आशीष इंस्पेक्टर सर्वदमन सिंह एव रम्या रमन कलावती से विदा लेकर उज्जैन के लिए रवाना हुआ उसके मानस पटल पर काशी से बीना तक की यात्रा के एक वर्ष जीवन के कुरुक्षेत्र के संग्राम का एक एक दृश्य स्मरण पटल पर अविस्मरणीय थे ।
जो परत दर परत स्प्ष्ट परिलक्षित होते गए स्कूल में दिखाए गए भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं एव गीता उपदेश से लेकर काशी में कैंट स्टेशन के हनुमान मंदिर में रामबली महाराज से मुलाकात एव एक वर्ष तक उनके सानिध्य में सनातन संस्कृति संस्कारो कि शिक्षा एव प्रयोग उसके किशोर जीवन को एक अजीब ऊर्जा अनुभूति से ओत प्रोत कर रखा था ।
जिसे वह भुलाना नही चाहता था बल्कि उसे जीवन के नैतिक मौलिक मुल्यों के धन्य धरोहर के रूप में जीवन की थाती मानकर सहेज लेना चाहता था उंसे जस्टिस रहमान जो कट्टर मुसलमान थे उनके न्यायिक आचरण ने अत्यधिक आकर्षित किया बचपन मे उंसे बताया जाता कि मुसलमान बहुत कट्टर एव क्रूर होता है कि छवि को किशोर आशीष के मन से जस्टिस रहमान के मुसलमान धर्म ने ध्वस्त कर ईश्वरीय सत्य एव अवधारणा के मानवीय एव ईश्वरीय मौलिक मूल्य का वास्तविक जीवन दर्शन करा दिया ।
आशीष का मन मस्तिष्क किसी भी पाप विद्वेष से साफ एव अबोध निर्मल निर्झर गंगा की तरह पवित्र हो चुका था उंसे अनुभूति हो रहा था जैसे उसने नया जन्म लिया हो जिससे प्राणि एव ईश्वरीय रिश्तो का सत्यार्थ सिर्फ आचरण कि संस्कृति संस्कार पर निर्भर रहता है।
अब आशीष किसी भय से दूर निर्भय निष्कंटक जीवन पथ पर बढ़ता जा रहा था।
बचपन मे जब वह कक्षा छः में पढ़ रहा था तब विद्यालय के शिक्षक चतुरानन मास्टर साहब ने एक कहानी आप बीती बताई थी उन्होंने बताया था *कि वो उनकी पत्नी शैला एव दो पुत्रों में छोटा बेटा सानिध्य एक साथ पुर्णिमा में गंगा स्नान करने हरिद्वार गए भीड़ बहुत थी सानिध्य एव पत्नी के साथ गंगा स्नान करके हरिद्वार के मंदिरों के दर्शन किया दिन भर दर्शन करने के बाद गायत्री शक्ति पीठ दर्शन किया और देहरादून मसूरी के लिये निकल पड़े रात्रि लगभग आठ बजे मसूरी पहुंचे एक दो दिन मसूरी घूमने के बाद देहरादून से लौटने के लिए रेल गाड़ी में बेटे सानिध्य पत्नी शैला के साथ बैठे रेलगाड़ी रात्रि दस बजे देहरादून से चली सानिध्य सो गया उसके सोने के बाद शैला को भी नीद आ गयी और मुझे झपकी आने लगी इसी बीच एक एक धामपुर शैला की नींद खुली तो सानिध्य गायब था चतुरान एव शैला में पहले तो रेलगाड़ी के शौचालय एव पूरे कोच में सानिध्य की तलाश की जब कही बता नही चला तब पति पत्नी धामपुर ही उतर गए और जीआरपी में शिकायत दर्ज कराई जी आर पी ने रेलगाड़ी रोक कर रेलगाड़ी के हर कोच का चप्पा चप्पा छान मारा मगर सानिध्य का कोई पता नही लगा चतुरान जी तो किसी तरह स्वंय को संभाले हुए थे मगर शैला बेटे के गायब होने से बार बार बेहोश हो जाती जी आर पी पुलिस ने शैला कि हालत देख उंसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया चतुरान जी अस्पताल में पत्नी की देख भाल करते जी आर पी पुलिस एव पुलिस ने अपराधियो की सूची साझा करते हुये टीम गठित किया और सभी संभावित जगहों पर तलाश जारी किया ।
