कालवाची मोरनी का रूप धरकर कुशाग्रसेन को निहारने लगी एवं उस पर दृष्टि रखकर उसके क्रियाकलापों को देखने लगी,कुशाग्रसेन ने कुछ समय तक उस वन में कुछ खोजने का प्रयास किन्तु उसे वहाँ कुछ भी दिखाई ना दिया,उसे ये ज्ञात था कि उस वन के आस पास ही उन मृतकों के मृत शरीर मिले थे,इसका तात्पर्य था कि वो हत्यारा उसी स्थान पर ही वास करता है किन्तु कुशाग्रसेन को अभी तक उस हत्यारे के विषय में कोई भी चिन्ह्र नहीं मिले थे,इसलिए उन्होंने पुनः राजमहल जाने का सोचा क्योंकि उन्हें अपने माता पिता और रानी कुमुदिनी की चिन्ता हो रही थी,यही सब सोचकर कुशाग्रसेन अपने राजमहल की ओर बढ़ चले.....
कुशाग्रसेन को जाता देखकर कालवाची कुछ उदास सी हो गई,किन्तु उसने कुशाग्रसेन को रोकने का प्रयास नहीं किया,क्योंकि उसे ज्ञात था कि वो एक प्रेतनी है और कुशाग्रसेन एक मनुष्य,यदि उस मनुष्य को ये ज्ञात हो गया कि वो एक प्रेतनी है तो उसके प्राण संकट में पड़ जाऐगें,यही सब सोचकर वो वृक्ष पर विश्राम करने लगी और रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगी.....
इधर कुशाग्रसेन जब सुरक्षित अपने राजमहल पहुँचे तो सभी के मुँख पर मुस्कुराहट फैल गई,रानी कुमुदिनी ने कुशाग्रसेन से पूछा भी ....
महाराज!क्या आप उस हत्यारे को खोजने में सफल हुए...
तब कुशाग्रसेन ने उत्तर दिया...
ना रानी!हत्यारे का कोई भी चिन्ह् मुझे समूचे राज्य में नहीं दिखा,यहाँ तक कि मैने उस वन में भी खोजा जहाँ मृत शरीर मिलते थे,परन्तु वहांँ भी मुझे कोई नहीं दिखा,मैने रात्रि भर उस वन में विश्राम किया,किन्तु मुझे ना कोई स्वर सुनाई दिया और ना तो ऐसा कोई क्रियाकलाप सुनने में आया.....
ओहो...ऐसा प्रतीत होता है कि हत्यारा बड़ा ही बुद्धिमान है,कुमुदिनी बोली...
कितना भी बुद्धिमान क्यों ना हो वो,एक ना एक दिन मैं उसे अवश्य ही खोज लूँगा,कुशाग्रसेन बोले...
मुझे भी आपसे यही आशा है महाराज!कुमुदिनी बोली....
तभी राजा के कक्ष के द्वार पर एक सैनिक आ पहुँचा एवं सूचना देते हुए राजा से बोला...
महाराज की जय हो!अभी अभी सेनापति व्योमकेश सूचना लेकर लौटे हैं कि कल रात्रि राजमहल की वाटिका के सरोवर के समीप एक युवती का मृत शरीर मिला है जिसके हृदय को किसी ने निकाल लिया है,आपको सेनापति व्योमकेश ने शीघ्र ही याद किया है,वें राजदरबार में आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं.....
सैनिक की बात सुनकर कुशाग्रसेन बोले....
तुम चलो,मैं अभी आता हूँ.....
और अन्ततः कुशाग्रसेन शीघ्रता से राजदरबार की ओर चल पड़े,वें राजदरबार पहुँचे तो सेनापति व्योमकेश उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे ,महाराज कुशाग्रसेन को देखते ही सेनापति व्योमकेश ने उन्हें प्रणाम किया और उनसे बोलें....
महाराज!आज एक और मृत शरीर प्राप्त हुआ है जो किसी युवती का है...
तो हत्यारा कल रात्रि राजमहल के समीप था और मैं उसे वन में खोज रहा था,कुशाग्रसेन बोलें....
महाराज!आप अकेले उस हत्यारे को खोजने क्यों पहुंँचे?मुझे क्यों नहीं सूचित किया,मैं भी आपके साथ चला चलता,सेनापति व्योमकेश बोलें...
इतना समय नहीं था और मैं साधारण वेष में वहाँ गया था,आपको बताता तो आप मेरे साथ चल पड़ते,फिर राज्य की सुरक्षा का क्या होता?यहाँ आपका होना आवश्यक था,कुशाग्रसेन बोलें...
किन्तु मेरे रहते हत्या तो हो ही गई,सेनापति व्योमकेश बोले.....
इसमें आपका कोई दोष नहीं सेनापति व्योमकेश जी,वो हत्यारा अत्यधिक बुद्धिमान है,अब हमें उसे वन में नहीं राज्य में ही खोजना चाहिए,राजा कुशाग्रसेन बोलें....
