Is Pyaar ko kya naam dun - 10 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 10

Featured Books
  • My Devil Hubby Rebirth Love - 51

    अब आगे मैं यहां पर किसी का वेट कर रहा हूं तुम्हें पता है ना...

  • तेरे इश्क मे..

    एक शादीशुदा लड़की नमिता के जीवन में उसने कभी सोचा भी नहीं था...

  • डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 70

    अब आगे,और अब अर्जुन अपनी ब्लैक बुलेट प्रूफ लग्जरी कार में बै...

  • जरूरी था - 2

    जरूरी था तेरा गिरना भी,गिरके उठना भी,जिंदगी के मुकाम को ,हास...

  • My Passionate Hubby - 2

    मेरे सर पर रखना…बाबा तू अपना हाथ…!सुख हो या चाहे दुख हो…तू ह...

Categories
Share

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 10

(10)

डॉक्टर योगेंद्र राउंड पर आते हैं और अपने सभी पेशंट्स को देखते है। जब डॉक्टर योगेंद्र देवयानी के रूम में आते है तब वह देवयानी को आदर के साथ नमस्कार कहते है, फिर उनकी खेरख़बर पूछते है।

देवयानी भी मुस्कुराकर जवाब देती है- खेरख़बर तो आप हमसे बेहतर जानते है। आपकी अनुमति मिलते ही हम घर जा पाएंगे।

डॉक्टर योगेंद्र फ़ाइल थामे देवयानी की बात पर हँस देते है और फ़ाइल के पन्ने पलटकर देखते है। कुछ देर पन्नों में लिखी रिपोर्ट को पढ़ते हैं फिर फ़ाइल बंद करते हुए कहते हैं- आप बिलकुल ठीक है, आपकी सारी रिपोर्ट नॉर्मल है। अब आप घर जा सकती है। डिस्चार्ज फ़ाइल, रिपोर्ट व ट्रीटमेंट की समरी मैं जल्दी से बनवा देता हूँ।

जी धन्यवाद,- देवयानी ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा।

डॉक्टर योगेंद्र देवयानी से आज्ञा लेकर कमरे से बाहर चले जाते है।

देवयानी ख़ुशी से कहती है- आपके कदम बहुत शुभ रहे। आप आई और हमें यहाँ से छुट्टी मिल गई। सप्ताहभर में ही हम तो बहुत घबरा गए थे।

नहीं नानीजी, यह बस महज़ इत्तेफाक ही है- ख़ुशी ने देवयानी की बात का खंडन करते हुए कहा।

हमको तो यही सच लगता है। अब आप इसे इत्तेफाक माने या सच.. ये आपकी मर्जी- देवयानी ने कहा।

कुछ ही देर बाद नर्स कमरे में आती है। वह ख़ुशी को डिस्चार्ज फ़ाइल व ट्रीटमेंट समरी पकड़ाते हुए कहती है- ये लीजिये मैम। इसमें सारे इंस्ट्रक्शन लिखे हुए हैं। आप सही समय पर दवाइयां देते रहना।

जी, हम विशेष ध्यान रखेंगे- ख़ुशी ने फ़ाइल लेते हुए कहा।

तभी वार्डबॉय कमरे में आता है और कहता है- मैम आपकी गाड़ी आ गई है।

देवयानी औऱ ख़ुशी कमरे से बाहर निकलती है। लिफ़्ट की ओर कदम बढ़ाते हुए देवयानी कहती है- आज सच में ऐसा लग रहा जैसे हम आज़ाद पंछी थे और आज पिंजरे से फुर्र हो गए।

ख़ुशी उनकी इस बात पर हँसकर कहती है- बच्चों जैसी तो आप भी है नानी जी, तभी तो आपसे बात करने में हमें ज़रा भी हिचक महसूस नहीं हुई।

लिफ़्ट में जाते हुए देवयानी ख़ुशी से कहती है- उम्र चाहे जो भी हो। हर इंसान को अपने अंदर के बच्चे को हमेशा जिंदा रखना चाहिए। इस ऊपर-नीचे जाती हुई लिफ़्ट सी हमारी जिंदगी भी है, उतार-चढ़ाव आते-जाते रहते हैं। अगर हम इनका सामना हँसकर न करें तो हम कभी अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाएंगे।

लिफ़्ट ग्राउंड फ्लोर पर आ जाती है और ऑटोमैटिकली डोर ओपन हो जाते हैं।

देवयानी की बातों को ख़ुशी बहुत गौर से सुनती है, मानो उनके कहे हर एक शब्द को अपने जीवन में उतार रही हो।

अगले दृश्य में...

मनोरमा की नजरें बार-बार घड़ी पर पड़ती है। आज घड़ी के कांटे उसे रोज के मुकाबले तेज़ भागते प्रतीत होते हैं।

वह खुद से बड़बड़ाते हुए कहती है- अब ई बखत हरिराम कहाँ गायब होइ गवा। लागत है आज तो ई घड़ी का काँटा भी मैराथन में भाग लेइये है।

समय निकलता जात रहत और उह कबख्त की कोनहुँ ख़बर नाही। अरे! उह फूल के खातिर गए रहत या बगीचा लगाएं रहे। अबहु तक तो आई जाना था। कही सासूमाँ आ गई और हमरा आमना-सामना हुई गवा तो न जाने का अनर्थ होगा..?

चिंतित मनोरमा हॉल में ईधर-उधर टहलती है। तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज़ आती है। मनोरमा दौड़कर खिड़की से झांककर देखती है तो उसके होश उड़ जाते है। बाहर देवयानी गाड़ी से उतरते हुए दिखती है।

बाहर देवयानी को देखकर मनोरमा के शरीर में मानो हड़कंप मच गई। शरीर का हर एक तन्त्र सहम गया। बुध्दि विभाग पर तो ताले ही लग गये।

सूचना का आदान-प्रदान बन्द हो गया।

शरीर के सभी तंत्र ठप्प हो गए। मनोरमा जस की तस खड़ी रहीं।

देवयानी के कदम घर की ओर बढ़ते हैं और मनोरमा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। मानो घण्टी सी बजती दिल की धड़कने अलार्म की तरह मनोरमा का जगा रही हो।

मनोरमा हॉल के पास बने कमरे की ओर जाने लगती है तभी देवयानी हॉल में प्रवेश करती है।

रौबदार आवाज़ में देवयानी कहती है-  रुक जाइये मनोरमा ! अब छुपने की कोशिश बेकार ही है।

मनोरमा तो जैसे पत्थर की मूर्ति ही बन गई हो। वह स्टेच्यू की तरह वैसे ही खड़ी रहीं। देवयानी मनोरमा की ओर बढ़ती है और मनोरमा के नजदीक जाते हुए कहती है- आपको यहाँ से कही जाने की जरूरत नहीं। आप यहाँ हमारे साथ रह सकती है।

देवयानी के शब्द जैसे अमृत के घड़े थे। मनोरमा के कान में पड़ते ही पत्थर की मूर्ति में प्राण आ गए हो। मनोरमा को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। वह आश्चर्य से आंखों को बंद करके खोलती हैं। आँखों के साथ ही मनोरमा का मुँह भी खुला का खुला रह गया।

हैरान होने की कोई जरूरत नहीं है मनोरमा। आज पहली बार हमें एहसास हुआ कि आप हमारे लिए बहुत फिक्रमंद है और वैसी तो बिल्कुल भी नहीं है जैसा इतने सालों से हम आपको समझते रहें- देवयानी ने प्यारभरे लहज़े में कहा।

देवयानी की बात सुनकर मनोरमा का मन द्रवित हो गया। बरसों से मनोरमा के मन में जो आदर और प्रेम का दरिया था वह आज आँखों से बह निकला। मनोरमा देवयानी के पैरों को छूती है। यह दृश्य शादी के बाद अनेकों बार देखने को मिला पर तब हर बार देवयानी मनोरमा की ओर देखे बिना वहाँ से चली जाती थी, पर आज ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

देवयानी ने बड़े ही प्रेम से मनोरमा को उठाया और आशीर्वाद देते हुए कहा- सदा सुखी रहो ! सदा सुहागन रहो !

