Is Pyaar ko kya naam dun - 4 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 4

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 4

(4)

अर्नव की ज़हर उगलती कड़वी बातों को सुनकर ख़ुशी गुस्से से कहती है - बस कीजिए मिस्टर अर्नवसिंह रायजादा । आपके लिए रुपये सबकुछ होंगे जिससे आप जो चाहे खरीद सकते हैं, जिसे चाहें जो कह सकते हैं। हम न ही आपके गुलाम है और न ही हमें आपके इन कागज़ के टुकड़ों की चाह है। अब तक तो हम सोच रहे थे कि आप भोले बाबा द्वारा भेजा हुआ कोई फ़रिश्ता है जो हमारी रक्षा के लिए आए हैं। पर अब हमें समझ आ गया कि आप ही इस लंका के रावण है। हमने आपसे मन्दिर में जो कहा उस छोटी सी बात से आपके अहम को इतनी ठेस पहुंच गई कि आपने हमारा अपहरण करवा दिया।

और अब हमें ही रुपये का लालची बताकर ख़ुद को राम साबित करना चाह रहे हो?

वाह ! आप तो बहुत बड़े ड्रामेबाज निकले। आपने सोचा होगा कि लड़की के सामने नोट फेंकूँगा और वह मेरी तरफ़ खींची चली आएंगी। शायद आपको जानकारी नहीं है, पर हम बता देते हैं, हम भी ख़ुशी कुमारी गुप्ता हैं, पैसों से आपके जितने अमीर न सही पर संस्कारो में आपसे कही अधिक अमीर है।

गुस्से से अर्नव कहता है- ओह शट अप... तुम जैसी लड़कियों का यहीं नाटक रहता है। जब बात बनती न दिखे तो पांसा पलट दो। तुम्हारे यह पैंतरे कही औऱ जादू दिखा पाए होंगे।

यहाँ तुम्हारी सारी चालबाजी उल्टी ही पड़ेगी। क्या कहा तुमने ? मैंने तुम्हारा किडनैप करवाया ? और किडनैप करके रखा कहाँ ? मेरे ऑफिस में , मेरे ही कैबिन के रूम में...

कहानी तो बहुत अच्छी बनाई। अब जब यहां पुलिस आएंगी तब यहीं कहानी उनको भी सुनाना। औऱ बताना की तुम यहाँ मेरे केबिन में क्या कर रही हो ?

शायद तुम बता न पाओ। कोई बात नहीं मैं ही तुम्हारी मदद कर दूँगा और बताऊंगा कि कैसे तुम मन्दिर से पीछा करते हुए मेरे रूम तक आ गई ।

कितने अच्छे संस्कार है न तुम्हारे ?

सीधे किसी अनजान अमीर लड़के के रूम में आ गई वो भी इतनी रात को ...

अर्नव की बात सुनकर ख़ुशी की आँखे भर आती है। उससे पहले कभी किसी ने इस तरह से बात नहीं कि थी, उसकी मौसी गरिमा ने भी ऐसे शब्द नहीं कहे थे जो मन को ही नहीं वरन आत्मा को भी छलनी कर रहे थे।

ख़ुशी को चुपचाप खड़ा हुआ देखकर गुस्से से चिल्लाकर अर्नव कहता है - गेट ऑउट.....

ख़ुशी सहम जाती है औऱ भागकर अर्नव के कैबिन से बाहर चली जाती है।

अर्नव भी जाने लगता है तभी उसके फ़ोन की रिंग बजने लगती है। माखन का कॉल था। वह अर्नव से कहता है, सर फ़ाइल मिल गई ?

