Is Pyaar ko kya naam dun - 13 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 13

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 13

(13)

गुमसुम सी ख़ुशी अपनी ही धुन में चली जा रही थी। वह आकाश के सामने से ऐसे निकल जाती है जैसे उसने आकाश को देखा ही नहीं।

आकाश ख़ुशी के सामने जाकर उसे रोकते हुए कहता है-

आकाश- आई एम सॉरी ख़ुशीजी, मेरी वज़ह से आपको भाई की बातें सुनना पड़ी। आप चलिए मेरे साथ मैं भाई को अभी क्लियर कर देता हूँ कि सारी गलती मेरी ही थी, मैंने ही आपसे ज़िद करके उनकी नकल उतरवाई थीं।

ख़ुशी- (धीमे स्वर में)- कोई बात नहीं आकाशजी.. और आप उनको कितना भी क्लियर कर देंगे तब भी वह इंसान की परख रुपयों से ही करेंगे। शायद कोई अमीर लड़की उनके सामने होती तब वह माफ़ कर देते। दुर्भाग्य से हम ग़रीब है और इसी बात से उनको समस्या है। वैसे भी उन्होंने कहा है कि अब अपनी शक्ल कभी मत दिखाना इसलिए हम आपके साथ नहीं चल सकते। आप हमारे लिए परेशान मत होइए। शाम हो गई है। अब हम घर जाते हैं। खुशी वहाँ से जाने लगती है।

आकाश (ख़ुशी को रोकते हुए)- बाहर बारिश हो रही है। मैं आपको घर ड्रॉप कर देता हूँ। आप रुकिये ! मैं भाई की गाड़ी की चाबी लेकर आता हूँ।

खुशी- रहने दीजिए आकाशजी। हमारे बैठने से उनकी कीमती गाड़ी गन्दी हो जाएगी। हम चलते हैं। शुक्रिया !

आकाश ख़ुशी की बात सुनकर सन्न रह जाता है। वह ख़ुशी को बाहर जाते हुए देखते रहता है। कुछ देर यूं ही खड़े रहने के बाद वह अर्नव के कमरे की ओर अपने कदम बढ़ा देता है।

अर्नव के रूम का दरवाजा खुला हुआ था। अर्नव लैपटॉप पर अपने ऑफिस का काम कर रहा था। आकाश दरवाजा खटखटाता है।

आकाश- भाई मैं अंदर आ सकता हूँ...?

अर्नव (लैपटॉप पर नजरें गड़ाए हुए)- हुँह....

आकाश- भाई, वो... मैं.. कह रहा था..

अर्नव- मिमियाना बन्द करो आकाश ! कम टू द पॉइंट..

आकाश- भाई, ख़ुशी जी..

अर्नव- उस लड़की की वकालत करने आये हो तो रहने ही दो..

आकाश- नही भाई वो ऐसी तेज़ बारिश में भी चली गई तो मैं सोच रहा था.. आपकी गाड़ी से...

अर्नव- मुझे अभी एक जरुरी काम से बाहर जाना है। घर में और गाड़िया भी है। अर्नव लेपटॉप बन्द करके उठता है औऱ चला जाता है।

आकाश अर्नव को जाते हुए देखता है और बुदबुदाता है- एक गाड़ी पापा ले गए, एक अंजलि दीदी, और एक सर्विसिंग के लिए गई है।

अर्नव अपनी गाड़ी में बैठा हुआ ख़ुद से बड़बड़ाते हुए, गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहता है- अजीब पागल है ये लड़की। मैंने ये कब कहा कि मेरे घर से निकल जाओ ? ऐसी तेज़ बारिश में तो बाहर निकले हुए लोग भी किसी सुरक्षित जगह रुक जाते हैं। ये उल्टी खोपड़ी वाली लड़की तेज़ बारिश में भी घर से चली गई।

अर्नव धीमी गति से गाड़ी चलाता हुआ सड़क के दोनों और देखता है। उसकी नजरें ख़ुशी को तलाशती है। अर्नव पहले भी ख़ुशी को उसके घर ड्रॉप कर चुका था इसलिए वह उन्हीं रास्तों पर गाड़ी चलाता है जिनकी मंज़िल खुशी का घर थी।

शिव मंदिर से ठीक पहले अर्नव को ख़ुशी मिल जाती है। पूरी तरह से भीगी हुई, कपकपाती खुशी को देखकर अर्नव के चेहरे पर गुस्से औऱ फिक्र के भाव एकसाथ आते हैं। अर्नव गाड़ी की स्पीड तेज़ कर देता है और खुशी के सामने गाड़ी का ब्रेक लगाता है।

अचानक अपने इतनी नजदीक आई गाड़ी को देखकर ख़ुशी ऐसे चोंक जाती है मानो गहरी नींद से जागी हो।

गुस्से से ख़ुशी गाड़ी वाले को देखती है, तो अर्नव को देखकर हैरान हो जाती है। अर्नव आँख के इशारे से उसे गाड़ी में बैठने के लिए कहता है। ख़ुशी अर्नव को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ जाती है। गाड़ी साइड में पार्क करके अर्नव गाड़ी से बाहर निकलता है और खुशी के पीछे जाता है। ख़ुशी के पास पहुंचकर कर अर्नव कहता है-

अर्नव- अब ये क्या नया तमाशा है ? चुपचाप गाड़ी में बैठो।

खुशी (आश्चर्य से अर्नव को देखते हुए)- कुछ देर पहले तक तो आपको हमारी शक़्ल देखना भी गंवारा नहीं था।

ख़ुशी आगे चलने लगतीं है। अर्नव ख़ुशी के पीछे जाता है औऱ उसका हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करता है।

ख़ुशी झटके से अपना हाथ छुड़वाती है और कहती है- बस कीजिये अर्नवजी ! शायद नानीजी को दिखाने के लिए आप यहां चले आएं हमारी चिंता का ढोंग करने, लेकिन आप फ़िक्र मत कीजिए। हम नानीजी से कुछ नहीं कहेंगे। अब आप जाइए। हम मिडिल क्लास लोगों की तो आदत है बारिश औऱ तूफानों से जूझने की पर आपको शायद ये बारिश गला दे किसी मिट्टी के पुतले की तरह।

ख़ुशी वहाँ से चली जाती है। अर्नव ख़ुशी को जाते हुए तब तक देखता रहता है, जब तक वह उसकी आँख से ओझल नहीं हो जाती है।

ख़ुशी के जाने के बाद अर्नव कुछ देर बारिश में खड़ा रहता है। ठंड से ठिठुरते उसके शरीर से कही अधिक उसकी रूह कपकपा रही थीं।

आत्मग्लानि से अर्नव का मन भर गया। बरसते बादल मानो अर्नव के साथ उसका दुःख बांट रहे हो या यूँ कहे कि बादल अर्नव के हिस्से के आँसू बहा रहे हों।

अर्नव अपनी गाड़ी में बैठ जाता है। उसका मन बहुत विचलित था। उसे लग रहा था जैसे कुछ बहुत कीमती सामान खो गया है या बिजनेस में बहुत बड़ा नुकसान हो गया। मुँह लटकाए हुए अर्नव अपने घर को लौट गया।

अगले दृश्य में..

डोरबेल बजाने के बाद ख़ुशी अपने घर के बाहर दरवाजा खुलने के इंतजार में खड़ी थी। पायल दरवाजा खोलती है और सामने पूरी तरह से भीगी हुई ख़ुशी को देखकर भड़कते हुए कहती है....

पायल- इतने बड़े घर में जॉब करने जाती हो, वो भी बिना तनख्वाह के, और वहां से आती हो भीगकर। वाह ! इतने बड़े घर में छाता नहीं था।

ख़ुशी (अंदर आते हुए)- क्या जीजी आप भी.. फिर से हमारी टीचर बन गई। जब देखो तब क्लास लेने लगती हो।

उन लोगों को बताकर थोड़ी ही आए हैं जो छाता लेकर आते। हमको बारिश में भीगना था तो चुपचाप चले आए।

ख़ुशी ठिठुरती हुई अपने कमरे में जाती है। वह कपड़े बदलने के लिए वॉशरूम में चली जाती है।

पायल वहीं पलंग पर बैठे हुए उसके बाहर आने का इंतजार करती है।

ख़ुशी अपने बालों को सुखाते हुए वॉशरूम से बाहर निकलती है और पायल से कहती है- जीजी प्लीज हमारे लिए अदरक वाली चाय बना लाओ न ?

