जब मेहमान सब चले जाते हैं ,श्री जल्दि से अपने में जाकर गहराई से सब सोचने लगती है l इस वक़्त उसका मन खुशी के मारे बैचेनी से घिरा होता है जब उसकी बैचेनी कम नहीं होती है l तब जाकर वो गाने लगाकर झूम झूम कर नाचने लगती है उसकी बैचेनी धीरे धीरे कम पडने लगती है l चेहरा पर सुकून हि सुकून पसरने लगता है l तब तक नाचती जब तक श्री थक कर चूर नहीं हो गई l धानी बस कर श्री कितना नाचोगी भई अपनी शादी के लिये हम लोगों के लाने भी तनिक नाचना धर देयो श्री मैडम l श्री तू काहे चुप बैठी तू भी नाच ना म्हारे साथ हम तुम जम कर नाचते है l हा रे श्रिया चलो फिर दोनों हि खूब नाची l दि अकेले अकेले काहे नाच रही मै भी साथ हो लेता हूँ मायूर भी साथ देने लगता है l श्री कि माँ अन्दर आते हुये चलो बन्द करो नाच गाना बहुत काम पडे है उन्हे निपटा लेते है l मायूर तू जा अपने पापा का हाथ बटा जाकर साफ़ सफ़ाई में मदद कर दे हम लोग घर का देख लेते है lमायूर जी माँ l धानी बेटा आप ऐसा करो आज आप यही रुक जाओ वैसे रात तो हो हि गई है l अपनी मम्मी को फोन कर ला मै बता देती हूँ तू आज यही रुक रही है l श्री कि माँ श्री के माथे को चूमकर ढेरो आशिर्वाद दे देती है वही धानी माते ये गलत बात है आप श्री को हि सारा प्यार लुटा दो मै तो युही हूँ ना झूठमूठ गुस्सा करते हुये कहती है l श्री कि माँ चल नौटंकी आ जा तू भी फिर दोनों को गले लगाकर खूब प्यार आशिर्वाद देती है l फिर अपने अपने काम पर लग जाती है l काम करके सब अपने अपने कमरे में आ जाते है l वही धानी छत पर जाकर चान्द तारो को देखने लगती l ठन्डी ठन्डी हवाय चल रही होती है धानी को ठन्ड महसूस होती है वो अपने दोनों हाथों की बाहे बना लेती है l कन्धे पर किसी के स्पर्श महसूस होता है तो देखती है शाल मायूर उसे उढा रहा होता है l इतना ठन्डा मौसम है छत पर क्या कर रही हो तुम मायूर कहता है धानी से..... धानी कुछ नहीं थन्डी ठंडी हवाओ का मजे ले रही हूँ और क्या करुगी वैसे तुम क्या कर रहे हो छत पर भौवे उठाती हुई l मायूर वो मै वो मै छत पर टहलना आया था तुम्हे देखा तो रुक गया l दोनों हि एक दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन दोनों हि जन ने कहने कि जहमत ना उठाई बस निगाहो हि निगाहो में वो इश्क का मंजर देखकर परसुकून से है l
हमारी इश्किया कुछ यू हुई.....
अल्फ़ाजो कि जहमत हि ना हुई....
निगाहो से निगाहे यू मिली....
जैसे सर्द मौसम मे गुनगुनाती धूप....
जैसे तपती गर्मी में बारिश कि बून्दे....
जैसे बिछडे हुये बच्चे को उसकी माँ मिल जाना....
हमारी इश्किया कुछ यू हुई.....
हमारी इश्किया कुछ यू हुई.....!!
दोनों कुछ देर ठहर छत पर वापस अपने कमरे आ गये l श्री आ गई वैसे क्या करने गई थी छत पर धानी भौवे उठाते हुये कहती है l धानी कुछ नहीं रे तेरे लिये वक़्त छोडकर गई जब तक मै आऊ तू जीजा जी से बतिया ले समझ रही है ना कहकर खिलखिलाहट से बिस्तर पर पसर जाती है l श्री तू कितनी बेशर्म हो गई है शर्म नहीं आती ऐसी बाते करते हुये l धानी, धानी और शर्म जो करे शर्म ऊके फ़ूटे कर्म कहकर फिर जोरो से हसने लगती है l श्री जल्दि उठकर उसके मुह बन्द करते हुये जरा धीरे से हस बेशर्म लडकी l माँ पापा बाहर हि होंगे अभी समझी नहीं तो दो थप्पड़ लगाउगी सारी बेशर्मी निकल जायेगी समझी l
जारी है.....
स्वस्थ रहिये खुश रहिये 🙏