हाँ माखन, कल ग्यारह बजे मुझे सिक्योरिटी में लगा हर व्यक्ति मीटिंग हॉल में दिखना चाहिए। कोई भी अगर छुट्टी पर हो तो उसकी छुट्टी कैंसिल कर दो।

जी बिल्कुल सर- माखन ने कहा।

माखन सिक्योरिटी की बात से समझ गया और उसने तय किया कि इसी समय सच बता देना सही रहेगा। अभी सच कह देने से शायद जॉब बच जाए। कल कहूँगा तो बहुत देर हो जाएगी।

सर आज गलती से ड्राइवर अनुलता मेडम की जगह किसी लड़की को ले आया था जो बेहोशी की हालत में कार में थी और उस समय मैं घबरा गया था और लड़की को आपके केबिन में.... अचकचाकर माखन ने कहा।

माखन की बात सुनकर अर्नव शर्मिंदा महसूस करता है। वह माखन को डांटकर कहता है- वो सब ठीक है पर लड़की को अकेला छोड़कर तुम लोग घर कैसे चले गए ?

बहुत बड़ी ग़लती हो गई सर । शूटिंग की व्यस्तता के चलते ध्यान ही नहीं रहा। सॉरी सर- शर्मिंदा होते हुए माखन ने कहा।

अर्नव कॉल डिस्कनेक्ट करता है औऱ लिफ़्ट की ओर जाता है। ग्राउंड फ्लोर पर पहुँचते ही वह मेनगेट की तरफ़ जाता है। अर्नव वहाँ खड़े गॉर्ड से ख़ुशी के बारे में पूछता है- अभी ऑफिस से जो लड़की निकली थी वो किस तरफ़ गई है ?

गॉर्ड ने उंगली के इशारे से दाहिनीं साइड को दिखाते हुए कहा- उस तरफ़ गई है सर।

अर्नव फुर्ती से अपनी कार में बैठता है औऱ कार स्टार्ट करके कार को दाहिनीं दिशा में मोड़ लेता है। अर्नव सड़क के दोनों तरफ़ देखता जाता है। कुछ दूर कार ड्राइव करने पर अर्नव को ठंड से ठिठुरती बीच सड़क पर चलती हुई एक लड़की दिखी। वह ख़ुशी ही थी। अर्नव ने ख़ुशी के ठीक पास में जाकर कार का ब्रेक लगाया। कार रुक गई औऱ ख़ुशी भी। कार से उतरकर अर्नव ख़ुशी के पास जाकर कहता है- कार में बैठो, मैं तुम्हें घर ड्रॉप कर देता हूँ।

ख़ुशी अचम्भित होकर अर्नव को देखती है, पर कहती कुछ भी नहीं है। बिना अर्नव को देखें वह अपने कदम आगे बढ़ा देतीं है। अर्नव ख़ुशी के पीछे जाता है और ख़ुशी का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करता है।

इस बार ख़ुशी गुस्से से अर्नव को देखती है औऱ अपना हाथ छुड़वाते हुए कहती है- अब औऱ क्या कहना बाक़ी रह गया है कि यहाँ भी चले आए।

औऱ पहले भी इसी तरह से किसी ने कार में बिठा लिया औऱ फिर हम कब कैसे आपके कैबिन पहुँच गए हमें कुछ याद नहीं। अब आप खुद कार में बैठने का कहकर फिर से न जाने कहाँ छोड़ दो। चिंतित स्वर में खुशी कहती है। हमारे घरवाले कितने परेशान हो रहे होंगे?

इसीलिए कह रहा हूँ कि गाड़ी में बैठ जाओ। रात बहुत हो गई है। अकेले जाना ठीक नहीं है- अर्नव ने इस बार फिक्र करते हुए कहा।

ख़ुशी को अर्नव की बातों से अपनापन महसूस हुआ। न चाहते हुए भी वह कार में बैठ जाती है। एक अनजान डर उसके मन में घर बना रहा था। बार बार उसके मन में यही सवाल उठता-

हम इतनी रात को इस अजनबी लड़के पर भरोसा करके इसके साथ जा रहें।

क्या यह सही निर्णय है ?  हमें नीचा दिखाने के लिए इनकी कोई नई चाल तो नहीं है ? अचानक रावण राम कैसे बन गया ? कुछ तो चल रहा है इनके शैतानी दिमाग में।

तुमने कुछ कहा- अर्नव ने ख़ुशी को देखते हुए कहा।

नहीं तो.. हाँ वो हम.. अचकचाकर ख़ुशी ने कहा।

व्हाट नॉनसेंस..क्या हाँ-ना कर रही हो ?

