मेरी आँखों मे नींद की जगह असंख्य सपने थें। मैंने रात बारह बजे ही रघुबीर को मेसेज कर दिया - हैप्पी वेलेंटाइन्स डे माय लव ,माय वेलेंटाइन । इस बार लव नोट के साथ एक लाल गुलाब भी भेज दिया था मैंने।
रघुबीर का रिप्लाई आया - अरे वाह , इस बार तो सबसे पहले आपने विश करके बाज़ी मार ली। औऱ लाल गुलाब भी। लग रहा हैं कल बहुत कुछ ख़ास करने वाली हो।
मैंने कहा - खास तो आप ख़ुद हैं , आप आओ तो सही.. इस बार आपकों मैं सैर करवाउंगी।
रघुबीर ने कहा -अच्छा सिया , बाद में बात करता हूँ। लव यू...
सूर्योदय से पहले ही मेरी नींद खुल गईं। बाहर देखा तो आसमान हल्की सी लालिमा लिए हुए था । पक्षी का कलरव कानों को सुकून देने वाला था। मैं जल्दी ही तैयार हो गई थीं औऱ स्कूटी लेकर चल पड़ी थीं - 'लाल गुलाब ' लेने।
गुलाब लेकर मैं घर पहुँची। मैंने गुलाब फ्रीज में रख दिया औऱ पानी की बोतल लेकर हॉल में आ गई। सोफे पर बैठी ही थीं कि पापा हड़बड़ी में आए , उन्होंने जल्दी से रिमोट ढूंढा और काँपते हुए हाथों से टेलीविजन ऑन किया। यह सब देखकर किसी अनहोनी की आशंका से मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। टीवी ऑन हुआ..मैं आँखे गढ़ाए टीवी देखने लगीं। तब तक परिवार के बाक़ी सदस्य भी हॉल में इकट्ठा होने लगें। पापा ने जैसे ही न्यूज चैनल ट्यून किया - एंकर की आवाज़ कानों में गूँजी - इस वक्त की बड़ी खबर , जम्मू में हुआ हैं आतंकी हमला..हमले में कई जवानों के शहीद होने की आशंका हैं ,, सीधे रूख करेंगे हमारे संवाददाता से....
आगें का सुनने से पहले मैं बेहोश हो गईं। घर मे अफरा-तफरी मच गई। जैसे कोई भूचाल आ गया। रघुबीर के घर से रोने की तेज़ आवाज़ सुनकर मम्मी रघुबीर के घर की ओर दौड़े। मैं बेसुध पड़ी रहीं। किसी को किसी का ख्याल नहीं ..कौन किसको संभाले..? डॉक्टर को कॉल करके घर बुलाया गया। मुझें जब होश आया तब तक न्यूज़ की सुर्खियों में एक नाम गूंज रहा था - लेफ्टिनेंट रघुबीर भार्गव हुए शहीद...कई जवान हुए जख्मी ।
मैं जैसे पत्थर की मूर्ति बन गई..भावना शून्य , दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया । होंठ काँपने लगें पर मुंह से शब्द नहीं निकलें।
आँख फटी की फटी रह गईं। अचानक आँखों के आगें अँधेरा छा गया।
दोपहर के तीन बज रहें थें । बाहर लोगों का हुजूम लगा हुआ था। लोगों का शोर सुनाई दे रहा था - वीर जवान अमर रहें ..वन्देमातरम..जब तक सूरज चांद रहेगा रघुबीर तेरा नाम रहेगा....
मुझें मम्मी लेने आए उनकी नजरें झुकी हुई थीं
वो बोली - चल सिया , रघुबीर को ले आए हैं...
बहुत भारी थे ये शब्द..मैंने मम्मी से कहा - ऐसा नहीं कहते मम्मी रघुबीर को ले आए नहीं , वो ख़ुद आएं है..मेरी उनसे बात हुई हैं।
मम्मी आँचल से मुँह छुपाकर बोली - अब वो कभी नहीं आयेंगे सिया....कहते हुए मम्मी बाहर निकल गए।
मैं ख़ुद से बुदबुदाते हुए बोली - वो कही नहीं गए..यहीं हैं , यहीं रहेंगे..हमेशा मेरे साथ , मेरे पास...
बाहर शोर तेज़ हो गया - रघुबीर अमर रहें ..अमर रहें...जब तक सूरज चांद रहेगा , रघुबीर तेरा नाम रहेगा....
रघुबीर की बाते मेरे कानों में गूँजने लगीं-इन आँखों से आँसू बहने न देना..दादाजी के ऑफिस का काम तूम देखना..इस बार जब आऊंगा तो घोड़ी पर बैठकर आऊंगा...लाल गुलाब तो तुमसे ही लुँगा....
'लाल गुलाब' - मैं दौड़कर फ्रीज की ओर गई। फ्रीज से लाल गुलाब निकाला औऱ बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए।
मैंने देखा भीड़ के बीचोबीच तिरंगे से लिपटा ताबूत था।
रघुबीर के शब्द बरबस ही किसी कैसेट की तरह बजने लगें - " कभी तिरंगे से लिपटा हुआ आऊं तब भी इतना ही प्यार लुटाना...
आँसुओं से भरी आँख ..पर आँसू का एक कतरा भी रघुबीर के वादे के कारण न गिर सका।
मैंने लाल गुलाब तिरंगे में लिपटे हुए रघुबीर को अदब से दिया । वेलेंटाइन्स डे पर आने का वादा रघुबीर ने ख़ूब निभाया....
अतीत की यादों से निकलकर मैं वर्तमान में आ गई....जैसे रघुबीर की रग-रग में तिरंगा लहराता था वैसे ही रघुबीर का प्यार मेरी रग - रग में बहता हैं। रघुबीर की तरह ही मेरा प्यार भी अमर हो गया ।।
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