Is Pyaar ko kya naam dun - 17 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 17

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 17

(17)

पुराने जख्म हरे हो गए थे। अपनी गलती का पश्चाताप गरिमा की आँखों से निर्झर झरने सा अविरल बह रहा था। अतीत के किस्से जब वर्तमान से टकराते है तो इंसान खुद टूटकर बिखर जाता है। आज गरिमा का भी यही हाल था।

ख़ुशी भी भावुक हो गई। गालों पर लुढ़क आए मोटे-मोटे आँसूओ को पोछते हुए वह गरिमा से प्रश्न पूछती हैं-

खुशी- अम्मा, इन सब के बावजूद आपने हमारा पालनपोषण क्यों किया? हम यहाँ कैसे आए?

खुद को संभालते हुए गरिमा ने कहा।

गरिमा- महिमा औऱ राजपाल की शादी को मेरे घरवालों ने स्वीकार कर लिया था लेकिन राजपाल के परिवार ने उन्हें राजपाल को अपना उत्तराधिकारी मानने से भी इनकार कर दिया। राजपाल बहुत रईस परिवार से थे और महिमा मिडिल क्लास फैमिली की लड़कीं। यह बात राजपाल के दादाजी को रास नहीं आई।

राजपाल की मौत के बाद उनके परिवार का ह्रदय परिवर्तन हुआ और वो तुम्हें अपनाने के लिए भी आए। उन लोगों से कभी कोई परिचय नहीं था इसलिए नन्ही सी जान को अनजान हाथों में सौंपना तुम्हारी नानी को ठीक नहीं लगा। उन लोगों से यह कह दिया गया कि महिमा के साथ ही तुम भी नहीं बची। अब ऐसी स्थिति में तुम्हारा लालन-पालन नानी के यहाँ होना सम्भव नहीं था।

शशिकांत ने तुम्हें अपनी बेटी मानकर तुम्हारा नामकरण किया। उस वक़्त हर कोई उदास और ग़मगीन था इसलिए इन्होंने तुम्हारा नाम खुशी रखा।

हमने दूसरी बड़ी गलती की तुमसे नफ़रत करके। हम भूल ही गये थे कि तुम हमारी ही बहन की बेटी हो। हमने इतने बरसों तक उसकी आत्मा को भी ठेस पहुंचाई। उस दिन जब तुम घर नहीं लौटी तब अहसास हुआ कि तुम्हारे न होने से हमें कितना फ़र्क पड़ता है। हम भले ही तुमसे उखड़े रहते पर मन में छुपी ममता कभी नहीं मरी।

ख़ुशी गरिमा से लिपट जाती है। गरिमा भी उसे अपने अंक में भीच लेती है।

दरवाज़े के बाहर खड़ी सारी बातें सुन रही मधुमती भी आँसू पोछकर ऊपर देखते हुए कहती है- वाह रे! मधुसूदन! आपकी लीला भी अपरम्पार है। अब इन दोनों के बीच का प्यार सदा बनाए रखना।

अपने माता-पिता की आकस्मिक मौत के बारे में सुनकर ख़ुशी दुःखी होती है।

वह गरिमा से कहती है...

ख़ुशी- अम्मा, हमारे भाग्य में आपकी ही छत्रछाया में रहना लिखा था। शायद इसीलिए हमारे जन्म से पहले पिता और जन्म के बाद बाद माँ का साया हमारे सिर से उठ गया। शिवजी जो करते हैं, सब अच्छा ही करते हैं। आप हमसे चाहें जितना भी नाराज़ रहीं, लेकिन हमने हमेशा आपके दिल के कोने में हमारे लिए छुपी हुई ममता और प्यार को ही महसूस किया।

अब उसी ममता और प्रेम को सभी लोग महसूस कर रहे हैं। हमें अब कुछ नहीं चाहिए।

गरिमा- खुशी हमें लगता है, हम सबने तुम्हारे साथ अन्याय ही किया है।

ख़ुशी- कैसा अन्याय अम्मा ?

