Is Pyaar ko kya naam dun - 7 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 7

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 7

(7)

घड़ी एक बजा रहीं थी। टिक-टिक करते घड़ी के कांटे भी मानो आगे भागकर पायल के मन की तरह अपनी अम्मा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हो।

बाहर ऑटोरिक्शा रुकने की आवाज सुनकर पायल खुशी से झूम उठी औऱ मधुमती को पुकारते हुए कहती है- बुआजी जल्दी आइए। वो लोग आ गए हैं।

हाथ पोछते हुए मधुमती किचन से बाहर आती है। दरवाजे की घण्टी बजती है। पायल तेज़ कदमों से दरवाज़े की ओर बढ़ती है। वह उत्सुकता से दरवाजा खोलती है।

सामने गरिमा, ख़ुशी और शशिकांत खड़े थे।

पायल गरिमा को गले से लगा लेती है।

गरिमा हँसकर कहती है- मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा जैसे हॉस्पिटल से नहीं कोई जंग जीतकर घर लौट रही हूँ।

जंग नहीं हम सबके दिलों को जीता है अम्मा आपने- पायल गरिमा को घर के अंदर ले जाते हुए बोली।

गरिमा जैसे ही घर में प्रवेश करती है तो घर की साज़- सजावट देखकर चौंक जाती है। उसे लगता है जैसे वह पहली बार गृहप्रवेश कर रही है।

ये सब क्या है पायल- आश्चर्य से गरिमा ने पूछा ?

सेलिब्रेशन... आपके सकुशल घर आने की ख़ुशी में- ख़ुशी ने पीछे से आकर गरिमा के गले में अपनी बाहें डालकर कहा।

ख़ुशी को उसकी अम्मा मिल जाने का सेलिब्रेशन- आरती की थाली लेकर आते हुए मधुमती ने कहा और गरिमा के पास आकर उसे कंकु का टीका लगा दिया।

पायल का रिश्ता पक्का हो जाने का सेलिब्रेशन- शशिकांत ने घर में प्रवेश करते हुए कहा।

यह सुनकर सभी शशिकांत की ओर देखने लगते हैं। आज तो जैसे गुप्ता परिवार पर खुशियां मेहरबान हो गई थी। एक के बाद एक ख़ुशी के पल ऐसे निकलते जा रहें थे जैसे प्याज़ के छिलके निकलते जाते है।

अरे वाह बाबूजी आपने तो बहुत ही बढ़िया ख़ुशखबरी सुनाई है- ख़ुशी ने ताली बजाते हुए कहा।

देखा गरिमा, ख़ुशी को अपनाते ही कितनी सारी खुशियां चली आई- शशिकांत ने कहा।

जी सच ही कहा आपने- सहमति में सिर हिलाकर गरिमा ने कहा।

अच्छा अम्मा अब आप आराम कर लीजिए। फिर हम सब एकसाथ बैठकर आपकी पसंद के खाने का लुफ़्त उठाएंगे- पायल ने कहा।

जीजी ठीक कह रही है अम्मा- ख़ुशी ने कहा।

मधुमती और शशिकांत ने भी दोनो बच्चियों की बात का समर्थन किया।

ख़ुशी गरिमा को लेकर उनके रूम में चलीं गई। मधुमती और पायल किचन में चली जाती है। शशिकांत भी नहाने के लिए गुसलखाने में चले जाते है।

गरिमा अपने कमरे में आराम करती है। ख़ुशी उन्हें चादर औढ़ाती है तब गरिमा की नज़र खुशी के सुने गले पर पड़ती हैं। वह ख़ुशी से पूछती है- ख़ुशी तुम्हारी चेन कहाँ है ?

ख़ुशी चेन कहाँ है ?- गरिमा ने इस बार ज़ोर देकर पूछा।

ख़ुशी के चेहरे की हवाइयां उड़ जाती है। वह आलटाली करते हुए बात को बदलने का प्रयास करती है। खुशी कहती है- अम्मा, आप आराम करो। मैं किचन में जाकर देखती हूँ, दलिया बना या नहीं?

