो तुमची सारा थकान वकान चुटकि में मिट जाएगा।" बहुत कोशिश करते हुए हिंदी में कहने को कोशिश कर रही थी।
"हूँ ! हिन्दी अच्छी बोल लेती हो। चाय यहाँ रख दो। मैं पी लूँगी।"
"बीबी जी नाहीं, अभी मेरे सामने ही पीयो।" कहते हुए चाय आगे बढ़ाई।
"तुमची नाव काए?" अन्वेशा थोड़ा बहुत मराठी समझती है और दो-तीन शब्द भी कभी-कभी कह देती है।
“आगो बाई, तुला मराठि येत ?" जोर-जोर से हँसने लगी।
"नहीं कुछ-कुछ आती है।”
“माझा नाव पूर्णिमा आहे। जल्दी पी लो बीबी जी, ठंडा हो जाएगा। गरमागरम चाय में बहुत दम है।" चाय पीकर अन्वेशा ने भी खूब स्वस्थ महसूस किया।
"हूँ, बहुत ख़ूब थैंक्स पूर्णिमा आँटी, बहुत बढ़िया चाय बनाया है। पीकर अच्छा लगा।"
“अब आराम से सो जाओ बीबी जी। मैं चली, बहुत काम पड़ा है।" पूर्णिमा कमरे से बाहर चली गई।
अन्वेशा पलंग पर दो तकिया रखकर सोने की कोशिश कर रही थी, माँ अवनि की याद आयी, पता नहीं क्या कर रही होगी माँ। छुटकू भी बहुत परेशान करता होगा। माँ बाबूजी मेरे बारे में जानने के बाद खूब दुखी हुये होंगे। सिग्नल न मिलने से मोबाइल भी नहीं लग रहा है। अजनीश अँकल भी क्या कर सकते हैं जब सिग्नल ही नहीं है तो। “माँ मैं ठीक हूँ, चिंता मत करो माँ।” आँखें बंद करके मन ही मन कहने लगी।
तब पलंग के पास कुछ आवाज़ सुनकर अन्वेशा ने आँखें खोली। एक भयानक चेहरा उसके सामने खड़ा है। मुँह पर बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, दाँत बाहर निकले हुए हैं। काले कपड़े पर काले बाल जैसे कोई जंगली जानवर कमरे में घुस आया है। सिर हिलाते हुए बड़े-बड़े नाखून से अन्वेशा को पकड़ने पास आने लगा। आँखें बंद कर जोर-जोर से चिल्लाने लगी अन्वेशा। वह इतना डर गई कि उसकी आवाज़ उसके गले से बाहर भी नहीं निकल पा रही थी। ब्लैंकेट को जोर से पकड़कर कर पलंग के एक कोने में आँखें बंदकर सिमट गई।
बिल्कुल उसी वक्त स्वागता दूध लेकर कमरे में आई। "अन्वेशा" कहते-कहते रुक गई। काले पहनावे में मुँह पर मुखौटा पहनकर खड़ी जुई को पहचान कर उसे वहाँ से जाने को इशारा किया जुई ने स्वागता की बात न मानते हुए सिर हिलाया। स्वागता ने अपने हाथ को दिखाकर एक थप्पड़ मारूँगी कहकर इशारा किया। जुई स्वागता को चिढ़ाते हुए वहाँ से चली गई। स्वागता दूध लेकर अन्वेशा के पास पहुँची और दूध को आगे किया। अन्वेशा का चेहरा पीला पड़ गया था। स्वागता को सामने खड़ा देखकर जोर से उसे अपनी ओर खींच कर उसके काँधे पर मुँह छुपा लिया। स्वागता को उस भयानक चेहरे के बारे में बताने की कोशिश की मगर डर के कारण कुछ कह नहीं पायी
"वह... वह....." आगे कुछ कह नहीं पा रही थी।
“अन्वेशा डर मत ये सब जुई की करतूत है। जल्दी से दूध पी लो फिर बहुत सारी बातें करनी है तुमसे।" फिर भी अन्वेशा को भयभीत देखकर स्वागता हँस पड़ी, “अरे अन्वेशा इसमें नई बात क्या है, जो तू इतना घबरा रही है। अरे ये सब तो जुई की शरारत है। वह तो तेरी सबसे अच्छी सहेलियों में से एक है। उसे तू मुझसे भी अच्छी तरह जानती है और फिर भी इतना डर रही है।" अन्वेशा को सँभलने थोड़ा समय लगा।
“अन्वेशा डर मत ये सब जुई की शरारत थी देख मुझे देखकर वह भाग गई। चल अब दूध पी ले। फिर बहुत सारी बातें करनी है तुमसे।” अन्वेशा के मना करने के बावजूद भी स्वागता ने उसे दूध पिलाया।
“क्या तू सच कह रही है ?"
