Banzaran - 2 in Hindi Thriller by Ritesh Kushwaha books and stories PDF | बंजारन - 2

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बंजारन - 2

अमर के बार बार मना करने पर भी रितिक उसकी एक नहीं सुनता और जल्दी से उस जगह पर पहुंच जाता है जहां उसने उस लड़की को बेहोश पड़ा देखा था। हाईवे के साइड में ही एक लड़की बेहोश पड़ी हुई थी, जिसकी उम्र लगभग चौबीस(24) थी। उसने लाल रंग का लहंगा और काले रंग की चोली पहनी हुई थी। उसने माथे पर लाल बिंदी और हाथ में लाल चूड़ियां पहनी हुई थी, वो किसी दुलहन की तरह सजी हुई थी। चांद की रोशनी उस लड़की के चहरे पर पड़ रही थी जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी। रितिक की नजर जब उसकी लड़की पर पड़ी तो वो बस उसे देखता ही रह जाता है। उस लड़की का यौवन, वार वार रितिक को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। रितिक को आज पहली बार अहसास हो रहा था कि चांद ही अकेला नहीं है जो सुंदर है, चांद से भी ज्यादा सुंदर तो उसकी चांदनी है जो उसकी आंखो के सामने है। रितिक के दिल में पनप रहे अरमानों पर पानी फेरने के लिए अगले ही पल अमर वहा आता है और चिड़ते हुए उससे कहता है–" खड़े खड़े लार क्या टपका रहा है, कभी लड़की नही देखी क्या?"

अमर की आवाज सुन रितिक होश में आ जाता है और हड़बड़ाते हुए उससे कहता है–" कुछ कहा तूने?"

अमर झूठी मुस्कान देते हुए उससे कहता है–" कुछ नही कहा महाराज आप कंटिन्यू रखिए, जब आपका ताड़ना बंद हो जाए तो बता देना, बंदा आपकी सेवा में हाजिर हो जाएगा।"

अमर की बात सुन रितिक बुरा सा मुंह बना लेता है और उसके बाद वो उस लड़की के पास जाता है और उसकी नब्ज चैक करने लगता है। जब वो अपना हाथ उस लड़की की ओर बढ़ाता है तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगता है। उसके हाथ कांपने लग जाते है। उसे डर था कि कही इस लड़की को कुछ हो ना गया हो और उसके सारे अरमान धरे के धरे रह जाए। जब वो उस लड़की का हाथ पकड़ता है तो उसके बदन में एक सिरहन सी दौड़ जाती है। वही दूसरी ओर अमर की तो सांस ही गले में अटक गई थी। वो तो यही सोच रहा था कि अगर ये लड़की कोई आत्मा हुई तो उन दोनो का क्या होगा?, चले तो थे नेकी करने और खुद की कब्र खोदली। इधर रितिक उस लड़की की नब्ज चैक कर लेता है और राहत की सांस लेता है और उसके चहरे पर एक बड़ी सी स्माइल आ जाती है। रितिक मुस्कुराते हुए अमर से कहता है–" ये जिंदा है.."

रितिक की बात सुन अमर के कलेजे को ठंडक मिलती है और वो राहत की सांस लेता है। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी सांसे वापस लौट आई हो, जो उसके खास दोस्त रितिक की हरकतों के कारण कही सैर पर चली गई थी।

अमर को यूं खड़ा देख रितिक चिड़ते हुए उससे कहता है–" खड़ा खड़ा मेरा मुंह क्या देख रहा है, चल जल्दी से पानी लेकर आ।"

" रुक अभी लाता हूं " इतना कहकर अमर जल्दी से कार की ओर जाने लग जाता है और थोड़ी ही देर में एक पानी की बॉटल लाकर रितिक को दे देता है। रितिक थोड़ा सा पानी उस लड़की के चहरे पर मार लेता है जिससे उस लड़की के शरीर में कुछ हलचल होना शुरू हो जाती है और अगले ही पल वो अपना सर पकड़कर बैठ जाती है।

अपने पास बैठे दो अंजान लोगो को देख वो लड़की घबरा जाती है और तभी उसकी नज़र रितिक पर पर पड़ती है और बस दोनो एक दूसरे की आंखो में कही खो से जाते है।

जो घबराहट उस लड़की के चहरे पर थी वो अब गायब हो गई थी और अब वो दोनो एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे पिछले जन्म के बिछड़े हुए दो प्रेमी हो। अमर तो उन दोनो को देख अपना सर पकड़ लेता है और उठकर खड़ा हो जाता है। उसका दोस्त तो था ही ऐसा और अब ये अनजान लड़की भी उसकी बिरादरी की। भला आज के जमाने में भी कोई फर्स्ट साइट लव होता है क्या?, अमर खांसते हुए उन दोनो से कहता है–" जान पहचान हो गई तो काम की बात पर आए।"

