beauty in imperfections in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | खामियों में सुन्दरता

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खामियों में सुन्दरता

रात बारह बजे का वक्त था ,दो दोस्त रेलवें स्टेशन के बाहर एक टपरी पर बैठे चाय पी रहे थे,एक का नाम श्रीहरि और दूसरे का रामानुज था,उधर से आने जाने वाली रेलों की आवाज़ सुनाई दे रही थी,चाय बहुत गर्म थी इसलिए दोनों धीरे-धीरे घूँट भर रहे थे, उनके सामने ही थोड़ी दूर पर पेड़ के नीचे चबूतरे पर एक औरत बैठी थी, , गोल मटोल चेहरा, तीखी नाक और पतले से बहुत ही बेतरतीब तरीके के लाली लगे होंठ,वो अक्सर अपने ग्राहकों की तलाश में वहाँ बैठा करती थी,तभी श्रीहरि उस औरत को देखकर बोला....
“देखा!बैठी है जाल फेंकने के लिए”
तब रामानुज बोला,
“फंँस ही जाएगी कोई न कोई रईस मछली”
तभी श्रीहरि बोला....
“ये धन्धा भी अजीब है दोस्त! कोई कोठे पर बैठती है,तो कोई यूँ गली चौराहों पर अपना सौदा करती फिरती है,तो कोई इस तरह से रेलवें स्टेशन में में बैठी रहती है,जिस्म बेचना भी एक कला है और मेरा मानना है कि यह बहुत मुश्किल कला है,ये कैसे किसी ग्राहक को ये बताती होगी कि मैं बिकाऊ हूँ”
तब रामानुज ने मुस्कुराकर पूछा,
"वैसे कौन है ये लड़की?”
तब श्रीहरि ने जवाब दिया,
“ये वही है जिसके बारे में तुमसे कहा था"जो रोज रात यहाँ आती है...
तब रामानुज ने उसे बड़े ध्यान से देखा,उसके बालों का रंग भूरा था जो कि खुले हुए थे, हल्के पीले रंग की पारदर्शी साड़ी और पीछे से डोरी वाले गले का छोटी आस्तीनों वाला लाल ब्लाउज था,पतली-पतली गोरी बांँहें,शरीर का कटाव भी ठीकठाक ही था,उसके सँजने सँवरने के तरीके से वो फूहड़ और गँवार लग रही थी,उसे देखकर रामानुज बोला .....
इसे सुन्दर नहीं कह सकते,उसमें बहुत सी खामियाँ हैं,ना साड़ी पहनने का सलीका और ना स्नू पाउडर लगाने का ढंग,ये कहाँ से सुन्दर लग रही है,
तब श्रीहरि हंँसकर बोला.....
“तुम्हें सिर्फ़ खामियांँ ही नजर आती हैं,अच्छाईयों पर तो तुम्हारी निगाह कभी नहीं पड़ती।”
तब रामानुज बोला.....
“जो अच्छाईयां हैं उसमें अब वो भी बता दो,लेकिन पहले ये बताओ कि तुम उस लड़की को पहले से जानते हो क्या?"“नाम क्या है उसका?”
"चमेली नाम है उसका,बिहारन है,"श्रीहरि बोला....
तब रामानुज चौंककर बोला.....
“बिहारन है” मतलब तुम्हारे इलाके की है,यहांँ कैसे आई भला?”
“पता नहीं”श्रीहरि बोला....
'लेकिन तुम्हें ये किसने बताया कि वो बिहारन है',रामानुज ने पूछा..
तब श्रीहरि बोला...
"पता नहीं कोई है भी इसका या नहीं,यहाँ दिल्ली में तो ये अकेली रहती है,मिण्टो रोड पर एक फाइवस्टार होटल है , उसके पास वहांँ इसने एक कमरा किराए पर ले रखा है,मुझे मेरे ड्राइवर ने बताया था क्योंकि वो भी इसका ग्राहक है,रात को दस बजे आती है ये यहांँ"......
"तब तो इससे मिलना पड़ेगा,शायद इससे मिलकर मुझे अपने नावेल की हिरोइन मिल जाए “ रामानुज बोला.....
तब श्रीहरि मुस्कुराकर बोला...,
“ज़रूर ज़रूर... क्यों नहीं, कभी आ जाना यहांँ किसी रात.......
