Is Pyaar ko kya naam dun - 3 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 3

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 3

(3)

अनुलता का नाम सुनकर ख़ुशी की आँखों में चमक आ जाती है। जैसे अचानक अमावस्या की रात सितारों से झिलमिला उठी हो। वह एड़ियों को उचकाकर अनुलता को देखने का प्रयास करती हैं पर भीड़ अधिक होने के कारण देख नहीं पाती हैं। उसे सड़क किनारे एक कार दिखतीं है। वह सोचती हैं कार पर चढ़ जाए तो हम बहुत आसानी से अनुलता जी को देख पाएंगे। अपने इस विचार से खुश होकर उसे मूर्त रूप देने के लिए ख़ुशी कार की तरफ़ तेज़ कदमो से बढ़ने लगती है। वह कार के पास पहुंच जाती है। वह सोचती हैं कार पर चढ़ने से हमारी पहचान हो जाएगी इसलिए वह अपने दुप्पट्टे से मुँह को ढक लेती हैं औऱ कार पर चढ़ने ही वाली होती है कि पीछे से उसे कोई रोकते हुए कहता है - " अरे मेडम आप यहाँ हैं ? मैं समझा आप उस भीड़ में है। अच्छा हुआ आपकी कार के नम्बर मेरी डायरी में लिखे थे। चलिए जल्दी यहाँ से वरना लोग आपको जाने नहीं देंगे।"

ख़ुशी कुछ कहती उससे पहले वह लड़का उसे गुपचुप तरीके से हाथ पकड़कर अपनी कार में बैठा देता है, और कार स्टार्ट कर देता है।

ख़ुशी फिर से बोलने की कोशिश करती है तभी उस लड़के के फोन की रिंगटोन बजने लगती है। फोन पिक करते ही वह कहता है- डोंट वरी सर ! मैंने मेडम को मन्दिर से पिकअप कर लिया है। जी सर, आप बिलकुल चिंता न करें। किसी को पता भी नहीं चला औऱ मैंने बहुत ही सफ़ाई से अपना काम कर दिया है। अब आगे क्या करना है ? उधर से आदेश पाते ही लड़का जी सर कहकर फोन कट कर देता है।

ख़ुशी लड़के की बातचीत सुनकर यह सोचकर बेहोश हो जाती है कि किसी ने उसका किडनेप कर लिया है।

कार ए.आर.ग्रुप के ऑफिस के बाहर रुकती है। तभी कार ड्राइवर के फोन की रिंग बजती है। उधर से टीम हेड डांट लगाते हुए कार ड्राइवर से कहता है- तुम अब तक अनुलता मैम को पिकअप करने नहीं गए। वहाँ मन्दिर के बाहर लोगो का हुजूम लग गया है। अब जल्दी से जाओ और उन्हें लेकर आओ। इतना कहकर टीम हेड ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

कार ड्राइवर अचंभित सा पीछे की सीट पर देखता है। वह कहता है - सॉरी मेडम मैं गलती से आपको अनुलता मेडम समझा और जल्दबाजी में बिना आपको देखे, आपकी बात सुने आपको यहाँ ले आया।

ख़ुशी ने जब उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया तब वह डर गया।

वह कार से बाहर निकला औऱ पीछे की साइड आगे बढ़ रहा था कि टीम हेड उसे ऑफिस से बाहर आते दिख गया। टीम हेड की नजर जैसे ही कार ड्राइवर पर पड़ी वह बंदूक से निकली गोली की फुर्ती सा कार के पास आकर बोला- तुम अब तक यहाँ हो ? अरे अगर अर्नव सर को पता चल गया तो जान आफ़त में आ जाएंगी।

ड्राइवर डरते हुए रुक-रुक कर टूटे फूटे शब्दो में बोला- सर वो ल..ल..

