इस सारे ब्रह्मांड को, इस दुनिया को एक शक्ति चलाती है। जिसे महाशक्ति, आदि शक्ति आदि नामों से पुकारा गया है। यही शक्ति ईश्वर है। इसी शक्ति से ब्रह्मा, विष्णु, महेश उत्पन्न हुये हैं। इसी आदिशक्ति से अन्य शक्तियां उत्पन्न हुई हैं।
ईश्वर को वेदों में निराकार माना गया है। इस्लाम में भी उसे निराकार ही माना गया है और अन्य कई प्रमुख धर्मों में भी उसे निराकार ही माना गया है। इस तरह से परमब्रह्म निराकार ही है। वह परम ईश्वर परमपिता निराकार ही है। वह केवल एक महाशक्ति के रूप में है।
लेकिन भक्तों को दर्शन देने के लिए और भक्तों का कल्याण करने के लिए और अलग-अलग कार्य करने के लिए उसने अपने अंश से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति की। या कह सकते हैं कि वह निराकार ईश्वर ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन मुख्य रूपों में साकार हुआ। ब्रह्मा का कार्य है सृष्टि को जन्म देना। विष्णु भगवान का कार्य है ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न की गई सृष्टि का पालन - पोषण करना और शिव का काम है ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न की गई सृष्टि का विनाश करना, ताकि ब्रह्मा फिर से नयी सृष्टि उत्पन्न कर सके।
ब्रह्माजी सात्विक, राजसिक और तामसिक तीनों प्रकार की सृष्टि उत्पन्न करते हैं। सात्विक सृष्टि में देवता लोग आते हैं। राजसिक में मनुष्य और तामसिक में दैत्य -राक्षस आ जाते हैं।
सात्विक सृष्टि से दुनिया का संरक्षण होता है। राजसिक से सृष्टि चलती है और तामसिक सृष्टि तोड़फोड़ करने वाली और दुनिया को नुकसान पहुंचाने वाली होती है।
ब्रह्मा जी सृष्टि को उत्पन्न तो कर देते हैं लेकिन सृष्टि के पालन की जिम्मेदारी विष्णु भगवान की होती है। विष्णु भगवान सृष्टि को चलाते हैं, उसका पालन करते हैं और आपको पता है ही किसी का पालन करने के लिए धन की आवश्यकता होती है और धन कहा जाता है लक्ष्मी जी को। इसलिए विष्णु भगवान को सृष्टि चलाने के लिए धन की जरूरत होती है, इसलिए वह धन को हमेशा अपने पास रखते हैं अर्थात लक्ष्मी जी को हमेशा अपने पास रखते हैं। इस प्रकार लक्ष्मी और उनके पति श्री विष्णु मिलकर इस सृष्टि का पालन करते हैं। जिस प्रकार एक किसान खेत में बीज होता है तो फसल के पौधे उत्पन्न हो जाते हैं। लेकिन इन फसल के पौधों का पालन करने के लिए फसल के साथ से उत्पन्न हुई खरपतवार के पौधों को निकालना पड़ता है। यह खरपतवार और कोई नहीं दुष्ट प्रवृत्ति के राक्षस और जीव हैं। तो इन खरपतवार रूपी दुष्टें को विष्णु भगवान निकाल कर उनका वध करके अच्छे लोगों का पालन करते हैं।
लेकिन जब पूरी फसल संक्रमित हो जाती है। पूरी फसल किसी बीमारी से ही खत्म होने लगती है अर्थात पूरी सृष्टि में दुष्ट, नीच लोग, असुर, दैत्य अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगते हैं और सज्जन पुरुष केवल गिनती भर के ही रह जाते हैं। तब शिव शंकर उस पूरे खेत को नष्ट कर देते हैं अर्थात पूरी सृष्टि को ही खत्म कर देते हैं। ताकि खेत में फिर से नए ढंग से उत्तम बीजों वाली फसल बोई जा सके। इस प्रकार जब पाप बहुत बढ़ जाता है तो पूरी सृष्टि का विनाश कर देते हैं। ताकि ब्रह्मा जी फिर से नए उत्तम जीवों को उत्पन्न कर सके। नयी उत्तम सृष्टि को उत्पन्न कर सकें।
