celebration of life in Hindi Motivational Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | जीवन उत्सव

Featured Books
Categories
Share

जीवन उत्सव



आशीष रेलगाड़ी से गोरखपुर जंक्सन पर उतर गया रात को ही उसने भोजन किया था एक फूटी कौड़ी उसके पास नही थी यह उसका सौभाग्य ही था कि कप्तान गंज से गोरखपुर के बीच किसी भी टी टी से मुलाकात नही हुई उसके मन मे डर भी सता रहा था कि कही उसके पिता मुसई उंसे खोजते हुए यहाँ पहुँच जाय।
आशीष गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर कुछ देर इधर उधर भटकता रहा जो भी उंसे देखता पूछने से नही चुकता की क्या तुम घर से भागे हो ?उसका जबाब होता भगवान श्री कृष्ण कि इच्छा एक दो बार सवाल करने के बाद आशीष के जबाब से लोंगो को लगता कि कोई पागल लड़का है आशीष इन प्रश्नों को सुनते सुनते ऊब चुका था अतः उसके सामने जो रेलगाड़ी सामने खड़ी मिली उस पर बैठ गया ।

ट्रेन चल दी आशीष रेल गाड़ी के डिब्बे में शौचालय के कोने दुबक कर बैठ गया टिकट चेक करने वाला टिकेट कलेक्टर आया उसने आशीष से टिकट मांगा आशीष बोला भगवान श्री कृष्ण के पास है पुनः टी टी ने सवाल किया भगवान श्री कृष्ण कौन है आशीष बोला वही जो अन्याय के विरुद्ध न्याय अधर्म के विरुद्ध धर्म के लिए युगों युगों में आते है और हर जगह विद्यमान है टी टी ने पुनः पूछा की क्या तुमने भगवान श्री कृष्ण को देखा है आशीष बोला उन्ही के बताए रास्ते पर निकला हूँ अवश्य कही न कही मिल जाएंगे टी टी को लगा कि बालक की मानसिक स्थिति खराब है और इसके पास टिकट नही है।

उसने अपने समूह के सभी सहकर्मियों को बता दिया कि ट्रेन में एक नाबालिक लड़का है जिसकी मानसिक स्थिति बहुत खराब है अतः उससे कोई टिकट ना मांगे घर माँ बाप कि जानकारी पूछने पर वह कुछ नही बोल रहा है आशीष के लिए अच्छा ही हुआ उससे किसी ने टिकट नही मांगा और वह ट्रेन में बैठा रहा दिन में एक बजे रेलगाड़ी वाराणसी रेलवे स्टेशन पहुंच गई आशीष रेलगाड़ी से उतारा और रेलवे स्टेशन से बाहर आया उंसे बहुत भूख लग रही थी ना तो उसके पास पैसा था ना ही भोजन के लिए ही कोई सामान वह तो वही कपड़े पहन कर निकला था जिसे वह पहन कर रोज पढ़ने जाता आशीष सीधे वाराणसी प्लेटफार्म से बाहर निकला उसने बाहर आकर देखा कि हनुमान जी का एक मंदिर है जहाँ बहुत से लोग कीर्तन भजन कर रहे थे ।

आशीष वही जाकर बैठ गया बीच बीच मे वह भी भजन में लय के साथ ताली बजाता रहता वहां भजन कीर्तन लोग आशीष की उपस्थिति से बिल्कुल अनिभिज्ञ थे ।
भजन मंडली के मुख्य रागी की निगाह आशीष पर पड़ी उसने पूछा बच्चा तुम कौन हो कहा से आये हो? तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारे माता पिता का नाम क्या है?कही तुम घर से भाग कर तो नही आये हो? आदि आदि एक साथ इतने सवाल सुनकर आशीष को समझ नही आ रहा था क्या जबाब दे उसने सिर्फ अपना नाम बताया और बोला भगवान श्री कृष्ण को खोज रहे है उन्ही की खोज में जा रहे है मुख्य रागी को लगा कि या तो यह बच्चा विलक्षण है या तो इसकी मानसिक स्थिति ठीक नही है उन्होंने कहा बच्चा मेरा नाम रामबली है और मैं भगवान शिव के मंदिर बाबा विश्वेश्वर जी की नियमित सेवा करता हूँ यहाँ भी नियमित भजन कीर्तन के लिये आता रहता हूँ भजन के लिए दूसरी मंडली आ चुकी थी रामबली बोले बच्चा तुम हमारे साथ चलो ।