अरे क्या ल..ल..? टीम हेड चिढ़कर सर से पसीना पोछते हुए बोला।

ड्राइवर- सर मैं गलती से किसी औऱ लड़की को ले आया औऱ वह बेहोश हो गईं।

आँखे औऱ गला फाड़कर टीम हेड बोला- मारे गए.. लड़की नहीं आफ़त की पुड़िया मोल ले आए मेरे लिए। अब समय भी नहीं है। एक काम करो तुम अनुलता मेडम को लेने जाओ। इस लड़की को मैं देख लूंगा।

जी सर- कहकर ड्राइवर तुरन्त वहाँ से चला जाता है।

टीम हेड कुछ देर सोच विचार करता है । फिर वह ऑफिस से दो लड़कों को बुलवाता है। थोड़ी ही देर में लड़के वहाँ आ जाते है। टीम हेड माखन उन लड़कों से कहता है- अर्नव सर घर चले गए है अब वो सुबह ही ऑफिस आएंगे। तब तक इस लड़की को उनके कैबिन के रूम में ले जाओ। मैं डॉक्टर का इंतजाम करता हूं। इस लड़की को होश आ जाए तो इसको ड्राइवर के साथ इसके घर भिजवा देना।

"ठीक है सर"- कहकर दोनों में से एक लड़का ख़ुशी को कार से ले जाकर अर्नव के रूम में लेटा देता है।

अगले दृश्य में..

ड्राइवर गायिका अनुलता को ले आता है। अनुलता को अपनी सफलता व प्रसिद्धि पर बहुत अहंकार था। वह ड्राइवर पर बिफरते हुए बोली इतना टाइम नहीं है मेरे पास की यहाँ लोगों को ऑटोग्राफ देती रहूँ। अब जल्दी से शूटिंग स्टूडियो चलो।

जी मेडम- कहकर ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी। कार के पीछे भागते लोगो को देखकर अनुलता गर्व से फूली नहीं समाती है।

कार ए.आर.ग्रुप के ऑफिस के ठीक सामने रुकती है। ऑफिस के बाहर सभी ऑफिस कर्मचारी बेसब्री से अनुलता का इंतज़ार कर रहे थे। अनुलता कि नजरें अर्नव को ढूंढ रहीं थीं। उसे अर्नव कही भी दिखाई नहीं दिया। वह जैसे ही कार से बाहर निकलती है, ऑफिस स्टॉफ के सभी कर्मचारी हाथ में गुलदस्ता लिए अनुलता कि ओर इस होड़ में आने लगते हैं जैसे अनुलता न हो साक्षात देवी माँ प्रकट हो गई हो जो सबको प्रसन्न होकर वरदान देंगी।

अनुलता ने मार्केटिंग डिपार्टमेंट के हेड माखन से अर्नव के बारे में पूछा। चापलूसी से लहज़े में माखन ने कहा- जी मेडम, सर की दीदी आई हुई है न इसलिए सर आज जल्दी घर चले गए।

पहला ऐसा शख्स है जो मुझसे मिले बिना ही चला गया। आईं लाईक हिज़ एटीट्यूड- अनुलता ने भौहें उचकाते हुए कहा।

अनुलता मेकअप रूम में चलीं गई। वहाँ मेकअप आर्टिस्ट पहले से ही तैयार खड़े थे। शूट के लिए ऑफिस स्टूडियो में तैयारी शुरु हो गई। ए.आर.ग्रुप के नए प्रोडक्ट के लिए विज्ञापन की शूटिंग शुरू हो जाती है।

सभी शूटिंग में व्यस्त हो जाते हैं औऱ टीम हेड ख़ुशी के बारे में भूल जाता है।

अनुलता जब पूरी तरह से रेडी हो गई तब वह स्टूडियो में आती है। उसके आते ही लाइटमेन स्पॉट लाइट को ऑन कर देता है। कैमरामैन भी अपने कैमरे को सेट कर लेता है।

शूटिंग शुरू होती है। लाल रंग की साड़ी में अनुलता नई नवेली दुल्हन सी लग रहीं थीं। एक हाथ में स्क्रिप्ट लिए हुए वह अपने डॉयलॉग याद कर रही थी।