शैला तो दस दिनों में ठीक हो गयी मगर पुलिस की कार्यवाही के कारण लगभग एक माह तक धामपुर में रुकना पड़ा इस बीच चतुरान जी के रिश्ते नाते गांव के लोग भी धामपुर पहुंचकर सानिध्य का पता लगाने में अपने अपने स्तर से पुलिस का सहयोग करते ।
एक माह बीतने के बाद भी जब सानिध्य का कोई पता नही चला तब पुलिस ने चतुरान एव शैला को पूरी ईमानदारी से सानिध्य की तलाश का आश्वासन देते हुये घर को वापस भेज दिया।
चतुरान एव शैला गांव लौट आये पूरा गांव सानिध्य के लापता होने से बहुत दुखी था शैला की हालत बेटे के वियोग में दिन पर दिन खराब होती गयी वह उदास एव गुम सुम रहने लगी हालांकि बड़ा बेटा सिद्धार्थ था जो माँ बापू का बहुत खयाल करता लेकिन सानिध्य के बिना माँ को जीवन अधूरा लगता सानिध्य जिस समय लापता हुआ उसकी उम्र दस वर्ष थी और वह कक्षा चार में पढ़ रहा था जबकि सिद्धार्थ मैट्रिक पास कर चुका था।
सिद्धार्थ और सानिध्य के उम्र में बारह वर्ष का अंतर था धीरे धीरे सानिध्य को लापता हुए पांच वर्ष गुजर चुके थे।
इधर सानिध्य को होस आया तो वह एक काली कोठरी में था और बड़े बड़े जटा जुट के साधु जो चार पांच की संख्या में थे सानिध्य को घेरे हुए थे सानिध्य को होस आया तो उसे कुछ भी स्प्ष्ट नही दिखाई दे रहा था सब कुछ धुंधला धुंधला वह तेज आवाज में रोते हुए चिल्लाने लगा और अपनी माँ और बापू को पुकारने लगा जब कथित ठग साधुओं को अपनी पोल खुलती नज़र आई तो उन्होंने पुनः उसको बेहोश कर दिया ऐसा व्यवहार उसके साथ निरंतर होता रहता जब भी होस में आता उंसे बेहोश कर दिया जाता और कुछ हल्का फुल्का आहार जो खाने योग्य नही होता दिया जाता जो उसके गांव जानवरो को दिया जाता ।
इस प्रकार महीनों बीत गए अब जिस साधुओं के समूह ने सानिध्य को उठाया था उनको लगा कि ऐसे काम नही चलेगा अतः उन्होंने सानिध्य को बेहोश करना बन्द कर दिया और शारिरिक प्रताड़ना देते कभी आग में तपे लोहे से दागते तो कभी बुरी तरह से मारते पीटते साथ ही साथ उसके साथ समलैंगिक सम्बंध जबरन बनाते सानिध्य इस भयंकर प्रताड़ना के जीवन से पूरी तरह टूट गया उसके पास रास्ता भी कोई नही था ना ही कोई तरीका जिससे कि वह मानव जमराज जिन्होने धर्म का चोला ओढ़ रखा था के खूनी पंजे से निकल पाता उसने हार मान लिया और उन साधुओं की हर बात को मानने को बाध्य हो गया ।
अब क्या था साधुओं का सरगना था सालिग राम उसने सानिध्य को भीख मांगने का पूरा प्रक्षिक्षण देकर कड़ी नजर में मैहर माता के मंदिरों की सीढ़ियों पर बैठा दिया सानिध्य प्रतिदिन सुबह कटोरा लेकर माता मैहर की चढ़ाई से पहले जहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ रहती भीख मांगने बैठ जाता बैठने से पहले वह अपनी माँ शैला को अवश्य याद करता आखिर वह शिक्षक का बेटा था और उसमें संस्कार इतने मजबूत थे कि कठोर प्रताड़ना के बाद शेष बचे हुए थे ।
पांच वर्ष बीत गए सानिध्य की उम्र सत्रह वर्ष हो चुकी थी आखिर कब तक माता शारदे एक माँ की वेदना एक बेटे की पुकार को अनसुनी करती एक दिन सानिध्य भीख मांगने बैठा हुआ था उसके पिता के मित्र धर्म दास सपरिवार मैहर माता के दर्शन के लिए पहुंचे थे ज्यो ही माता के दर्शन के लिए चढ़ाई के लिए पहली सीढ़ी पर पैर रखा सानिध्य उनके पास पहुंचा और बहुत धीरे से बोला मैं सानिध्य चतुरान का बेटा चाचा हमे नरक से मुक्त करा दो धर्मदास ने पलट कर सानिध्य को गौर से देखा सानिध्य को दस वर्ष बारह वर्ष की आयु में देखा था एक तो उसकी उम्र अब सत्रह की थी जिसके कारण उसकी बनावट तो बदली ही थी बदहाली भय भूख से उसकी काया भी जरा जैसी युवा उम्र में हो गयी थी ।
फिर भी धर्मदास ने उसे पहचानने में विलम्ब नही किया उन्होंने अपनी पत्नी आनंदी से कहा अब माता जी के दर्शन बाद में करेंगे पहले सानिध्य को इस हाल से मुक्त कराते है ज्यो ही वह सानिध्य को साथ लेकर चलने लगे आस पास के भिखारियों ने चिल्ल्लाना शुरू कर दिया देखो यह अंजनवी हमारे साथी को लेकर कही जा रहा है शोर शराबा होने पर साधुओं का पूरा गिरोह जिसने अपहरण कर भीख मांगने के लिए सानिध्य को विवश किया था एकत्र हो गया सीधा हस्तक्षेप करने पर उनकी पोल खुलने का भय था अतः अप्रत्यक्ष सभी धर्म दास पर दबाव बनाने लगे कि यह लड़का पिछले पांच वर्षों से यही भीख मांगता है आस पास के सभी लोग रोज इसे देखते आ रहे है तुम कौन हो इसे ले जाने वाले आस पास के लोग भी सालिग राम के समर्थन में शोर शराबा करते हंगामा काटने लगे माहौल ऐसा हो गया जैसे सब मिलकर धर्मदास को ही मार डालेंगे।
माता की इच्छा सबसे प्रबल वह एक माँ की पुकार एव उसकी वेदना सुन चुकी थी एका एक पेट्रोलिंग करते पुलिस दल वहाँ आ धमका जिसके मुखिया थे इंस्पेक्टर इनायतुल्लाह खान तुरंत उन्होनें जीप रोकने का आदेश देते हुए दल सहित उतरे और भीड़ को तीतर बितर करते हुए धर्मदास एव सानिध्य के पास पहुंच गए पुलिस को देखते ही सानिध्य उनके पैर पकड़ कर बैठ गया और फुट फुट कर रोने लगा इंस्पेक्टर इनायतुल्लाह खान ने सानिध्य को उठाया और सबके सामने उसकी आप बीती सुनने लगे इधर सालिग राम ने देखा कि मामला उसके विरुद्ध हो गया है और उसकी पोल खुलने वाली है तभी मौका मिलते ही वह साथियों सहित वहाँ से फरार हो गया ।
इन्स्पेक्टर धर्मदास एव उनकी पत्नी आनंदी एव सानिध्य को लेकर थाने में अपहरण का मुकदमा सालिग राम एव उसके साथियों के विरुद्ध दर्ज किया और कानूनी प्रकिया शुरू किया और धर्मदास के साथ सानिध्य को पुलिस सरंक्षण में थाने में ही रोक लिया और सलिक राम कि तलाश जोरो से शुरू कर दिया साथ ही साथ एक सिपाही को सानिध्य के गांव पिपरा खास भेजा जनपद गोरखपुर उत्तर प्रदेश भेजा।
सिपाही पिपरा खास पहुंचा और धर्मदास का पत्र एव सानिध्य के मिलने की सूचना दी अंधे को क्या चाहिए दो आँख चतुरानन एव शैला बिना बिलम्ब किये सानिध्य के बचपन की फ़ोटो गांव के प्रधान एवं धामपुर जी आर पी थाने की प्राथमिकी की कापी लेकर चल दिये शाम तक मैहर पहुंच गए इंस्पेक्टर इनायतुल्लाह खान बड़ी बेसब्री से सानिध्य के माँ बाप का इंतजार कर रहे थे उन्होंने पुलिस अधीक्षक सतना को सभी जानकारियां पहले ही दे रखी थी ।
सानिध्य के माता पिता के आते ही उन्होंने सभी कानूनी प्रक्रिया को पूर्ण किया एव सानिध्य के माता पिता से पूर्ण करवाया तथा न्यायालय में सानिध्य को एव उसके माता पिता को प्रस्तुत किया न्यायाधीश ने मात्र एक ही प्रश्न किया सानिध्य से क्या तुमने शैतानों की चंगुल से भागने की कोई कभी कोशिश नही की?
