Manjari in Hindi Women Focused by Yogesh Kanava books and stories PDF | मंजरी

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मंजरी

उद्घोषिका ने अंग्रेजी में ही घोषणा करनी शुरू की थी। आरम्भिक रस्म अदायगी हुई फिर यूनिसेफ इण्डिया हैड, और यूनिसेफ हैडक्वाटर न्यूयार्क से आए विशेष प्रतिनिधि दोनों स्टेज पर बनी कुर्सियों में बैठ गए। कोई दो और लोग भी थे। उद्घोषिका ने असेण्डिंग आर्डर में पुरस्कारों की घोषणा के साथ उनको प्राप्त करने वाले लोगों के नाम बोलना शुरू किए। कोई पांच या छः लोगों के बाद प्रवाहिमा का नम्बर आया। सभी लोग हर पुरस्कृत व्यक्ति के लिए तालियां बजाकर खुशी ज़ाहिर कर रहे थे। निहारिका ने भी खूब तालियां बजाई प्रवाहिका के लिए। और इसके बाद जो नाम पुकारा गया वो था कजली का। भावेश ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था लेकिन जब कजली स्टेज पर आई पुरस्कार लिया और फिर उससे कुछ बोलने के लिए कहा गया तो वो बोली - क्या बोलूंगी साब गलियों में बुहारी निकालने वाली, अपने सिर पर लोगों की टट्टी उठाकर मैला ढोने वाली कजली को मेडम जी ने हवाई जहाज में बिठाकर यहाँं खड़ा कर दिया। कजली मेहतराणी ने कभी ऐसा मान नहीं पाया बस हम तो पैदा ही लोगों की ठोकरें खाने और क्या बोलूं बस यूं समझ लो दुनियां की लुगाई बणने के लिए ही होते हैं। पर मेडम जी और आप सब का भगवान भला करे जो इस कजली को आज कजली जी बना दिया।

 कजली की बात खत्म हुई देर तक तालियां बजती रही और कजली को नीचे आते ही भाविका ने अपनी बांहों में भर लिया। उधर मंच से उद्घोषिका ने अब जो नाम पुकारा उस पर भावेश ने और भाविका ने कजली के साथ होने की खुशी के कारण खास ग़ौर नहीं किया। अब मंच पर एक ताम्बई रंग बेहर आकर्षक सुन्दरी खड़ी थी जिसे यूनिसेफ ग्रेट एचिवर अवार्ड से नवाज़ा जा रहा था। पूरा हाल तालियों से गूंज गया था भाविका और भावेश अब कजली से फ्री होकर मंच की तरफ रूख कर चुके थे। मंच पर मंजरी खड़ी थी वही मंजरी जिसे भावेश चौराहे से उठा कर कोच्ची में अपने घर लाया था। पुरस्कार लेकर मंजरी ने बोलने की इच्छा व्यक्त की तो तालियों से उसको स्वागत किया गया। उसने बोलना शुरू किया - लेडीज एन जेन्टलमेन, आई हेव दिस ग्रेट अपोरचुनिटी एण्ड दिस मोमेन्ट, डू यू नो व्हाई, लेटमी टेल माई ट्रू स्टोरी - बट आई थिंक आई मस्ट टेल माय स्टोरी इन माय आउन लेंगवेज, यस माय कंट्री लंगवेेज, हिन्दी, बिल यू बी कर्म्टेबल ? तालियों के बीच हां का स्वर सुनाई दिया। उसको फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देख भावेश और भाविका को एक बार तो संदेह हुआ कि कदाचित ये कोई और मंजरी है। किन्तु शक्ल वही कद काठी भी वही, यह भ्रम तत्काल ही टूट गया। वो बोली - धन्यवाद, यह पुरस्कार देने के लिए यूनिसेफ का आभार। किन्तु मैं यह पुरस्कार समर्पित करना चाहती हूँ उस व्यक्ति को जिसको मैंने अपने जीवन में भगवान का दर्ज़ा दिया है शायद आप लोग मेरे पति के लिए सोच रहे होंगे और यदि आप यही सोच रहे हैं तो आप लोग गलत हैं। उस व्यक्ति को केवल मैं ही नहीं मेरे पति भी भगवान की तरह मानते हैं।

 कोच्ची के चौराहों पर भीख मांगने वाली लड़की जिसे हर रात कोई ना कोई अपनी हवस में रौंदते था कभी कोई अनजान, कभी पुलिसवाले और कभी वो साथी भिखारी लेकिन हवस का शिकार हर रात होती थी। फिर अचानक ही भगवान उसी चौराहे पर आए और अपने पास बुलाया, अपना कार्ड दिया और अपने घर आकर मिलने के लिए कह गए। वो लड़की नहीं जानती थी कि क्यों जाए लेकिन अगली सुबह वो उस कार्ड वाले पते पर चली गयी। उस भगवान रूपी इनसान ने उसे अपने घर में जगह दी, मान सम्मान दिया, काम दिया, जो पति के रूप में आज साथ है वो पुरुष भी उसी घर से मिला। उन्होंने उस लड़की को ओपन स्कूल से बारहवीं पास करवायी तभी उनका तबादला उनके अपने शहर में हो गया था में, लेकिन उस भगवान ने जाते जाते अपने दोनों नौकरों, उस लड़की और उसके साथ के लड़के को एक एक लिफाफा दिया था जिसमें पच्चीस पच्चीस हजार रुपए थे और ये निर्देश था कि वह पैसे उनके ग्रेजुएशन पूरा करने की फीस के लिए है। जिस दिन पहली बार उनके घर गई थी तब उन्होंने उसके बारे में जानना चाहा था तब वो अक्खड़ बोली, मैं इंटरव्यू देने नहीं आयी हूँ वो लड़की मैं ही हूँ। हां दसवीं पास करते ही मेरा शरीर पूरी तरह से भर गया था। मां पहले बाप को छोड़कर किसी और मरद के साथ रहने लगी थी। उस आदमी की एक और बीबी थी, मेरी मां उसकी दूसरी लुगाई, दूसरी औरत थी। उसकी पहली पत्नी ने मेरी मां को समझाया कि लड़की को मुम्बई भेज दो, मेरा भाई उसे नौकरी लगा देगा अच्छा पैसा कमाएगी, लड़की की भी लाइफ बन जाएगी। मुझे नहीं पता था कि वो मेरी सौतेली मां मुझे अपने भाई के हाथों पच्चीस हजार में बेच चुकी थी। वो जो मेरा सौतेला मामा था मुझे मुम्बई - जी इसी नगरी में लेकर आ गया था। चार पांच दिन तो ठीक से रखा, नौकरी ढूंढने का बहाना करता रहा और फिर एक रात उसने मेरा रेप किया पन्द्रह साल की लड़की उस दर्द को बर्दाश्त नहीं पर पायी थी खूब चीखी थी लेकिन कोई बचाने नहीं आया अगली सुबह ही उसने मुझे किसी दलाल के हवाले कर दिया था। वो दलाल मुझे छबीली के कोठे पर बेच आया था। वहां कई दिन तक खूब मार सही कि मैं वेश्या नहीं बनूंगी लेकिन भूख के आगे में हार गई थी। छबीली जीत गई थी। उसने परोस दिया था मुझे किसी दौलत वाले के बिस्तर पर उस रात। उसके बाद मुझे खुद पता नहीं कितनी रातों में कितने मर्द मेरे इस जिस्म को रौंदते रहे। एक दिन मौका पाकर छबीली के अड्डे से भाग निकली थी। मुझे पता था छबीली के गुण्डे मेरे पीछे आएंगे इसलिए बांद्रा पहुंच कर मैं एक ट्रेन में चढ़ गयी और उसके टायलेट में जा दुबकी। ट्रेन चल पड़ी थी और उसने मुझे पहुँचा दिया था कोच्ची वहां पर पेट की अगन को बुझाने के लिए मैं भीख मांगनी लगी थी। जवान थी, खूबसूरत थी हर किसी की लार टपकती थी और वो ही रात में ज़बरदस्ती वो ही सब कुछ जो छबीली के अड्डे पर होता था। किसी किसी रात पुलिस वाले आते और गैर कानूनन भीख मांगने के नाम पर गिरफ्तार करके ले जाते लेकिन पूरी रात आठ दस मुस्टण्डे मुझे थाने में अपनी हवस का शिकार बनाते, अगली सुबह रात की बासी रोटी, इडली या जो भी कुछ खाने को होता देकर भगा देते थे। मैंने इसे अपनी नियति मान लिया था लेकिन मैंने कहा ना वो इनसान के रूप में भगवान आये, हां उनका नाम भावेश साब है। सोशल रिसर्च डिपार्टमेन्ट में वो वहां डिप्टी डायरेक्टर या डायरेक्टर थे शायद । ये पुरस्कार मैं अपने उसी भगवान और उनकी पत्नी को समर्पित करती हूँ। मैं नहीं जानती अभी वो कहां है लेकिन भगवान कही भी हो वो हमेशा दयालु ही रहता है। आज उन्हीं की बदौलत मैं पढ़ पायी, शादी हुई और आपके सामने हूँ मेरे पति और मेरा बेटा सब सामने हैं यहीं पर।