"ठीक है" कहकर पायल किचन की ओर चली जाती है। ख़ुशी भी उसके पीछे हो लेती है।

पायल पतीली गैस पर चढ़ाकर चाय बनाते हुए कहती है- अच्छा ख़ुशी जहाँ तुम जाती हो वहाँ के लोग कैसे है ?

ख़ुशी (फ़ीकी सी मुस्कान के साथ)- हाँ जीजी सब बहुत अच्छे हैं। अब तो आकाश जी भी आ गए है.. वो बहुत ही मज़ाकिया इंसान हैं। तुम जब उनसे मिलोगी न तो दिल ख़ुश हो जायेगा।

पायल- औऱ अर्नव ..?

ख़ुशी (हकलाते हुए)- क..क..कौन अर्नव ?

पायल-  वहीं जो तुम्हें हर वक़्त परेशान किये रहता है।

ख़ुशी (आश्चर्य से)- जीजी, रायजादा हॉउस गई थी क्या ?

पायल- "नहीं"

ख़ुशी- अर्नव को कैसे जानती हो तुम ?

पायल (ख़ुशी के सिर पर मारते हुए)- तुम्हारे नींद में बोलने की वजह से।

बस कीजिये अर्नवजी अब एक और शब्द मुँह से निकाला तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा। पायल ख़ुशी की नकल उतारते हुए कहती है औऱ खिलखिलाकर हँसने लगती है।

खुशी (शर्माते हुए)- हम सच में नींद में ये सब कह रहे थे ?

पायल- औऱ नहीं तो क्या ? हम अपने मन से थोड़ी न कुछ कह रहे।

ख़ुशी- हाँ जीजी उस घर में सभी बहुत अच्छे हैं, बस उस एक नवाबजादे को छोड़कर।

पायल- तुम किसी से कम हो क्या?

वो नवाबजादा है तो तुम भी स्वतन्त्रता सेनानी हो। अब जाओ तो उससे डटकर कर मुकाबला करना।

ख़ुशी (बुदबुदाते हुए)- अब तो वह हमारी शक़्ल भी देखना नहीं चाहते.. डटकर मुकाबले का तो सवाल ही नहीं है।

पायल चाय का प्याला ख़ुशी के हाथ में देते हुए- ख़ुशी शिव मंदिर वाला भी यही है न ???

चाय का प्याला लेते हुए आश्चर्य से ख़ुशी पायल को देखती है। वह मन ही मन सोचती हैं- जीजी को सारी बातें कौन बता रहा। सिर्फ शिवजी ही जानते है।

पायल- कहाँ खो गई सनकेश्वरी..?

ख़ुशी (अचकचाकर)- हाँ ..मतलब नहीं जीजी, शिवजी ही है शिव मंदिर वाले।

पायल (चिढ़ाते हुए)- अच्छा हम समझ गए कि अर्नव उर्फ़ नवाबजादे का नाम शिवजी भी है...

पायल हँसती है औऱ ख़ुशी रूठते हुए कहती है-

ख़ुशी- क्या जीजी.. कहाँ भोलेनाथ शिवजी औऱ कहाँ वो ग़ुस्सेल, कोई तुलना ही नहीं है।

अच्छा बाबा ठीक है, जो तुम कहो वही सही है। अब हम चलते हैं बच्चे ट्यूशन के लिए आने वाले होंगे- कहकर पायल वहाँ से चली जाती है।

ख़ुशी चाय की चुस्की लेते हुए अर्नव के बारे में सोचती है।

हॉल में रखे फ़ोन की घण्टी बजती है। पायल अंदर से आवाज़ देकर कहती है- खुशी फ़ोन रिसीव करो शायद अम्मा का ही हो।

ख़ुशी- ठीक है जीजी...

ख़ुशी कॉल रिसीव करती है। फ़ोन रिसीव होते ही उधर से आवाज़ आती है- हेलो! ख़ुशी बिटिया, मनोरमा स्पीकिंग..हमका आकाश बिटवा बताएं रहे, तुम इत्ती तेज़ बारिश मा घर चली गई। सब कुशलमंगल तो है न..?