सानिध्य ने बताया बहुत बार कोशिश किया लेकिन हर बार सालिग के गुर्गे पकड़ लेते और बड़ी बेरहमी से मरते और कभी कभी तो खून तक निकलते और बेच देते न्यायाधीश जगत नारायण कि आंखे सानिध्य कि आप बीती सुन कर डब ढाबा गयी उन्होंने आदेश दिया कि पुलिस संरक्षण में धर्मदास आनंदी चतुरानन तथा शैला सानिध्य को माता मैहर के दर्शन कराए जाएं एव पुलिस संरक्षण में ही इन्हें इनके गांव तक पहुंचाया जाए साथ ही साथ सालिग राम जैसे धर्म की आड़ में समाज के कलंक को जल्द से जल्द अरेस्ट किया जाय जिससे कि वे पुनः किसी जघन्य अपराध को अंजाम ना दे पाए ।
शैला को सानिध्य के मिलने से जैसे दूसरा जीवन मिल गया हो सभी माता मैहर के दर्शन कर घर वापस लौट आये ।
चतुरान मास्टर साहब अपनी आप बीती बच्चों को सुनाते और बच्चों को दुनियां में आडम्बर के अपराध से सजग करते और यादों में खोते खोते उनकी आँखों से अश्रु धार बहने लगते।*
आशीष चतुरान मास्टर साहब कि आप बीती स्कूल में दिखाए जाने वाले भगवान श्री कृष्ण के जीवन लीलाओं की शिक्षा और सनातन के सत्य महाराज रामबली एव समाज धर्म के कालिख कलंक सालिग राम के विषय मे सोचता कब उज्जैन पहुँच चुका उंसे समय का ध्यान नही रहा ।
बस से उतरा और उज्जैन में महाकाल मंदिर पहुँचा और महाराज राम बलि के गुरुभाई त्रिलोचन महाराज के नाम पत्र को निकाला ज़िसे उसने बड़े जतन से रखा था त्रिलोचन महाराज को खोजने में उंसे बहुत परेशानी नही हुई त्रिलोचन महाराज से मुलाकात होते ही आशीष ने रामबली महाराज का पत्र उन्हें सौप दिया त्रिलोचन महाराज ने पूछा बच्चा काशी से तुम पिछले वर्ष चैत में चले थे पूरे एक वर्ष बाद पहुंचे कहा चले गए थे रामबली का बहुत संदेशा आया मैं कुछ भी नही समझ पा रहा था आखिर तुम गए तो गए कहा राम बलि जी भी बहुत चिंतित थे।
आशीष ने त्रिलोचन महाराज को सारी सच्चाई बता दी महाराज बोले बाल गोपाल तुम रामबली जैसे संत के सानिध्य में एक वर्ष रह कर जीवन के मौलिक मूल्य एव धर्म के भाव को समझ गए हो धन्य हो तुम तुम्हारे माता पिता एव रामबली जी बाल गोपाल तुम अब आराम करो कल सुबह बात होगी प्रसाद ग्रहण कर लो और आराम करो।
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में संत समाज उठ जाता है वही आदत कायस्त कुल आशीष में महाराज राम बलि के यहाँ पड़ गयी थी सुबह ही उसे महाराज के साथ सर्वेश्वर बाबा विश्वनाथ जी की मंगला आरती में नित्य जाना होता अब उसे महाकाल की भस्म आरती में जाना होगा तैयार होकर वह त्रिलोचन महाराज के साथ भस्म आरती के लिए महाकाल के दरबार मे हाजिर होने के लिए निकला जो भी उंसे देखता त्रिलोचन महाराज से पूछता महाराज यह कौन?