लाइट ,कैमरा एंड एक्शन की आवाज़ गूँजते ही अनुलता रोल प्ले करना शुरू कर देती है। वह अपने संवाद को इतनी बख़ूबी से कहती है जिसे देखकर लगता है कि अनुलता रील नहीं रियल लाइफ को ही जी रही हो।

वह आईने के सामने बैठी हुई चुड़ियाँ पहनते हुए अपने डॉयलॉग्स बोलती है।

अनुलता - आज वह दिन है जब तन ही नहीं आत्मा भी सँवर गई थीं। आज ही के दिन मैंने एक नए जीवन की शुरुआत की थी औऱ बंध गई थी विवाह के पवित्र बंधन में। जब हो ख़ास अवसर औऱ त्यौहार तो याद आए ए.आर....अनुलता आईने के सामने से उठकर खड़ी होती है औऱ अपनी साड़ी के पल्लू को फैलाकर ख़ुशी से झूमते हुए एक चक्कर घूमकर अपना शूट पूरा करती है।

सभी तालियां बजाते हैं। एक्सलेंट मेडम कहते हुए टीम लीडर अनुलता की तारीफ़ में कशीदे गढ़ने लगता है। अनुलता अपनी तारीफ़ सुनकर मानो सातवें आसमान पर पहुँच गई।

शूटिंग खत्म हुई और फिर पैकअप हो गया। देर रात तक शूट चलता रहा। करीब 11 बजे सभी शूटिंग से फ्री हुए। अनुलता भी फ्लाइट से मुम्बई रवाना हो गईं। अनुलता के जाने के बाद सभी ऑफिस मेम्बर्स ऑफिस को लॉक करके अपने-अपने घर चले गए।

ख़ुशी को जब तक होश आता है तब तक ऑफिस से सभी लोग जा चूंके होते हैं। ख़ुशी अपने आप को नई जगह पाकर घबरा जाती है। वह कैबिन की खिड़की से झाँककर बाहर देखती है। रात गहरा चुकी थी औऱ सड़क पर पसरा सन्नाटा ख़ुशी को ख़ौफ़ज़दा कर देता है। ख़ुशी कैबिन के बाहर निकलकर बाहर जाने का रास्ता ढूंढती है। रास्ता ढूंढ़ते हुए वह तीसरे फ्लोर पर पहुंच जाती हैं जहाँ लाइन से खड़ी डमी को देखकर वह डर जाती है औऱ चीखकर वह फिर से चौथे फ्लोर पर आ जाती है। कॉरिडोर सुनसान औऱ डरावना लगता है। ख़ुशी कैबिन में बने रूम में चली जाती हैं और एक कोने में बैठ जाती है। वह अपने सर को घुटनों से टिकाएं हुए रोने लगती है।

रात के 12 बज रहे थे। ख़ुशी के घर में मानो भूचाल ही आ गया हो। खुशी के मौसाजी शशिकांत शाम से ही ख़ुशी की तलाश में घर से निकले थे औऱ अब तक घर नहीं लौटे। पायल हर दस-पंद्रह मिनट में शशिकांत को फ़ोन लगाती औऱ एक ही सवाल पूछती- पापा ख़ुशी मिलीं क्या ?

नहीं बेटा- उदास स्वर में शशिकांत उत्तर देते औऱ कॉल डिस्कनेक्ट कर देते।

मधुमती भी पायल के नजदीक खड़ी रहती। पायल जैसे ही फ़ोन कान से हटाती मधुमती उससे चिंतित होकर पूछती- कुछ पता चला ख़ुशी बिटिया का ?

