Kali Ghati - 1 in Hindi Horror Stories by दिलखुश गुर्जर books and stories PDF | काली घाटी - 1

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काली घाटी - 1

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम दिलखुश गुर्जर है और यह मेरी पहली कहानी है तो अगर कोई त्रुटी हो जाए तो क्षमा कर देना।

{ परिचय }
भानपुर नाम का एक गांव था, यह गांव एक घाटी के पास बसा हुआ था, जिसे सामान्यत: काली घाटी के नाम से जाना जाता था और इसी घाटी में रास्ता होकर शहर की तरफ जाता था, इस गांव में एक तालाब था जिसमें कमल के फूल खिले हुए थे इस पूरे गांव का दृश्य मन को मंत्रमुग्ध करने वाला था लेकिन जहां अच्छाई होती है वही बुराई भी होती है उस काली घाटी में लोग रात में जाने से डरते थे क्योंकि जो भी आदमी उस घाटी में रात में जाता था वह कभी भी वापस लौट कर नहीं आता था,अब क्यों नहीं आता था यह जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी "काली घाटी" को
इस गांव में एक शिवा नाम का लड़का रहता था जिसकी उम्र लगभग 18 साल थी उसके पिता का नाम रमेश था जोकि दुध बेचने का काम करता था, वह रोजाना अपनी गायों का दूध निकाल कर काली घाटी से होकर शहर में बेचने के लिए जाता था रास्ते में काली घाटी होने की वजह से उसके अंदर डर बना रहता था की अगर किसी दिन में शहर से आने में लेट हो गया तो क्या होगा लेकिन आज तक वह लेट तो नहीं हुआ था उनके पास खेत भी था जिसमें शिवा और उसकी मां रेणुका काम करते थे
आज शिवा और उसकी मां
खेत में काम करके घर आ रहे थे , घर आते आते उन्हें शाम हो गई थी, और जब वो घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि रमेश अभी तक घर नहीं आया था
रेणुका- शिवा

शिवा- हां मां

अरे तुम्हारे पिताजी अभी तक नहीं आए हैं
आ जाएंगे मां आप चिंता क्यों करती हो
जरा तू बाहर जाकर देख कहीं किसी के पास बैठे हुए होंगे
ठीक है मां में जाता हूं
यह कहकर शिवा बाहर चला जाता है
धीरे धीरे रेणुका की चिंता डर में बदल रही थी
सूर्य भी धीरे धीरे समुद्र में समाता जा रहा था
थोड़ी देर बाद शिवा अपनी मां को आकर कहता है कि
मां मैंने हर जगह देखा पर मुझे पापा कहीं दिखाई नहीं दिए
अब धीरे धीरे रेणुका का डर और भी बढ़ता जा रहा था वह अपना काम छोड़कर भागी हुई सियाराम के पास जाती है रेणुका को भागता देखकर शिवा भी उसके पीछे पीछे दौड़ने लगता है ,
( नोट- सियाराम भानपुर गांव के सरपंच थे )
सियाराम अपने घर पर बैठे हुए भोजन कर रहे थे , रेणुका को आता देखकर सियाराम भोजन छोड़ कर उनके पास जाते हैं सियाराम - क्या हुआ आप लोग इस तरह भागते हुए क्यों आए हैं ।
शिवा - सरपंच साहब मेरे पापा अब तक घर नहीं आए हैं
रेणुका- और रास्ते में वो काली घाटी भी है पता नहीं वो कहां है (रेणुका रोते हुए कहती हैं )
शिवा- मां आप रोइए मत पापा को कुछ नहीं होगा
सियाराम - देखिए आप चिंता मत कीजिए हम अभी काली घाटी की और निकलते हैं
यह कहकर सियाराम रामू काका को कहते हैं
सियाराम- काका गांव के नौजवान लोगों को इकट्ठा कीजीये, और हां अपने साथ कुछ हथियार लाने के लिए भी कहना
रामू काका- जी साहब ( यह कहकर वहां से चले जाते हैं)
शिवा- साहब में भी आप के साथ चलुंगा
सियाराम- नहीं बेटा तुम यहां पर अपनी मां का ख्याल रखना
शिवा- साहब वहां पता नहीं मेरे पापा किस हालत में होंगे और ऐसे में यहां कैसे रह सकता हूं
सियाराम- ठीक है
(कुछ समय पश्चात सभी लोग वहां आ जाते हैं )
श्याम- साहब आपने हमें यहां क्यों बुलाया है
सियाराम-देखिए हमारे गांव का एक आदमी वहां उस काली घाटी में फंसा हुआ है और हमें वहां जाकर उसे लाना है ।
कालू- क्या कहते हो साहब आपको पता है ना वहां जाना मतलब अपनी मौत को दावत देना है
गणेश- साहब अपनी जान को खतरे में डालकर हम वहां नहीं जाएंगे
सियाराम-देखो में नहीं जानता कि वहां पर जाने से हमारे साथ क्या होगा लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि हम सभी मिलकर अगर उसका सामना करें तो शायद उसे मिटा सकते हैं
विशाल- साहब अगर आपको जाना है तो आप जाइए हम तो नहीं जाएंगे
ठीक है में और शिवा जाएंगे वहां,
चलो शिवा
(यह कहकर शिवा और सियाराम जाने लगते हैं )
जाते हुए सियाराम अपनी छत की ओर देखते हैं तो उन्हें उनकी पत्नी रुकमणी दिखाई देती है जिसके चेहरे पर अजीब सी घबराहट दिखाई देती है तो यह देख कर सियाराम और शिवा वहां से जाने लगते हैं रास्ते में सियाराम शिवा से कहता है कि हम सिर्फ मौत के दरवाजे तक जाएंगे ,
शिवा -मौत का दरवाजा वो क्या है साहब
सियाराम-मौत का दरवाजा वह दरवाजा है जहां से काली घाटी शूरु होती है, उससे पहले हमें कुछ खतरा नहीं है
(उस दरवाजे को मौत का दरवाजा इसलिए कहा जाता था क्योंकि उसके बाद में ही रात को लोग गायब होते थे )
वे दोनों बिना रुके काली घाटी की और बढ़ते जा रहे थे
सियाराम-शिवा मौत के दरवाजे से पहले वो शायद हमें डराने या की कोशिश करें लेकिन इन सब पर ध्यान मत देना
शिवा -ठीक है साहब
पेड़ों की वजह से चांद की हल्की हल्की चांदनी रास्ते पर पड़ रही थी तभी अचानक एक ठंडी हवा का झोंका शिवा से टकरा जाता है,
शिवा- अजीब बात है साहब मौसम तो गर्मी का है और अभी मुझे सर्दी लग रही है
सियाराम- यह सब उसी का किया हुआ है, तुम इन सब पर ध्यान मत दो
आखिरकार वो दोनों मौत के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं
शिवा- पापा कहां है आप पापा.........
सियाराम-शिवा तुम रुको मैं अभी आता हूं
यह कहकर वह पेड के पीछे चला जाता है
पापा देखों में आपको लेने आया हूं पापा कहां हो आप
यह कहकर वह रोने लगता है अअ्अ्
तभी
शिवाअअअ भागों यहां से
साहब कहां हो आप
और सब शांत हो जाता है
तभी शिवा के उपर खून की बूंद गिरती है
वह उपर देखता है उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है
(आपको क्या लगता है आगे क्या होगा और शिवा के पापा कहां है जानने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी "काली घाटी" को )