त्रिलोचन महाराज आशीष के आचरण से इतने प्रभावित थे कि सबको बताते यह है बाल गोपाल मेरे गुरु भाई ने इसे महाकाल कि सेवा में भेजा है या यूं कहें महाकाल ने बाल गोपाल को स्वयं बुलाया है दोनों महाकाल के दरबार मे पहुंचे त्रिलोचन महाराज पूरे रास्ते बाल गोपाल आशीष से यही बताते रहे कि उज्जैन में कौन कौन से मंदिर नदी है आशीष महाकाल की भस्म आरती में सम्मिलित हुआ ।
(भस्म आरती में चिता की राख से महाकाल की आरती होती है) आरती समाप्त हुई त्रिलोचन महाराज ने महाकाल के मुख्य पुजारी देव जोशी जी से आशीष का परिचय करवाया देव जोशी जी ने एक ही दृष्टि में आशीष को परख लिया और बोले बाल गोपाल तुम नित्य शाम को या दिवस में कभी भी अपनी सुविधानुसार महाकाल के गर्भ गृह की साफ सफाई किया करो आशीष को तो जैसे मांगी मुराद मिल गयी वह अपनी सहमति प्रशन्नता पूर्वक देते हुए बोला यह तो हमारा सौभाग्य होगा देव जोशी जी बोले बाल गोपाल महाकाल की यही इच्छा है।
त्रिलोचन महाराज के साथ आशीष लौट कर प्रसाद ग्रहण कर महाराज के पास बैठा और प्रश्न किया महाराज यह कैसी आरती जो चिता के भस्म से होती है महाराज ने आशीष को बताया भूत भाँवर भोले नाथ काल के देवता है और श्मशान इनका सबसे प्रिय स्थान है जन्म और मृत्यु जो प्राणि मात्र का निमित्त है इन्ही के निर्धारण से सम्पादित होता है ये शुभ देवता भी है सनातन देवो में शिव ही ऐसे देव है जिनकी आराधना शुभ अशुभ दोनों समय बराबर भाव श्रद्धा के साथ कि जाती है ।
आशीष की जिज्ञासा शांत हुई और वह कुछ देर के लिये विश्राम करने चला गया चार बजे संध्या को उठा त्रिलोचन महाराज नित्य ही शिवपुराण भक्तों को सुनते चाहे एक भक्त हो या एक भी नही वह यह कार्य नियमित करते दूसरे दिन पुनः ब्रह्म मुहूर्त में आशीष नित्य क्रिया से निबृत्त होकर महाराज के साथ भस्म आरती के लिये निकल पड़ा भस्म आरती समाप्त होते ही उसने देव जोशी जी की आज्ञा अनुमति से महाकाल गर्भ गृह की सफाई करने लगा सफाई करने के बाद अनुमति लेकर त्रिलोचन महाराज के सानिध्य में हाजिर हो गया।
आशीष जब काशी आया था तब वह रामबली महाराज जी के साथ सन्तो के भोजन बनाने के कार्य को बड़ी बारीकी से सिख लिया था वही त्रिलोचन महाराज के साथ उज्जैन में भी भोजन बनाता वही भोजन प्रसाद उंसे स्वादिष्ट भी लगता कहते है ना कि संगत का असर पड़ता है सत्संग से आचरण बदलता है आशीष के आचरण में भी सकारात्मक संत प्रबृत्ति रच बस गयी थी अब उसकी नित्य की जीवन चर्या बन गयी थी ब्रह्म मुहूर्त में उठाना और भस्म आरती में सम्मिलित होना और महाकाल के गर्भ गृह की साफ सफाई करना और त्रिलोचन महाराज के शिवपुराण कथा कि व्यवस्था देखना ताकि श्रोता भक्तों को कोई तकलीफ ना हो महाराज के साथ प्रसाद बनाना ग्रहण करना महाराज की सेवा करना आदि आदि ।
इसी तरह एक माह बीत गए इस एक महीने में त्रिलोचन महाराज ने रुद्राभिषेक के विधि विधान से आशीष को दक्ष कर दिया था जब भी कोई भक्त रुद्राभिषेक के लिये आता त्रिलोचन महाराज अपने बाल गोपाल को ही भेजते बाल गोपाल को जो भी दक्षिणा मिलती वह लाकर त्रिलोचन महाराज के चरणों मे समर्पित कर देता जब त्रिलोचन महाराज कुछ भी देना चाहते आशीष बड़े विनम्र भाव से बोलता महाराज मैं कायस्त कुल का हूँ ब्राह्मणोचित कर्म की दक्षिणा नही रख सकता यह आपका अधिकार है महाराज चुप हो जाते ।