बात क्या है खुशी ? अब अपनी अम्मा से भी छुपाओगी ?- गरिमा ने नाराजगी जताते हुए कहा।

ख़ुशी कुछ कहने वाली ही होती है कि तभी पायल कमरे में आती है और कहती है- अम्मा अगर आपको ठीक महसूस हो रहा है तो एक सरप्राइज बाक़ी है।

ख़ुशी ने राहत की सांस ली। खुशी के चेहरे पर ऐसा सुकून था जो सुकून किसी विद्यार्थी के चेहरे पर उस वक़्त देखने को मिलता है जब उसने होमवर्क नहीं किया होता है, और उसकी बारी आने पर छुट्टी की घण्टी बज गई हो।

गरीमा कुछ कहती उसके पहले ही ख़ुशी कहती है- अरे वाह जीजी !

हम तो चले सरप्राइज देखने। ख़ुशी फुर्ती से कमरे से बाहर निकल जाती है। वह गरिमा से बचते-बचाते ऐसे जाती है जैसे वह कोई चोर हो और गरिमा जेलर।

हॉल में मधुमती और शशिकांत पहले से ही मौजूद थे। ख़ुशी भी खरगोश सी उछलती-कूदती वहाँ आती है। उसे देखकर मधुमती कहती है- सनकेश्वरी तुम्हारी नाक भी खोजी कुत्ते की तरह है। कही भी कुछ पकवान बना नहीं कि तुम आ धमकती।

ख़ुशी मधुमती से मसखरी करते हुए- इसमें भी दोष आपके इन हाथों का ही है बुआजी। न ये हाथ इतना स्वादिष्ट खाना बनाते न हम यूँ खींचे चले आते।

बातें बनाने में तो तुम्हारा कोई जवाब नहीं- मधुमती ने पतीले को सेंटर टेबल पर रखते हुए कहा।

गरिमा औऱ पायल भी हॉल में आते है।

गरिमा अब भी सवालिया निगाहों से ख़ुशी को देखती है। ख़ुशी गरिमा से नजरें चुराती है और किसी न किसी बहाने से गरिमा के सामने आने से बचती रहती है। वह कभी किचन से कोई सामान लेने चली जाती है तो कभी पूजाघर भोग लगाने के बहाने चली जाती है।

जब सभी लोग हॉल में एक साथ होते हैं, तब पायल सबका ध्यान अपनी औऱ खींचते हुए कहती हैं- देवियों औऱ सज्जनों, जैसा की आप सब जानते है कि आज बहुत ही खुशनुमा दिन है। इस दिन को यादगार बनाने के लिए बुआजी और मैंने अम्मा के लिए एक छोटा सा सरप्राइज प्लान किया है। तो पेश है सबकी खिदमत में यादों की रेलगाड़ी.....

प्रॉजेक्टर की पटरी पर पुरानी यादों की रेलगाड़ी चलने लगती है। गरिमा की शादी से लेकर पायल के जन्म, ख़ुशी के घर आने तक के बीते खूबसूरत लम्हों से सजे वीडियो और तस्वीरें थीं। यादों का सफ़र जब समाप्त हुआ तब सभी के होठों पर मुस्कान लेकिन आँखों में नमी थीं। पुरानी यादों के किस्सों से सराबोर सब कुछ पल के लिए उन लम्हों में खोए रहें।

तालियों की गड़गड़ाहट से गरिमा भी अतीत की किताब को बंद कर वर्तमान में आ जाती है। सभी पायल की तारीफ़ करते हैं। उसने सच मे बहुत खूबसूरती से पुराने पलों को एकसाथ जोड़ दिया था।