मनोरमा देवयानी से लिपट जाती है। वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पा रहीं थी। मनोरमा की आँखे निर्झर झरने सी बहती रहीं।

देवयानी ने हँसते हुए कहा- बस करो मनोरमा, अब क्या हमें भी रुलाओगी ?

आँसू पोछते हुए मनोरमा कहती है- आप नहा लीजिए। अब जब आप हमें अपनाई लीये है, तो हम भी यहाँ के सबहु तौर तरीकों को जल्दी सीख लेबे। हमनें मन्दिर आपकी पूजा वास्ते सारी जरूरत का सामान रखवा दिया है।

ठीक है- देवयानी ने कहा और अपने कमरे की ओर चली गई।

दरवाज़े पर चार जोड़ी आँखे इस सारे घटनाक्रम को देख रही थीं। उनमें से दो जोड़ी आँखे हरिराम की थी औऱ दो जोड़ी खुशी की। हरिराम इस दृश्य को देखकर हतप्रभ रह गया। उसे लगा जैसे वह दिन में ही कोई सपना देख रहा है।

अरे ! हरिराम, टुकुरटुकुर का देखत हो ? जो होइ रहा सब सच है। जाओ जल्दी से फुलवा पूजा की थाली में रख दो।

जी भाभीजी- कहकर हरिराम वहाँ से चला जाता है।

मनोरमा अतिउत्साहित नज़र आती है। वह ख़ुशी से कहती है- अरे ! खुशी वहाँ काहे खड़ी हो ? ईहा आओ, हमरे पास।

ख़ुशी मुस्कुराते हुए मनोरमा के पास आती है। मनोरमा ख़ुशी से कहती है - बिटिया ये सब चमत्कार तुम्हरि वजह से ही सम्भव होई है। हम आजीवन तुम्हरे आभारी रहेंगे। इतना कहकर मनोरमा अपने हाथ को जोड़कर ख़ुशी को प्यार ने निहारने लगती है।

आप ये कैसी बात कर रहे हो- खुशी ने मनोरमा के जुड़े हुए हाथों पर अपनी दोनों हथेलियों को रखते हुए कहा।

अच्छा, आँटी सब हम चलतें है। कल फिर समय पर आ जाएंगे- ख़ुशी ने आज्ञा लेते हुए कहा।

बिटिया, अगर घर पर कुछ विशेष काम न हो तो.. थोड़ा और ठहर जाओ- मनोरमा ने कहा।

बात दरअसल ये है कि अभी अम्मा के अलावा किसी को हमारे यहाँ आने के विषय में पता नहीं है। शाम होने से पहले हम घर चले गए तो सही रहेगा- ख़ुशी ने कहा।

नजाकत को समझकर मनोरमा ने ख़ुशी को घर जाने की अनुमति दे दी।

अगले दृश्य में...

देवयानी तैयार होकर पूजाघर में आती है। वहाँ आरती की थाली पहले से ही सजी हुई थी। मनोरमा भी देवयानी के पीछे खड़ी हो जाती है।

मनोरमा, ख़ुशी कहाँ चली गई ? देवयानी ने आरती की थाली उठाते हुए कहा।

ऊह कल जल्दी ही आ जाएंगी। आज ऊह का जल्दी जाइ का पड़ी - मनोरमा ने कहा।

ठीक है, बड़ी ही प्यारी बच्ची है- देवयानी ने कहा।

मनोरमा और देवयानी दोनों पहली बार एक साथ आरती करती है। आरती के बाद प्रसाद पाकर मनोरमा कहती है- सासूमाँ, आज सच में लग रहा कि हमरा नया जन्म हुआ रहा।

देवयानी कहती है- नया जन्म तो आज हमारा हुआ है। हमने अपने अहम और वहम में न जाने कितने सुंदर पलों को खो दिया। पर अब और नहीं। अब हम सब साथ रहेंगे।

जी सासूमाँ, हम यह सनसनी खबर अपने दुई बिटवा को भी सुनाई के आते हैं- मनोरमा ने चिहुककर कहा।

देवयानी कहती है- नहीं मनोरमा अभी उन्हें कुछ भी मत बताना।

जी सासूमाँ- कहकर मनोरमा के बढ़ते कदम रुक जाते हैं। वह कहती है चलिए सासूमाँ भोजन करते है। हमरा तो आज ख़ुशी से ही पेट भर गया। पर आपके साथ भोजन का सुअवसर हम न जाने देब। दोनों सास-बहु एक साथ भोजन करती है।

अगले दृश्य में...