एक माह के अल्पकाल में ही बालगोपाल संत समाज का आकर्षण एव प्रिय बन गया जिसके कारण त्रिलोचन महाराज कि शिवपुराण कथा में भीड़ आने लगी महाराज को भी लगा जैसे महाकाल ने बाल गोपाल के रूप में काशी से उनके कर्म धर्म का मर्म बुला लिया हो।
एक दिन त्रिलोचन महाराज शिवपुराण की कथा सुना रहे थे कथा के मध्य ही गुरु गोरक्षनाथ का प्रसंग आया आशीष बोला महाराज गुरुगोरक्ष नाथ तो गोरखपुर उत्तर प्रदेश में है त्रिलोचन महाराज बोले हा बाल गोपाल आशीष ने पुनः प्रश्न किया गोरक्षनाथ जी कौन से सनातन भगवान है त्रिलोचन महाराज ने बाल गोपाल की जिज्ञासा को शांत करने के लिये बताया कि गोरक्षनाथ भगवान शिव के अवतार है रुद्रांश है उनकी महिमा भगवान शिव के बराबर है जो प्राणि कभी भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों का दर्शन नही कर पाता है और श्रद्धा से गुरु गोरक्षनाथ जी के दर्शन करता है दोनों के फल बराबर है गोरखपुर में नाथ सम्प्रदाय का पीठ है जिसके पीठाधीश्वर महाराज अवैद्यनाथ जी है जो महान संत परम्परा के दिग्विजयी शौर्य सूर्य है बहुत विद्वान और ज्ञानी सन्यासी भी है साथ ही साथ सनातन धर्म ध्वज वाहक भी है ।
आशीष ने पुनः प्रश्न किया महाराज सन्यासी संत परम्परा में कौन होते है महाराज त्रिलोचन ने बताया जो काम क्रोध मद मोह और इन्द्रिय सुखों का त्याग कर अपने जीवन को प्राणि मात्र के कल्याणार्थ समर्पित कर दे मतलब स न्यासी समाज के आचरण संस्कृति संस्कारो को अक्षय अक़्क्षुण रखते हुये उंसे सकारात्मक दृढ़ता प्रदान करते हुये उसका संवर्धन एवं मार्ग दर्शन नेतृत्व करें पूज्य अवैद्यनाथ जी परमात्मा के उसी परम्परा के युग जागृति चेतना के संवाहक है उनका आशीर्वाद भी सौभाग्य से ही प्राप्त होता है ।
आशीष को संतुष्टि मिली समय का पहिया धीरे धीरे अपनी गति से घूम रहा था ग्रीष्म ऋतु बैशाख मध्य भयंकर गर्मी के साथ आया और लू चलने लगी मध्य दिवस जैसे लगता कि आसमान से आग के गोले बरस रहे हो लेकिन बालगोपाल के नित्य दिनचर्या में कोई अंतर नही पड़ता ।
ग्रीष्म ऋतु अपनी पराकाष्ठा पर था लगता था कि प्रलय लेकर आने वाला है हवाये ऐसे चलती जैसे आग की लपटें भीषण गर्मी लू के प्रकोप से जन जीवन अस्त व्यस्त होने लगा और लू से मरने की खबरे आने लगी लू जेठ की गर्मी के प्रचंड प्रभाव से इंसान ऐसे मरने लगे जैसे छोटे मोटे कीड़े मकोड़े मरते हो बाल गोपाल ने त्रिलोचन महाराज और देव जोशी जी से अनुमति लेने गया और बोला महाराज महाकाल जैसे क्रोधित हो गए हो अपने भक्तों से और अपने सबसे प्रिय स्थान श्मसान सभी को बुला रहे हो मेरी इच्छा है कि मै श्मशान में जाकर मरने वालों के अंतिम संस्कर में सहयोग करूँ ।
आधे अधूरे मन से देव जोशी जी एव त्रिलोचन महाराज ने बाल गोपाल को श्मशान जाने की अनुमति अनहोनी की आशंका से दी बाल गोपाल श्मशान पहुँचा और वहाँ आने वाली अर्थियो के अंतिम संस्कार में सहयोग करने लगा।