आशीष को भूख बहुत लगी थी वह राम बलि के साथ चल पड़ा कुंछः ही देर में दोनों विश्वनाथ गली पहुंच गए जहाँ रामबली रहते थे सकरी गली में एक विल्कुल अंधेरी कोठरी किसी काल कोठरी से कम नही आशीष के मन मे कुछ देर के लिए डर ने घर किया मगर उसका भगवान श्री कृष्ण पर अटूट विश्वासः ने उसे निर्भय कर दिया उंसे स्कूल के सिनेमा में भगवान श्री कृष्ण का वह उपदेश याद था( कि जिसने भी किसी माँ कि कोख से जन्म लिया है उंसे एक ना एक दिन मरना होगा )उसमें यह रामबली भी है अतः डरने की कोई बात नही रामबली एव आशीष उस अंधेरी काल कोठरी जैसे कमरे में दाखिल हुए ।

आशीष रामबली जी को चाचा चाचा कहकर बुलाता रामबली ने उसे चचा कहने से मना करते हुए बोले आशीष हम सन्तो का समूर्ण प्राणियो से एक ही रिश्ता होता है सिर्फ उसके कल्याण से तुम मुझे महाराज या गुरु जी कह सकते हो आशीष रामबली को महाराज से संबोधित करने लगा रामबली ने उस अंधेरी कोठरी में दिन में ही दिया जलाया तब जाकर आशीष ने उस कमरे को ठीक से देखा जिसमे एक तरफ मिट्टी के तेल का स्टोप एवं एक विस्तर था वर्तन के नाम पर एक तवा कड़ाही एवं एक बटुली (वह वर्तन जिसमे डाल या चावल पकाई जाती है)रामबली ने कहा चल बच्चा तू भी भूखा है साथ प्रसाद बनाएंगे और पाएंगे ( संतो की भाषा में प्रसाद का मतलब भोजन से है)चलो टिकर बनाते है (टिकर सन्तो कि रोटी कही जाती है) रामबली जी ने कद्दू छिलके सहित बड़े बड़े टुकड़े में काट कर कड़ाही में हरे मिर्च के टुकड़ों के साथ तेल डालकर डाल कर नमक एव हल्दी डाल दिया और ढक दिया और आशीष से बोले देखो अगर भगवान श्री कृष्ण को पाना है तो बच्चा आपको यह सब सीखना पड़ेगा आप तभी भगवान श्री कृष्ण को खोज सकते हो जब तुम्हारे सांस चलेंगे स्वस्थ रहोगे जिसके लिए न्यूनतम भोजन की आवश्यकता होगी हम भी सिर्फ एक समय दिन में भोजन करते है और यही जो बना रहे है कोई व्यंजन नही।

अच्छा बच्चा जाओ तुम नहा थो आओ तब तक प्रसाद तैयार रहेगा उंसे ग्रहण साथ करते है आशीष गया नहा थो कर आया उसके पास एक ही कपड़ा था जो वह पहन कर घर से निकला था अतः वह गमछा लपेट लिया और महाराज रामबली जी के साथ प्रसाद ग्रहण किया एवं जमीन पर बिना विस्तर के ही सो गया ।

पूरी रात पैदल चलने एवं रेलगाड़ी में छुपते छुपाते आने से सो नही पाया था जब वह सोया तो बहुत गहरी नींद में सो गया महाराज राम बलि जी भी सो गए नीद में आशीष के स्वप्न में फिर वही सिनेमा में भगवान श्री कृष्ण का उपदेश पहले उसे धुंधला दिखाई देता था अब बहुत स्पष्ट दिखाई देने लगा यह विशेष फर्क उसके गांव रमवा पट्टी से वाराणसी तक कि यात्रा में पड़ा था।