नहीं बुआजी- पायल ने रुआँसे स्वर में कहा।

पायल की बात सुनकर मधुमती का दिल बैठ जाता है। वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगतीं। हे ! मधुसूदन, मनमोहन लाज रखों। कृपा करो। बच्ची को सुरक्षित घर ले आओ। बिन माता-पिता की बच्ची के पालनहार बन जाओ।

मधुमती की प्रार्थना सुन गरिमा अपने किये पर पछताती है। उसे आज तक ख़ुशी के साथ किए दुर्व्यवहार पर अफ़सोस होता है। ग्लानि से उसका मन भर जाता है औऱ मन की पीड़ा आँखों से आँसू के रूप में अविरल बहती नदी सी बहने लगती है। वह मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करतीं है- हे भोलेनाथ ! ख़ुशी को सुरक्षित घर लिवा लाओ। मैं सोलह सोमवार का व्रत करूँगी। औऱ अब आपको वचन देतीं हूँ कि कभी भी ख़ुशी औऱ पायल में भेदभाव नहीं करूँगी। वह बचपन से मेरे आँचल की छांव में पली बढ़ी है। मैं ही उसकी माँ हूँ। एक माँ की प्रार्थना स्वीकार करो प्रभु।

गरिमा को रोता देख मधुमती उसके कंधे पर हाथ रखती है और उसे ढांढस बंधाती है।

मधुमती कहती है- तुम चिंता न करो गरिमा। ईश्वर की ही कोई लीला रहीं होगी। तभी तो इतने बरसों बाद तुम सब कुछ भूलकर आज खुले मन से ख़ुशी को अपना रही हो।

मधुमती की बातें सुनकर गरिमा मधुमती से गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगती है।

अगले दृश्य में...

अर्नव अपने कमरे में लैपटॉप के सामने ऑफिस का काम कर रहा होता है। वह काम से संबंधित एक फ़ाइल को अपनी टेबल पर ढूंढता है। जब फ़ाइल टेबल पर नहीं दिखती है तो वह माखन को कॉल करता है।

हेलो! हाँ माखन, मेहता एंड सन्स की फ़ाइल कहाँ है ? मैंने तुमसे कहा था फ़ाइल मेरी टेबल पर होना चाहिए।

टेबल की सारी फ़ाइल मेरे पास है सिवाय उस एक के।

माखन ने डरते हुए कहा- सर वो फ़ाइल तो आपने टेबल से उठा ली थीं।

अर्नव को याद आता है कि टेबल से फ़ाइल उठाकर वह टहलता हुआ कैबिन से लगे हुए स्टडी रूम में चला गया था।

ठीक है- कहकर अर्नव ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। अर्नव ने अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और ऑफिस के लिए रवाना हो गया।

पार्किंग लॉट से गाड़ी निकालते समय अनायास ही अर्नव को ख़ुशी का ख्याल आ जाता है। फ़िर अचानक ही गुस्से से उसका चेहरा गम्भीर हो जाता हैं। वह कार में बैठता है औऱ कार स्टार्ट करके ऑफिस की ओर चल देता है।

कुछ ही देर में अर्नव की गाड़ी ऑफिस के मेन गेट के सामने खड़ी हो जाती है। अर्नव को इस वक़्त ऑफिस के बाहर देखकर गॉर्ड चौंक जाता है और वह दौड़कर मेनगेट खोलता है। अर्नव गाड़ी पार्क करता है तब तक गॉर्ड ऑफ़िस का ताला खोल देता है।

अर्नव लिफ़्ट की तरफ़ जाता है औऱ फोर्थ फ़्लोर पर जाने के लिए चार नम्बर का बटन दबा देता है। लिफ़्ट ऊपर की ओर जाने लगती है। जैसे-जैसे लिफ़्ट ऊपर की औऱ बढ़ती जाती है अर्नव के दिल की धड़कनें भी बढ़ने लगतीं है। बढ़ती धड़कनों के साथ ही ख़ुशी का चेहरा अर्नव की आँखों के सामने आ जाता है। ख़ुशी के ख्याल से ही अर्नव चिढ़ जाता है।

लिफ़्ट भी फोर्थ फ़्लोर पर आ जाती है। अर्नव गुस्से से लिफ़्ट से बाहर निकलता है औऱ अपने कैबिन की तरफ कदम बढ़ा देता है।