मधुमती सोफ़े से उठकर बाक़ी बैठे सदस्यों के सामने आती है- चाहें छुक-छुक करती रेलगाड़ी हो या यादों की रेलगाड़ी यदि कुछ खाने-पीने की बात न हो तो सफ़ऱ का मज़ा अधूरा ही रहता है। तो लीजिये मधुमती स्टॉल के व्यंजनों का लुफ़्त- मधुमती ने हाथ से डायनिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए कहा।

ख़ुशी दौड़कर डायनिग टेबल की ओर जाती है और वहाँ बर्तनों में सजे पकवान देखकर कहती है- वाह बुआजी आपने तो छप्पनभोग ही बना दिए। हमारे मुँह में तो इनकी सजावट देखकर ही पानी आ गया।

अम्मा-बाबूजी जल्दी आओ। हमें तो बहुत भूख लग रही है- कुर्सी पर बैठते हुए ख़ुशी ने कहा।

सभी लोग एक साथ डायनिग टेबल पर बहुत दिनों बाद भोजन का आनंद ले रहे थे।

जीजी भोजन बहुत ही स्वादिष्ट बना है। खासकर सूजी का हलवा- शशिकांत ने कहा।

हाँ जीजी सच में मन प्रसन्न हो गया- गरिमा ने शशिकांत की बात से सहमति जताते हुए कहा।

वाक़ई बुआजी खाने के साथ उंगलियां भी चबा ले ऐसा स्वादिष्ट बनाया है। हर एक डिश लाजवाब है- ख़ुशी ने उंगलियां चाटते हुए कहा।

हाँ बुआजी हर एक दाने में आपका प्रेम घुल गया- पायल ने कहा।

सभी ने दिल खोलकर मधुमतीं द्वारा बनाए भोजन की तारीफ़ की जिसे सुनकर मधुमती गदगद हो गई। वह कहती है- हमारी मेहनत सफ़ल हो गई।

भई आज तो सच में आनंद आ गया- शशिकांत ने कुर्सी से उठते हुए कहा।

गरिमा ने कहा- सच आज का दिन कल से बहुत विपरीत रहा। कहाँ कल हम रात तक ख़ुशी के लिए चिंतित रहें औऱ आज ढ़ेर सारी खुशियां चली आई जैसे खुशियों की लॉटरी लग गई हो।

मधुमती भी आशीर्वाद देते हुए कहती है- मधुसूदन की कृपा सदैव बनी रहे।

शशिकांत, गरिमा, मधुमती औऱ पायल बातों में मशगूल हो जाते हैं और ख़ुशी मन ही मन शिवजी को याद करती है। शिवजी के साथ स्वतः ही अर्नव की याद बिन बुलाए मेहमान की तरह ख़ुशी के जहन में पसर जाती है।

उसका विचार आते ही एक अजीब सा एहसास ख़ुशी के मन को गुदगुदा जाता है। वह सोचती हैं- कौन था वह ? आखिर हम उसी के ऑफिस क्यों पहुँचे ? न हम वहाँ जाते न अम्मा हमारे लिए परेशान होती और न ही आज का ये खूबसूरत सा दिन नसीब होता। क्या उसे शिवजी ने ही हमारे लिए भेजा था ? एक बात समझ नहीं आई.. जब वो भगवान को मानता ही नहीं है तो मन्दिर में क्या कर रहा था ? किसलिए और किसके लिए वहाँ आया था ? औऱ जब वह ऑफिस आया तो दौड़कर हम उससे क्यों लिपट गए ? उस वक़्त कितना अपना सा लगा था वो। एक अजनबी पर इतना भरोसा कैसे कर लिया हमने कि उसी के साथ इतनी रात को घर आ गए।

ख़ुशी को ख्यालो में खोया हुआ देखकर पायल ख़ुशी के पास आकर उसके चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए कहती है- कौन है वो ख़ुशी जो तुम्हें बन्द आँखों से भी नज़र आ रहा है ?

ख़ुशी ख्यालों के कारवाँ से बिछड़ जाती है और पायल से नजरें चुराकर कहती है- हम क्यों उस शिव मंदिर वाले को बंद आँखों से देखेंगे....

