अमन कुमार त्यागी
नीता को मायके आए पूरे पाँच महीने बीत चुके थे। इतने दिन मायके में बिताना समाज मेें अच्छा नहीं माना जाता है। मुहल्ले की औरतों में कानाफूसी शुरू हो गई थी। कोई कहती- ‘देखा, वर्मानी ने कैसे अपनी धी को घर में रख रखा है। जब शर्मानी की लड़की की ससुराल में झगड़ा हुआ था तो इसी ने सबसे ज़्यादा फ़ज़ीहत की थी।’ कोई कहती- ‘नीता के ससुराल वाले भी अजीब हैं, पाँच महीने हो गए, कोई भी लेने नहीें आया।’ कोई कहती- ‘मुझे तो लग रहा है... कोई बड़ा लफड़ा हो गया है।’ कोई कहती- ‘शादी के बाद पाँच महीने मायके में...अजीब बात है, जब मेरी शादी हुई थी, तब इन्होंने पाँच दिन के लिए भी मायके नहीं छोड़ा। हाँ, जब एक साल बाद मैं माँ बनी तब उसके बाद एक महीना ज़रूर मायके रहकर आई थी।’ कोई कहती- ‘मुझे तो अभी नीता के कुछ लगता भी नहीं...।’ जितने मुँह उतनी बात।
एक दिन बाज़ार में जब गुप्तानी, वर्मानी को मिली तब उसने पूछ ही लिया- ‘वर्मानी जी! अब तो नीता को आए हुए पाँच महीने हो गए हैं शायद।’
-‘हाँ, हो तो गए। परंतु तुम कहना क्या चाहती हो? अपने बाप के घर में रह रही है, फिर ससुराल वालों की भी मर्ज़ी है...तुम्हें क्या दिक़्क़त है?’ वर्मानी ने आवेश में कहा।
-‘मुझे क्या दिक़्क़त होगी भला। मैं जानना चाहती थी कि हमारी नीता माँ कब बन रही है।....अरे भई नानी तो हम भी बनेंगी न।’
-‘हाँ-हाँ क्यों नहीं। नानी तो तुम तब भी बनी थीं, जब कोठारी की बेटी बिन ब्याही माँ बन गई थी।’ वर्मानी ने ताना दिया।
-‘आप बुरा मान गईं, बहन जी।’
-‘बुरा मानने की तो बात ही है।’ वर्मानी तैश में बोली- ‘ऐसे पूछ रही है-जैसे किसी के बाप का कुछ खाने जा रही हो मेरी नीता।’
वर्मानी की बातें सुनकर गुप्तानी चुप हो अपने रास्ते चल दी परंतु वर्मानी परेशान हो उठी। वह बड़बड़ाने लगी-‘पता नहीं कौन-कौन, क्या-क्या बातें बनाता होगा। आज ही बात करूँगी नीता की ससुराल वालों से।’
घर पहुँचते-पहुँचते वर्मानी को बीते साल की वह घटना याद आ गई थी जब डाॅ. दास की बेटी ससुराल वालों से झगड़ा कर आ गई थी। तब मुहल्ले वालों ने और डाॅ. दास ने उसे समझा कर पुनः ससुराल भेज दिया था। पंद्रह दिन बाद ही तो ख़बर आई थी कि डाॅ. दास की बेटी रसोाई में गैस से जल गई है। आनन-फानन में डाॅ. दास और उनके हमदर्द साथी भागे-भागे बेटी की ससुराल पहुँचे थे। परंतु उनके पहुँचने से पहले ही वह अस्पताल में दम तोड़ चुकी थी। डाॅ. दास ने बेटी के ससुराल वालों के खि़लाफ़ थाने में मुकदमा दर्ज़ करा दिया था। तब भी मुहल्ले में न जाने क्या-क्या बाते हुई थीं। वर्मानी को ख़ुद के शब्द याद आ गए थे- क्या हो गया है, आज कल लड़कियों को....जाते ही ससुराल में झगड़ा शुरू कर देती हैं। डाॅ. दास की बेटी भी क्या कम थी....देखा नहीं कितनी मुँहज़ोर थी वह।’
-‘किधर चलना है मेम साहब?’ रिक्शा वाले ने पूछा तो वह यादों से बाहर आई....-‘व...वो सामने वाला घर है।’
रिक्शा पोलर को पैसे देने के बाद वर्मानी घर में पहुँची तो सीधे कुर्सी पर बैठ गईं। अब तक उनके सिर में काफ़ी तेज़ दर्द होने लगा था। तभी नीता उनके पास पहुँची- ‘क्या हुआ माँ...?’ उसने पूछा। कुछ नहीं बस यूँ ही।’ कहकर वो बैडरूम में चली गईं और बैड पर लेट गईं। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सैकड़ों मील पैदल दौड़कर आई हों। लेटते ही उनके मस्तिष्क में अजीब-अजीब बातें आने लगीं थीं। उन्हेें याद आ रही थी सुनीता के विवाह की घटना।
सुनीता उन्हीें के मुहल्ले में रहने वाले दत्त साहब की बेटी थी। उसने जैसे ही एम.बी.ए. की पढ़ाई के बाद नौकरी शुरू की तभी उसके रिश्ते आने लगे थे। एक दिन वर्मानी मलेरिए की जाँच कराने के लिए पैथोलाॅजी लैब गई थीं। तभी वहाँ उन्हें सुनीता मिल गई। सुनीता ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते की थी।
-‘नमस्ते सुनीता...सब ठीक तो है न।’ उन्होंने पूछा तो सुनीता ने कहा- हाँ आंटी, सब ठीक है। परंतु आप कमज़ोर लग रही हैं। हाँ, कुछ दिन से बुख़ार आ रहा है। मलेरिये की जाँच के लिए लिखा है डाॅक्टर ने।’ बताने के बाद वर्मानी ने पूछा- ‘तुम यहाँ कैसे?’