हम सोच रहे थे कि आपके फोन से अपने घर कॉल कर दे ताकि हमारे घरवाले चिंता न करें।

अर्नव ने अपनी पॉकेट में से फ़ोन निकालना चाहा तो पता चला कि फ़ोन तो ऑफिस में ही रह गया। अर्नव ने ख़ुशी से कहा- मेरे पास फ़ोन नहीं है।

ख़ुशी का शक अब यकीन में बदल गया। वह मन में ख़ुद को कोसने लगती है। क्या जरूरत थी गाड़ी में बैठने की ? इतना बड़ा बिज़नेसमैन औऱ फ़ोन नहीं है। बात कुछ हजम नहीं हुई। दाल में कुछ तो काला जरूर है।

ख़ुशी के घर पर सुबह तक तो उत्सव का माहौल था औऱ शाम होते हैं ही घर ऐसा शांत सा हो गया जैसे कोई तूफ़ान आया और घर के चेन, सुकून औऱ खुशियों को तबाह कर गया हो।

सिर पर कपड़ा बांधे मधुमती गरिमा से कहती है- हमें तो घर में कदम रखते ही आभास हो गया था कि कुछ अनहोनी होगी। हमने पूछा भी था कि ख़ुशी कहाँ पर है ? ऐसे अवसर पर मन्दिर जाने की बात हमें समझ ही नहीं आई थीं। अब सच-सच बताओ गरिमा कि ख़ुशी कहाँ गई है ?

गरिमा को अपनी गलती का एहसास हो गया था। वह रोते हुए मधुमती को सब सच बताते हुए कहती है। मैंने ही खुशी से कहा था कि जब तक मेहमान घर में रहेंगे तब तक घर से बाहर ही रहना। मुझे क्या पता था कि मेरी बात से वह इतनी नाराज़ हो जाएगी कि घर ही नहीं आएगी।

हे मधुसूदन ! ये क्या अनर्थ कर दिया गरिमा तुमने.. अपने दोनों हाथों को माथे पर रखते हुए मधुमती ने कहा।

गरिमा की बात सुनकर पायल अपनी माँ को सवालिया नज़रों से देखती हैं । मानो उसकी नजरें शिकायत करके पूछ रहीं हो- आपने ऐसा क्यों किया ? इतनी नफ़रत क्यों है ख़ुशी से ? क्या बिगाड़ा है उसने आपका ?

गरिमा लज्जित होकर अपनी नजरें नीचे कर लेती है औऱ अपने पल्लू से मुँह छुपाते हुए रोने लगती हैं।

पायल शशिकांत को कॉल करती है औऱ ख़ुशी के बारे में पुछती है। हर बार की तरह शशिकांत वहीं उत्तर देते हैं कि ख़ुशी का कही कोई पता नहीं चला। शशिकांत पायल को बताते हैं कि आज मशहूर गायिका अनुलता शूटिंग के लिए आई हुई थी। हो सकता है ख़ुशी शूटिंग देखने चली गई हो। अब मैं शूटिंग स्थल पर जाकर पता करता हूं।

शशिकांत की बात सुनकर उदास पायल का चेहरा ख़ुशी के लौट आने की आशा से चमक उठता है। आशा की यह किरण ऊषा के सूर्य सी पायल के मन से दुःख रूपी अंधकार को मिटा देती है।

अगले दृश्य में....

