boy with autism in Hindi Short Stories by Sanjay Nayak Shilp books and stories PDF | ऑटिज्म वाला लड़का

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ऑटिज्म वाला लड़का

ऑटिज्म वाला लड़का

ट्रैफिक में फंसे रहने के कारण में कार्यक्रम में देर से पहुँच पाया था, एक नौजवान गा रहा था , "मंजिले अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह । " जैसे ही मैं मुख्य दरवाजे में पहुंचा उस नौजवान की नजर मुझ पर पड़ी, मैं जाकर एक खाली सीट पकड़ कर बैठ गया।

गाना खत्म होने के बाद उस नौजवान ने कहना शुरू किया, "अभी अभी एक शख्सियत ने इस हॉल में प्रवेश किया है, मैं आज जो भी हूँ उनकी वजह से हूँ मैं उस बेहतरीन शख्सियत को अपना ये अगला गीत समर्पित करता हूँ और उनकी शान में ये गीत पेश कर रहा हूँ।" उसके ये कहने पर बहुत सी नजरें मेरी तरफ उठी, पर मैं नहीं जानता था वो नौजवान कौन है, शायद उसने मेरे लिए नहीं किसी और के लिए कहा होगा।

उसने गाना शुरू किया, "तेरे जैसा यार कहाँ, कहाँ ऐसा याराना, ……..मेरी जिंदगी सँवारी मुझको गले लगाके
बैठा दिया फलक पे मुझे खाक से उठा के….।" ये गाते हुए वो नौजवान थोड़ा भावुक सा लग रहा था। उसका टर्न खत्म हुआ, कुछ और सिंगर्स ने गीत गाये, और फिर मैंने भी एक प्रस्तुति दी।

मैं जैसे ही स्टेज से उतरा उस नौजवान ने आकर मेरे पैर छुए। मैंने उससे पूछा "भाई मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।" "सर में विवेक….अंबेडकर पब्लिक स्कूल….में सातवीं क्लास में था..आप हमें पढ़ाते थे और आपने ही मुझे पहली बार स्टेज पर खड़ा किया था, आपने मेरी जिंदगी बदल दी जल्द ही मेरा एक एलबम आने वाला है।" मैंने उसे बढ़कर गले से लगा लिया, और हम दोनों की आँखें नम हो गईं।

वापसी में मुझे 18 साल पुरानी यादें ताजा हो उठी थी, उस स्कूल में मुझे कुछ ही दिन ही हुए थे। पर सातवीं क्लास का वो बच्चा जिसका नाम विवेक था, हमेशा गुमसुम रहता था और जैसे ही मैं उस कक्षा में प्रवेश करता , उससे पहले पीरियड में गणित वाले गुरूजी उसकी पिटाई करके जा चुके होते थे और वो आंखों में आँसूं लिए बैठा होता था।

मैंने हमेशा उसे गुमसुम देखा, कोई उसके साथ न खेलता था न बात करता था। पर मुझे हमेशा वो अपनी और खींचता था, उसका रुआंसा चेहरा आँखों कर आगे रह रह कर आता था। कुछ था शायद उसकी पनीली आंखों में जो मुझे आकर्षित करता था। एक दिन जैसे ही मैं उसकी कक्षा में पहुँचा गणित वाले मास्टरजी उसपर अपनी शक्ति प्रदर्शन करके जा चुके थे। उसकी आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे, उसको यूँ रोते हुए देखकर मेरा दिल पसीज गया मैं उसके करीब गया और उसके सर पर हाथ फिराया तो वो जोर से रोने लगा, जाने मुझे क्या सूझा मैंने उसे अपने अंक में भर लिया और फिर वो सुबकते हुए धीरे धीरे शांत हो गया, और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।

उस दिन मैंने कई छात्रों से उसके बारे में जानकारी ली, बच्चों ने बताया वो ऐसा ही है किसी से बोलता नहीं, पढ़ाई उसको आती नहीं, वो स्कूल में किसी के साथ नहीं खेलता, और घर पर भी नही खेलता, एक बच्चे ने बताया सर ये अकेला होता है तो गाना गाता है मैंने इसे गाते हुए सुना है।

उसके बारे में मैंने अपने एक मनोचिकित्सक मित्र से बात की उन्होंने बताया कि इसे ऑटिज्म नामक एक बीमारी है जो एक प्रकार का मानसिक डिसऑर्डर होता है, पर इस तरह के बच्चे को प्यार से ट्रेंड किया जाए तो ये किसी भी क्षेत्र में बेहतरीन कर सकता है, क्योंकि इनका दिमाग एक ही जगह ज्यादा केंद्रित हो सकता है।

उसके बाद मैंने विवेक पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया, उससे बड़े प्रेम से पेश आता, और उसमें एक बदलाव आया, मेरे विषय में वो अच्छा करने लगा, मैं उसमें आते परिवर्तन को देख कर खुश था, वो मुझसे बहुत खुल गया था, एक रोज मैंने उसे स्टाफ रूम में बुलाया , उसे झूठ ही कह दिया," विवेक तुम तो बहुत अच्छा गाते हो, मैंने तुम्हें गाते हुए सुना है।" ये सुनकर वो चौंका और झेंप भी गया। "मैंने उससे कहा मुझे भी गाना गाने का बहुत शौक है, क्या मैं तुम्हें गाना गाना सिखा दूँ।" उसने बिना ऊपर देखे ही हां में गर्दन हिला दी थी।

उसके बाद मैं उसे रोज स्कूल समय के बाद गाने की प्रैक्टिस करवाता था उसकी आवाज मधुर थी और वो बहुत आनंद लेकर गाता था, मैंने मन में ठान लिया था कि उससे स्कूल के फ़ंक्शन में जरूर गाना गवाऊंगा।

ये बात गणित वाले मास्टरजी को पता चली तो उन्होंने व्यंग किया "मास्साब इसे पढ़ने दो, उससे तो वो ही नहीं होता, आप कहाँ उसे गवैया बना रहे हो, वो एक नम्बर का ढीठ और बेशर्म है पढ़ाई में जीरो।" पर स्कूल की प्रिंसिपल लेडी थी उन्होंने मेरी बात का स्वागत किया।

वो दिन भी आ गया था स्कूल में एनुअल फ़ंक्शन में मैंने उससे गाना गवा दिया, "मैंने कहा फूलों से हँसों तो वो खिलखिला के हँस दिए" विवेक ने बहुत सुंदर गाया। और प्रिंसिपल साहिबा ने प्रथम पुरस्कार दिया, अब उसके व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गया था पर उसी समय मेरी सरकारी नॉकरी लग गई और स्कूल से ही मेरी विदाई समारोह हुआ, उसने फिर गाना गाया, "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई।"

मैंने ही तैयार करवाया था उससे ये गाना, जाते वक्त वो मुझसे लिपट गया वो भी रोया मैं भी रोया। बहुत सालों तक वो याद रहा फिर याद बनकर रह गया था। आज उसे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था कम से कम उस एक बच्चे का जीवन सुधारने में मैं कुछ तो मदद कर पाया , वो याद आता रहा और आँख बहती रही। मेरी कार में fm पर गाना बज रहा है, "किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो के उठाय, जीना इसी का नाम है....।"हाँ सच में रो रहा हूँ मैं।

संजय नायक"शिल्प"