शिव मंदिर वाला....?- हैरत से पायल ने पूछा।

ख़ुशी अपने आप को संभालते हुए कहती है- शिवजी जीजी और कौन होंगा..शिव मंदिर वाला ?

अच्छा जी तो शिव जी अब शिव मन्दिर वाला हो गए- पायल ने चुटकी लेते हुए कहा।

हाँ जीजी...खैर हमारी छोड़ो और ये बताओ की हमारे होने वाले जीजाजी कैसे है ? - ख़ुशी ने पायल को छेड़ते हुए कहा।

तुम खुद ही देख लेना। हम क्यों बताएं कि कैसे है ?- इतराकर पायल ने कहा।

वाह जीजी ! तुम तो अभी से ही पलटी खा गई। अभी तो रिश्ता ही तय हुआ है और तुम्हारे तेवर तो बहुत बदले हुए लग रहे है। हमने तो सुना था शादी के बाद लोग बदल जाते हैं। पर तुम तो बहुत ही एडवांस निकली- ख़ुशी ने मजाकिया अंदाज में कहा।

हम तो अब ऐसे ही रहेंगे- पायल ने रूठते हुए कहा।

ख़ुशी पायल की बात सुनकर मुस्कुराते हुए अचानक गम्भीर हो जाती है। वह कहती है- क्या हुआ जीजी, हमसे कोई गलती हो गई है क्या ?

गलती नहीं गुनाह- पायल ने ख़ुशी के गम्भीर चेहरे को देखते हुए शरारती लहज़े में कहा।

ऐसा क्या कर दिया जीजी ?- ख़ुशी ने पायल से पूछा।

तुम हमें अकेला छोड़कर गायब हो गई। हमने कितना रास्ता देखा तुम्हारा।

और तुम थी कहाँ ? अम्मा की तबीयत के कारण हम पूछ ही नहीं पाए थे।

ख़ुशी ने राहत की सांस ली। वह पायल को नाटकीय ढंग से उस दिन घटित सारा घटनाक्रम बताती है।

पायल ख़ुशी की बात सुनकर कहती है। अच्छा हुआ तुम सुरक्षित घर आ गई हम सब बहुत घबरा गए थे। शायद अम्मा की तबियत भी इसी चिंता में बिगड़ गई थी। वैसे ख़ुशी वह शिव मंदिर वाला कही यहीं नवाबज़ादा तो नहीं है ? पायल ने ख़ुशी के मन की थाह लेते हुए शरारती लहज़े में कहा।

नहीं जीजी- ख़ुशी ने पायल को यक़ीन दिलाते हुए कहा।

ख़ुशी पायल से कहती है जीजी हम तो छत पर टहलने जा रहे हैं। तुम चलोगी ?

नहीं ख़ुशी तुम जाओ हमें यहाँ सब सामान समेटना है। पर अभी तो दिन चढ़ गया तुम भी मत जाओ। रात को चलेंगे- पायल ने कहा।

ठीक है जीजी। हम भी तुम्हारी मदद करवा देते है- ख़ुशी ने कुर्सी से उठते हुए कहा। दोनों बहनें डायनिग टेबल से सामान उठाकर किचन में ले जाती है।

अगले दृश्य में ट्रैफिक जाम में फंसे हुए अर्नव की नज़र गौरीशंकर मन्दिर पर पड़ती है। मन्दिर देखकर ख़ुशी का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता है। ऑफिस में ख़ुशी का अर्नव से लिपट जाने का ख्याल बार-बार अर्नव को परेशान करता है। वह सोचता है मैं बार-बार न चाहते हुए भी उस लड़की के बारे में क्यों सोचने लगता हूँ। लगता है अब भी कुछ बाक़ी रह गया है। ऐसा लग रहा है कि कुछ बहुत कीमती सामान उसके पास छूट गया है। कुछ तो बात है। पर क्या बस वहीं समझ नहीं आ रही। अर्नव कशमकश में था तभी अंजली का फ़ोन आ जाता है। अर्नव कॉल रिसीव करता है- अंजली कहती है। अब नानी की तबियत कैसी है अर्नव ?