अमर की बात का उन दोनो पर कोई असर नहीं होता है, ये तो वही बात हो गई कोई कुत्ता किसी सांड पर भौंक रहा हो। इधर रितिक और वो लड़की अभी भी एक दूसरे को ऐसे देखे जा रहे थे कि तभी एक हाथ उन दोनो की नजरो के सामने आ जाता है ठीक उस तरह से जैसे कोई काला कौआ सुबह सुबह दिख जाता है।

दोनो की नजर एक दूसरे की नजरो से हटती है और दोनो होश में आ जाते है। होश में आते ही वो लड़की तुरंत खड़ी होती है और अपने कपड़े संभालने लगती है। उसके बाद वो लड़की एक पल भी वहा नहीं रुकती है और जल्दी जल्दी वहा से जाने लग जाती है। लड़की की इस हरकत को देख अमर और रितिक दोनो ही हैरान हो जाते है।

रितिक उस लड़की को आवाज लगाते हुए कहता है–" जरा सुनिए..."

लड़की कोई जवाब नही देती है। रितिक फिर से उसे आवाज लगाता है और उसके पीछे पीछे जाने लगता है–" अरे जरा सुनो तो..."

रितिक को अपने करीब आता देख वो लड़की अपनी चाल तेज कर देती है और भागने लगती है। उस लड़की को भागता देख रितिक फिर उसे आवाज नहीं लगाता है और वापस अमर के पास आ जाता है। उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि जो लड़की थोड़ी देर पहले उसके साथ क्या हुआ? अगर उस लड़की को भागना ही था तो ऐसे ही भाग जाती उसके दिल के अरमान तो नही जगाने थे ना। रितिक को अब अमर पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसी की वजह से वो लड़की यहां से भागी थी।

वो अमर के पास जाता है और चिड़ते हुए उससे कहता है–" तुझे मेरी दो पल की खुशी बर्दाश नही होती क्या?"

हैरान परेशान सा अमर उसको बात सुनकर और भी ज्यादा हैरान हो जाता है और उससे कहता है–" मैने क्या किया अब?"

" जब मैं उस लड़की से बात कर रहा था तो बीच में अपना टांग क्यूं अड़ाई?"

" मैने कब टांग अड़ाई और मुझे बताने की ज़रूरत नही है कि तू क्या कर रहा था? मुझे सब पता है।"

" तुझे कुछ नही पता, अब जल्दी चल यहां से, उस लड़की को भी ढूंढना है, पता नही कौन थी बेचारी?"

" ढूंढना है, पर क्यूं?"

" तुझमें इंसानियत नाम की कोई चीज बची है या नही, कोई लड़की यहां जंगल में परेशान घूम रही है और तुझे बस अपनी सूझ रही है।"

रितिक की ये बात अमर को दिमाग में खट कर जाती है और उसे भी रितिक की बात ठीक लगती है। अमर एक लम्बी आह भरते हुए उससे कहता है–" मेरे कहने का मतलब था वो लड़की हमसे डर रही है इसीलिए यहां से भाग गई। अब ऐसे में हम उसे ढूंढने निकलेंगे तो सोचेगी हम उसका पीछा कर रहे है इसीलिए मेरी बात मान हम अपने रास्ते चलते है उसे अपने रास्ते जाने दे, हर इंसान की अपनी अपनी मंजिल होती है, वो अपनी मंजिल खुद ढूंढ लेता है।"

रितिक हामी में अपना सिर हिलाते हुए कहता है–" हा बात तेरी ठीक है लेकिन कभी कभी दो लोगो की मंजिल एक ही होती है और उन्हें एक दूसरे का सहारा बनकर साथ में आगे चलना होता है।"

इतना कहकर रितिक कुछ देर शांत रहता है और फिर कहता है–" चल हम भी चलते है, रात बहुत हो गई है, अमरपुरा पास ही में है।"

" हा चल..." इतना कहकर अमर और रितिक दोनो कार में बैठ जाते है और वापस से अपनी मंजिल की ओर निकल जाते है। कुछ ही देर में वे दोनो एक तिराहे पर आ जाते है जिसमे एक रास्ते सीधे जा रहा था और एक कच्चा रास्ता बराबर से होते हुए जंगल के अंदर जा रहा था। वही पर एक बोर्ड भी लगा हुआ था जिस पर लिखा था "अमरपुरा"।

रितिक कार को जंगल वाले रास्ते की ओर मोड़ देता है।

जंगल में गहरा अंधेरा छाया हुआ था। हैडलाइट की रोशनी में आस पास के लगे पेड़ किसी काले साए की तरह ही लग रहे थे, मानो अभी उनके से कोई साया उनकी कार के सामने आ जाएगा। जंगल में एक अजीब सी शांति पसरी हुई थी, ऐसी शांत जिसके कारण वहा के माहौल में मैनहुसित पैदा हो रही थी। ना कोई शोर शराबा और ना ही किसी जानवर के दहाड़ने की आवाज, सब कुछ एकदम शांत। अमर रितिक को वहा के बारे में बताता है और कहता है–" इस जंगल को पार करते ही दो गांव पड़ते है "अमरपुरा" और "तारपुरा" , ये दोनो गांव यहां की सात पहाड़ियों के बीच में बसे हुए थे। ये वही पहाड़िया है जिसे रामायण काल में संजीवनी पर्वत के नाम से जानते थे। आज भी यहां पर बहुत सी ऐसी जड़ी बूटियां मिलती है जो दवाई बनाने के काम में यूज होती है। यहां की जड़ी बूटियां बहुत कारगर साबित होती है। सावन के महीने में यहां पर पर्यटकों की भीड़ जमा हो जाती है, देश विदेश से लोग यहां पर घूमने आते है।"

