Tamacha - 33 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 33 (रिश्तेदारी )

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तमाचा - 33 (रिश्तेदारी )

"आओ , घनश्याम बैठो। और सुनाओ कैसे हो? आज कैसे आना हुआ?" मोहनचंद ने अपने मित्र घनश्याम को एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगाते हुए पूछा। घनश्याम आज किसी काम से जयपुर आये थे। सोचा कि अपने मित्र से मिलते चले।
"बस , अच्छे है। आज थोड़ा काम था तो आ गया। तुम सुनाओ कैसे हो?" घनश्याम ने एक आह भरकर शांत चित्त से कहा।
"मैं भी बढ़िया हूँ। और हमारी प्रिया बिटिया कैसी है?" मोहनचंद ने जग में से पानी ,गिलास में डालकर घनश्याम को देते हुए कहा।
"वो भी ठीक है। तुम्हारा लाल दिखाई नहीं दे रहा है। अरे ! तुम्हें बधाई हो। वह कॉलेज इलेक्शन में विजयी हुआ है।" घनश्याम ने अपनी आवाज में हल्का जोश लाते हुए कहा।
"हाँ, धन्यवाद । वह अभी उनके पार्टी ऑफिस में ही है। आज उनकी जीत की पार्टी रखी गयी है। तो वहाँ जाना पड़ा। अब विधायक जी ने बुलवाया है तो जाना तो पड़ेगा ही। " मोहनचंद जो चाहता था कि राकेश इन सब लफडों से दूर रहे , पर अभी वह घनश्याम के सामने अब शेखी बघार रहा था।
अक्सर लोग ऐसा करते है किसी चीज या विचार से पहले वो असहमत होते है पर जब दूसरे लोगों द्वारा उसकी प्रशंसा की जाए तो वह अपने मन में अपने पुराने विचारों में बदलाव कर देते है। केवल अपने अहम की तृप्ति के लिए।

"हाँ, बहुत अच्छी बात है।" घनश्याम कहता है और मन में सोचता है कि यह लड़का सही रहेगा प्रिया के लिए। विधायक तक पहुँच है, परिवार भी अच्छा है,ऊपर से दोस्त का लड़का है तो दहेज भी कम देना पड़ेगा। पर यह बात अपने मित्र को बोलने में अभी हिचकिचा रहा था।

"वैसे उसकी शादी के बारे में कुछ सोचा है?" घनश्याम ने आखिरकार अपने तरकश में से वह बाण छोड़ ही दिया जिसे छोड़ने के लिए वह व्याकुल था।
"नहीं , अभी तक तो नहीं। अभी थोड़ा कैरियर पर ध्यान दे बाद में देखते है।" मोहनचंद बोल तो लिया फिर सोचने लगा, घनश्याम की बेटी प्रिया भी अच्छी लड़की है और यह परिवार भी जान-पहचान का है अगर इनसे ही बात हो जाये तो ठीक रहेगा।
"हाँ , वो तो है ही । वैसे तो प्रिया भी अभी अपने अध्ययन पर ध्यान दे रही है। पर मैं सोचता हूँ, अगर उसकी सगाई की बात हो जाये तो एक चिंता से तो मुक्त रहे। क्या पता फिर अच्छा लड़का मिले न मिले।" घनश्याम के इस बाण का मोहनचंद पर पर्याप्त असर पड़ा। वह भी इस बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।
"हाँ, बात तो सही है तेरी। फिर कोई लड़का है नज़र में?" दोस्ती होने के बावजूद दोनों यह बात स्वयं न कहकर सामने से कहलवाना चाहते थे कि हम आपस में दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दे। लेकिन आख़िर में ऐतिहासिक परम्परा को निभाते हुए घनश्याम ने बोल ही दिया। "लड़का तो नज़र में है एक,परिवार भी अच्छा है। पर वह सहमति तुझ पर निर्भर है।" मोहनचंद अपने मित्र की बात को भाँप गया फिर भी जानबूझकर बोला।
"वो कैसे?"
"वो तुम्हारा ही लड़का है। अगर राकेश का रिश्ता मेरी बेटी प्रिया से कर लो तो मैं निश्चिंत हो जाऊँगा।" घनश्याम अपने हाथ जोड़कर थोड़ा झुकते हुए, विनती के भाव से बोला।
"अरे..अरे... ये क्या कर रहे हो? तुमने तो मेरे हृदय की बात कह ली। प्रिया बिटिया से अच्छी बहु भला हमें कहाँ मिलेगी?" घनश्याम के इस तरह झुकने पर मोहनचंद अपने अहोभाव को थोड़ा कम करते हुए बोला।



रेखा मिठाई लेकर आती है। सभी प्रसन्न हो जाते है। रेखा,मोहनचंद और घनश्याम तीनों के मुखः पर एक असीम शांति छा जाती है। हिंदुस्तान में मानव जीवन की सबसे बड़ी कठिनाइयों में से एक है, अपनी संतान का रिश्ता एक अच्छी जगह तय करना और बिना किसी विवाद के विवाह का संपन्न हो जाना। मोहनचंद और घनश्याम दोनों एक-दूसरे के परिवार के प्रति आश्वस्त थे। लेकिन उन्होंने प्रिया और राकेश से इस बारे में कोई बात करना उचित नहीं समझा । वे दोनों अभी तक अपने-अपने भविष्य से बेखबर अपनी-अपनी दुनियाँ में व्यस्त थे।

( वर्तमान समय में मैं एक विद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्यरत हूँ। अपनी व्यस्त दिनचर्या होने के कारण में हर चार दिन में एक पार्ट प्रकाशित कर पाता हूँ। मुझे नया लिखने के प्रेरणा आपसे ही मिलती है। आपकी अमूल्य समीक्षा मेरे लिए एक संजीवनी की तरह है। मैं भी एक सामान्य व्यक्ति हूँ तो मेरे से गलतियाँ होना आम बात है। आशा है आप मेरी गलतियों को दरकिनार कर एक सच्चे भ्राता के रूप में मुझे अपनायेंगे और अब इंतजार रहेगा मुझे आपके जवाब का। आपका भाई - नन्दलाल सुथार'राही'


क्रमशः....