अर्नव कहता है- पहले से ठीक है दीदी।

हम भी जल्दी ही लौट आएंगे- अंजली ने कहा।

चिंता की कोई बात नहीं है दीदी । मामी है वहाँ- अर्नव ने कहा।

ट्रैफिक क्लियर हो गया था। अच्छा दीदी मैं बाद में बात करता हूं - अर्नव ने कॉल डिस्कनेक्ट किया औऱ कार स्टार्ट कर दी।

अगले दृश्य में...

ख़ुशी काम से फ्री होकर अपने कमरे में चली जाती है। पायल भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगती है। मधुमती अपने कमरे में माला जपती है। शशिकांत अपनी दुकान पर चले जाते हैं।

ख़ुशी पलँग पर लेटी हुई फ़िर से अर्नव के खयाल में खो जाती है। ख्यालों की दुनिया मे खोई हुई ख़ुशी को इस बात का भी पता नहीं चलता है कि कब गरिमा उसके कमरे में आई।

कहाँ खोई हुई हो ख़ुशी? कही चेन के बारे में कोई कहानी तो नहीं गढ़ रहीं- सख़्त लहज़े में गरिमा ने कहा।

ख़ुशी उठकर बैठ जाती है। अम्मा वो..

ख़ुशी अचकचा जाती है और अपनी बात भी नहीं कह पाती।

गरिमा पलंग पर बैठते हुए प्यार से ख़ुशी से कहती है- देखों खुशी हमें उस सोने के टुकड़े की कोई चिंता नहीं है पर वह हमारी जीजी से जुड़ी हुई याद है जो उनकी आखिरी निशानी है।

अठारह साल तक बहुत सम्भाल कर रखी थी हमने ताकि तुम्हें सौंप सकें।

तुम्हारे अठारहवें जन्मदिन पर जब हमने तुम्हें वह चेन पहनाई थी तब तुम बहुत खुश हुई थी और यह जानकर रोई भी थी कि वह तुम्हारी माँ की है।

तबसे अब तक हमने वह चेन तुम्हारे गले में ही देखी हैं बिटिया। अब सच बताओ कहाँ गई ? तुमसे कहीं खो गई है क्या ?

ख़ुशी ने गरिमा की आँखों से आँख मिलाकर हिम्मत करके कहा- नहीं अम्मा चेन खोई नहीं है। वह सही सलामत भी है बस हमारे पास नहीं है।

तो कहाँ है ? गरिमा ने आश्चर्य से पूछा।

अम्मा बात दरअसल ये है कि हमने रुपये के बदले चेन जमा करके ही हॉस्पिटल की रसीद बनवाई थी। फिर जब हम रुपये देकर चेन लेने गए तब पता चला कि चेन एक ऑन्टी ने ले ली है। औऱ अब वह चेन के बदले उनके यहाँ जॉब करने का कह रही है- ख़ुशी ने गरिमा को पूरी घटना बताते हुए कहा ।

अजीब बात है। उस औरत की कोई पहचान है? हम अभी उसके ख़िलाफ़ पुलिस कंप्लेंट कर देते हैं। फिर अक्ल ठिकाने आ जाएगी।

गरिमा की बात सुनकर ख़ुशी कहती हैं- अम्मा दिखने में तो वह आंटी भले औऱ संपन्न घर की लग रही थीं। पुलिस में शिकायत करने से पहले एक बार आप उनसे फ़ोन पर बात कर लो।

पलंग से उठकर ख़ुशी बुकसेल्फ़ की ओर जाते हुए कहती है- वह एक क़िताब में से विज़िटिंग कार्ड निकालती है। कार्ड गरिमा को देते हुए वह कहती है- ये लीजिये अम्मा, इस कार्ड में उनका नम्बर है। आप एक बार उनसे बात कर लीजिए।