Is Pyaar ko kya naam dun - 23 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 23

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 23

(23)

खुशी का चेहरा खिल उठता है। प्रसन्नता और हर्ष के उन्माद से उसके मन में लड्डू फूटने लगते हैं। वह सोचती हैं- ऐसा लग रहा जैसे आज हमारा जन्मदिन है। हर कोई हमें आशीर्वाद ही दे रहा है। लगता है आज का दिन बहुत शुभ है।

खुशी शिवजी के सामने जाकर हाथ जोड़े खड़ी हो जाती है।

खुशी- हे भोलेनाथ! एक दिन हम बहुत दुःखी थे। अम्मा की उपेक्षा, जीजी के लिए लड़के वालों का घर आना और हमारा जीजी के साथ उस वक़्त न होना.. इन सारी बातों से हमें यही लगा था कि आप हमसे बहुत नाराज़ है। हमें लगता था कि हमारी ज़िंदगी ही एक अनसुलझी सी पहेली है। हमने उस दिन आपसे बहुत से सवाल पूछे और उन सभी सवालों का जवाब आपने हमें बहुत जल्दी दे दिया। अब बस एक ही सवाल का समाधान बाक़ी है औऱ वह सवाल यह है कि- क्या उस दिन आपके मन्दिर में जिस अजनबी से हम उलझ रहे थे वही हमारे सपनों के राजकुमार है? हम बार-बार घुम-फिरके उनसे टकराते रहे, उनसे कई बार तकरार हुई और अब प्यार भी हो गया। क्या हमारा प्यार अधूरा रह जाएगा..?

आज हम अपने मन की बात उनसे कहने वाले है, बस आप इतनी कृपा करना कि हमारा दिल न टूटे। हम ये भी नहीं कह रहे कि हम उनसे जो कहेंगे उसका उत्तर वह हमें वैसा ही दे जैसा हम सुनना चाहते है। हमारे भाग्य में जो लिखा है वह हमें मंजूर होगा। आप बस हमें ना सुनने के बाद सम्भाल लेना।

खुशी अपनी बात कहकर जाने लगती है। कुछ कदम चलने के बाद वह फिर से शिवजी के सामने जाकर कहती है- उनके मुँह से हाँ सुनने के बाद भी हमें सम्भाल लेना.. कहीं हम खुशी से ही न मर जाए। मन मुताबिक स्थिति बनी तब तो हम आकर प्रसाद चढ़ाएंगे और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कुछ दिनों तक मन्दिर आना बंद कर देंगे।

खुशी अपने घर लौट आती है।

सुबह के ग्यारह बज रहे थे। खुशी देखती है कि घर के सभी सदस्य शाम को होने वाली पार्टी की तैयारी में जुटे हुए हैं। गरिमा एक बड़े सन्दूक के सामने बैठी हुई थी। सन्दूक खुला हुआ था और उसमें से आधी खुली हुई सी साड़ियां झांक रही थी जो शायद पसन्द न आने पर गरिमा ने तह किए बिना ही ठूंस दी थी। मधुमती भी गरिमा को शाम की पार्टी में पहनने के लिए साड़ी चुनकर दे रही थी। गरिमा को कोई भी साड़ी पसन्द नहीं आती हैं।

खुशी मुस्कुराते हुए गरिमा के पास जाती है और कहती है- अम्मा, जीजी की सगाई वाले दिन आपने हमारे लिए ड्रेस सेलेक्ट की थी और वह हमारे लिए बहुत शुभ भी रहीं। अब हम आपके लिए ड्रेस पसन्द करेंगे फिर उसे पहनने के बाद आप हमें बताना वह आपके लिए कैसी रही?

गरिमा- ठीक है, देखते हैं तुम्हारी पसन्द क्या रंग लाती है?

खुशी सन्दूक में सबसे नीचे सलीके से तह की गई साड़ी निकालकर गरिमा को देते हुए कहती है- आप यह चाँदी के तार से ज़री की हुई साड़ी पहनिए।

गरिमा- नहीं खुशी, यह साड़ी हमारी नहीं है।

खुशी- हम जानते हैं अम्मा, यह आपकी बहन की साड़ी है, जो उन्होंने अपनी सगाई में पहनी थी। एक बार आपने इसके बारे में बताया था। आपकी इच्छा है कि यह साड़ी हम अपनी सगाई वाले दिन पहने, क्योंकि यह हमारी माँ की साड़ी है। अब आप ही बताओ जब तक आप इसे नहीं पहनेंगी तब तक यह साड़ी हमारी माँ की कैसे मानी जाएगी ?

गरिमा- तुम्हारे तर्क-वितर्क से कोई जीत पाया है। लाओ अब तो हम यही साड़ी पहनेंगे।

खुशी- ये हुई न खुशी की माँ वाली बात...

सभी लोगों के आउटफिट्स तय हो गए थे। उनके लिए मैचिंग ज्वेलरी भी निकाली गई और मैच करके ड्रेस के साथ रख दी गई थी। सारी तैयारी करने के बाद सभी लोग अपने-अपने कमरे में चले गए।

अगले दृश्य में..

रायजादा हॉउस में उत्सव का माहौल था। अर्नव ने आकाश की सगाई होने के उपलक्ष्य में शानदार पार्टी का आयोजन किया, जिसमें शहर की कई नामी गिरामी हस्तियां शिरकत करने वाली थीं। पार्टी की सारी तैयारियां एक दिन पहले ही हो चूंकि थी अब तो बस मेहमानों के आने का इंतजार था।

अर्नव को आज दो ही लोगों का बेसब्री से इंतजार था एक म्यूजिक डायरेक्टर देवानंद झुनझुनवाला और दूजी खुशी।

अर्नव शाम के इतंज़ार में बालकनी में खड़ा सूरज को इस तरह देख रहा था जैसे सूरज से मनुहार करके उससे जाने के लिए कह रहा हो।

शाम के चार बज रहे थे। सूरज ने अर्नव के आज्ञाकारी ऑफिस के कर्मचारियों की तरह जैसे उसकी बात मान ली हो। धीरे-धीरे सरकता हुआ सूरज पश्चिम दिशा में छुप गया। शाम ऐसी जान पड़ रही थी कि चाँद-तारे सूरज के साथ ही छुपम-छाई खेल रहे हो। जैसे ही सूरज छुपा चाँद-तारे निकल आए। अब दाम देने की बारी चाँद-तारों की थी।

अर्नव अपने कमरे में अलमारी के सामने खड़ा आज के विशेष दिन के सूट देख रहा था। तभी वहां आकाश अपने दोनों हाथों में कोट लिए हुए आता है।

आकाश- भाई, इन दोनों में से कौन सा ज़्यादा अच्छा लगेगा ?

अर्नव- मैं ख़ुद इसी उलझन में हूँ कि क्या पहनूं ?

आकाश- भाई, आपके तीन ही कलर तो परमानेंट है ब्लू, ब्लैक या व्हाइट।

मेरे पास तो कोट की रंगबिरंगी फौज खड़ी है।

अर्नव (अपने सूट के चयन में व्यस्त रहते हुए)- हाँ तो सभी रंगों को मिलाकर कुछ भी पहन लो मुझे परेशान मत करो।

आकाश- परफेक्ट आईडिया ! मैं फॉरेन से जो मल्टीकलर्ड ब्लेज़र लाया हूं वो इस मौके के हिसाब से अच्छा लगेगा। थैंक यू भाई! यू आर जीनियस...

अर्नव- जीनियस अपने लिए ही सूट सिलेक्ट नहीं कर पा रहा।

आकाश- ये नीला वाला पहनो। बहुत अच्छा लग रहा है।

अर्नव, आकाश के हाथ से सूट लेता है। तभी अंजली वहाँ आती है वह दोनों को डाँटते हुए कहती है- तुम दोनों अब तक रेडी नहीं हुए। मेहमान आने लगे है।

निकट संबंधियों का आगमन आरंभ हो गया था। कुछ ही पल में मेहमानखाने में मेहमानों का जमावड़ा हो गया। देवयानी, मनोरमा व मनोहर अतिथियों का स्वागत करने में व्यस्त थे। सभी आंगतुकों को कोल्डड्रिंक व स्टार्टर सर्व किया जा रहा था। चारों ओर आनंद छाया हुआ था। हर कोई पार्टी का आनंद ले रहा था।

आज की पार्टी के आकर्षण का केंद्र आकाश और पायल थे। सबको उनके आने का इंतजार था।

पायल अपने परिवार वालों के साथ रायजादा हॉउस आती है। अंजली सबका अभिवादन करती हैं और पायल को अपने साथ ले जाती है।

मनोरमा- अरे वाह! सबहु आई गए। पायल को अपनी बहू बनाई के हम तो गंगा नहाई लिए। अब प्रभू से हमरी कोनहुँ डिमांड नाहीं।

देवयानी- मनोरमा, बहुत प्रसन्नता हुई यह जानकर कि आपने पायल को अपने दिल से स्वीकार कर लिया। जो गलती हमसे हुई वह आपने नहीं दोहराई। अब आज के इस शुभ अवसर पर आप पायल बिटियां को हमारे ख़ानदानी कँगन भी दे दीजिए।

मनोरमा- बहुत ही बढ़िया बात याद दिलाई आपने सासूमाँ। हम अभी जात है और ऊह कँगन लात है।

तभी आकाश वहाँ आता है और कहता है- माँ, आप यहाँ है। मौसाजी औऱ मौसीजी आ गए हैं।

गरिमा- मनु, लाओ अलमारी की चाबी हमें दो। कँगन हम खुशी के हाथ भिजवा देंगे।

मनोरमा जल्दी से चाबी देकर वहाँ से चली जाती है।

खुशी, गरिमा से कहती है- अम्मा, चाबी हमें दे दो। हम इस घर के हर कोने से परिचित हैं। कंगन हम ले जाएंगे। आप चलिए।

गरिमा खुशी को चाबी देते हुए- कंगन सम्भालकर लाना।

खुशी- जी अम्मा, आप चिंता न करें।

मेहमानखाने में लगभग सभी मेहमान आ चुके थे। आकाश और पायल दिलनुमा फ्रेम के आगे खड़े हुए मेहमानों द्वारा दी गई शुभकामनाओं पर आभार व्यक्त कर रहे थे।

अर्नव पार्टी में आता है तो गुप्ता परिवार के हर सदस्य को देखता है, बस खुशी ही कहीं नजऱ नहीं आ रही थी।

अर्नव सभी मेहमानों से मिलता है। जब वह शशिकांत से मिलता है, तब बहाने से खुशी के बारे में जानकारी लेते हुए पूछता है- आप सबको कोई तक़लीफ़ तो नहीं हुई आने में ?

शशिकांत- हम सभी अच्छे से आ गए । अब तो यहाँ आना-जाना लगा ही रहेगा। वैसे, बेटा तुमनें पार्टी बहुत अच्छे से ऑर्गेनाइज की है।

अर्नव- थैंक यू अंकल ! एन्जॉय द पार्टी। उस तरफ़ रेट्रो डांस परफॉर्मेंस भी रखा गया है। हॉप यू एन्जॉय..

शशिकांत से तो अर्नव खुशी के बारे में जान नहीं पाया। अर्नव के चेहरे से तो खुशी काफ़ूर हो गई। उसके चेहरे पर और पार्टी में खुशी का नामोनिशान नहीं था।

अर्नव की उदास नजरें खुशी को पार्टी के हर एक कोने में ढूंढती है। अर्नव की आंखों में जुगनुओं सी चमक आ जाती है जब उसे खुशी आते हुए दिखाई देती है।

बादामी रंग की साड़ी में खुशी बहुत सुंदर लग रहीं थी। हमेशा अपने बालों को बांधकर रखने वाली हेयरस्टाइल को छोड़कर खुशी ने बालों को खुला छोड़ दिया था। हवा से उड़ते उसके बाल जब उसके गालों पर आते हैं तो खुशी करीने से उन्हें कान के पीछे कर देती है।

खुशी कंगन का बॉक्स मनोरमा को दे देती है। मनोरमा कंगन आकाश को देते हुए कहती है। यह तुम पायल को अपने हाथ से पहना दो।

आकाश कंगन पायल को पहनाता है तो वहाँ मौजूद लोग और आकाश के दोस्त ताली बजाने लगते हैं।

खुशी नजरें चुराकर हर जगह अर्नव को तलाशती है।

खुशी (मन ही मन)- अर्नवजी कहाँ है ? अब तक आए क्यों नहीं ? इस पार्टी के मेजबान तो वहीं है न..?

किससे पूछें..

आर्केस्ट्रा पर बजने वाला गाना खुशी के दिल का हाल बयां कर रहा था।

"नजरें ढूंढें ढूंढे साजन को हाय राम, ढूंढे साजन को... ये बिंदिया बोले आजा, ये कंगना बोले आजा, पायलिया बोले आजा, न तरसा अपनी सजनी को..."

खुशी की बेचैन निगाहों को चैन मिल जाता है जब उसे अर्नव अपने सामने खड़ा मुस्कुराता हुआ दिख जाता है।

अर्नव खुशी को ही देख रहा होता है। अर्नव से नजरें मिलते ही खुशी की पलकें झुक जाती है।

अर्नव मेहमानों को अटेंड करते हुए भी खुशी को ही देखता है। एक पल के लिए भी खुशी उसकी नज़रों से ओझल हो जाती है तो अर्नव परेशान हो जाता है।

पार्टी में जब म्यूजिक डायरेक्टर गायिका अनुलता के साथ शिरकत करतें है तो लोगों का हुजूम उन्हें घेर लेता है। अनुलता अर्नव से गले लगकर मिलती है।

दूर खड़ी खुशी यह देखकर असहज हो जाती है। कभी खुद को अनुलता की सबसे बड़ी प्रसंशक बताने वाली खुशी को आज अनुलता से कोफ़्त हो रहीं थी।

खुशी (कुढ़ते हुए)- ऐसे लिपटकर कौन मिलता है ?

अनुलता- फाइनली आज तुम मिल ही गए।

अर्नव (खुशी को देखते हुए)- मिलना ही था आज बात ही कुछ ऐसी है।

देवानंद, अर्नव की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए-

ज़नाब, हसीनाओं से नजरें हटाकर हम पर भी इनायत कीजिए, आपकी महफ़िल में हम भी है, इस खुशी में जाम पिला दीजिए।

अर्नव- आपके बिना तो आज की शाम अधूरी ही होती। आपका ही तो इंतज़ार था। चलिए अब जब आप आ ही गये है तो फिर धमाका करते है।

मुझे एक जरुरी अनाउसमेंट करना है।

यह कहते हुए अर्नव आर्केस्ट्रा बैंड की ओर जाता है। मंच पर पहुंचने के बाद वह कहता है-