गरिमा- तुम्हारे जीवित होने की बात तुम्हारे दादा-दादी से छुपाना अब हमें गलत लगता है। यहाँ तुम अभावों में पली बढ़ी, और वहाँ महलों की राजकुमारी सी रहती।

ख़ुशी (मुस्कुराते हुए)- हम आपकी राजकुमारी बनकर ज़्यादा ख़ुश है। हमें नहीं बनना किसी महल की राजकुमारी।

गरिमा- अच्छा तो किसी महल की महारानी बन जाना। हम तुम्हारे लिए महलों के राजा को ढूंढेंगे।

गरिमा की बात सुनकर अनायास ही अर्नव का चेहरा ख़ुशी की आँखों के सामने आवारा बादल सा आ गया।

ख़ुशी (बड़बड़ाते हुए)- हमें नहीं रहना उस नवाबजादे के साथ।

गरिमा- क्या बड़बड़ा रही.. ज़रा हम भी तो सुनें।

मधुमती कमरे के अंदर आते हुए कहती है- ई की बकैती तो ख़त्म ही नही होने वाली। सनकेश्वरी तो हम सबकी चिड़िया हैं, ई की उम्रभर चूँ -चूँ चलती रहेगी। अब तनिक कामधाम भी निपटाई लीयो।

गरिमा और खुशी मधुमती की बात पर हँस देती है।

ख़ुशी- बुआजी, आज हमारी छुट्टी हैं। हमें बताइए क्या काम बाक़ी रह गए?

मधुमती- बिटिया , ई कछू कार्ड है जहाँ तुम ही चली जाओ।

ख़ुशी (कॉर्ड लेते हुए)- ठीक है बुआजी।

ख़ुशी कॉर्ड लेकर कमरे से बाहर चली जाती है। मधुमती और गरिमा सगाई से सम्बंधित चर्चा करने लगती है।

अगले दृश्य में

अर्नव ऑफिस के लिए निकल रहा होता है तभी माखन का कॉल आ जाता है..

अर्नव- हाँ माखन, अच्छा ठीक है । मैं वहां पहुंचता हूं। तुम मुझे उस साइट से रिलेटेड इन्फॉर्मेशन मेल कर दो।

अर्नव अपनी गाड़ी से रवाना हो जाता है। कुछ देर आपस में बतियाने के बाद देवयानी औऱ मनोरमा अपने-अपने कमरे में चली जाती है। आकाश भी अपने नए ऑफिस के लिए बहुत उत्साहित है। वह अपने लैपटॉप पर ऑफिशियल काम में व्यस्त था।

देवयानी अपने कमरे सुस्ता रहीं थी।

तभी टेबल पर रखा फ़ोन घनघनाने लगा। देवयानी ने कॉल रिसीव किया...

देवयानी- हाँ अंजलि बिटिया, हमने भोंदु से आपके यहाँ हमारे साथ आने की बात गुप्त ही रखी हैं। अभी कुछ देर पहले ही वो ऑफिस के लिए निकले हैं।

अंजलि- हाँ नानी हमने ऑफिस से पता कर लिया वो ऑफिस न जाकर कही और जा रहे हैं। हमने माखन से वहाँ का पता ले लिया है और हम वही जा रहें हैं।

देवयानी- ठीक है अंजलि, अपना ध्यान रखिएगा।

अगले दृश्य में...

खुशी अपनी स्कूटी के ब्रेक ठीक कर रही होती है। तभी गरिमा वहाँ आती है। वह खुशी से कहती है-

गरिमा- ख़ुशी परेशान होने की जरूरत नहीं। निमंत्रण हम ही दे आएंगे। लाओ कार्ड हमें ही दे दो।

खुशी (हाथ झटकारते हुए)- हो गया अम्मा, थोड़ा सा तार ढीला हो गया था।

गरिमा- ठीक है, पर ध्यान से जाना।

ख़ुशी- अच्छा अम्मा, अब हम चलते है।

ख़ुशी स्कूटी स्टार्ट करतीं है और वहाँ से चली जाती है। वह फ्रीगंज तक पहुँचती है तभी एक महिला जल्दबाज़ी में रोड क्रॉस करते समय ख़ुशी से टकरा जाती है। टक्कर लगने से उस महिला के हाथ से एक टिफ़िन छूटकर नीचे गिर जाता है जिससे उसकी साड़ी ख़राब हो जाती है।

ख़ुशी गाड़ी से उतरकर उस महिला के पास जाती है और मदद करते हुए उसे सहारा देकर उठाती हैं।

ख़ुशी- लगता है आप बहुत जल्दबाजी में है। कही हॉस्पिटल में किसी के लिए खाना देने तो नहीं जा रहीं ?

