Yah Bandhan nahi he - 2 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | यह बंधन नही है - 2

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यह बंधन नही है - 2

माँ की प्रेरणा या संगत या परिवार का माहौल की मैं भी महिला संस्थाओं से जुड़ गई।नारी के अधिकारों या समस्या को लेकर कोई भी आंदोलन होता तो मैं भी उसमें बढ़ चढ़कर भाग लेती।दहेज समस्या हो,नारी उत्पीडन हो या अन्य नारी से सम्बंधित बाते मैं आवाज उठाने में सबसे आगे रहती।
दहेज की समस्या और विवाहित औरतों पर होने वाले जुल्म और अत्याचारो को देख सुनकर मेरी विवाह के बारे में रे बदल गयी थी।मैं विवाह की एक बंधन समझने लगी थी।मेरी नजर में विवाह का मतलब था,औरत की स्वतंत्रता का हनन।उसका एक बंधन में बंध जाना।
शादी के बाद औरत गृहस्थी और बाल बच्चों के चक्कर मे ऐसी फसती है कि उसका अपना व्यक्तित्व खत्म हो जाता है।लड़की जब तक कुंवारी होती है स्वतंत्र होती है।लेकिन विवाह के बंधन में बंधते ही वह पति की हो जाती है।उसकी सारी इच्छाएं,कामनाये और उमंगे दब जाती है गृहस्थी के बोझ के तले।उसकी जिंदगी दुसरो के लिए हो जाती है।विवाहित औरत का उद्देश्य होता है,पति और अपने बच्चों की खुशी।।वह स्वयं कष्ट उठाकर और तकलीफ सहकर भी अपने परिवार की खुशी चाहती है।और रात दिन उसका यही प्रयास रहता है।ऐसे में खुद को भूल जाती है।
दिन प्रतिदिन औरतों पर होने वाले अत्याचार,दहेज के लिए उत्पीड़न और औरतों की हत्या,और नारी को प्रताड़ित होते देखकर मुझे मर्दो से चिढ़ हो गयी थी।मैं शादी को घृणा की नजर से देखने लगी।मैने शादी के खिलाफ आवाज उठाई।जब आदमी कुंवारा रहकर जी सकता है।रह सकता है।तो औरत क्यो नही?
मैं लड़कियों को शादी के खिलाफ भड़काने लगी।।और मैने भी सोच लिया कि मैं शादी नही करूंगी।
मैने एम ए पास करने के बाद नौकरी के लिए प्रयास शुरू कर दिए।मैं फार्म भरने और परीक्षा देने लगी।आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे बैंक में नौकरी मिल गयी।
हर मा बाप को बेटी के जवान होते ही उसकी शादी की चिंता सताने लगती है।मेरे माता पिता को भी मेरी शादी जी चिंता होने लगी।उन्होंने मेरे लिए वर की तलाश शुरू कर दी।जब मुझे इस बात का पता चला तो मैं अपनी माँ से बोली,"मम्मी आप लोग बेकार में लड़का ढूंढने की मेहनत कर रहे है।"
"क्यो?"
"मम्मी मुझे शादी नही करनी है।"
मेरा माता पितां ने मेरे शादी न करने के फैसले को मेरी नादानी समझा।उनका ख्याल था कि मुझे समझ आ जायेगी।लेकिन कई साल गुजर जाने के बाद भी मैने शादी के बारे में अपना विचार नही बदल तो उन्हें चिंता हुई थी।तब एक दिन मेरी माँ ने मुझे समझाया था,"बेटी अब तू शादी कर ले।उम्र निकल जायेगी तो फिर कौन शादी करेगा?"
"माँ मैं शादी नही करूंगी,"मैं बोली थी,"शादी एक बंधन है और मैं इस बंधन में नही बन्धुनगी।""
"बेटी तू जिसे बंधन कह रही है,वह बंधन नही है।एक सामाजिक नियम है और इस नियम का पालन हर लड़के और लड़की को करना पड़ता है।"माँ ने मुझे शादी करने के लिए हर तरह से मनाने का प्रयास किया था।पर मैं नही मानी थी।
एक दिन मेरे पापा मुझसे बोले,"बेटी तेरे शादी न करने के फैसले से मेरी बदनामी हो रही है।लोग मुझसे कहते है कि बेटी कमाई खाने के लिए दीना नाथ बेटी की शादी नही कर रहा है।