Jasbat-e-Mohabbat - in Hindi Love Stories by dinesh amrawanshi books and stories PDF | जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 10

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जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 10

ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहता और कुछ ही दिन मे कॉलेज फर्स्ट इयर के पेपर भी खत्म हो जाते है सेकंड इयर शुरू होने मे अभी कुछ दिन का वक़्त होता है रिचा किसी तरह से खुद के दिल पर काबू रखती है क्योंकि रिचा प्रोफ़ेसर अवस्थी को इतना चाहने लगती है की वो उन्हे देखे बिना एक दिन नहीं रह पाती पर अवस्थी सर को देखे हुये तीन दिन हो जाते है जिस वजह से रिचा उदास सी रहती है ऐसे मे रिचा हाल मे बैठ कर टीवी देखते हुये अपनी उदासी को अपनी फॅमिली से छुपाने की कोसिश करती है लेकिन फिर भी अपनी उदासी छूपा नहीं पाती तभी रिचा की माँ उससे कहती है रिचा बेटा क्या हुआ कुछ उदास लग रही है क्या बात है रिचा बनावटी मुस्कान के साथ कहती है कुछ तो नहीं माँ मैं कहा उदास हूँ माँ कहती है बेटा माँ हूँ तेरी इतना तो समझ ही सकती हूँ तुझे देख कर, रिचा माँ से कहती है मैं उदास नहीं हूँ माँ बस थोड़ी टेंशन है रेजल्ट के लिए,माँ कहती है टेंशन क्यूँ ले रही है अच्छा ही होगा तेरा रेजल्ट,असल मे रिचा की उदासी का कारण रेजल्ट नहीं बल्कि प्रोफ़ेसर अवस्थी होते है जिन्हे देखने के लिए रिचा बेचैन रहती है और रिचा हाल से उठ कर अपने रूम मे चली जाती है और आँखें बंद किए हुये अपने बेड पर लेट जाती है,रिचा लेटे हुये प्रोफ़ेसर अवस्थी के ख़यालों मे खो सी जाती है जैसे रिचा अवस्थी सर के साथ बाइक पे घूमने जा रहे हो कहीं,कि अचानक से आसमान मे बदल घिरने लगते है ओर बारिश शुरू हो जाती है दोनों बारिश का भीगते हुये आनंद लेते है रिचा कहती है देखिए न सर तभी प्रोफ़ेसर अवस्थी रिचा को टोकते है मैंने कहा था न,सर नहीं प्रतीक बुलाया करो मुझे जब हम साथ होते है ओके सॉरी सॉरी देखिए न प्रतीक आज पहली बार बारिश भी कितनी खूबसूरत लग रही है,प्रोफ़ेसर अवस्थी कहते है वो कैसे रिचा कहती है क्योकि आज आप जो मेरे साथ है आप बाइक चल रहे है ओर मैं आपके पीछे अपनी बाँहें फैलाए इस बारिश मे भीग रही हूँ इससे हसीन सफर ओर क्या होगा ये एहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ तभी अचानक से आसमान मे बिजली कड़कती है और रिचा प्रोफ़ेसर अवस्थी को पीछे से अपनी बाँहों मे जकड़ लेती है,प्रोफ़ेसर अवस्थी कहते है हे ऊपर वाले तेरा सुक्रिया तुम ऐसे ही गरजते रहो ये यहा ऐसे ही मुझ पर बरसती रहे, ये सुन कर रिचा हल्के से प्रोफ़ेसर अवस्थी के कान मे दाँत गड़ाती है प्रोफ़ेसर अवस्थी ज़ोर से बाइक के ब्रेक्स लगते है रिचा एक दम से प्रोफ़ेसर अवस्थी की पीठ से टकराती है और रिचा की नींद खुल जाती है रिचा ख़यालों मे खोई कब सो जाती है उसे पता ही नहीं चलता और रिचा बैड से उठकर फ़्रेश होने जाती है तभी रिचा की माँ कॉफी लेकर आती है रिचा कॉफी तो रिचा आवाज लगाती है हाँ माँ अभी आई मैं बाथरूम मे हूँ फ़्रेश होकर रिचा बाहर आती है और कॉफी का कप उठा कर बैड पे बैठ जाती है रिचा की माँ रूम साफ करते करते रिचा की तरफ देखती है