कैबिन के दरवाज़े पर अर्नव के बढ़ते क़दम ठहर जाते है। उसे महसूस होता है जैसे कुछ तो ऐसा है जो उसके दिल से जुड़ा हुआ है। ऐसी फीलिंग्स अर्नव ने पहली बार महसूस की थीं। उसे ऑफिस का केबिन रोज़ के मुकाबले आज अलग लग रहा था। अर्नव के दिमाग ने उसके मन के भावों पर अचानक जैसे ब्रेक लगा दिया हो। मन को दरकिनार करते हुए अर्नव ने दिमाग से काम लिया औऱ कैबिन के अंदर एंट्री की।

अर्नव ने अपनी आँखों को चारों तरफ़ घुमाया औऱ कैबिन से लगे रूम की औऱ कदम बढ़ा दिए। अर्नव जैसे ही रूम में प्रवेश करता है उसे बुकशेल्फ के पास कोने में मुहँ छुपाए सिसकतीं हुई एक लड़की दिखतीं है, जिसे देखकर वो चौंक जाता है। वह लड़की से पूछता है - कौन हो तुम ?

अर्नव की आवाज़ सुनकर ख़ुशी अपना चेहरा ऊपर उठाती है औऱ देखती है कि जो शख्स उसे मन्दिर में मिला था वहीं उसके सामने खड़ा हुआ है। उस अजनबी से हुई कुछ पल की बातचीत भी ख़ुशी को ऐसी राहत पहुंचाती है जैसे मेले की भीड़ में खो गए बच्चे को उसकी माँ मिल गई हो।

ख़ुशी अर्नव के सवाल का कोई जवाब नहीं देती है और उठकर अर्नव की तरफ़ तेज़ी से बढ़ते हुए उससे लिपट जाती है। वह कहती है भगवान का शुक्र है आप यहाँ आ गए। हमें बचा लीजिए।

अर्नव अपने सामने इस तरह से ख़ुशी को पाकर विचारशून्य हो जाता है। सब कुछ इतनी तेज़ी से घटित हो गया था मानो भगवान ने ज़िन्दगी को फॉरवर्ड मोड पर रख दिया हो।

अचानक अर्नव के मन में ख़ुशी द्वारा मन्दिर में कही गई सारी बातें घूमने लगती है। वह ख़ुशी को झटके से खुद से अलग करते हुए कहता है।

अर्नव - ये मेरा ऑफिस है । मैं यहाँ तुम्हें बचाने नहीं आया बल्कि तुम यहाँ मुझे फसाने आई हो। तुमने सोचा अमीर लड़का है। अपनी भोली शक्ल औऱ मगरमच्छ के आँसू दिखाकर आसानी से अपने जाल में फंसा लुंगी औऱ ऐश की ज़िंदगी जियूँगी।

अर्नव के कठोर शब्दों को सुनकर ख़ुशी हैरानी से उसे देखती है ।

अर्नव- हैरान क्यों हो गई ? तुम्हारी पोल खुल गई इसलिए.... ओह..! जिस प्लान के साथ यहाँ आई थी उस पर तो अब पानी फिर गया होगा न ? या अब प्लान नंबर दो का ड्रामा शुरू करने वाली हो ?

बचाओ...बचाओ...चिल्लाकर लोगों की भीड़ इकट्ठा करके मुझे ब्लैकमेल करोगी औऱ फिर समझौते के नाम पर मोटी रकम लोगी।

तुम्हारी जानकारी में शायद न हो । मैं ही बता देता हूँ कि मैं अर्नवसिंह रायजादा हूँ। तुम जैसी लड़कियों को बहुत अच्छे से पहचानता हूँ। शुक्र मनाओ तुम्हारी इस हरक़त पर मैं तुम्हें बिना कोई सज़ा दिए छोड़ रहा हूँ। अर्नव अपनी जेब से रुपये निकालकर ख़ुशी कि ओर बढ़ाते हुए कहता है। ये लो औऱ यहाँ से दफ़ा हो जाओ।

अर्नव की बात सुनकर ख़ुशी स्तब्ध रह जाती है। वह अर्नव द्वारा ऑफर किए हुए नोटों को देखती है फिर सवालिया नजरों से अर्नव को देखती है ।

अर्नव तंज कसते हुए कहता है- रुपये  कम है ? जितना सोचा था उतने नहीं मिले ?