श्मसान पर अंतिम संस्कार के लिये लम्बी कतार लग रही थी बाल गोपाल दिन रात खाने पीने की सुधि भुला कर सिर्फ अर्थियो के अंतिम संस्कार को समर्पित हो गया जैसे वही काशी के मरनकर्णिका का मुखिया उज्जैन के श्मशान का कर्ता धर्ता हो।
असंख्य काल कलवित लोगों का अंतिम संस्कार कराना चुनौती थी ऐसे में प्रशासन को भी बैठे बैठाए बाल गोपाल के रूप में जैसे महाकाल का ही साक्षात प्रतिनिधि मिल गया हो बहुत से लोग लम्बी कतार की प्रतीक्षा से उब कर शवो को छोड़कर या अधजला छोड़कर इस भय से चले जाते की भयंकर गर्मी के मौसम और लू की मार एव श्मसान की गर्मी से कही उन्हें भी लाये अर्थी के साथ ना सोना पड़े लेकिन बाल गोपाल किसी भी अर्थी को पूरा जले नही छोड़ता जो लोग भय से अपने परिजनों को श्मसान में भयंकर गर्मी मे उबलने छोड़ जाते उन्हें भी बाल गोपाल लकड़ियों की व्यवस्था करके जलाता लकड़ी देने वालो के उधार उसके ऊपर लाखो रुपये बकाया हो चुके थे फिर भी देने वाले बाल गोपाल के त्याग तपस्या को देख लकड़ी देने से इनकार नही करते लगभग एक माह मृत्यु का तांडव जारी रहा लू से मरने वालों की संख्या का अनुमान लगाना संभव नही था।
मौसम ने करवट बदली गरमी कुछ कम हुई तब तक असाढ़ महीना शुरू हो चुका था बारिस का तो नमो निशान नही था मगर लू चलनी बन्द हो गयी थी एक माह बाद बाल गोपाल श्मशान से त्रिलोचन महाराज के पास लौट आया।
त्रिलोचन महाराज ने जब बाल गोपाल को देखा तो आश्चर्य चकित रह गए उसका रंग विल्कुल कला पड़ चुका था श्मशान पर भोजन के नाम पर लाईया ही नसीब था त्रिलोचन महाराज बोले बाल गोपाल तुमने तो वह कार्य कर दिया बाल्यकाल में जो अकल्पनीय सत्य है।
आशीष बोला महाराज महाकाल की सेवा में आया हूँ उनके लिये समर्पित होना मेरा धर्म है वही किया जो अपने बताया था महाकाल का प्रिय स्थान श्मशान है वही मैं उनको देख रहा था हर मृतक के शांत शरीर मे मृतक के परिवार वालो के अटूट विश्वास में भयंकर भयावह गर्मी लू जो महाकाल की काल लपट बन कर जाने कितनों को काल के गाल में समेट लिया महा काल जन्म काल का शुभ प्रभात है तो मृत्यु कि संध्या का भयंकर विकट विमराल इतना भयावह आग उगलने वाली ज्वालामुखी का ग्रीष्म मौसम जौसे महाकाल के मुख से ही निकल रहा हो और जिनके जन्म जीवन का काल समाप्त हो चुका था उंसे महाकाल बन निगल रहा हो ।
महाराज मेरी बिनती है जिन्होने मुझे उधार शवो को जलाने के लिए लकड़ियां दी है उनके पैसे अवश्य दिलवाने की व्यवस्था करें।
संध्या हुई पूर्व की भांति जीवन गति चल पड़ी ब्रह्म मुहूर्त में त्रिलोचन महाराज एव बाल गोपाल महाकाल की भस्म आरती में पहुंचे देव जोशी जी बोले आज से भस्म आरती के भस्म की विधि बाल गोपाल ही करेगा त्रिलोचन महाराज ने आरती समाप्त होने के बाद बाल गोपाल द्वारा शवो के अंतिम संस्कार के लिए लिये गए उधार लकड़ी के मूल्य भुगतान का निवेदन किया देव जोशी जी ने त्रिलोचन जी को बताया कि उज्जैन प्रशासन ने पहले ही सारा भुगतान भेज दिया है और महाकाल न्यास को गर्मी के भयंकर तांडव में श्मसान की उत्तम व्यवस्था हेतु पुरस्कृत किया है जिसे बाल गोपाल को दिया जाना है।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।