हालांकि दुनिया के कण-कण में, ब्रह्मांड के कण-कण में दुनिया के हर जीव में उसी एक परम ईश्वर का सूक्ष्म अंश है।
लेकिन सात्विक, राजसिक और तामसिक प्रवृत्ति की अलग-अलग जीवो में अलग-अलग प्रतिशत उपस्थिति के कारण वे मूल परमेश्वर के उस अपने अंश को कभी- कभी भूल भी जाते हैं।
फिर परमेश्वर ने ब्रह्मांड के सभी कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए देवताओं की सृष्टि भी की। देवता पूर्ण परमेश्वर नहीं हैं। लेकिन ऐसे सात्विक जीव हैं जिनकी आयु बहुत अधिक होती है। जिन पर बुढ़ापा कभी नहीं आता है। यह देवता परमेश्वर और ब्रह्मा, विष्णु, महेश के अधिक निकट रहते हैं, क्योंकि ये सत्विक प्रवृत्ति के होते हैं और सृष्टि का संचालन और सृष्टि की रक्षा करना इनका मूल दायित्व होता है। ये स्वर्ग लोक में रहते हैं और इनका राजा महत्वपूर्ण और महाबलवान होता है जिसे सभी इंद्र कहते हैं। इंद्र एक पद है। जिस तरह आजकल किसी देश के मुखिया को प्रधानमंत्री कहते हैं, इसी तरह स्वर्ग के मुखिया को इंद्र कहते हैं। अलग-अलग युगों में स्वर्ग लोक में भी अलग-अलग लोगों ने, अलग-अलग देवताओं ने इंद्र पद को सुशोभित किया। इस समय महेंद्र नामक देवता इंद्र पद पर आसीन है। जब उसका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, तो बलि नामक चक्रवर्ती सम्राट, जो दैत्यों का सम्राट भी था स्वर्ग के राजा के पद को सुशोभित करेगा और इंद्र का पद उस समय राजा बलि को ही मिलेगा।
परंतु एक समय ऐसा भी समय आता है जब यह पूरा ब्रह्मांड और अन्य ब्रह्मांड भी और यहां तक कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी नष्ट हो जाते हैं और यह सब उसी एक निराकार ब्रह्म में लीन हो जाते हैं। इस प्रकार साबित हो जाता है कि वह निराकार ब्रह्म ही वही एक परमेश्वर है जिसकी सभी प्रमुख धर्मों में विवेचना की गई है। वही वह महाशक्ति है जो सबके आदि का कारण है, सबके पालन का कारण है और सब के लय का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर को मेरा शत-शत प्रणाम।
इस तरह ईश्वर एक है और जो कुछ हम देखते हैं, अनुभव करते हैं यह सब उसी एक परमेश्वर की लीला है। उस एक परमेश्वर से ही यह ब्रह्मांड, अन्य ब्रह्मांड, यह सृष्टि उत्पन्न हुए हैं और उसी परमेश्वर में यह सब एक दिन विलीन हो जाएंगे और फिर उसी परमेश्वर से नई सृष्टि, नये ब्रह्मांड उत्पन्न होंगे। मुझे तो यह विज्ञान के ब्लैक होल सिद्धांत जैसा ही लगता है। आप के क्या विचार हैं? कृपया मुझे अपने विचारों से अवगत कराएं। ताकि मेरे ज्ञान में तनिक और वृद्धि हो।
आज तक मेरे सभी धर्मों के धर्म ग्रंथ पढ़े। उनका अध्ययन किया, अनुशीलन किया, विवेचन किया। तो मुझे यही महसूस हुआ और यही निष्कर्ष मैंने निकाला कि ईश्वर तो एक है। उसके रूप अनेक हैं। उसी एक ईश्वर से यह सब उत्पन्न हुआ है। वही सब का पालन पोषण करता है और एक दिन यह सब मायाजाल उसी ईश्वर में समाहित हो जाएगा।