पूनम के साथ हुई दुर्घटना और उसकी ऐसी हालत देखकर होटल का पूरा स्टाफ दुःखी हो गया। सब बात कर रहे थे, कैसी लीला है भगवान की, अभी-अभी सुहागन बनाया और अभी विधवा बना दिया। कैसी ख़ुश आई थी यहाँ और अब कितना बड़ा दुःख लेकर अकेली घर वापस जाएगी। रात काफी हो चुकी थी। होटल के मैनेजर ने उसकी बहुत मदद की। मैनेजर ने स्टाफ की एक लड़की को भी पूनम के साथ रखा ताकि वह उसका ख़्याल रख सके।
पूनम का मोबाइल भी नदी के तेज बहाव में ना जाने कहाँ के कहाँ जा चुका था, इसलिए वह अपने घर फोन तक नहीं कर पा रही थी। मैनेजर ने किसी तरह से पूनम से फोन नंबर पूछा और फिर उसके घर फोन लगाया। फोन पूनम के ससुर धीरज ने उठाया।
मैनेजर ने कहा, “सर मैं होटल मूनलाइट से बात कर रहा हूँ। यहाँ बहुत बड़ा हादसा हो गया है। आपको धैर्य रखना होगा सर। आई एम सॉरी सर, यहाँ नदी के उस पार से वापस आते हुए नाव ने पानी के तेज बहाव के कारण संतुलन खो दिया और इस हादसे में …”
“इस हादसे में क्या …? आगे बोलिए ना आप … मेरे बच्चे …”
“सर आपके बेटे का कुछ पता नहीं चल पा रहा है। पूनम जी को नदी से बाहर निकाल लिया गया है। वह अभी हमारे होटल में ही हैं। आप लोग जल्दी से जल्दी यहाँ आ जाइए। पूनम जी की हालत बहुत खराब है। हम उनका ध्यान रख रहे हैं। आपके बेटे को ढूँढने की कोशिश अभी भी जारी है।”
धीरज के हाथों से फोन छूट कर ज़मीन पर आ गिरा।
कल्पना ने पूछा, “धीरज क्या हुआ?”
धीरज घुटनों के बल बैठ गए और रोते-रोते कहा, “कल्पना हम बर्बाद हो गए। अब कुछ नहीं बचा, सब कुछ ख़त्म हो गया।”
“धीरज क्या हुआ साफ़-साफ़ कहो ना …”
“कल्पना हमारा प्रकाश …”
“क्या हुआ प्रकाश को?,” कल्पना ने धीरज को झकझोरते हुए कहा।
“ऐसा लगता है कि वह हमें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चला गया …”
तब तक प्रकाश की बहन और जीजाजी भी वहां आ गए। घर में मातम छा गया, हँसता खेलता परिवार गम के तूफान में डूब गया। कल्पना बेहोश हो गई, उन्हें होश में लेकर आए और पूरा परिवार कुछ मित्रों के साथ कार से निकल पड़ा। रास्ता मीलों लंबा लग रहा था। कौन किसे संभाले, सभी की हालत नाजुक हो रही थी। पूनम के माता-पिता भी इस दुःख के समय, अपनी बेटी के दुर्भाग्य का मातम मनाते हुए उन्हीं के साथ जा रहे थे।
मून लाइट होटल पहुँचते ही होटल के मैनेजर ने उन्हें पूनम के कमरे तक पहुँचा दिया। जैसे ही वे अंदर पहुँचे पूनम बेसुध सी बिस्तर पर लेटे आँसू बहा रही थी । उसकी हालत देखकर सभी के होश उड़ गए। पूनम जब गई थी तो ऊपर से नीचे तक सोलह श्रृंगार से सजी-धजी किसी अप्सरा की तरह लग रही थी लेकिन अब सामने खड़ी किसी वीरान खंडहर की तरह लग रही है; जिसमें मानो जान ही ना बची हो। ना गले में मंगलसूत्र, ना कानों में बाली, ना माथे पर बिंदी, ना होंठों पर लाली, सब कुछ मानो समाप्त हो चुका था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः