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मेजर विक्रम के पापा वीरेंद्र और मम्मी आभा लगभग एक घंटा बाद अस्पताल पहुंचे।शांभवी के पापा,रिटायर्ड कर्नल राजवीर और मम्मी जानकी रिसेप्शन में ही थे।शांभवी भी उनके साथ थी। अपने दोस्त वीरेंद्र को देखकर कर्नल राजवीर लपक कर दरवाजे की ओर बढ़े। दोनों मित्र गले मिले। आभा और जानकी ने भी आपस में भेंट की। वीरेंद्र और आभा ने शांभवी को गले लगा लिया।
इसके बाद आभा ने बड़ी व्यग्रता से पूछा-अब कैसा है विक्रम? अब बोलने लगा है ना?
शांभवी ने कहा- आंटी अब विक्रम जी खतरे से बाहर हैं और तेजी से स्वस्थ हो रहे हैं। बस एक घंटे में विजिटिंग अवर शुरू हो जाएगा और हम सब उनसे भीतर जाकर मिल सकते हैं।
वीरेंद्र- भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि विक्रम सही सलामत है।उसमें एक तरह से बहादुरी का गहरा जज़्बा है।जोश और जुनून है। कहीं पर भी अन्याय होते हुए वह नहीं देख सकता है और इसका विरोध करने के लिए चल पड़ता है।
आभा ने शांभवी को प्रेम की मीठी झिड़की लगाते हुए कहा-.... और शांभवी तुम कितनी दुबली हो गई हो? क्या पढ़ाई की चिंता है या परेशान चल रही हो?
राजवीर ने मुस्कुराते हुए कहा-वैसे शांभवी किसी बात को लेकर अधिक चिंता नहीं करती है, लेकिन हां इन दिनों दौड़-धूप थोड़ी अधिक हो गई है।
सभी आपस में बातों में मशगूल रहे और देखते ही देखते घड़ी ने शाम को 5:00 बजाए। विजिटिंग अवर्स शुरू होने पर सब लोग कर्नल विक्रम से मिलने के लिए भीतर की ओर बढ़े।
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मम्मी और पापा को आईसीयू में देखकर कर्नल विक्रम के चेहरे पर चमक आ गई लेकिन अगले ही क्षण उनकी आंखों में नमी आ गई।
आभा अपने बेटे को यूं बेड पर देखकर भावुक हो गई। अपने मन को कड़ा कर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए आभा ने कहा- अरे मेरा बहादुर बेटा।तू हर बार जंग जीतकर आया है और ये आतंकवादी तेरे लिए क्या बड़ी चीज थे।
राजवीर- हां बस विक्रम को यह ध्यान रखना चाहिए कि बहादुरी के साथ साथ-साथ कोई ऐसा रिस्क न ले, जिसमें 100 प्रतिशत खतरा हो…..हाँ 99 प्रतिशत खतरा और 1 प्रतिशत उम्मीद तो चलेगा……
सब हंसने लगे और राजवीर ने आगे कहा- मैंने तो यह यूं ही कह दिया था।कभी-कभी 100% खतरे भी उठाए जाते हैं।यह मैं अच्छी तरह जानता हूं।
जानकी ने पूछा- विक्रम यहां कोई तकलीफ तो नहीं है? नहीं तो मैं घर से टिफिन भिजवाया करूंगी।
विक्रम-नहीं मम्मी, यहां पूरी केयर है।
शांभवी ने ड्यूटी कर रही नर्स को थर्मस देते हुए कहा-दी, यह मैंने मंगवा लिया था। कॉफी है। विक्रम जी ने कॉफी पीने की इच्छा प्रकट की थी। आप उन्हें दे दीजिए।
नर्स ने शांभवी को एक बार देखा और मुस्कुरा कर कहा-आप ही दे दो।छूट है आपको।
जब शांभवी ने फोल्डिंग ट्रे में कॉफी का प्याला रखा और बमुश्किल उठकर थोड़ा बैठते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से मेजर विक्रम ने थोड़ा मुस्कराकर कहा-क्या बस मैं अकेले?.......
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अस्पताल में ही आर्मी के इंटरनल कम्युनिकेशन सिस्टम के जरिए स्वयं आर्मी चीफ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर थे।विक्रम ने बेड पर बैठे-बैठे ही उन्हें सलामी दी। आर्मी चीफ ने विक्रम की बहादुरी की तारीफ करते हुए कहा कि सेना को आप जैसे नौजवान ऑफिसर पर गर्व है। उन्होंने विक्रम से कहा कि वह जल्दी ठीक हो जाए क्योंकि सेना को आगे बड़ी जिम्मेदारियों में उनकी सहायता की आवश्यकता है।
गर्व से विक्रम ने कहा- मैं तैयार हूं सर, मैं स्वयं यहां से जल्दी डिस्चार्ज होने की कोशिश करूंगा।
सेनाध्यक्ष ने मुस्कुराते हुए कहा- नो माय बॉय...पहले तुम ठीक तो हो जाओ…. अपनी छुट्टी पूरी कर लो…. कुछ दिन और घर में रेस्ट कर लो….. फिर तो जाओगे ही फ़ील्ड में……...
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शांभवी हॉस्पिटल में ही रुक गई।शांभवी और विक्रम के मम्मी-पापा चारों घर लौटे लेकिन उनके घर पहुंचने से पहले ही वहां पर आर्मी की एक गाड़ी खड़ी थी।
सामने एक अफसर खड़े थे। उन्होंने हाथ बढ़ाते हुए कहा- हेलो आय एम लेफ्टिनेंट कर्नल मलकीत। आर्मी हेडक्वार्टर से तुरंत एक संदेश प्राप्त हुआ है। आप में से वीरेंद्र जी और आभा जी कौन हैं?
वीरेंद्र ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा- मैं हूं।
ले.कर्नल मलकीत- आर्मी ने आपको दो मुस्तैद जवानों की सिक्योरिटी दी है। तत्काल…. अभी से आप इसे कृपया असेप्ट करें…..
आभा- इसकी क्या जरूरत है?
मलकीत- देखिए विक्रम की आइडेंटिटी उजागर हो गई है और हम नहीं चाहते कि आतंकवादियों की ओर से उनके परिवार के सदस्यों को कोई खतरा हो, इसलिए कुछ दिनों तक आप इन्हें अपने साथ रखें।
वीरेंद्र-ओके,थैंक्स ऑफिसर।
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शांभवी हॉस्पिटल के ही भीतर गेस्ट रूम में बैठी थी। अस्पताल वालों के मना करने पर भी उसने जिद की, कि वह आज की रात यही रहेगी।
नर्स ने आकर कहा- मैडम आईसीयू में विक्रम साहब के पास चलना है आपको।चलिए।
शांभवी ने घबराते हुए कहा- ओह क्या हुआ विक्रम जी को?वे ठीक तो हैं?
नर्स- हां एकदम ठीक हैं। बस उन्होंने आपको मिलने के लिए बुलाया है और क्योंकि यह उनका मामला है इसलिए आईसीयू में डॉक्टर साहब ने आपको उनसे मिलने की छूट दे दी है।
शांभवी-अच्छा, तो ठीक है चलिए।
शांभवी आईसीयू के भीतर गई।उसे देखकर मुस्कुराते हुए विक्रम ने कहा- शांभवी तुम घर क्यों नहीं गई? यहां तो पूरी व्यवस्था है। तुम घर जाकर मम्मी पापा लोगों का ख्याल रखती……
शांभवी- घर में सब ठीक है विक्रम जी।अंकल आंटी का ध्यान रखने के लिए मम्मी हैं ना…….और अब तो बहुत दिनों बाद मिले हैं वे लोग ......तो वहां कोई तकलीफ नहीं है।मैं यहां इसलिए रुक गई हूँ कि कहीं रात को मेरी जरूरत न पड़े।
विक्रम- नहीं शांभवी, अब मैं खतरे से बाहर हूं। मैंने व्यवस्था कर दी है। हॉस्पिटल वाले तुम्हें सुरक्षित घर छोड़ देंगे।
शांभवी-प्लीज़ विक्रम जी,मुझे अपना फ़र्ज़ निभाने दें। आप मेरी फिक्र बिल्कुल ना करें ।टेक केयर।गुड नाइट।
विक्रम-ओके ,गुड नाइट शांभवी।
शांभवी थोड़ी देर में गेस्ट रूम में लौट आई। उसे नींद कहां पड़ रही थी। बार-बार उसे अपने खो चुके प्यार शौर्य का चेहरा नजर आता था।वह सोचने लगी-शायद फील्ड में ड्यूटी के समय विक्रम जी की ही तरह शौर्य जी को भी किसी की हेल्प की जरूरत पड़ी होगी लेकिन तब आर्मी के जांबाज़ सिपाहियों और अफसरों की ऐसी घर जैसी केयरिंग बॉर्डर में कौन कर पाता होगा?
उसे आश्चर्य... जैसे मेजर विक्रम ने उसके प्रश्न को टेलीपैथी से सुन लिया हो और व्हाट्सएप में 5 मिनट के अंदर यह वाक्य लिखा हुआ आया:-
….जब सरहद पर घर के लोग नहीं होते हैं ना शांभवी तो हमारी रक्षा करती है ये धरती….हमारी भारत माता... अपने आंचल से... जब हम युद्ध करते रहते हैं तब भी वह हमें एक मां की तरह ही दुलारती है…. और जब हम घायल होकर जमीन पर गिर पड़ते हैं तो इसकी गोद में ही 'मां' 'मां' कहते हुए दम तोड़ देते हैं…... और जानती हो शांभवी जीवन के अंतिम क्षणों में जैसे भूख... प्यास…. थकान... गोलियों से शरीर में बने हुए गहरे घाव.. सब... सब समाप्त हो जाते हैं…... और हम स्थाई रूप से भारत माता की गोद में समा जाते हैं…….
यह संदेश पढ़कर देर रात तक शांभवी गेस्ट रूम के बिस्तर में लेटी रोती रही…. हे भगवान …...शौर्य जी और विक्रम जी में यह कितनी समानता है…. क्या कहीं यह शौर्य जी का विक्रम जी के रूप में पुनर्जन्म तो नहीं?लेकिन ऐसा कैसे संभव है…. मैं जानती हूं दोनों अलग अलग हैं लेकिन इतनी समानता हर चीज में?..... इस विशाल देश में अब समय अंगड़ाई ले रहा है और नारी सशक्तिकरण एक अनिवार्य आवश्यकता है .....मैं भी इसकी पक्षधर हूं.... और वे शौर्य जी और ये विक्रम जी,विचारों में कुछ-कुछ एक जैसे.....आखिर ये लोग किस मिट्टी के बने हैं शायद ये लोग दुनिया के सबसे अच्छे इंसान.....सबसे अच्छे पुरुष हैं.....सबसे बहादुर... महिलाओं की दिल से रिस्पेक्ट करने वाले......... और फिर मेरे मन ने भी तो शौर्य जी जैसे किसी बहुत अच्छे ....किसी एकदम खास ....सिर्फ अपने का साथ चाहा था..... दिल के एक कोने में वह फीलिंग अनुभव की थी.......मैं थोड़ी कमज़ोर क्यों पड़ रही हूं ?.....अपनी भावनाओं को लेकर......हे भगवान कहीं आप मेरी परीक्षा तो नहीं ले रहे?.................
(क्रमशः)
योगेंद्र
(कहानी के इस भाग को मनोयोग से पढ़ने के लिए मैं आपका आभारी हूँ। शांभवी और मेजर विक्रम की इस कहानी में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए पढ़िए इस कथा का अगला भाग आगामी अंक में। )
(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संगठन,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)