समय के साथ-साथ ज्यों-ज्यों किसी लेखक या लेखिका का लेखन विस्तार पाता है तो तजुर्बे के साथ उसके लेखन और अधिक गंभीरता.. परिपक्वता एवं स्थायित्व आने लगता है। समय के साथ वह ऐसे धीर गंभीर विषयों पर भी अपनी कलम चलाने का प्रयास करता जिनसे अब तक उसकी लेखनी अछूती रही है।
दोस्तों आज मैं ऐसे ही कुछ थोड़े कठिन विषयों से सम्मिलित एक ऐसे कहानी संग्रह की बात करने जा रहा हूँ जिसे धारा प्रवाह शैली में 'हार्ट इमोजी की धड़कन' के नाम से लिखा है प्रसिद्ध लेखिका रोचिका अरुण शर्मा ने। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी रोचिका शर्मा जी का पहला कहानी संकलन 2019 में आया था।
कुल 15 कहानियों से सुसज्जित उनके इस कहानी संग्रह में कहीं ममतामयी माँ के दर्शन होते है तो कहीं परदेस में आ कर बसी कोई युवती भाषायी दिक्कतों का सामना करती दिखाई देती है। कहीं कॉलेज रीयूनियन के बहाने पुरानी..गुज़र चुकी बातें फ़िर से मन को भिगो जाती हैं तो कहीं लॉक डाउन में हम प्रवासियों की दिक्कतों से रूबरू होते दिखाई देते हैं।
इसी संकलन की शीर्षक कहानी में अपने 17 वर्षीय बेटे को होस्टल छोड़ कर वापिस लौट रही भावना के मन में पश्चाताप के आँसू है कि वह अब तक अपने बेटे के लिए एक ममतामयी माँ बनने के बजाय हमेशा सख्त और अनुशासनप्रिय क्यों बनी रही। ऐसे में अब देखना यह है कि क्या बेटा उसके मन की अव्यक्त भावनाओं को समझ पाता है या नहीं।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ पड़ोस में आ कर नए बसे मित्रवत परिवार की ज़रूरत के वक्त उनकी मदद ना कर पाने का लेखिका को मलाल है मगर फ़िर कुछ ऐसा घटता है कि..
तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में पति के तबादले के कारण पंजाब से चेन्नई आ कर बसी रंजना की भाषायी दिक्कत को घर-घर डाक पहुँचाने वाली नागम्मा नाम की एक पोस्ट वूमेन काफ़ी हद तक दूर कर देती है। कोरोना काल के दौरान अपने कोविड ग्रस्त पति की मदद के लिए नागम्मा, रंजना को एक पत्र लिखती तो है मगर...
इस संकलन की एक कहानी चटख रंगों को पसन्द करने वाली निहारिका की बात करती नज़र आती है जिसका फ़ौजी पति आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो जाता है मगर एक विधवा होने के बावजूद निहारिका, रंगों के प्रति अपने प्रेम को मात्र दिखावे के लिए छिपाना नहीं चाहती कि..लोग क्या कहेंगे? तो वहीं एक अन्य कहानी में 22 सालों बाद कॉलेज की रीयूनियन पार्टी में अंजू को अपने पति के साथ जयपुर जाने का मौका मिलता है। वहाँ उसकी मुलाकात निशांत से होने पर बीते समय की कड़वी यादों के फ़िर से ताज़ा हो उठती हैं।
इसी संकलन की अन्य कहानी बड़ी नौकरियों और तरक्की के पीछे भागते ऐसे जोड़े की कहानी है जो काम के दबाव अथवा अपने सपनों को पूरा करने की चाह में अपने बच्चों पर ही सही से ध्यान नहीं दे पाते। तो वहीं एक अन्य कहानी लॉक-डाउन के दिनों में घर के बाहर से बच्चे की साइकिल के चोरी हो जाने के माध्यम से काम की तलाश में बाहर से आ कर बड़े शहरों में बसे ग़रीब मज़दूरों और उनकी दिक्कतों की बात करती नज़र आती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी एक तरफ़ पश्चाताप की आग में जल रहे अधेड़ उम्र के ज्ञानशेखर जी की व्यथा कहती नज़र आती है कि अपने परिवार के तानों की वजह से वे शादी के 20 वर्षों बाद तक अपनी नवविवाहिता पत्नी से रूखा व्यवहार करते रहे। तो दूसरी तरफ एक अन्य कहानी में लेखिका उस रीता की व्यथा व्यक्त करती नज़र आती है जिसे अपने ज़ाती तजुर्बे की वजह से अपनी जवान होती बेटी, सुहाना को ले कर कुछ ज़्यादा ही सख्त..सतर्क एवं सजह होना पड़ा।
इसी संकलन की किसी अन्य कहानी में नींद में बार-बार डरावने सपनों के आने से परेशान मीतेश इस अपराधबोध से ग्रस्त है कि कोरोना से संक्रमित अपने पिता के अंतिम समय में वह उनके साथ नहीं था। तो वहीं एक अन्य कहानी हमें नकारात्मकता से जितनी जल्दी दूर हुआ जा सके, हो जाने की समझाइश देती नज़र आती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ उन छद्मवेशी पुरुषों की छोटी मानसिकता पर आघात करती नज़र आती है जिनकी कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी माँ-बाप द्वारा बँटवारे के वक्त सब कुछ बेटों को ही देने और बेटियों को भूल जाने की रवायत पर कटाक्ष करती नज़र आती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ नशे के बुरे प्रभावों कि बात करते हुए बताती है कि इसकी वजह से किस तरह परिवार के परिवार खत्म हो जाते हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी उस रितिका की बात कहती नज़र आती है जिसे उसकी माँ के दबाव के चलते मजबूरन अपने खेलों के प्रति शौक को तिलांजलि तो देनी पड़ती है मगर अपनी बेटी में उन्हीं सब संभावनाओं को देख कर वह प्रसन्न हो उठती है।
इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे बेहद प्रभावी और दिल को छूने वालीं लगीं। उनके नाम इस प्रकार हैं।
*हार्ट इमोजी की धड़कन
*नागम्मा की चिट्ठी
*अनंत प्रेम की तपिश
*चोर-चोर
*कोलाहल करती लहरें
*परत-दर-परत
*मेरा कसूर क्या था
*बंद सुरंग
*स्टेडियम
इस संकलन की कुछ कहानियाँ जहाँ मुझे मुझे थोड़े अधूरे मन से लिखी गयी या समय से पहले जबरन ही ख़त्म कर दी गईं जैसी लगी। तो वहीं एक कहानी 'वो नौ माह' मुझे थोड़ी अस्पष्ट..अधूरी एवं अपने मंतव्य को सही से स्पष्ट नहीं कर पाने वाली लगी। कुछ एक जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का इस्तेमाल ना किया जाना थोड़ा खला। किसी भी किताब का कवर डिज़ायन अगर आकर्षक हो तो वह अपने आप में ही एक प्लस पॉइंट हो जाता है किताब के लिए। इस किताब का कवर डिज़ायन मुझे कम आकर्षक लगा। फ़ॉन्ट्स भी अगर थोड़े ज़्यादा बड़े होते तो बेहतर होता। कुछ एक जगह प्रूफरीडिंग की कमियाँ भी दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 63 में लिखा दिखाई दिया कि..
'जिन घरों में चेजा चल रहा था, अकस्मात लॉक- डाउन होने से वह रुक गया था'
इस वाक्य का मतलब समझ में नहीं आया कि इसमें 'चेजा' शब्द से लेखिका का क्या तात्पर्य है।
धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस 135 पृष्ठीय कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है बोधि प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।