ख़ुशी- हाँ आँटी, सब ठीक है।

मनोरमा- फ़िर काहे इतनी रिस्क लेत रही। पहली बारिश से बीमार हुई जात है। हम अर्नव बिटवा को भी कहत रहे, पर ऊह भी हमरी बात नाही सुनबे और अब ज़ुकाम होई है। आछि..आछी करत रहे।

ख़ुशी (बुदबुदाते हुए)- ज़ुकाम तो होना ही था। किसने कहाँ था हमारा पीछा करने का ?

मनोरमा- ई का ख़ुसूरपुसूर करत हो ..हमका समझ नहीं आवत।

ख़ुशी- कुछ नहीं आँटी... आप भी अपना ध्यान रखिएगा।

मनोरमा- ठीक बा, तुम भी अपना ख्याल रखना। हम फ़ोन रखत है।

रिसीवर रखते ही ख़ुशी का मन बेचैन हो जाता है। अर्नव के ज़ुकाम की वज़ह खुशी अपने आप को ही मानती है। अपने आप को कोसते हुए- हम चुपचाप बैठ जाते तो आज उनको जुक़ाम नहीं होता।

ख़ुशी के मन में रहने वाली नकारात्मक ख़ुशी ने खुश होते हुए कहा- तुम क्यों इतनी फ़िक्र कर रही हो ? जो हुआ अच्छा ही हुआ। उस नवाबजादे को सज़ा मिलनी ही चाहिए।

ख़ुशी (अपने ही मन का खंडन करते हुए)- फ़िक्र तो वो करते हुए आए थे और हमने क्या किया ?

ख़ुशी का मन- बिल्कुल सही किया। वह जब चाहें तब घर से निकाल दे और बुला ले..ये तो कोई बात नहीं हुई।

ख़ुशी- बात जो भी हो पर इस बार ग़लती हमारी ही है। कल हम उनसे माफ़ी मांग लेंगे।

ख़ुशी का मन- हमें क्या..? जाओ उस आग के दरिया के पास.. पर याद रखना हर बार की तरह दिल जलाकर ही लौटोगी।

ख़ुशी का मन कचहरी बन गया था। उसका अपने मन से ही वाद-विवाद चल रहा था। कभी मन अर्नव की वकालत करता तो क़भी अर्नव के पक्ष में कही बात को खारिज कर देता। सुनवाई होती उसके पहले ही डोरबेल बज उठी।

दरवाज़े की ओर जाते हुए ख़ुशी कहती है- आते हैं.. ज़रा धीरज रखो! लगातार कौन घण्टी बजाता है। ख़ुशी ने दरवाजा खोला।

हम बजाते हैं सनकेश्वरी- कहते हुए मधुमती घर के अंदर आती है। ख़ुशी मधुमती के हाथ से सामान लेते हुए कहती है-

ख़ुशी- अम्मा, बुआजी इतना सारा सामान..? कोई उत्सव है क्या ?

मधुमती- ई लियो, सनकेश्वरी को कछू पता ही नाही।

ख़ुशी (हैरत से)- क्या नहीं पता.. ?

गरिमा- ख़ुशी आज पायल के ससुराल से फ़ोन आया था। वो लोग इसी सप्ताह सगाई और दीवाली तक शादी के लिए कह रहे हैं। ये सारा सामान सगाई के लिए ही है। तू कल जब मनोरमा के घर जाए तो उनको पूरे परिवार के साथ आने का निमंत्रण दे देना। ये ले कॉर्ड। बाक़ी बात हम मनोरमा से फ़ोन पर कर लेंगे।

ख़ुशी (कॉर्ड लेते हुए)- अम्मा इतनी जल्दी शादी..?