रितिक एक्साइटेड होते हुए अमर से कहता है–" अच्छा... फिर तो काफी सुंदर जगह होगी ये। रात के अंधेरे में मुझे तो कुछ पता ही चला।"

" और नही तो क्या, मैं पहले भी यहां आया था, काफी सुंदर जगह है।"

" हम्म्म एक काम करते है, कल यहां की पहाड़ियों पर घूमने चलेंगे, घूमने के साथ ही जो काम हम करने आए है वो भी हो जाएगा।"

" हा ठीक है..."

बात करते करते दोनो जंगल से बाहर आ जाते है और उनके सामने एक खाली मैदान दिखाई देता है जिसके सीधे हाथ की तरह एक बड़ा सा भव्य मंदिर बना हुआ था, जिसमे से रोशनी जलती हुई नजर आ रही थी। कुछ दूर आगे जाने पर उन दोनो के सामने एक हवेली नजर आती है। हवेली के आगे ही काफी सारी खाली जमीन पड़ी हुई थी जिसमे हर हरी घास और तरह तरह के फूल लगे हुए थे। बराबर से ही एक रास्ता गांव की ओर जाता था। रितिक कार को उसी रास्ते की ओर मोड़ लेता है। गांव की चौपाल से होते हुए उनकी कार एक घर के आगे आकर रुकती है। रितिक कार से नीचे उतरता है और घर का दरवाजा खटखटाने लगता है। कुछ ही देर में कोई घर का दरवाजा खोल देता है और दो लड़के जो रितिक और अमर की ही हमउम्र के थे, बाहर आते है। ये दोनो कोई और नहीं बल्कि "करन" और "रोमियो" थे, जो रितिक और अमर के बचपन के दोस्त थे।

वही दूसरी ओर वो अंजान लड़की अभी भी जंगलों में भागी जा रही थी। भागते भागते उसकी सांस फूलने लग गई थी लेकिन अभी भी उसने भागना बंद नहीं किया था। कुछ ही देर में वो भी जंगल से बाहर आ जाती है और उसी मंदिर वाले मैदान में पहुंच जाती है। जंगल से बाहर निकलकर वो एक जगह रुकती है और हाफने लग जाती है। थोड़ी देर आराम करने के बाद वो इधर उधर अपनी नजरे दौड़ती है और हवेली की ओर जाने लग जाती है। हवेली के गेट पर पहुंचकर वो वहा के एक वफादार नौकर को आवाज लगती है जो बड़े चैन से नींद का मजा ले रहा था। किसी की आवाज सुनकर उसकी नींद खुल जाती है और वो हड़बड़ाते हुए उठ जाता है। अपने सामने खड़ी लड़की को देखकर वो तुरंत हरकत में आता है और उससे कहता है–" कौन हो तुम?"

वो लड़की जवाब देते हुए कहती है–" मेरा नाम चांदनी है, मैं शालिनी की दोस्त हूं, क्या मैं अंदर जा सकती हूं।"

उस लड़की की बात सुन नौकर कुछ देर सोचता है और जवाब देते हुए कहता है–" हा तुम जा सकती हो।"

नौकर की बात सुन चांदनी हवेली के अंदर चली जाती है और वही दूसरी तरफ रितिक, अमर, करन और रोमियो, चारो हॉल में बैठे हुए थे। चारो हसी मजाक कर रहे थे और अपने बचपन के दिनो को याद कर रहे थे।

रोमियो अमर और रितिक से कहता है–" वैसे तुम्हे इतनी रात में आने की जरूरत नहीं थी।"

रितिक हैरान होते हुए उससे पूछता है–" क्यूं रात में क्यूं नही आ सकते ?"

" वो दरअसल यहां का माहौल कुछ ठीक नहीं है।"

रोमियो की बात सुन अमर और रितिक दोनो कंफ्यूज हो जाते है और रोमियो को कन्फ्यूजन के साथ देखने लग जाते है।

रोमियो आगे कहता है–" तुमने अमरपुरा के जंगलों के किस्से तो सुने ही होंगे।"

अमर जवाब देते हुए कहता है–" हा सुने है ना, इस जंगल के किस्से तो गूगल पर भी देखने को मिल जाते है।"

रोमियो कहता है–" हा, ये जगह हॉन्टेड हाईवे में से एक है लेकिन क्या तुम्हे पता है ये हॉन्टेड क्यूं है?"

रोमियो का सवाल सुन रितिक और अमर ना में अपना सिर हिला देते है।

रोमियो आगे कहता है–" वो इसीलिए क्युकी इस गांव पर एक डायन का साया है डायन का...."