कदाचित आप ठीक कह रहे हैं,सेनापति व्योमकेश बोलें...
आज रात्रि केवल मैं और आप राजमहल के आस पास ही पहरा देगें,कुशाग्रसेन बोलें....
मैं तत्पर हूँ महाराज!अपने राज्य की सुरक्षा हेतु मैं कुछ भी कर सकता हूँ,सेनापति व्योमकेश बोलें...
मैं आपसे यही आशा रखता हूँ,इसके पश्चात दोनों के मध्य योजना बनी एवं दोनों ने अपने अपने कक्ष की ओर प्रस्थान किया.....
रात्रि हो चुकी थी ,कुशाग्रसेन एवं व्योमकेश ने वेष बदला एवं राजमहल की सुरक्षा में तत्पर हो गए,अर्द्धरात्रि ब्यतीत चुकी थी किन्तु अभी तक राजमहल के आस पास कोई भी गतिविधि होती नहीं दिखाई पड़ रही थी,इधर आज कालवाची का मन अत्यधिक खिन्न था,इसलिए वो वृक्ष पर ही विश्राम करती रही ,उसने अपना रूप भी नहीं बदला,बस वैसे ही मोरनी का रूप लेकर विश्राम करती रही...
इसी प्रकार रात्रि भर कुशाग्रसेन एवं व्योमकेश राजमहल के आस पास पहरा देते रहे ,परन्तु वहाँ कोई भी ना आया एवं ना ही किसी का स्वर सुनाई दिया,प्रातःकाल होने को था ,सूर्य लालिमा के रथ पर सवार समूचे ब्रह्माण्ड में अपना प्रकाश विसरित कर चुका था,खग वृक्षों पर कलरव करने लगे थे,तब कुशाग्रसेन एवं व्योमकेश ने सोचा कि राजमहल लौट जाना चाहिए ,कदाचित राजमहल पहुँचकर ही किसी अप्रिय घटना का समाचार मिलेगा,वे दोनों राजमहल पहुँचें,प्रातःकाल से सायंकाल होने को आया किन्तु आज राज्य में किसी की भी हत्या होने का समाचार ना मिला,कुशाग्रसेन आश्चर्यचकित थे,उन्होंने सोचा कदाचित हत्यारे को योजना के विषय में तो ज्ञात नहीं हो गया,जो उसने किसी की हत्या नहीं की.....
अब कुशाग्रसेन की चिन्ता अत्यधिक बढ़ गई थी एवं वें महल में रात्रि भर इस विषय पर विचार करने लगे,उन्होंने मन में सोचा कि मेरी योजना के विषय में तो केवल सेनापति व्योमकेश को ही ज्ञात था,कहीं वें तो उस हत्यारे के गुप्तचर नहीं,उनके मन में ये संदेह घर कर गया,इसलिए उन्होंने सेनापति व्योमकेश के पीछे गुप्तचर लगाने का सोचा एवं इन्ही सब बातों को सोचते हुए वें कब निंद्रा में खो गए ,उन्हें पता ही नहीं चला...
एवं उधर वृक्ष पर बैठी कालवाची किसी चिन्ता में मग्न थी,रह रहकर उसे उस सुन्दर नवयुवक की याद आ रही थी,वो उसके विचारों में लीन उसे ही याद कर रही थी,वो उस युवक के समीप जाना चाहती थी,उससे वार्तालाप करना चाहती थी जो कि सम्भव नहीं था,वो कैसे उस नवयुवक से अपना प्रेम व्यक्त करें ये उसे समझ नहीं आ रहा था,वो बेसुध सी उस वृक्ष पर रात्रि भर यूँ ही बैठी रही......
इधर प्रातःकाल होते ही कुशाग्रसेन ने कुछ गुप्तचरों को आदेश दिया कि वें सेनापति व्योमकेश पर दृष्टि रखें,उनके सारे क्रियाकलापों की जानकारी शीघ्रता से ज्ञात कर के मुझे बताएं एवं गुप्तचर राजा कुशाग्रसेन के आदेशानुसार अपने अपने कार्यों में लग गए,ऐसे ही पाँच दिन बीते किन्तु वैतालिक राज्य में अभी भी किसी की हत्या का समाचार सुनाई नहीं दिया,इधर राजा कुशाग्रसेन की चिन्ता और भी बढ़ती जा रही थी,सभी गुप्तचर भी सेनापति व्योमकेश के विषय में जानकारी एकत्र करके ला चुके थे,कहीं भी किसी भी हत्या की गतिविधियों में सेनापति व्योमकेश का हाथ नहीं था,राजा कुशाग्रसेन का ये संदेह तो मिट चुका था,परन्तु चिन्तामुक्त वें अब ना हुए थे...
एवं उधर कालवाची मानव हृदय का भक्षण नहीं कर रही थी इसलिए प्रतिदिन उसका शरीर क्षीण होता जा रहा था एवं उसके मुँख से रूप लावण्य भी जा रहा था.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....