"हाँ बाबा, वह जुई ही है जो तुझे डरा रही थी। "
“जुई, ये सब उसी की चाल है, ओह ! नो नॉट एगैन।” हाथ से सिर पटकने लगी।
“ओह येस।" कहते हुए जुई दरवाजे के पीछे से बाहर आयी।
“जुई रुक तुझे तो देख लूँगी।" रजाई से बाहर निकलकर अन्वेशा पलंग से उतर ही रही थी स्वागता ने उसे रोक लिया।
“जुई तू ? तू अभी तक यहीं है, गई नहीं।” स्वागता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"देख डर गई न ? ये जुई है, इतनी आसानी से मानने वाली नहीं है।” जुई ने अपना कॉलर ऊपर उठाते हुए कहा।
"चल जाने दे। अच्छा अब बता क्या खबर लाई है?" अन्वेशा ने प्रश्न किया।
"खबर यह है कि आज हम पहाड़ के उस पार जा रहे हैं।"
"तब तो बहुत मज़ा आएगा।" अन्वेशा खुश होकर कहा।
"हाँ, इसलिए जल्दी से तैयार हो जाओ। हम पहाड़ चढ़ने जाने वाले हैं।" कहते हुए जुई वहाँ से चली गई।
"अब बता क्या बात करनी है मुझसे ।” स्वागता की ओर मुड़कर पूछा।
"कुछ नहीं बस ऐसे ही कल रात के बारे में पूछना था।"
"हाँ मैं भी हैरान हूँ कि सब मेरी ओर ऐसे क्यों देख रहे हैं जैसे कि मैं बीमार हूँ। क्या बात है ?"
“ऐसी कोई बात नहीं” स्वागता थोड़ी देर चुप्पी के बाद पूछा, "अन्वेशा रात को तुम कहाँ गई थी ?"
"रात को..... रात को तो मैं तुम्हारे पास ही सो गई थी न फिर अभी-अभी तो उठी हूँ। तू ऐसे क्यों पूछ रही है, अगर मुझे बाहर जाना होता तो तुम्हें बताए बिना क्यों जाऊँगी ?"
इस बात से स्वागता सोच में पड़ गई। क्या अन्वेशा को नींद में चलने की आदत है या वह मुझे बताना नहीं चाहती? नहीं इसमें न बताने वाली क्या बात है, रात को जो कुछ हुआ सचमुच उस बारे में अन्वेशा को कुछ भी याद नहीं। "खेर छोड़ो चलो फ्रेश होकर बाहर चलते है। "
पलंग पर से उठते हुए अन्वेशा ने कहा, "लेकिन स्वागता तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।"
“ऐसी कोई बात नहीं रात को तुमने तो सबको डरा ही दिया था। थोड़ा-सा बुखार क्या आ गया सब कितने परेशान हो गये। क्या तुम्हें कुछ याद नहीं?" अन्वेशा की तरफ देखते हुए कहा।
"अरे बाबा, मुझे याद होता तो मैं क्यों पूछती? लगता है कुछ ज्यादा ही डरा दिया था मैंने इसलिए तो सारे एक-एक कर मेरा इतना ख़्याल रखने चले आ रहे हैं। चलो ठीक है जल्दी से तैयार होकर बाहर चलते हैं।" पलंग से उठते हुए कहा।
अमृता, प्रोफेसर सुनील के साथ सारे विद्यार्थी कैंप के पहले दिन की योजना तैयार कर रहे थे। कुछ दूर पर बहती हुई नदी के उस पार स्थित पहाड़ पर चढ़ने का आयोजन किया गया था। साथ-साथ वहाँ स्थित अनोखे आयुर्वेद वृक्षों के बारे में भी अनुसंधान करना था। अन्वेशा और स्वागता के आते ही सभी वहाँ से निकले। फातिमा मैम ने मेंहदी को साथ चलने का अनुरोध किया। मेहेंदी ने अजनीश की तरफ देखा। मेंहदी का संशय समझते हुए अजनीश ने "चलिए हम भी चलते हैं। वहाँ रहकर इनका ख्याल रख सकते हैं। साथ-साथ खूबसूरत प्रकृति की सैर भी कर लेंगे। "