विश्वास (भाग-36)
भुवन और संध्या के लिए एक और सरप्राइज मिला कमरे को देख कर। कमरा बहुत सुंदर सजा हुआ था।
संध्या जहाँ शरमा रही थी, वहीं भुवन को ये सब अजीब लग रहा था।
कुछ मिनटो में टीना अपने हाथों में दो शापिंग बैग ले कर आ गयी।
सॉरी दी, मैं आप दोनों को डिस्टर्ब कर रही हूँ, पर आप को पैकिंग करनी है तो इसलिए आपका सामान लायी हूँ।
टीना नेे जो सामान भुवन के लिए खरीदा था वो भुवन को दिया ये सब ले जाना काम आएगा।
दूसरा बैग संध्या को दिया, "दीदी आप यहाँ वेस्टर्न ड्रैसेज नहीं पहन सकती, पर वहाँ पहनना। आपके लिए लायी हूँ"।
"टीना तुम लड़की हो या क्या हो? इतनी छोटी छोटी बातों का तुम ध्यान रखती हो, कभी मैं नहीं रख पाया तो तुम्हे दुख होगा"।
"आप इतना मत सोचो, आपकी दोस्त हूँ, जहाँ गलती करोगे वहाँ याद दिलवा दूँगी"। टीना ने मुस्करा कर कहा तो भुवन और संध्या भी हँस दिए।
टीना हम भी परसों चले जाँएगें अब तो खूब पढना है, मेरा एंट्रैस एग्जाम है जनवरी में M.D के एडमिशन के लिए। फिर नरेन भी एग्जाम में बिजी होगा तो अगर हम कुछ महीने बात ना कर पाएँ तो बुरा मत मानना।
अरे इसमे बुरा क्यों मानना मेरे भी तो पेपर होंगे। अब एग्जाम्स के बाद ही बातें करेंगे।
टीना ने कहा।
बीच बीच में हाय हैलो कर लेंगे ठीक है न? नरेन बोला।
हाँ ठीक है, वैसे भी भुवन भैया तो दिल्ली हैं ही।
"ठीक है अब सोया जाए, सुबह घर जाना है", टीना बोली।
कमरे में आयी तो अँकल आँटी उसका इंतजार कर रहे थे।
टीना को उन्होने एक बॉक्स दिया, उसमें सोने की छोटी छोटी झुमकी थी।
अँकल जी यह मैं नही लूँगी, पिछली बार चूडियाँ दी थी न!!
बिटिया भुवन की शादी करवा कर जा रही हो, घर से खाली हाथ नहीं जाने देंगे।
बच्चों को जो दिया जाता है, वो ले लेना चाहिए। तुम जो लाई मैंने मना न किया। अब तेरी बारी है लेने की।
ठीक है, मैं कुछ नहीं बोलूँगी।
शाबाश ये हुई न बात, भुवन की माँ ने उसे गले लगाते हुए कहा।
अपनी पैकिंग करके टीना भी सो गयी।
सुबह दो गाडी दिल्ली के लिए निकली।
एक भुवन चला रहा था दूसरी उनका ड्रॉइवर।
भुवन की गाड़ी में संध्या, टीना और भुवन की माँ थे।
दूसरी गाडी में नरेन रवि और पापा। एक जगह गाडी रूकवा कर नरेन ने टीना को भी अपने साथ बिठा लिया।
सब बातें और मस्ती करते जा रहे थे। महावीर भी बच्चो के साथ बच्चा बन कर उनकी बातों में शामिल हो गए।
बीच में एक जगह रूक कर अपने साथ लाया खाना सबने खाया।
टीना की दादी ने महावीर जी को फोन पर लंच के लिए कहा तो उन्होने ये कह कर मना कर दिया की लंच कर लिया है, "आप हमारे 4-5 लोगो के लिए रात का खाना बना देना, हम भुवन और संध्या को एयरपोर्ट छोड़ कर वापिस घर चले जाँएगे"।
टीना को घर छोड़ वहाँ से भुवन और संध्या के लिए अलग और बाकी सब के लिए अलग टिफिन तैयार थे। वो लोग नीचे से ही चले गए क्योंकि देर हो रही थी, वापिसी उन्होने दूसरे रास्ते से करनी थी। इसलिए टीना एयरपोर्ट नही गयी।
भुवन और उसके पूरे परिवार ने उमा जी को धन्यवाद कहा और फिर जल्दी मिलने का वादा भी किया।
भुवन और संध्या को एयरपोर्ट छोड़ कर एक गाडी भुवन के बिल्डिंग में खडी कर दूसरी गाड़ी में वापिस गाँव चले गए।
टीना बहुत खुश थी, वो तो सब कुछ एक ही बार में बताना चाह रही थी।
मीनल ने उसको ये कह कर चोका कि पहले थोड़ी देर सो जा।
टीना थकी हुई तो थी ही, सो जल्दी सो भी गयी।
वो तो सोती रहती अगर उसका फोन नही बजता। फोन भुवन का था, मुुंबई पहुँच गए बताने के लिए।
"भुवन अब कुछ दिन आप संध्या दी और घूमने पर फोकस करो,शेरनी से आ कर बात करना अब"।
"अच्छा ठीक है मोटी, बताने को फोन किया था, मुझे पता है कि तुम चिंता करती। मैं जहाँ जहाँ पहुँचगा, फोन या मैसेज करता रहूँगा"।कह कर उसने फोन काट दिया।
हम अपने समय में कितना सुनते रहे हैं कि एक लड़का और एक लड़की सिर्फ अच्छे दोस्त नहीं हो सकते।
अब हम बदल रहे हैं। बच्चो को लड़के लडकी की दोस्ती में कुछ फर्क नजर नही आता। बस अपवाद पहले भी थे और अब भी हैं।