अर्नव की कार शिव मंदिर के सामने रुकती है। अर्नव ख़ुशी से कहता है।

अपने घर का पता बताओ।

शिव मंदिर को देखकर ख़ुशी के मन को सुकून मिलता है। वह राहत की सांस लेती है। मन्दिर को देखकर ख़ुशी को अर्नव के साथ हुई सारी बातें याद आ जाती है।

अर्नव दोबारा से ख़ुशी से कहता है- घर का पता तो याद है न ?

ख़ुशी विचारों के भंवर जाल से बाहर आ जाती है औऱ अर्नव को देखकर बड़ी प्रसन्नता से चहकते हुए अपना पता बताती है।

ये जो सीधा रास्ता है न बस इधर ही है हमारा घर । फ़ेमस आइसक्रीम के ठीक बगल वाला घर है हमारा।

अजीब बात है सीधे रास्ते पर टेढ़े लोग रहते हैं- अर्नव बुदबुदाते हुए कहता है औऱ हल्का सा मुस्करा देता है ।

कुछ कहा आपने- ख़ुशी ने अर्नव से पूछा।

नहीं- गम्भीर स्वर में अर्नव ने कहा।

रात को सड़क सुनसान थी और आसपास के सभी घरों के दरवाज़े बन्द थे। एक्के-दुक्के घरों से ही रोशनी झिलमिला रही थी। अर्नव की गाड़ी ख़ुशी के घर के ठीक सामने जैसे ही रुकती है, गाड़ी की आवाज़ सुनकर मधुमती, पायल औऱ गरिमा चिंतित होकर घर के बाहर आते हैं।

ख़ुशी भी चीते की फुर्ती सी गाड़ी से बाहर निकलती है औऱ दौड़कर अपने घर की ओर जाती है। उसे आता हुआ देखकर गरिमा भी अपने कदम ख़ुशी की तरफ़ बढ़ाती है औऱ ख़ुशी के नजदीक आते ही उसे कसकर गले लगा लेती है।

ख़ुशी गरिमा के बदले स्वभाव से भावुक हो जाती है और कहती है- हम ठीक है अम्मा।

ख़ुशी के मुँह से अम्मा सुनकर गरिमा के मन को ऐसा सुकून मिलता है जैसे बरसों से बिछड़ी उसकी बेटी उसे मिल गईं।

आँसू पोछते हुए मधुमती भी गरिमा औऱ ख़ुशी के नजदीक आती है। पायल भी तेज़ कदमों से मधुमती के साथ आगे बढ़ती है।

ई देखों ! माँ-बेटी का मिलन समारोह। तनिक एक नज़र हमरे ऊपर भी डाल लो सनकेश्वरी। कब से तुम्हारी सनक को देखने के इंतजार में है औऱ तुम हो कि ग़ायब ही हो गई। मधुमती ख़ुशी के सिर पर प्यार से हाथ फेरती है। ख़ुशी झुककर मधुमती के पैर छूती है।

मधुमती आशीर्वाद देते हुए कहती है- दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करो बिटिया।

कहां गायब हो गई थी ख़ुशी ? हमारी तो जान ही निकल जाती जो औऱ थोड़ी देर लगा देती आने में- पायल ने फ़िक्र जताते हुए कहा।

ख़ुशी पायल के होठों पर अपना हाथ रखते हुए कहती है- ऐसा न कहो जीजी। शुभ-शुभ बोलों। ख़ुशी पायल को गले लगा लेती है।

अर्नव गाड़ी में बैठे हुए ख़ुशी को अपने परिवार से मिलते हुए देखता है। जब ख़ुशी की नज़र अर्नव से मिलती हैं तब अर्नव अपनी नजरें हटाकर गाड़ी स्टार्ट कर देता है औऱ वहाँ से चला जाता है।

ख़ुशी अर्नव की गाड़ी को तब तक देखते रहती है जब तक गाड़ी उसकी नजरों से ओझल नहीं हो जाती।

ख़ुशी किसे देख रहीं हो ?- पायल ने भी उसी दिशा में देखते हुये कहा जिस दिशा में ख़ुशी की नजरें थीं।

किसी को नहीं जीजी। बाबूजी कहाँ है ?

अरे ! मैं तो तुम्हारे लौट आने की ख़ुशी में बाबूजी को बताना ही भूल गई कि तुम घर लौट आई हो। पायल शशिकांत को कॉल करती है।

हेलो ! हाँ बाबूजी ख़ुशी घर आ गई है। आप भी जल्दी से घर आ जाइये- पायल ने यह बात अपने बाबूजी को इस तरह से बताई जैसे भक्त के घर भगवान आ गए औऱ वह भावविह्वल हो झूम उठा हो।

बहुत ही बढ़िया खबर सुनाई पायल बिटिया । अब लग रहा जैसे तुम्हारे इन शब्दों ने निर्जीव शरीर में प्राण फूँक दिए। मैं जल्दी ही घर आता हूँ- कहकर शशिकांत ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

पायल से फोन पर बात कर लेने के बाद शशिकांत ने अपनी आँखों से चश्मा उतारा औऱ आँसू पोछते हुए बोले- भगवान तेरा लाख-लाख शुक्रिया।

खुशी अब भी उसी दिशा में देख रही होती है जिस दिशा में अर्नव की गाड़ी तेज़ रफ़्तार में भागती हुई ओझल हो गई।

पायल ख़ुशी के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए कहती है- कहाँ खो गई सनकेश्वरी ? चलो कमरे में चलकर सारा किस्सा सुनाना।

ख़ुशी शर्माते हुए कहती है- क्या जीजी अब आप भी बुआजी की तरह बात करने लगीं।

पायल हँसकर ख़ुशी का हाथ पकड़ते हुए कहती है- अच्छा बाबा अब तुम्हें सनकेश्वरी नहीं कहेंगे। पर भनकेश्वरी तो कह सकते हैं न ? क्या पता कब भनक जाओ.. कहकर पायल खिलखिलाकर हँसती है और भागकर अंदर चली जाती है।

हमसे बचकर कहाँ जाओगी जीजी - कहते हुए ख़ुशी भी पायल के पीछे जाती है।

दोनो लड़कियों को हँसता-खेलता देखकर मधुमती अपने सिर पर बंधे हुए दुप्पटे को खोलकर, सोफ़े पर बैठते हुए गरिमा से कहती है- आज तो मधुसूदन ने लाज ही रख ली गरिमा तुम्हारी कि लड़की घर सुरक्षित लौट आई। कुछ दुर्घटना हो जाती तो तुम कभी मुँह दिखाने लायक नहीं रहती। लोग तो यही कहते कि बिन माँ-बाप की बच्ची को घर से निकाल दिया दरबदर भटकने के लिए। अब तो वो ज़माने गए जब कृष्ण आ जाते थे चीर बचाने। अब हर जगह दुस्साशन घात लगाए बैठे हैं।

गरिमा मधुमती की बातें सुनकर अनहोनी को सोचकर ही घबरा जाती है। उसका ब्लडप्रेशर हाई हो जाता है औऱ वह बेहोश हो जाती है।

मधुमती गरिमा को संभालते हुए पायल औऱ ख़ुशी को आवाज़ लगाती है...

ऐ ख़ुशी ! ऐ पायलिया ! जल्दी आओ बिटियां- गम्भीर और चिंतित स्वर में मधुमती ने तेज़ आवाज देकर पुकारा।

बुआजी की आवाज़ सुनकर ख़ुशी और पायल घबराकर तुरन्त अपने कमरे से बाहर आती हैं।

गरिमा के सिर को अपनी गोद में रखे हुए मधुमती उसके गालों को थपथपाते हुए कहती है- गरिमा उठो !

ख़ुशी औऱ पायल दौड़कर मधुमती के पास आती है। ख़ुशी गरिमा की हथेलियों को अपनी हथेली पर रख कर रगड़ने लगती है।