Kahaniyon Ka Rachna Sansar - 6 in Hindi Short Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | कहानियों का रचना संसार - 6 - स्वयंसिद्धा

Featured Books
  • तिलिस्मी कमल - भाग 22

    इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य प...

  • आई कैन सी यू - 20

    अब तक कहानी में हम ने पढ़ा की दुलाल ने लूसी को अपने बारे में...

  • रूहानियत - भाग 4

    Chapter -4पहली मुलाकात#Scene_1 #Next_Day.... एक कॉन्सर्ट हॉल...

  • Devils Passionate Love - 10

    आयान के गाड़ी में,आयान गाड़ी चलाते हुए बस गाड़ी के रियर व्यू...

  • हीर रांझा - 4

    दिन में तीसरे पहर जब सूरज पश्चिम दिशा में ढ़लने के लिए चल पड...

Categories
Share

कहानियों का रचना संसार - 6 - स्वयंसिद्धा

कहानी

स्वयंसिद्धा

हैदराबाद की पुलिस प्रशिक्षण अकादमी में आज दीक्षांत परेड है और कविता की बांह में आज आईपीएस का तमगा लगने वाला है। यह उपलब्धि कविता ने बड़े संघर्ष के बाद हासिल की है।पाँच साल पहले वह भी अन्य लड़कियों की ही तरह महाविद्यालय की एक सामान्य छात्रा थी ।उसके भी अपने सपने थे। वह अपने सुनहरे कैरियर के बारे में भी ख्वाब देखती थी। उसका सपना था कि वह देश के लिए एक भौतिक विज्ञानी की भूमिका निभाए और इसके लिए वह कॉलेज में विज्ञान विषय लेकर पढ़ रही थी।

तब उसने यह नहीं सोचा था कि वह पुलिस सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाएगी। दीक्षांत परेड संपन्न हुई। पुलिस की वर्दी में कविता का व्यक्तित्व प्रभावशाली दिखाई दे रहा था। उसके अंदर कुछ कर गुजरने का जज़्बा था। दर्शक दीर्घा में बैठी हुई उसकी मां भी इस बात को महसूस कर रही थी। समारोह समाप्त होते ही कविता मां से दौड़कर लिपट गई। मां की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे ।कविता पाँच साल पहले के कॉलेज के दिनों की अपनी यादों में खो गई।.............कविता अपनी सायकल से आज फिर जैसे ही कॉलेज के पास वाले चौराहे पर पहुंची,वही दो लड़के फिर दिखाई दिए। ये लड़के पिछले कई दिनों से दिखाई दे रहे हैं ।शुरू-शुरू में तो उसने ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में उसने देखा कि जानबूझकर वे अपनी बाइक से उसकी सायकल के पास से गुजरते हैं और फिर फिकरे कसने लगते हैं। कविता ने आज फिर उनकी फब्तियों की उपेक्षा की। वैसे भी उसे आज कॉलेज के लिए देर हो रही थी ।

कुछ ही मिनटों में वह मुख्य द्वार से होती हुई कॉलेज के भीतर चली गई ।आज कॉलेज में लेक्चर हो रहे थे लेकिन उसका ध्यान पढ़ने में नहीं था। दिन भर सोचती रही कि सड़क छाप शोहदे, लड़कियों और महिलाओं का जीना दूभर कर देते हैं। उसे पता है कि पुलिस की गश्त बराबर स्कूल और कॉलेज के आसपास लगती रहती है ।अपना शहर है भी संस्कारवान,लेकिन आती-जाती महिलाओं पर ऐसे एक-दो असामाजिक तत्वों द्वारा टिप्पणी करना ऐसी घटना है, जिसका संज्ञान लिया जाए या नहीं; वह नहीं समझ पा रही थी।पिछले दिनों उसके कॉलेज में महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए एक पुलिस पब्लिक संवाद का आयोजन किया गया था ।डीएसपी मैडम ने आत्मरक्षा के कुछ गुर बताने के लिए घटनाओं का डेमो भी प्रस्तुत किया था । यह सब देख कर उसे बड़ी हिम्मत आई थी लेकिन कॉलेज के पास वाला चौराहा आते ही उनका दिल धक से करने लगता है।

कहीं ये दोनों सड़क छाप लड़के आज भी न दिखाई दे जाएं। अपनी सहेली रमा को उसने इस घटना की जानकारी भी दी थी । इस पर रमा ने कहा था-अरे यार छोड़ ।इग्नोर कर ।ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। रमा ने कहा-ऐसे कैसे होते रहती हैं। क्या हम लोगों को सड़क छाप मजनुओं से इसी तरह सिर झुका कर चुपचाप सह कर ही जीवन जीना होगा ।हम इनका प्रतिरोध क्यों न करें।

प्रतिरोध कैसे करोगी? क्या सड़क पर तमाशा करोगी और फिर भीड़ इकट्ठा होने पर बात का बतंगड़ नहीं बन जाएगा ?यह सुनकर कविता चुप हो गई ।कॉलेज से लौटते समय उसका ध्यान इसी बात पर था पर शाम को वे लड़के दिखाई नहीं देते थे। लगता है कि वे किसी दूसरे कॉलेज के हैं और उनके कॉलेज जाने का टाइम भी लगभग यही है। घर पहुंचने पर माँ ने दरवाजे पर ही मुस्कुरा कर स्वागत किया। आओ बेटी। हाथ मुंह धो कर पहले खाना खा लो फिर आज शाम हम मार्केट चलेंगे ।कविता ने कहा-नहीं माँ। आप चली जाओ ।मेरा मन नहीं लग रहा है ।माँ ने कहा-क्यों ?क्या थक गई हो। कविता- हां थोड़ा थक गई हूं।

“अरे बेटी।घर के पास वाली सड़क से ही तो ऑटो रिक्शा मिल जाएगी। फिर हम चलेंगे। देवउठनी एकादशी की पूजा भी पास आ रही है ।इसकी तैयारी के लिए कुछ खरीदारी भी करनी होगी ना।“


शाम को कविता मां के साथ मार्केट गई ।वहां भी कुछ घूरती नजरों से वह परेशान होती है ।उसे लगता है कि लोग लड़कियों और महिलाओं को अजीब तरह से क्यों देखते हैं ,जैसे चिड़ियाघर के कोई जानवर हों। कई बार तो कुछ लोगों की नजर जैसे उसका सिर से पैर तक मुआयना कर रही हो। यह देखकर उसे अंदर से बड़ी चिढ़ होती है ,लेकिन इग्नोर करो कि पॉलिसी पर चलना उसे ठीक लगता है ।वहीं इससे ठीक अलग कुछ लोग अत्यधिक शालीन और सम्मानजनक व्यवहार करते हैं ।कई बार तो महिलाओं के लिए किसी कतार में अपनी बारी तक छोड़ देते हैं। पिछली बार एक लोकल ट्रेन से जब वह सफर कर रही थी तो ऐसे ही एक युवक ने उसे सीट दे दी थी और वह खुद खड़ा हो गया था । कविता भीड़भाड़ वाली ट्रेन में उस अपरिचित युवक से सीट लेने में हिचक रही थी क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि थोड़ी सी मदद करने के बाद लोग अनावश्यक बातचीत करने और परिचय बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं ।लेकिन वह युवक वैसा नहीं था। कविता को सीट देने के बाद वहां से हटके वह दूर कहीं जाकर खड़ा हो गया था।


"कविता आज बुझी बुझी सी लग रही हो, क्या बात है"। कॉलेज से घर लौटने के बाद जब माँ ने पूछा तो कविता ने सारी बातें बता दी । माँ भी सुनकर दुखी हो गई और सोच में पड़ गई। कविता ने अपनी मां से कहा-मैं पापा को बताती हूं।

माँ बोली- अरे वे गुस्सा करेंगे ।अभी बात इतनी नहीं बढ़ी है।कहीं वह लड़कों से मारपीट न करने लगें। कविता ने पूछा -मां क्या हमें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए ।

" नहीं बेटी ।कुछ समस्याओं को तो खुद सुलझाना सीखो। अगर पानी सर से गुजरने लगे, तबकी बात अलग है। अभी भी अगर वे हद से गुजरें तो चुप मत रहना। उनका प्रतिकार करना। कविता ने कहा-ठीक है मां ।ऐसी कोई भी स्थिति बनने पर मैं खुद हिम्मत करूंगी। देखा जाएगा, आगे जो होगा ।माँ ने कहा- तुम ठीक कहती हो कविता, अन्याय को जितना सहन करोगी,वह बढ़ते ही जाता है। इसलिए चुप मत रहो, प्रतिकार करो।


कविता दुबली-पतली है। घर में मां के कामकाज में हाथ बंटाने वाली लड़की है। समय निकालकर मां के साथ मंदिर भी चली जाती है। सुबह पाँच बजे से उठकर किताबों में डूबी रहती है ।माँ बार-बार कहती भी है -बेटी पढ़ने के बीच में थोड़ा आराम कर लिया करो। कभी मां कहती है- तुम इतनी मेहनत करती हो लेकिन तुम्हारी खुराक कितनी कम है। खूब खाया-पिया करो,तब तंदुरुस्त रहोगी।


अगले दिन कविता कॉलेज जाने के लिए अपनी सायकल से फिर निकली। पैडल मारती हुई जैसी ही वह उस चौक के पास पहुंची, सड़क के किनारे मोटरसायकल पर रुके हुए हुए दोनों लड़के फिर दिखाई दिए। मानो उन्हें कविता के कॉलेज जाने के समय का अच्छे से पता हो। कविता अपनी सायकल धीरे धीरे बढ़ाने लगी।वे कविता के पास आने लगे। चौराहे से होते हुए कविता ने बायां मोड़ लिया। उसे दुर्गा सप्तशती का श्लोक याद आने लगा …….शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे …….लड़के पास आ रहे थे।वह और तेजी से सायकल में पैडल मारने लगी….. लड़के थोड़ा और पास पहुंचे..