मधुमती- अरे सनकेश्वरी ! जल्दी कहाँ.. वो तो अब तक कही बात नहीं बनी वरना आज पायलिया के बच्चे भी होते। तुम्हारा बस चले तो तुम जीवनभर अपनी जीजी के साथ ही रहो।

यही जग की रीत हैं ख़ुशी एक दिन तुम्हें भी ऐसे ही विदा होना है।

ख़ुशी भावुक होकर गरिमा से लिपट जाती है औऱ कहती है- हम तो अपनी अम्मा को छोड़कर कही नहीं जाएंगे।

गरिमा प्यार से ख़ुशी के गाल सहलाती है। वह कहती है जब से तुम्हारे प्रति हमारा मन बदला है, तबसे ही जीवन बदल गया। अब चारों तऱफ ख़ुशी ही ख़ुशी मिलती है।

ख़ुशी- मैं चाय बनाकर लाती हूँ।

ख़ुशी किचन की ओर चली जाती है। गरिमा औऱ मधुमती झोले से सामान बाहर निकालकर बाहर रखती है।

गरिमा- जीजी बस अब दामाद जी के लिए चेन और अँगूठी लानी है।

मधुमती- हाँ गरिमा, सोने-चांदी का काम तुम शशि के साथ जाकर निपटा लेना।

ख़ुशी चाय लेकर आती है। गरीमा औऱ मधुमती को चाय के प्याले देने के बाद ख़ुशी अतिउत्साहित होकर एक-एक सामान उठाकर देखती है। एक साड़ी उठाकर ख़ुशी कहती है-

ख़ुशी- अम्मा, ये साड़ी कितनी सुंदर है न ?

गरिमा (हँसते हुए)- तुम्हारी ही है।

मधुमती (चाय सुड़कते हुए)- वाह ! अपनी ही साड़ी उठाए हैं सनकेश्वरी।

खुशी (प्रसन्न होकर उछलते हुए)- अरे वाह! कितनी सुंदर है! हम अभी जीजी को दिखाकर आते हैं।

ख़ुशी दौड़कर पायल के कमरे में जाती है। ख़ुशी के उत्साह को देखकर मधुमती और गरिमा के चेहरे पर भी मुस्कान तैर जाती है।

अगले दृश्य में...

अंजलि, रायजादा हॉउस में अपनी नानी को कॉल करती है। कॉल पर बात करते हुए वह चिंतित होकर कहती है-

अंजलि- नानी, हमने आपसे पहले भी कहा था कि अर्नव पर पूरे समय गुस्सा इसीलिए सवार रहता हैं क्योंकि उन पर किसी ने काला जादू करवा दिया है। इतनी कम उम्र में बिज़नेस इतना फैला लिया है कि लोगों की नज़र में खटकना लाज़िमी है।

देवयानी- हाँ अंजलि पर, भोंदु आज के खयालातों वाले युवा है, और वो तो भगवान को भी नहीं मानते फिर इन बातों को माने यह तो असम्भव ही है।

अंजलि- वो भले ही न माने नानी, हम तो मानते हैं न.. आप सब कल सुबह ही जल्दी यहाँ के लिए निकल जाना । यहाँ एक प्रसिद्ध हनुमानजी का मंदिर है। हम सब वहां चलेंगे।

देवयानी- ठीक है अंजली, तुम भी अपना और दामादजी का ध्यान रखना।

फ़ोन पर बात हो जाने के बाद देवयानी मनोरमा को पुकारते हुए- मनोरमा... कहाँ हो ?

आई सासूमाँ कहकर मनोरमा सुपरफास्ट एक्सप्रेस जैसी भागी चली आती है।

देवयानी- अंजलि का फ़ोन आया था। अर्नव की चिंता कर रही थी। दिन प्रतिदिन उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ता ही जा रहा है। कल सुबह हम सब सिद्धवीर खेड़ापति हनुमानजी की दर्शन के लिए जाएंगे। आप आकाश से भी कह दीजिएगा।

मनोरमा- जी सासूमाँ, हम अबहुँ जाई के ई सूचना आकाश को दे देबे। सासूमाँ अर्नव बिटवा नाही चलेंगे ई तो हमका मालूम है, पर ई बखत उनको अकेला कईसन छोड़ देब। ऊह अभी जुक़ामवा से परेशान होइ है।

देवयानी- बात तो आपने ठीक ही कही है। अब क्या करें ?

तभी वहाँ हरिराम हाथ में ट्रे लिए आता है। देवयानी को दवाई व पानी का ग्लास देते हुए वह कहता है- आपकी दवाई का समय हो गया है।