महिला- नहीं- नहीं, हम अपने भाई के लिए अपने हाथों से बना खाना लाए थे। खाना तो हमारी साड़ी ने ही खा लिया अब बचा यह दूसरा टिफिन है जिसमें हलवा है। आप प्लीज ये यहीं वस्त्रलोक के पास कंस्ट्रक्शन साइट पर जाकर दे देंगी। हम चेंज करने जाएंगे तब तक हमारे भाई निकल जाएंगे।

ख़ुशी- हम उन्हें पहचानेंगे कैसे ?

महिला- वह उस साइट के ओनर है।

ख़ुशी- आप उन्हें यह बाद में भी तो दे सकती है ?

महिला- आप हम पर हँसेंगी, पर बात ये है कि हमारे भाई इन बातों को दकियानूसी मानते हैं इसलिए वह प्रसाद नहीं खाएंगे। और उन्हें यह प्रसाद देना जरूरी है। हमें लगता है उन पर किसी ने कोई तन्त्र-मन्त्र कर दिया है।

ख़ुशी (हँसते हुए)- आप पढ़ी-लिखी होकर भी ऐसी बातों को मानती है।

महिला (उदास होकर)- परेशान इंसान हर बात को मानता है। हमें आपसे ये सब नहीं कहना था।

ख़ुशी (शर्मिंदा होते हुए)- माफ़ किजिए हम आपका दिल दुखाना नहीं चाहते थे। लाइये हम प्रसाद पहुंचा देंगे।

महिला- बहुत-बहुत धन्यवाद।

आपका शुभ नाम ?

ख़ुशी- हमारा नाम ख़ुशी है।

महिला- आपसे मिलकर ख़ुशी हुई।

ख़ुशी अच्छा हम चलते हैं।

ख़ुशी अपनी गाड़ी स्टार्ट करती है और वहाँ से वस्त्रलोक की ओर चल देती है। वस्त्रलोक थोड़ी ही दूरी पर था। ख़ुशी साइड में स्कूटी लगाकर कंस्ट्रक्शन साइट पर जाती है।

वहाँ कई मजदूर काम कर रहे थे।

ख़ुशी उनमें से एक मजदूर के पास जाती है और पूछती है- यहाँ के मालिक कहाँ है ? हमें उनसे मिलना है

मजदुर (उँगली के इशारे से सीढ़ी दिखाते हुए)- जी वो तीसरी मंजिल पर गए हैं।

ख़ुशी- जी, शुक्रिया..

ख़ुशी सीढ़ियों की ओर चल देती है।

सीढ़ी चढ़ते समय ख़ुशी के दिल में हलचल होने लगती है। वह अपने आप से बात करते हुए कहती- हम इतना क्यों डर रहे हैं ? टिफ़िन ही तो देना है कौन सा बम ब्लॉस्ट करने आए हैं।

ख़ुशी तीसरी मंजिल पर पहुंच जाती है। वहाँ बहुत से सामान रखे हुए होते है। दूर सूटबूट में पाँच-छः लोगों से घिरे हुए एक लड़के को देखकर खुशी समझ जाती है कि यही मालिक होगा।

वह उसकी ओर कदम बढ़ाती हुई आगे बढ़ती जाती है।

पाँच- छः लोग जो उस लड़के से चर्चा कर रहे थे वह भी अपनी बात समाप्त हो जाने पर वहाँ से चले जाते हैं।

अब वह लड़का अकेला ही खड़ा हुआ था। लड़का ख़ुशी की ओर पीठ किए हुए एक फ़ाइल में नजरें गड़ाए हुए था। ख़ुशी उसके पीछे खड़ी हो जाती है। कुछ देर रुककर वह कहती हैं- "सर"

लड़का- हुँह...