फ्लाइट में अपनी सीट पर बैठे हुए अर्नव के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई देती है। वह सोचता है- वहाँ न जाने क्या चल रहा होगा?

पहली बार ऐसा हुआ है, जब नानी की तबियत खराब हुई और घर का कोई सदस्य घर पर मौजूद नहीं था।

रात क़रीब दो बजे अर्नव अपने शहर पहुँचता है। वह जब घर पहुंचता है तब सिवाय हरिराम के कोई और जागता हुआ नहीं मिला..

अर्नव सीधे अपने कमरे में जाता है और सो जाता है...

------------------------------------------

सुबह का सूरज लाल अंगारे की तरह लग रहा था। सूरज का लाल रंग क्रोध का प्रतीक न होकर प्यार का प्रतीक ही लगता है। सुबह का सूरज देखने पर मन सकारात्मक ऊर्जा से भरने लगता है। वातावरण में सकारात्मकता घुल रहीं थीं। आज मौसम का मिज़ाज भी बदला हुआ सा है। हवा में हल्की सी ठंडक महसूस होने लगी थीं । धूप भी अब गुनगुनी सी लग रहीं थीं।

शंखनाद व घड़ियाल की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान हो रहा था।

अर्नव नींद से जागता है। जागते ही वह बेसब्री से अपनी नानी से मिलने के लिए जाता है। जब वह नानी के कमरे में पहुँचता है, तो नानी उसे वहाँ नहीं मिलती है। वह नानी को ढूंढते हुए पूजाघर की ओर जाता है। पूजाघर के दृश्य को देखकर वह चौंक जाता है। अर्नव को लगता है वह कोई सपना देख रहा है।

पूजाघर में नानी और मनोरमा एक साथ आरती कर रहे थे। आरती समाप्ति के बाद देवयानी मनोरमा को प्रसाद देती है। मनोरमा प्रसाद लेने के बाद देवयानी के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेती है। देवयानी भी खुश होकर आशीर्वाद देते हुए कहती है- सदा सुखी रहो...

देवयानी पूजाघर से बाहर निकलने को मुड़ती है तो देखती है अर्नव पूजाघर के बाहर है। वह अर्नव की ओर बढ़ते हुए कहती है- आ गए भोंदू आप। शुभ दिवस कहते हुए वह अर्नव को प्रसाद देती है।

जी, नानी मैं तो रात को ही आ गया था। अब आपकी तबियत कैसी है?- प्रसाद लेते हुए अर्नव ने कहा।

ये तो आप ही देखकर बताइये भोंदू- नानी ने शरारती लहज़े में कहा।

देखने पर तो यहाँ बहुत कुछ बदल गया। आज तो लग रहा है जैसे सूरज पश्चिम से निकल गया- अर्नव ने मनोरमा को देखते हुए कहा।

नाही अर्नव बिटवा, सूरज एकदम सही डीरेक्शन मा उगत है। ई बात हम तौका बताए देना चाहते थे पर सासूमाँ हमका मना कर दिए। ई वास्ते हमरा मुँह साइलेंट हुई गवा- मनोरमा ने बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ इस बात को बताया।

मामी आज तो मेरा भी मन कह रहा कि जिस पत्थर को आप लोग पूजते हो, शायद वह भगवान ही है- अर्नव ने कहा।

ऐसा नहीं कहते भोंदू- देवयानी ने अर्नव को टोकते हुए कहा।

जो भी है, अच्छा लगा कि आप दोनों के बीच का मनमुटाव खत्म हो गया और मामी हम लोगों के साथ रहेगी- अर्नव ने कहा।

बातें तो होती रहेंगी। अर्नव बिटवा आप जल्दी से जाइ के तैयार होई जाओ। फिर हम सब एकसाथ चाय पर चर्चा करेंगे- मनोरमा ने कहा।