-‘कुछ नहीं आंटी....बस वो मैंने एचआईवी की जाँच कराई थी। आज रिपोर्ट लेने आई थी।’ सुनीता ने बताया तो वर्मानी ने चैंकते हुए पूछा- ये एचआईवी क्या बला है? मैं समझी नहीं।’
-‘अरे वही आंटी! जिसे सब एड्स के नाम से जानते हैं।’ सुनीता ने बताया तो वर्मानी ने विस्मय के साथ पूछा- ‘पर बेटी तूने यह जाँच क्यों करवाई.....कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है।’
-‘अरे घबराओ नहीं आंटी.....जो बात आप समझ रही हैं....वो बात नहीं है.....दरअसल बात यह है कि पापा मेरी शादी करना चाहते हैं....ऐसे में लड़के वालों के लिए फोटो और रिज़्यूम तो भेजना ही पड़ेगा न.....बस उसी के लिए।’ सुनीता ने समझाते हुए कहा तो वर्मानी ने जिज्ञासावश पूछ लिया- ‘पर रिज़्यूम में ये सब लिखने की क्या ज़रूरत है....?’
-‘अरे आंटी....जब हम रिज़्यूम में एचआईवी जाँच का ज़िक्र करेंगे.....तभी तो लड़के वालों से भी वैसी ही जाँच की उम्मीद करेगे न ...किसी को तो पहल करनी ही पड़ेगी.....क्यों न हम ही यह पहल कर दें।’ सुनीता की यह बात वर्मानी की समझ में नहीं आई वह बोलीं- ‘मेरी समझ में नहीं आ रही तेरी ये बात....भई ये तो बेशर्मी वाली बात हो गई...समझ में नहीं आता, चार क्लास पढ़ने के बाद लड़कियाँ इतनी बेशर्म क्यों हो जाती हैं।’
-‘कुछ भी हो आंटी! पर मेरी सलाह है कि शादी से पहले आप भी नीता की एचआईवी जाँच ज़रूर करा देना ताकि लड़के की जाँच रिपोर्ट भी मंगायी जा सके।’ सुनीता की बात सुनकर अब वर्मानी को गुस्सा आने लगा था। वह बोली- ‘किसी और से ज़िक्र मत करना...मेरी नीता से तो बिल्कुल भी नहीं....हमारे यहाँ ऐसी बेशर्मी नहीं चलती।’
-‘इसमें बेशर्मी जैसी कोई बात नहीं है आंटी...।’ सुनीता ने समझाने का प्रयास किया तो वर्मानी का गुस्सा और बढ़ गया- ‘बेशर्मी की बात नहीं तो और क्या है....क्या कुँआरी लड़की को बिना किसी मर्द के संपर्क में आए एड्स हो सकता है?...मुझसे बातें बनाती है...मैं जानती नहीं कुछ।’ सुनीता ने पुनः समझाने का प्रयास किया- ‘यह तो ग़लतफ़हमी है आपके अंदर...एड्स के लिए सिर्फ़ एक यही वजह तो नहीं है....और भी बहुत से कारण हैं। जैसे.....बिना जाँचें ख़ून चढ़वाना, आप्रेशन के समय चिकित्स के द्वारा संक्रमित औज़ारों का प्रयोग करना, नाई के द्वारा संक्रमित ब्लेड का प्रयोग कर दाढ़ी बनाना। और फिर ये रोग तो पुरुष अथवा स्त्री, किसी को भी हो सकता है.....न ही इसकी कोई उम्र है। अब ऐसे में जाँच कराने में बुराई भी क्या है? जानकारी से ही बचाव है आंटी।’
-‘चल बस....अब यहाँ से....अपनी नहीं तो कम से कम मेरी उम्र का ख़याल तो रख।’ वर्मानी ने कहा तो सुनीता वहाँ से कंधों को झटका देकर चली गई।
-‘चाय पी लो माँ!’’ नीता ने उनके पास आकर कहा- अदरक डालकर बनाई है.....सब थकन मिट जाएगी।’
यादों से बाहर आती वर्मानी ने नीता की ओर देखा और बैठते हुए उसके हाथों से चाय का प्याला पकड़ लिया। चाय देने के बाद नीता वहाँ से जाने लगी तो उन्होंने कहा- यहाँ बैठ मेरे पास।’ माँ के कहने पर नीता ने बैठते हुए पूछा- ‘क्या बात है माँ? आज बड़ी घबराई सी लग रही हो।’
-‘मेरी छोड़।’ वर्मानी ने उससे पूछने की जैसे हिम्मत की हो- ‘तू बता....तू ससुराल क्यों जाना नहीं चाहती है?’
-‘ओह! तो ये बात है माँ,.....ठीक है तुम्हें कष्ट हो रहा है तो मैं कल ही चली जाऊँगी।’ नीता ने सिर झुका कर कहा।
-‘कष्ट तो नहीं हो रहा बेटी....लेकिन शादी के बाद बेटी पति के ही साथ रहे तो अच्छा होता है।’ माँ की बात सुनकर नीता ने पूछा- ‘किसी ने कुछ कहा है क्या माँ?’
-‘नहीं ऐसी बात नहीं है।’ वर्मानी ने बात को टालना चाहा परंतु कुछ सोचने के बाद पुनः बोली- ‘तुझे कोई परेशानी तो नहीं है ससुराल में?’
-‘नहीं माँ...मुझे तो कोई परेशानी नहीं है...देखती नहीं, रोज़ ही तो फोन आता है उनका.....आपसे भी तो बातें होती हैं.....क्या कभी तुम्हें कुछ लगा है?’ नीता ने स्पष्ट करना चाहा।
-‘परंतु फिर भी तुम्हें वहीं रहना है दामाद जी के पास...देखती नहीं...तेरे साथ जिन लड़कियों के विवाह हुए थे सभी तो पाँच-सात महीने में माँ बनने वाली हैं।’ वर्मानी ने बेटी को समझाना चाहा लेकिन नीता ने बीच में ही रोक दिया....‘मैं भी तो तुम्हारी शादी के पाँच साल बाद पैदा हुई थी माँ।’
-‘मैं तेरी किसी बात में आने वाली नहीं हूँ... मैं आज ही दामाद जी से कहूँगी... वो ले जाएँ अपनी अमानत को अपने पास....भई मुझे तो नानी बनने की जल्दी है।’ वर्मानी ने कहा तो एकाएक नीता के चेहरे पर गंभीरता छा गई। वह बोली कुछ नहीं। वर्मानी पुनः बोली- ‘कोई बात तो है नीता... तू मुझसे छिपा रही है... अरे पगली, कोई बेटी माँ से भी कुछ छिपाती है क्या?’ नीता फिर भी चुप रही... इस बार उसकी आँखों से दो बूंद अश्रु टपक पड़े। वर्मानी ने तड़पकर बेटी को अपनी छाती से लगा लिया- ‘मुझे साफ़-साफ़ बता बेटी... कुछ भी छिपाने की ज़रूरत नहीं है।’
इस बार नीता फूट-फूट कर रो पड़ी। बेटी को रोता देख माँ व्याकुल हो उठी। उन्होंने नीता के आँसू अपनी साड़ी के पहलू से पौंछते हुए कहा- ‘मेरी बेटी इतने दिनों तक मुझसे कुछ छिपाती रही और मुझे पता भी नहीं चला।’
नीता बोलने की हिम्मत कर रही थी, मगर बोल नहीं पा रही थी। तभी वर्मानी ने पुनः पूछा- ‘तुझे तंग करते हैं वो लोग...या फिर दहेज़ की कोई बात है?’
नीता ने आँखों के आँसू अपनी अंगुलियों से पौंछते हुए जवाब दिया- ‘ऐसी कोई बात नहीं है माँ।’
-‘तब क्या उसके किसी से नाजायज़ संबंध हैं।’
-‘नहीं, माँ,....बहुत अच्छे हैं वो....उनके परिवार के भी सभी लोग बहुत अच्छे हैं।....बस मेरी क़िस्मत ही ख़राब है....।’ नीता सुबकते हुए बोली- उन्हें एड्स है माँ।’
-‘क्या,.....?’ वर्मानी की तो जैसे सांसे ही अटककर रह गईं।
उनकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। वह धीरे-धीरे बैड पर लेट गईं। नीता उन्हें सम्हालते हुए कह रही थी- ‘उन पर शक मत करो माँ....वो देवता हैं....यदि डाॅक्टर ने एक्सीडेंट्स के बाद संक्रमित ख़ून उन्हें नहीं चढ़ाया होता तो आज हमें यह दिन देखने को नहीं मिलता। वो मुझे अपने से दूर नहीं रखना चाहते माँ....वो तो बस अपनी जानलेवा बीमारी से मुझे दूर रखना चाहते हैं।’ नीता कहे जा रही थी जबकि वर्मानी के मस्तिष्क में सुनीता की एक-एक बात कौंध रही थी। सुनीता की हर बात का अर्थ उन्हें अब समझ में आ रहा था। एकाएक उन्होंने नीता का हाथ पकड़कर कहा- ‘बेटी इस समय तेरे पति को सबसे ज़्यादा ज़रूरत तेरी है। तेरा पति बहुत समझदार है। तू भी इस दुःख में तो अपने पति का साथ निभा सकती है, बेटी जा अपनी ससुराल जा।’