और फिर उस रात दोनों चाय पीकर रेलवें स्टेशन से चले गए फिर एक रात रामानुज अकेला वहाँ आया और चाय पीने बैठ गया,ठीक रात दस बजे वो लड़की फिर वहाँ आई कमर लचकाती हुई ,उसकी घटिया चाल बहुत भद्दी थी,रामानुज ने मन में सोचा इसे ग्राहक कैसे मिलते होगें,होठों पर लाली कितने बेहूदा तरीके से लगाई है और पाउडर भी बेतरतीब तरीके से पोता है,आज भी ना साड़ी सलीके से पहनी और ना ही श्रृगांर में कोई आकर्षण है,फिर उसने सोचा लेकिन इससे मिला कैसे जाएँ?
उसने चाय पीते पीते लड़की की ओर इशारा किया,लड़की ने उसकी ओर देखा और फिर इशारों में उसे अपने पास आने को कहा,रामानुज अपनी चाय खतम करके उसके पास जा पहुँचा,कुछ देर दोनों शान्त खड़े रहे फिर वो रामानुज से बोली...
“तुम चलना चाहते हो मेरे साथ”
रामानुज को एक झटका सा लगा, घबराहट में उसके मुँह से “हाँ” निकल गया...
लड़की ने कहा,
”एक रात का दो हजार लूँगी"
"हाँ दे दूँगा चलो",रामानुज बोला...
फिर दोनों ने एक टैक्सी पकड़ी और बैठ गए, लड़की चुप थी और रामानुज भी चुप था,फिर लड़की ने चुप्पी तोड़ी और वो बोली...
"हम कहाँ जा रहे हैं?"
जहाँ आप चाहें,रामानुज बोला...
"ये क्या कहते हैं आप?",लड़की ने पूछा...
तब रामानुज मुस्कुराकर बोला....,
“देखो चमेली बात ये है कि एक दोस्त ने तुम्हारी कुछ बातें सुनाईं जो मुझे बहुत ही दिलचस्प लगीं,इसलिए आज मैने तुमसे बात करने का सोचा,मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूँ,अगर तुम्हें कोई एतराज़ ना हो तो..."
"आपकी जैसी मर्जी" और ऐसा कहकर चमेली रामानुज की बात मान गई,
कुछ देर में दोनों इण्डियागेट पहुँच गए और वहाँ के मैदान की घास पर जा बैठे,फिर चमेली ने रामानुज से कहा...
पूछो!क्या पूछना चाहते हो?”
रामानुज ने चमेली की तरफ बड़े ध्यान से देखा और बोला.....
“पहली बात तो ये है कि तुम्हें ठीक से सँजना सँवरना नहीं आता"...
“मुझे पता है” चमेली बोली....
फिर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही,फिर रामानुज बोला....
“इतना तो मुझे पता है कि तुम बिहार की रहने वाली हो, तुम्हारा नाम चमेली है,इसके अलावा अपने बारें में और कुछ बताओ.....
तब चमेली बोली......
“मेरे पिता वकील थे और मैं काँलेज में पढ़ा करती थी,काँलेज में मेरा एक लड़के से प्रेम हो गया और मैं उसके साथ भागकर दिल्ली आ गई,यहाँ उसने मुझे बेच दिया और तबसे मैं ऐसी जिन्दगी जी रही हूँ,पेट पालने के लिए कोई काम तो चाहिए ना!"
तब रामानुज ने कहा.......
"पेट पालने के लिए शरीफो वाले और काम भी तो कर सकती थी"
तब चमेली बोली....
हाँ!थे और काम, लेकिन जहाँ मुझे बेचा गया था,वहाँ से छूट ना पाई और जब छूटी और शराफत वाले काम करने चाहे तो हर मर्द की निगाहों में मुझे केवल दरिन्दा ही नजर आया,मैं ज्यादा ग्राहक नहीं लेती,मैं केवल उतना कमाती हूँ जिससे मेरा गुजारा हो सके,मुझे अपनी सेहद का ख्याल भी तो रखना है....
"तो फिर जब तुम वहाँ से छूट गई थी तो अपने घर लौट जाती,"रामानुज बोला...
तब चमेली उदास मन से बोली....
गई थी घर लौटकर,लेकिन पता चला कि मेरे घर छोड़ने के बाद पिता को इतना बड़ा धक्का लगा कि उन्होंने फाँसी लगाकर अपनी जान दे देदी...
"ओह...ये तो बहुत बुरा हुआ" रामानुज बोला....
"मैं ही तो अपने पिता की हत्यारिन थी,मेरे कारण ही उन्हें ऐसा करना पड़ा,"चमेली बोली....
"अक्सर जवानी में ऐसी भूलें हो जाया करतीं हैं"रामानुज बोला...
"हाँ!माँ होती तो अच्छे भले का ज्ञान देती लेकिन वो तो मुझे मेरे बचपन में ही छोड़कर चली गई,"ये कहते कहते चमेली की आँखें भर आईं....
इसी तरह दोनों को बाते करते करते दो घंटे बीत चुके थे,तब चमेली ने रामानुज से कहा.....
"बहुत देर हो गई है अब हमें चलना चाहिए,नहीं तो पुलिस वाले यहाँ आकर हमें परेशान करने लगेंगे"
तब दोनों उठकर अपने अपने रास्ते जाने लगें और रामानुज बोला.....
"चलो!मैं तुम्हें टैक्सी पर बैठा देता हूँ"
"नहीं!मैं चली जाऊँगी,हम जैसों के लिए भला रात क्या और दिन क्या?"चमेली बोली...
"ठीक है तो मैं चलता हूँ,जल्द ही किताब शुरू करूँगा तुम पर और जरूरत पड़ी तो फिर से मिलने चला आऊँगा,"रामानुज बोला....
"ठीक है अबकी बार बातें करनी हो तो दिन में मेरे घर आ जाना,मैं मिण्टो रोड में रहती हूँ,रात को मेरे कमाने का वक्त होता है" ,चमेली बोली....
फिर रामानुज ने “अच्छा” कहा ,दो हजार रूपए दिए और चल दिया.....
फिर एक रोज रामानुज चमेली के घर दोपहर के समय पहुँचा,उसके घर का पता उसने श्रीहरि से पूछ लिया था, रामानुज का ख्याल था कि वो उसका आना पसंद नहीं करेगी लेकिन उसने कोई एतराज ना जताया,रामानुज देर तक उसके पास बैठा रहा,,उसने उससे कहा कि पाउडर आटे की तरह ना पोता करो,होठों पर लाली जरा तरीके से लगाया करो और साड़ी ऐसे फूहड़ो की तरह नहीं पहनी जाती,सलीके से साड़ी पहनोगी तो ग्राहक तुम्हें देखकर और भी आकर्षित होगा,चमेली रामानुज की बात सुनकर हाँ में जवाब देती रही,उसने अपने पिता और उसके बचपन की तस्वींरें उसे दिखाईं,अपनी सारी चीजें उसने रामानुज को दिखाईं,ऐसा लग रहा था कि उसमें ना तो बचपना था,ना जवानी और ना ही बुढ़ापा,वो जैसे कुछ बनते-बनते एक दम ठहर गई थी, एक ऐसे मुक़ाम पर ठहर गई थी जिसके मौसम का वक्त तय नहीं हो सकता था, वो ख़ूबसूरत थी और ना बदसूरत, औरत थी ना लड़की, वो फूल थी ना कली,शाखा थी ना तना,उसे देखकर रामानुज को उलझन हो रही थी,अब रामानुज को उसकी खामियों में सुन्दरता नजर आने लगी थी,वो अब ज्यादातर चमेली से मिलने जाने लगा,अब चमेली उसके लिए वैसी औरत ना रही थी,उसकी नजरों में अब उसका सम्मान बढ़ गया था,अब चमेली रामानुज से कोई रूपये ना लेती,वो उससे कहती तुमने मुझे इन्सान समझा ,मेरी भावनाओं को समझा,मेरी बात सुनी ,इससे ज्यादा अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए,लोगों ने मुझे बाजारू समझा लेकिन तुमने मुझे मुझसे रूबरू करवाया,इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया....
फिर रामानुज ने चमेली पर किताब लिखी जो बहुत प्रसिद्ध हुई.....

समाप्त....
सरोज वर्मा....