शाम को सात बजे महाराज रामबली उठे और आशीष को भी उठाया दोनों तैयार होकर काशी के घाटों पर पहुंच गए घाटों पर रामबली जी को जानने पहचाने वाले बहुत से लोग थे जो भी उनको जानने वाला मिलता उससे आशीष का परिचय बाल गोपाल के रूप में करवाते जब लोग पूछते तो महाराज बताते की बाल गोपाल कहा से आते है आज तक कोई ज्ञानी पता नही कर सका मैं क्या बता पाऊंगा मुझे तो सिर्फ सानिध्य लाभ मिला है जितने दिन भी मेरा भाग्य है।

बहुत देर तक काशी के घाटों से महाराज आशीष को परिचित करवाते रहे और महत्व बताते रहे रात्रि के लग्भग नौ बजे चुके थे दोनों लौट कर बाबा विश्वनाथ जी के शयन आरती में भाग लिया एक घण्टे तक बाबा के दरबार मे बैठे और रात्रि ग्यारह बजे फिर अपनी अंधेरी कोठरी में लौट आये
और सो गए सुबह तीन बजे महाराज रामबली उठे आशीष को उठाया और दोनों नित्य कर्म स्नान आदि से निबृत्त होकर तैयार होकर बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती में सम्मिलित होने चल दिये महाराज ने आशीष को मंगला आरती के महत्व को बताते रहे दोनों ने मंगला आरती में भाग लिया और पुनः वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन हनुमान जी के मंदिर कीर्तन भजन के लिये चले गए एव दिन में ग्यारह बजे लौट आये टिकर बनाया प्रसाद ग्रहण किया और सो गए शाम को उठे दशाश्वमेध की गंगा आरती करते और काशी के घाटों को घूमते फिर बाबा विश्वनाथ की सेवा में हाजिरी लगाते और और सो जाते मंगलवार शनिवार संकट मोचन हनुमान मंदिर जाते वहाँ अक्सर रामचरित मानस का प्रवचन होता अतः मंगल शनिवार को संकट मोचन मंदिर जाते जिसके कारण उनका काशी के घाटों पर जाना नही हो पाता यही दिन चर्या आशीष की एव महाराज रामबली कि नियमित थी ।

एक दिन मंगलवार को रामबली महाराज और आशीष संकट मोचन मंदिर पहुंचे वहां राम चरित मानस का प्रवचन चल रहा था प्रसंग था राम वन गमन व्यास पीठ से विद्वत मनीषी बता रहे थे कि किस प्रकार भगवान राम ने पिता दशरथ कि आज्ञा पालन करने के लिए राज पाठ का त्याग कर वन गमन चौदह वर्ष के लिये स्वीकार किया ।

आशीष के मन मे एक सवाल गूंजने लगा कि वह तो पिता के सम्मान के लिए घर से बाहर न्याय अन्याय धर्म अधर्म के युद्ध के लिए और सोते माता पिता कि पुत्र से अपेक्षाओं को तिलांजलि देकर निकला है ऐसे अपराधी व्यक्ति से कैसे भगवान श्री कृष्ण मिलेंगे वह उठा और व्यास महोदय से पूछा की क्या पिता के सम्मान् कि रक्षा के लिए पिता से अनुमति लेना आवश्यक है ?

व्यास मानस मर्मज्ञ थे उन्होंने कहा बच्चा भगवान राम और श्री कृष्ण दोनों ही ब्रह्म के अंश अवतार थे एक नए पिता कि आज्ञा से वन जाना स्वीकार किया तो दूसरे ने कारागार में माता पिता के कष्टों कि अनुभूति कि और मुक्त कराया ।

राम जीवन की मौलिक मर्यादा थे तो श्री कृष्ण जीवन का मौलिक मर्म तो बच्चा चिंता ना करो जन्म देने वाले स्वयं विष्णु लक्ष्मी के साक्षात स्वरूप होते है जो संतान अपने माता पिता को कष्टों से मुक्त कराता है वह राम एवं कृष्ण साक्षत वर्तमान का आदर्श होता है अतः बच्चा शंका को मन से निकाल दो व्यर्थ में चिंता मत करो और अपने उद्देश्य भाव से आगे बढ़ते जाओ।

महाराज रामबली और आशीष लौट आये बाबा विश्वनाथ के दरबार मे हाजिरी लगाई और सोने चले गए नीद आते ही आशीष को विद्यालय में दिखाए गए सिनेमा के श्री कृष्ण के अंश साफ साफ नजर आते धीरे धीरे समय बीतता गया और आया उत्सवों का समय शारदीय नव रात्रि, विजय दशमी महाराज रामबली को नव रात्रि के लिए दुर्गासप्तसती के पाठ के लिए ना जाने कितनों का निमंत्रण मिला था सबका संकल्प लेकर उन्होंने दुर्गा सप्तशती के पाठ के लिए सुबह से शाम तक अपने आप को कैद कर लिया लेकिन छ महीनों में कायस्थ परिवार के आशीष को बहुत से धार्मिक अनुष्ठानों कि प्रक्रिया एव परम्परा में शिक्षित कर दिया था और पूरे नवरात्रि उत्सव में आशीष को बिभन्न जजमानों के यहां बिभन्न शुभ कार्यो पूजन के लिए अधिकृत कर दिया क्या था।

उत्सव जैसे आशीष के लिए नए उमंग के जीवन सांचार का संदेश लेकर आये आशीष जिसके यहां जाता उसका स्वागत बाल ब्रह्मचारी बाल गोपाल की तरह होता और अच्छे अच्छे व्यंजन ग्रहण करने को मिलते नए वस्त्र और ढेर सारी नगद राशि दक्षिणा में मिलते जिसे आशीष लाकर महाराज रामबली के कदमो में डाल देता महाराज आशीष को वस्त्र एव कुंछः नगदी देते जिसे आशीष सभाल कर रखता जाता।

नवरात्रि का पूजन उसके लिए जीवन मे नई खुशियो उत्साह उमंग का अवसर लेकर आई उत्सव ही उत्साह जीवन बन गया हो जैसे नव रात्रि समाप्त हुई तो विजय दशमी में फिर शरद पुर्णिमा पुनः दिपावली के पर्व पक्ष महाराज राम बलि जी सुबह से शाम अनेको अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में व्यस्त रहते और आशीष को भी अवसर देते रहते आशीष को लक्ष्मी पूजन हेतु कई जगहों पर जाना पड़ा उत्सव ही उसके जीवन में उमंग का नित्य बन गए थे दीपावली ,गोवर्धन पूजा,अक्षय नवमी एकादशी कार्तिक पूर्णिमा सभी पर्वो पर आशीष की पूंछ बाल गोपाल की तरह हो रही थी उत्सव उसके जीवन के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे जिससे उंसे जीवन कि भौतिक ऊर्जा मिलती पर्व पक्ष सम्पन्न हुआ और नवरात्रि से कार्तिक पूर्णिमा के उत्सव व्यस्तता के बाद अब वैवाहिक उत्सव में महाराज रामबली बालगोपाल आशीष को साथ ले जाते और वैवाहिक संस्ककारो को संपादित कराते हुए आशीष को सहायक की भूमिका में रखते और उसे भी दक्षिणा दिलवाते बाल गोपाल आशीष को पर्व पक्ष के उत्सवों से वैवाहिक उत्सवों में लगभग नियमित महाराज रामबली जी के साथ जाना पड़ता अच्छे अच्छे पकवान और सम्मान आशीष के लिए जीवन ही उत्सव बना रहे थे।

