हफ्ते बीतने में देर नहीं लगी, सुबह-सुबह सत्यम उठा, नहा-धोकर तैयार हुआ, नए कपड़े पहने, नई-नई पर्फ्यूम लगाई, आज रिया से जो मिलना था पूरे एक सप्ताह के बाद ।
घर में मम्मी सोच रही थी कि आज कोई त्यौहार तो नहीं कि सुबह-सुबह इतना तैयार होकर के जा रहा है । तो मम्मी ने चुटीली अंदाज में पूछ लिया क्या साहबजादे मेरे लिए बहू लाने जा रहा है क्या इतना तैयार होकर ? उस समय देखने लायक था सत्यम का चेहरा; बेचारा शर्माता हुआ बोला- अरे मम्मी बस कॉलेज जा रहा हूँ। पहला दिन है ना इसीलिए इतना तैयार होकर जा रहा हूँ।
दो मिनट भी नहीं बीते होंगे की रिया का कॉल आया । हाँ जी कहाँ हो ? आना है ना ? रिया ने पूछा ।
अरे हाँ यार; बस आ ही रहा हूँ, निकल रहा हूँ 5 मिनट में घर से । सत्यम ने बोला । ठीक है तो मेट्रो स्टेशन पर आ जाना, और आकर मुझे कॉल करना, मैं तुम्हें वहीं से पिक कर लूंगी रिया ने बोला ।
हाँ हाँ ठीक है मैं मेट्रो स्टेशन आ कर तुझे कॉल कर लूंगा तुम वहां पर मिल जाना । सत्यम ने बोला । और बाय कहते हुए फोन काट दिया ।
देखने लायक थी सत्यम के चेहरे की खुशी । एक सप्ताह बाद दोनों मिलने वाले थे आज । खैर सत्यम अपने दिमाग में इसी तरह की ख्याली पुलाव को पकाते हुए निकल पड़ा कॉलेज के लिए । 45 मिनट के बाद में मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो रिया उसे वहीं पर गाड़ी के साथ वेट करती हुई दिखी । दोनों गाड़ी में बैठे और चल पड़े कॉलेज की ओर ।
अच्छा तो तू कितने देर से वेट कर रही है मेरा ? सत्यम ने पूछा । यही कोई दस मिनट से रिया ने बोला। अरे यार एक्चुअली वह मेट्रो पहली वाली छूट गई तो दूसरी वाली पकड़ी मैंने । सत्यम ने बोला । अरे कोई बात नहीं 10 मिनट ही तो लेट हुआ ।
मजाक ही मजाक में सत्यम ने पूछा अच्छा तो कोई और दोस्त बनाया ? 'नहीं' रिया ने बोला । अब दोस्त की क्या जरूरत तू तो मिल गया ना । तो सत्यम जरा सा शर्माते हुए बोला अच्छा बढ़िया है । रिया भी मुस्कुराने लगी । थोड़ी देर बाद दोनों कॉलेज पहुँचे।
कह सकते हैं कि आज पहला दिन था दोनों का उस कॉलेज में । क्लास वगैरह के बारे में कुछ पता तो था नहीं । तो दोनों साथ मिलकर के ढूंढने लगे फ़िर दिनभर क्लास किया, कैंटीन में घूमे, लाइब्रेरी में टाइम बिताया, और फिर शाम में निकल पड़े वापस अपने अपने घरों के लिए ।
घर आकर भी रिया अपने अलग दुनिया में खोई हुई थी, और सत्यम न जाने कितने प्रकार के ख्याली पुलाव में पका रहा था । दोनों ने एक दूसरे के अलावा किसी तीसरे को दोस्त तक नहीं बनाया कॉलेज में ।
घंटो-घंटो समय बिताने लगे एक दूसरे के साथ में । कॉलेज से घर आने के बाद भी घंटो-घंटो तक एक दूसरे के साथ लगे रहते थे फोन पर ।
घर वालों को तो थोड़ा शक भी होने लगा कभी-कभी सत्यम की मम्मी डांट देती तो कभी कुछ सुना देती । दिन भर लगा रहे फोन में दूसरा काम तो है नहीं । पढ़ाई-लिखाई, घर-परिवार इन सब चीजों से तुझे क्या मतलब ?
तो सत्यम भी मजाक में इन सभी चीजों को दिमाग से उड़ा देता, 'अरे मम्मी' यार दो मिनट ।
कहते हैं ना हर कहानी में एक विलन जरूर होता है । हफ्ते गुजर गए एक दिन कॉलेज में दोनों एक दूसरे के साथ घूम रहे थे । तभी अपनी गैंग के साथ वहां राजू भैया प्रकट हुए ।
'और भाई फर्स्ट ईयर से हो तुम दोनों' ? राजू भैया ने पूछा । 'हाँ वी आर फ्रॉम फर्स्ट ईयर' सत्यम ने दबे आवाज़ में कहा । मेरा नाम राजू सिंह और यह मेरी टीम है, और मैं यहां पर कॉलेज प्रेजिडेंट पद का प्रत्याशी हूँ। राजू भैया ने अपना परिचय देते हुए कहा । वैसे सभी मुझे राजू भैया ही कहते हैं । और कॉलेज में कोई समस्या हो, किसी प्रकार की प्रॉब्लम हो तो मुझसे कांटेक्ट करना । तुम्हारी समस्या ऐज सून ऐज पॉसिबल सॉल्व कर दी जाएगी । यह लो मेरा नंबर, रखो कोई प्रॉब्लम हो मुझे बिंदास कॉल कर लेना । तुम को किसी प्रकार की कॉलेज में समस्या नहीं होगी ।
जी भैया ठीक है । कोई प्रॉब्लम होगी मैं आपको कॉल कर लूंगा । और यह मेरी दोस्त रिया है । सत्यम ने कहा । हाथ मिलाने के बाद राजू भैया, सत्यम और रिया अपने-अपने रास्ते में चल दिए ।
यार दो मिनट के लिए तो मैं डर ही गई थी । इतनी बड़ी टीम के साथ आया था ये मुझे लगा कुछ गलत तो नहीं हो गया । अरे नहीं यार यह इलेक्शन में खड़े होने वाले हैं प्रेसिडेंट के लिए । इसीलिए उन्होंने हमें देखा तो मिलना चाहा ।
- सौरभ कुमार ठाकुर
रिया और सत्यम की कॉलेज लाइफ और पहली नजर के पहले प्यार की खट्टी- मीठी कहानी अगले पार्ट में आपके समक्ष होगी । कहानी को प्यार दीजिए और मुझे आशीर्वाद दीजिए ।