जी मामी- कहकर अर्नव वहाँ से चला जाता है। देवयानी अपने कमरे में चली जाती है। मनोरमा हरिराम को पुकारते हुए वहाँ से चली जाती है।

कुछ देर बाद डोर बेल बजती है। मनोरमा तेज़ रफ़्तार से दरवाज़े की ओर बढ़ती है। वह दरवाजा खोलते हुए बड़बड़ाती है- खूब खबर लेइ का पड़ी ई हरिराम की। इत्ता लेट काहे होइ गवा। जबकि जानत है सबकों सुबह की चाय सही समय पर चाही का पड़ी।

मनोरमा गुस्से से दरवाजा खोलती है और कुछ कहने वाली ही होती है कि सामने ख़ुशी को देखकर ख़ुद पर नियंत्रण करके मुस्कुराते हुए कहती- ख़ुशी बिटिया तुम आई हो। हम समझें रहे कि हरिराम आवत है।

ख़ुशी अंदर आते हुए मुस्कुराकर कहती है- आज तो आप गुस्से में लग रही है आँटी। नानीजी ने कुछ कहा है क्या ?

अरे नाही बिटिया! बात ई है कि उह ससुरा हरिराम आज अब तक नहीं आत रहे। हमका सुबह चाय लागत है। चाय पीवन के बाद ही हम रीचार्ज होइ है- मनोरमा ने हरिराम को कोसते हुए कहा।

इतनी सी बात, चाय हम बना देते है। बस आप हमें कितने कप चाय बनानी है औऱ किचन कहाँ है ये बता दीजिए-  ख़ुशी ने कहा।

ई तो बहुत ही बढ़िया बात हुई। ई बहाने तुम्हरे हाथ की बनी चाय का स्वाद भी चख लेब। चार कप, एक तुम्हरी भी- मनोरमा ने उँगली के इशारे से किचन का रास्ता बताते हुए कहा।

ख़ुशी किचन की ओर चली जाती है। मनोरमा भी वहाँ से चली जाती है।

ख़ुशी किसी प्रोफेशनल टी स्टॉल वाले की नकल करते हुए चाय बनाती है। पहले डालो दूध फिर लो एक उबाल फिर दो उसमें चायपत्ति और शक्कर डाल। अंत में अदरक और इलाइची का होगा धमाल औऱ बन गई खुशी की स्पेशल चाय.... चाय छानते हुए ख़ुशी ने कहा- वाह उस्ताद वाह।

ख़ुशी चाय के कप ट्रे में रखती है और सबसे पहले मनोरमा के रूम में जाती है।

चाय का प्याला ऱखते हुए खुशी कहती है- ये लीजिये आँटी गर्मागर्म चाय हाजिर है।

मनोरमा प्यार से खुशी को देखती है। वह झट से चाय का प्याला उठा लेती है और एक सिप पीकर कहती है- वाह, एक ही सिप मा आनंद आई गवा। इत्ती बढ़िया चाय हम आजतक नाही पिये।

धन्यवाद आँटी, अब हम नानीजी को चाय देकर आते हैं- कहकर ख़ुशी रूम से बाहर चली गई।

ख़ुशी नानीजी के रूम के बाहर खड़ी होकर कहती है- क्या हम अंदर आ सकते हैं नानीजी ?

क़िताब पढ़ रहीं देवयानी ने नजरें उठाकर खुशी की ओर देखा और कहा- आपको अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। आप बेधड़क कभी भी हमारे कमरे में आ सकती हो ख़ुशी।

ख़ुशी मुस्कुराते चेहरे के साथ कमरे में प्रवेश करती है। चाय का प्याला नानीजी की ओर बढ़ाते हुए वह कहती है- सुप्रभात नानीजी ! ये लीजिये ख़ुशी स्पेशल चाय।

चाय का प्याला लेते हुए देवयानी कहती है- अरे ! आपने तकलीफ क्यों की ?

नानीजी इसमें तक़लीफ़ की क्या बात हुई- ख़ुशी ने अपनापन जताते हुए कहा।