समय बिताता गया और वैवाहिक कार्यक्रम एक माह के लिये थमा और एक माह बाद पुनः मकर संक्रांति में आशीष एव महाराज रामबली की व्यस्तता जीवन मे उत्सव के उत्साह को पुनस्थापित कर दिया मकर संक्रांति के बाद सरस्वती पूजन के साथ पुनः वैवाहिक उत्सव के साथ आया काशी का मशहूर उत्सव महाशिवरात्रि जिस दिन माता पार्वती और शिव विवाह के बारात जिसमे आशीष शिव बाराती के रूप में शामिल हुआ और सबसे अधिक आकर्षक बाराती के रूप में आयोजन समिति द्वारा सम्माननित हुआ दो सौ इक्यावन रुपये का पुरस्कार प्राप्त किया निरंतर महाराज रामबली के साथ वैवाहिक संस्कारो
के उत्सवों में सहायक की भूमिका का निर्वहन करता बाल गोपाल आशीष धीरे धीरे गोपाल धीरे धीरे हिन्दू रीति रिवाजों एव संस्कारो का अच्छा जानकर हो गया था ।

धीरे धीरे होलिका दहन नव संवत्सर और वासंतिक नवरात्रि भी आ गयी आशीष के जीवन मे पर्व त्यौहार एवं हिन्दू रीति रिवाज जीवन को ही उत्सवो के उमंग उत्साह से ऊर्जावान कर दिया ऐसे तो उसने कभी गांव रमई पट्टी मे त्यौहार उत्सव नही मनाए थे कारण पिता की गरीबी उंसे कभी कभी उत्सवों के उल्लास उत्साह में माँ बाप भाईयों की याद आती मगर मन को दबा देता।

उंसे महाराज रामबली का सानिध्य मीले एक वर्ष बीत चुके थे ।

एक शाम आशीष महाराज के साथ काशी के घाटों पर घूम रहा था कि एका एक उसके सामने कर्मा धर्मा के साथ हिरामन एव सुभावती कर्मा धर्मा की खड़े थे उन्होंने आशीष को देख कर पूछा आशीष तुम यहाँ क्या कर रहे हो? महाराज रामबली ने पूछा बाल गोपाल क्या तुम इन्हें जानते हो? आशीष बोला नही महाराज लेकिन हिरामन जिद्द करने लगा नही तुम आशीष हो आस पास भीड़ एकत्र हो गयी और महाराज रामबली ने देखा कि अब पानी सर से ऊपर जा रहा है तो उन्होंने हिरामन एव सुभावती से कहा आप लोग व्यर्थ ही परेशान हो रहे है जब मेरा बाल गोपाल कह रहा है कि वह आप लोंगो को नही जानता तो क्यों जबरन पीछे पड़े हुए है एकत्र भीड़ ने भी महाराज रामबली का समर्थन किया किसी तरह से आशीष एव महाराज रामबली हिरामन एव उसके परिवार से पीछा छुड़ा कर आये।

जब महाराज बाबा विश्वनाथ कि शयन आरती समाप्त हुई और कमरे पर पहुंचे तब महाराज ने पूछा कि बालगोपाल क्या जो लोग घाट पर तुम्हे पहचान रहे थे वो कौन थे? आशीष को एक वर्ष में महाराज ने सत्य सनातन कि उच्च परम्पराओं कि संस्कृति संस्कार कि भट्टी में तपा कर इतना खरा बना दिया था कि वह झूठ नही बोल सकता था उसने महाराज से सभी सच्चाई बता दी महाराज रामबली कि आंखे भर आयी
बोले बालगोपाल तुम धन्य हो तुम एक न एक दिन अपने पीढ़ियों के अपमान का प्रतिकार कर नए सम्मान के साथ पारिवारिक मर्यादा महिमा कि स्थापना करते हुए एक नए कीर्तिमान की स्थापना अवश्य करोगे आशीष बोला महाराज अब मेरे जीवन संकल्प अनुष्ठान के लिए यहां रुकना रहना अच्छा नही होगा अतः हमें यहाँ से जाना होगा रामबली जी वास्तविकता समझ गए थे अतः उन्होंने कहा निश्चित बाल गोपाल तुम्हें अपने जीवन उद्देश्य के लिए आगे जाना होगा तुम्हारे काशी वास का समय पूर्ण हुआ बाबा विश्वनाथ संकटमोचन एव काल भैरव का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है महात्मा बुद्ध की आत्मा के परम यात्रा परमात्मा का सत्य तुम्हारे साथ है निश्चित तुम सफल होंगे मेरे गुरुभाई त्रिलोचन नाथ जी महाकाल मंदिर उज्जैन में रहते है उनके नाम पत्र लिख देता हूँ वहाँ जाओ तुम्हारे जीवन मार्ग यहां से वहां तक जाता है वहाँ से भगवान श्रीकृष्ण कि इच्छा भोले नाथ का आशीर्वाद और राम का आशीर्वाद जहाँ तुम्हे आगे ले जाये राम बलि महाराज ने अपने गुरुभाई को पत्र लिखा और आशीष को दिया आशीष ने बड़े जतन से महाराज के पत्र को रखा महाराज बोले बाल गोपाल सो जाओ रात बहुत हो चुकी है ।

सुबह तुम्हे मंगला आरती से बाबा विश्वनाथ जी का आशीर्वाद लेकर मेरे साथ वाराणसी कैंट के उसी स्टेशन पर चलना है जहां तुमसे मेरी मुलाकात हुई थी ।

सुबह आशीष नियत समय पर नित्य कर्म से निबृत्त होकर स्नान ध्यान करके तैयार हुआ और महाराज राम बलि भी तैयार हो गए महाराज कि शिक्षा एव उत्सवो में प्राप्त दक्षिणा उपहारों नगदी केवल पहनने योग्य कपड़ो को छोड़ कर बाकी सभी महाराज रामबली जी के चरणों मे समर्पित कर दिया महाराज बोले बाल गोपाल यह तुम्हे तुम्हारी मेहनत योग्यता से प्राप्त हुए है इसे तुम अपने पास रखो तुम्हारे काम आएंगे आशीष बोला महाराज मैं कायस्थ कुल का हूँ ब्राह्मणों चित कर्मो के प्राप्ति ना तो कर सकता हूँ ना ही मुझे रखने का अधिकार है इसे आप ही रखिये महाराज ने आशीष को बहुत समझाने की कोशिश किया मगर आशीष नही माना हार कर महाराज ने आशीष के जिद्द के सामने घुटने टेक दिये और सारा पैसा रुपया सामान रख लिया ।

आशीष और महाराज वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन के उसी हनुमान मंदिर पहुंचे जहां दोनों कि मुलाकात हुई थी भजन कीर्तन के बाद आशीष एव महाराज रामबली जी एक साथ बाहर निकले और उज्जैन जाने वाली रेलगाड़ी का इंतजार करने लगे महाराज ने टिकट देकर आशीष से ट्रेन में जाने वाले टी टी से बात करवा दिया और रेलगाड़ी में आशीष को बैठा दिया और बोले
आशीष जिसने भी किसी माँ की कोख से जन्म लिया है उंसे एक ना एक दिन जाना होता है सारे रिश्ते नाते धन दौलत यही रह जाता है ।

साथ जाता है सदकर्मो की छाया रह जती है उसकी पद चाप अतः सुख दुख दोनों में एक समान मन चित्त को शांत रखना और जीवन को उत्सव के उत्साह के साथ जीने की साधाना करना विजयी भव ज्यो ही महाराज रामबली जी के उपदेश आशीर्वाद पूर्ण हुये रेलगाड़ी ने सिटी बजाई और अपने गंतव्य कि तरफ चल दी ।

आशीष गांव रमई पट्टी से केवल स्कूल के कपड़े पहन कर बिना टिकट निकला था अब उसके पास रेल टिकट एवं कुछ कपड़ो के साथ महाराज का आशीर्वाद एव उपदेश कि पूंजी तो थी ही ।श्रीमद्भागवत गीता रामायण शिव पुराण कि आत्मा भी उसकी आत्म शक्ति थी।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।