ख़ुशी- हम आपके लिए टिफ़िन लाए हैं।

लड़का जैसे ही पलटकर ख़ुशी को देखता है, ख़ुशी चौंक जाती है।

खुशी (हैरानी से)- आ.. आप.. ?

अर्नव- तुम...? यहाँ भी पीछा करते हुए आ गई। तुमने कोई सेंसर लगाया हुआ है क्या ? जहाँ भी जाता हूँ वहीं चलीं आती हो ?

ख़ुशी- हमें पता होता कि यहाँ भी हमारा सामना नवाबजादे से होना था तो हम किसी कीमत पर नहीं आते।

अर्नव- नवाबजादा नहीं रायजादा...अर्नवसिंह रायजादा।

ख़ुशी- बिल्कुल सही सरनेम है- "रायजादा" बिना बात के ज़्यादा ही राय देते रहते हैं आप।

अर्नव (गुस्से से)- शट यौर माऊथ, स्टे ऑउट ऑफ हिअर..

ख़ुशी- हाँ-हाँ चले जाएंगे, पर जिस काम के लिए यहाँ आए थे वह कर के ही जाएंगे।

अर्नव- कौन सा काम ?

ख़ुशी- टिफ़िन देने का।

अर्नव (हाथ आगे बढ़ाते हुए)- तो दो और यहाँ से जाओ।

ख़ुशी- ऐसे कैसे जाए.. हमसे कहा गया था कि जब तक आप खा न ले हम वहीं रहें।

अर्नव (चिढ़ते हुए)- दी भी न... भेजा भी किसे जिसके पास भेजा ही नहीं है।

ख़ुशी- क्या कहा आपने..? हमारे कान बहुत तेज़ है हमने सुन लिया।

अर्नव- सुन ही लिया था तो पूछ क्यों रहीं हो ?

ख़ुशी- पूछना तो हमें यह है कि आप इस टिफ़िन का हलवा कब खाएंगे?

अर्नव- व्हाट.. हलवा...?

और तुम्हें कैसे पता कि इसमें हलवा ही है। कही तुम कोई शरारत तो नहीं कर रहीं।

अर्नव कुछ सोचते हुए- एक सेकेंड, क्या कहा तुमने, ये टिफ़िन दी ने दिया। दी तो यहाँ है ही नहीं तो तुम्हें कब और कहाँ ये टिफ़िन दे दिया।

ख़ुशी- वो जहाँ भी है वही से उन्होंने इसे हवा में उछाला फिर हमने यहाँ कैच कर लिया और ले आपके लिए।

अर्नव- वैरी फ़नी..

झूठ भी कहा तो ऐसा जिस पर यकीन ही न हो।

ख़ुशी- आपके पास तो भेजा हैं न ?

आप उसका उपयोग करके कॉल कर लीजिए न अपनी दी को।

अर्नव गुस्से से ख़ुशी को देखता है और जेब से अपना मोबाईल निकालकर अंजलि को कॉल करता है। एक दो रिंग बजने पर ही कॉल रिसीव हो जाता है। अर्नव की हैलो सुनने से पहले ही अंजलि बोलने लगती है...

अंजलि- अर्नव, तुमने हलवा खा लिया न ? हमनें बहुत मेहनत से बनाया है तुम्हारे लिए। हम खुद तुम्हें अपने हाथों से खिलाते, पर जल्दबाजी में हमारे हाथ से एक टिफ़िन छूट गया और हमारी साड़ी खराब हो गई। शुक्र है वह भली लड़की हमारी मदद के लिए आ गई और हमारे निवेदन करने पर हलवा तुम तक पहुँचा दिया।

अर्नव- आप उज्जैन कब आए दी ?

आपने मुझे बताया क्यों नहीं ?

आप ठीक तो है न ?

अंजलि- हाँ बाबा, हम ठीक है। तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर जब घर आओगे तब देंगे।

अर्नव- ठीक है दी, अपना ध्यान रखिएगा। बाय..

कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद नजरे चुराते हुए अर्नव ख़ुशी से टिफ़िन ले लेता हैं और उसे वहाँ से जाने के लिए कहता है।

ख़ुशी को अंजलि की बात याद आती है कि यह प्रसाद हैं जो अर्नव का खाना जरूरी है। ऐसा होने पर अर्नव बुरी नजर से बच जाएगा।

ख़ुशी को विचारमग्न देखकर अर्नव कहता है...

अर्नव- ख़ुशी.. कहाँ खो गई।

ख़ुशी (हड़बड़ी में)- कोई बुरी नज़र नहीं लगेगी। आप ये हलवा खा लो।

अर्नव- व्हाट...

ख़ुशी- मतलब.. हमारी नज़र नही लगेगी आपको, आप हमारे सामने खा सकते हैं।

अर्नव- मैं ऑफिस जाकर खा लूँगा।

ख़ुशी- हाँ, तो हम भी आपके साथ ऑफिस चलेंगे।

अर्नव (हैरानी से देखते हुए)- तुम अजीब हो..

ख़ुशी- हमने आपकी दीदी से प्रॉमिस किया था, इसलिए हम मजबूर हैं। वरना आपके साथ एक पल न रहें हम।

अर्नव- हाँ, तभी तो मेरा पीछा करते हुए आ जाती हो हर जगह, और मैं पीछा छुड़वाता हूँ हर बार। चलो ऑफिस यहाँ तो इतनी डस्ट हैं। मैं ऑफिस में आराम से बैठकर ही खाऊंगा।

अर्नव जाने लगता है तो ख़ुशी उसके आगे हो जाती है। वह अर्नव से कहती है- आप हमारे साथ चल रहे हो हम नहीं।

अर्नव- अजीब पागल लड़कीं है..

अर्नव और ख़ुशी कंस्ट्रक्शन साइट से ऑफिस के लिए रवाना हो जाते हैं। ख़ुशी,अर्नव के ऑफिस दूसरी बार जा रहीं थी। ऑफिस के बारे में सोचकर ही ख़ुशी को पुरानी बातें याद आने लगती है कि कैसे वह यहाँ आई थी और अर्नव को देखकर उससे लिपट गई थी।

ख़ुशी, अर्नव से ऑफिस में हुई मुलाकात का सोचकर असहज हो जाती है। उसे चुप देखकर अर्नव कहता है ..

अर्नव- क्या हुआ.. तुम्हारा मुँह साइलेंट मॉड पर क्यों चला गया ?

ख़ुशी (अचकचाकर)- हम तो भूल ही गये थे कि हमें तो सगाई के लिए इनविटेशन देने जाना था।

अर्नव सगाई की बात सुनकर एकदम से गाड़ी रोक देता है और कहता है- गाड़ी से उतरो।

ख़ुशी- अब हमने क्या किया ?

अर्नव (बाहर देखते हुए)- ऑफिस आ गया। ख़ुशी बाहर देखती है, और गाड़ी से उतर जाती है।

अर्नव गाड़ी पार्क करके ऑफिस के अंदर चला जाता है। ख़ुशी अर्नव के पीछे चलने लगती है। अर्नव अपने केबिन में आता है।

ख़ुशी को लिफ़्ट, केबिन और केबिन से लगा हुआ स्टडी रूम सब कुछ किसी भूली बिसरी याद सा लग रहा था। जैसे इन सबसे उसका गहरा और पुराना नाता हो।

अर्नव- मैं मुँह-हाथ धोकर आता हूँ, तब तक तुम नीचे केटिंग से हलवा गर्म करवा कर ले आओ।

ख़ुशी- अब हम चलते हैं। हमको यकीन है आप इसे खा लेंगे।

अर्नव- अब कहाँ गया तुम्हारा प्रोमिस जो तुमने दी से किया था।

ओह! सगाई के लिए तैयारियां करनी होगी न? बहुत उत्साहित हो सगाई को लेकर।

खुशी ऑफिस आकर अनमनी सी हो गई थी। वह अर्नव की किसी बात का जवाब नहीं देती है और टिफ़िन उठाकर केटिंग की ओर चली जाती है।

अर्नव भी वॉशरूम चला जाता है।