 भावेश और भाविका की आंखें भर आयी थी। हॉल तालियों से गूँज रहा था और मंजरी खामोश खड़ी थी उसी मंच पर ना वो वहां से हट रही थी और ना ही कुछ बोल रही थी। तालियां लगातार बजे जा रही थी और कजली ..... वो सोच रही थी मेडम जी और साब तो सचमुच में महान है।

 धीरे धीरे मंजरी मंच से नीचे आकर अपने स्थान पर बैठ गई। मंच से बोला जा रहा था एण्ड एट लास्ट बट नोट लीस्ट द यूनिसेफ अवार्ड फोर दिस ईयर गोज टू मिसेज भाविका भावेश। गिव हर ए बिग हैण्ड।

 भाविका का नाम बोला गया और भाविका चेतना शून्य सी बैठी रही। एक बार फिर से उसका नाम पुकारा गया। इस बार कजली ने बोला मैडम जी आपका ही नाम बोल रहे हैं। भाविका धीरे से उठी और मंच की तरफ चल दी। पुरस्कार लेकर वो बोली। मुझे बहुल लम्बा कुछ नहीं कहना है बस मैं वो सौभाग्यशाली औरत हूँ जिसको भावेश जैसा पति मिला है। एक अनाथ सी लड़की को सहारा देकर अपनी जीवन संगीनी बनाने वाला, कजली की कहानी को अपने सीने से लगाए रखने वाला, मंजरी को मंजरी बनाने वाला मेरा पति भावेश। ये पुरस्कार मेरा नहीं सच मेरे पति भावेश का होना चाहिए। एण्ड एम रियली प्राउड आफ माय हसबेन्ड। थैंक यू।

 जैसे ही वो थैंक यू बोली यूनिसेफ के न्ययार्क हैडक्वार्टर से आये अधिकारी ने उसे रोका

 - प्लीज स्टे हियर, लेडीज एण्ड जेन्टलमैन इट्स अन बिलिवेबल स्टोरी व्हाट आई हर्ड टूडे। आई कान्ट गिव एन अवार्ड टू मैन बट आई वुड लाइक टू काल हियर द ग्रेट पर्सेनालेटी, द ग्रेट मैन, मिस्टर भावेश, हियर आन स्टेज।

 भावेश सधे कदमों से मंच की ओर चला और पीछे से मंजरी ने दौड़कर मंच पर ही अपने भगवान के पैर छूकर वहीं बैठ गयी। पूरा हाल खड़ा होकर तालियों की गूंज के साथ भावेश, भाविका और मंजरी का सम्मान कर रहा था और भावेश शान्त खड़ा भाविका की ओर देख रहा था। यूनिसेफ अधिकारी ने आगे बढ़कर पहले मंजरी को उठाया फिर भावेश को अपने सीने से लगाया। आज भावेश की कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और इनसानियत को एक अधिकारी के इतर एक नई पहचान मिली थी और मंजरी को उसका भगवान।