…...सर्वस्यार्तिहरे देवि ….नारायणि नमोस्तु ते…. कविता बार-बार मंत्र पढ़ती रही ।साथ ही वह जल्दी-जल्दी पैडल भी मारने लगी…. अचानक सायकल की चेन उतर गई….यह क्या हो गया। घबराई कविता सायकल से नीचे उतरी। सायकल को स्टैंड कर वह चेन चढ़ाने की कोशिश करने लगी।

तभी दोनों लड़के अपनी गाड़ी बगल में खड़ी कर नीचे उतरे और छींटाकशी करने के बाद कविता से कहने लगे ;मैडम जी मैं चेन चढ़ा दूं? और कविता के कुछ बोलने के पहले ही उनमें से एक ने अपना हाथ कविता के शरीर से थोड़ा रगड़ते हुए सायकल के चेन की ओर बढ़ाया। कविता एक पल रुकी। अब पानी सर के ऊपर से गुजर रहा था। कविता ने मन ही मन निर्णय कर लिया। अगले ही पल एक जोरदार चांटा कविता ने उस लड़के के गाल पर दे मारा। वह गाल सहलाने लगा । अब दूसरे लड़के ने हाथ बढ़ाने की कोशिश की ।कविता ने दूसरे शोहदे के गाल पर भी झन्नाटेदार चांटा मारा।लगभग दस सेकंड तक पूरी तरह खामोशी रही।

तभी पहले लड़के ने चाकू निकाल लिया और चिल्लाते हुए उसकी ओर बढ़ा। आसपास से गुजर रहे लोग रुक कर तमाशा देखने लगे। किसी की हिम्मत इस अकस्मात हो रही घटना में हस्तक्षेप की नहीं हो रही थी। किसी ने यह भी नहीं सोचा कि पुलिस को 100 नंबर डायल कर बुलाया जाए।

चाकू लिए वह लड़का जैसे ही कविता के पास आया, फूर्ति से उछलकर कविता ने उसके घुटने पर ज़ोरदार प्रहार किया ।लड़का भरभरा कर गिर पड़ा।चाकू उसके हाथ से छूट कर गिर गया। एक लड़की को स्वयं पर भारी पड़ता देख उन गुंडों ने इसे अपने आत्मसम्मान पर प्रहार समझा ।अब दूसरा लड़का कविता की ओर बढ़ा। कविता ने जमीन पर पड़ा हुआ चाकू उठाया और चिल्ला कर बोली -तुमने तो केवल मुझे चाकू दिखाकर डराने की कोशिश की।अब एक कदम भी आगे बढ़े तो यह चाकू तुम्हारे शरीर में कहां जाकर रुकेगा, यह तुम खुद समझ सकते हो। कविता का यह रौद्र रूप देखकर लड़के घबराकर अपनी मोटरसायकल की ओर बढ़े और भाग निकले। तमाशबीन भी धीरे-धीरे वहां से खिसकने लगे। कविता ने एक गहरी अर्थ पूर्ण दृष्टि उन लोगों पर डाली और कहा- वाह! बस आप लोगों को तमाशा ही देखना आता है ।आप जैसे लोगों की उदासीनता और 'हम क्या करें?' 'हमें क्या मतलब ?'की मानसिकता के कारण ही देश में महिलाओं पर इतने अत्याचार बढ़ रहे हैं। भीड़ धीरे-धीरे छंट गई।

कविता सायकल की चेन चढ़ा ही रही थी कि वहां से गुजरती पुलिस की पीसीआर वैन पास में आकर रुकी ।

एक जवान ने सिर निकालते हुए पूछा -कोई समस्या तो नहीं है बेटी?

कविता ने मुस्कुराकर कहा-नहीं अंकल।

वैन आगे बढ़ गई।कविता बड़े गर्व तथा इत्मीनान के साथ कॉलेज की ओर बढ़ने लगी। उसके बाद से वे दोनों शोहदे कभी नजर नहीं आए।............... इस कहानी की तंद्रा टूटते-टूटते पापा का फोन आ गया ।कविता ने खुश होकर बताया- .........पापा अब मैं आईपीएस बन गई हूं। अब आपके सारे सपने पूरे होंगे।पापा ने हर्षातिरेक के कारण भर्राए गले से कहा- कविता आज मुझे फैक्ट्री से एडवांस भी मिल गया है, पगार के अतिरिक्त। बस तुम और तुम्हारी मां घर लौटो, फिर हम लोग जश्न मनाएंगे।तुम्हारी सर्विस ज्वाइन करने से पहले घर में पूजा का आयोजन कर मोहल्ले के सभी लोगों को एक बड़ी दावत देंगे। कविता की आंखों में गर्व और आत्मसंतोष के आँसू थे।

योगेंद्र

(कॉपीराइट रचना)