Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 53 in Hindi Motivational Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 53

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गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 53

कर्मों में ले आएं यज्ञ जैसा परोपकार भाव

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: -(यज्ञ की महिमा पर आधारित)

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः

तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3/9।।

इसका अर्थ है,यज्ञ के लिए किए हुए कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्म में प्रवृत्त हुआ यह पुरुष कर्मों द्वारा बंधता है,इसलिए हे कौन्तेय तुम आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का अच्छी तरह से आचरण करो।

भगवान श्री कृष्ण ने इन पंक्तियों में आसक्ति को त्यागकर कर्म को यज्ञ के उद्देश्य से ही करने का निर्देश दिया है। यज्ञ एक ऐसी अवधारणा है,जो मनुष्य को वैयक्तिकता से सामूहिकता की ओर ले जाती है। यह अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ के लिए अपना एक महत्वपूर्ण योगदान करने का अवसर प्रदान करता है।

यज्ञ मूल रूप से संस्कृत के ' यज ' धातु से बना है।इसका अर्थ होता है आहुति देना या अर्पित करना। यज्ञ का संबंध लोकहित के लिए त्याग के कार्यों और बलिदान से है।इसमें हम पदार्थों को अग्नि को समर्पित करते हैं।

धर्मशास्त्रों में हर एक गृहस्थ को रोजाना पंचमहायज्ञ करना जरुरी माना गया है जो इस प्रकार है -ब्रह्म यज्ञ,देव यज्ञ पितृ यज्ञ,नृ यज्ञ और भूत बलि(वैश्वदेव यज्ञ)। अपने शरीर,मन बुद्धि,हृदय आदि को ईश्वर को समर्पित कर ईश्वर के आदेश पर कार्य करने की भावना से किए जाने वाले कार्य ब्रह्म यज्ञ हैं।भक्ति भाव से अग्नि में समिधा अर्पित कर सुगंधित और मूल्यवान पदार्थों को अर्पित कर देवताओं तक पहुंचाना ही देव यज्ञ है।इससे आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है।कोई व्यक्ति यज्ञ के पावक में द्रव्यों को अर्पित कर स्वास्थ्यवर्धक धुएं और उस परिवेश को अपने परिवार के साथ-साथ पूरे परिवेश में पहुंचाता है।माता-पिता गुरु आदि बड़ों की सेवा और उनके यहां तक कि उनकी देहांतर अवस्था में भी उनका स्मरण और शास्त्र निर्दिष्ट कार्य ही पितृ यज्ञ है।नृ यज्ञ अतिथि सेवा के लिए है।भौतिक वस्तुओं का दान,परोपकार आदि भूत बलि है।

वैयक्तिक आत्म कल्याण और स्वयं के लिए निर्देशित कर्मों के साथ-साथ समाज के प्रति भी हमारा दायित्व है,इसीलिए श्री कृष्ण यज्ञमय कर्मों का निर्देश देते हैं।(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय