सेठ भौमिक शाह मथुरा के जाने माने प्रतिष्टित व्यवसायी थे शहर में उनका अच्छा ख़ासा रसूख था ।भौमिक शाह के बचपन का दौर बहुत कठिनाईयो में बीता था जब उनका जन्म हुआ
जनमते मां का स्वर्गवास हो गया उनके पिता लालमन साह ने लगभग तीन वर्ष तक उनकी परिवस बड़ी चुनौतियों के साथ किया दिन भर भौमिक को अपने पीठ पर बांधकर मेहनत मजदूरी करते और सुबह शाम खाना बनाते वर्तन माजते और भौमिक की देख रेख करते लेकिन भौमिक के तीन वर्ष की उम्र होते ही उनकी मृत्यु हो गयी अब भौमिक विल्कुल अनाथ हो गया और उनके लालन पोषण का बोझ कोई उठाने को तैयार नही था मोहल्ले के लोग उनको अशुभ बालक मानकर अपने पास या घर पर रखने को तैयार नही थे ।मनसा दाई थी जिसने भौमिक को ले जाकर बांके बिहारी मन्दिर छोड़ आयी भौमिक की मासूमियत को देख कर हर दर्शनार्थि कुछ न कुछ खाने को दे देता भौमिक खाना खाते और बांकेबिहारी के प्रांगण में सो जाते एक दिन भौमिक को तेज बुखार था वह नित्य की भाँति बांकेबिहारी के प्रांगण बैठे थे मगर तेज ज्वर के कारण कांप रहे थे। लेकिन भीड़ का कोई आदमी उनकी समस्या को नही समझ पा रहा था कुछ खाने का सामान देता और आगे बढ़ जाता बहुत देर से मंदिर के मुख्य पुजारी सुधांशु जी महाराज उस नन्हे से भौमिक दशा बड़ी गमम्भीरता से देख रहे थे एक एक उठे और भौमिक के पास जाकर बोले क्या कष्ट है बच्चा? भौमिक कुछ भी बोलने में असमर्थ थे सुधांशु महाराज ने भौमिक का हाथ पकड़ा देखा उसका हाथ तप रहा है वह तेज बुखार से पीड़ित है महाराज सुधाँसू भौमिक को गोद मे उठाकर सीधे डॉक्टर भौंमिक शर्मा के क्लिनिक गए डॉक्टर गहनता से जांच किया और बताया कि महाराज अगर पांच मिनट बिलम्ब हो जाता तो यह बच्चा मर जाता।डॉ भौमिक ने बच्चे की चिकित्सा शुरू किया डॉ भौमक ने सुधाँसू जी से बच्चे का नाम पूछा सुधाँसू महाराज ने बच्चे से उसका नाम पूछा बच्चा अपना नाम नही बता पाया सुधाँसू जी महाराज ने बच्चे का नाम बताया भौमिक डॉ भौमिक ने आश्चर्य से कहा ये तो मेरा नाम है सुधांशू जी महाराज ने कहा डॉ साहब बांकेबिहारी जी की यही इच्छा है कि दुनियां में यह बच्चा आप ही के नाम से जिंदा रहेगा क्योंकि आप ही इसको जीवनदान देने जा रहे है ।डॉ भौमिक ने बच्चे भौमिक की चिकित्सा शुरू की पूरी जांच करने के बाद दवाईयां आदि मंगा कर अपने देख रेख में इलाज हेतु भर्ती कर लिया पांच दिन की गहन चिकित्सा के बाद भौमिक को आराम होने लगा लगभग पंद्रह दिन बाद भौमिक पूरी तरह स्वस्थ हो गया स्वस्थ होने के बाद सुधाँसू जी ने भौमिक को अपने साथ रख लिया भौमिक प्रतिदिन बांके बिहारी जी के मंदिर में सुबह शाम दोपहर सफाई करता और आरती के समय घण्टे घड़ियाल बजाता धीरे धीरे बांके बिहारी जी की कृपा से जीवन चल रहा था ।धीरे धीरे भौमिक पंद्रह साल का हो गया एक दिन भौमिक बिहारी जी के गर्भ गृह की सफाई कर रहा था सुधांशु महाराज एक किनारे खड़े भौमिक की सफाई करते कार्य मे लगन निष्ठा और भाव को बड़ी बारीकी से देख रहे थे भौमिक बिल्कुल निश्चिन्त अपना कार्य बड़े मनोयोग और ध्यान के साथ कर रहा था तभी एकाएक बांके बिहारी जी के कान का कुंडल भौमिक के कंधे पर आ गिरा सुधांशु जी महाराज को बिहारी जी का संकेत समझने में तनिक देर नही लगी उन्होनें समझ लिया कि भौमिक
स्वर्णकार की संतान है जब भौमिक अपने कार्य से खाली हुआ तब सुधांशु जी महाराज ने उसे पास बुलाया पूछा तुम स्वर्णकार के बेटे हो भौमिक बोला हां गुरुजी ,महाराज बोले भौमिक तुम स्वर्णकार का पुश्तैनी व्यवसाय शुरू करो बिहारी जी की सेवा के बाद मैं किसी स्वर्णकार से बोल देता वहां जाकर अपने पुश्तैनी व्यवसाय के गुण सीखना शुरू करो सुधांशु जी ने सालिक ज्वैलर्स के मालिक सालिक साहू से भौमिक को सोने के कारोबार की बारीकियों को सीखाने के लिये कहा सेठ सालिक ने भौमिक को सपने यहाँ बातौर प्रशिक्षु काम पर रख लिया और सोने चांदी से बनाये जाने वाले आभूषण वाली इकाई में कार्य दिया भौमिक नित्य बिहारी जी की सेवा सफाई का कार्य करता और उतनी ही ईमानदारी से आभूषण बनाने के कार्य को सीखता जीवन मे उंसे एक नया पड़ाव मिला था जिसमें वह शीघ्रता शीघ्र दक्षता हासिल करना चाहता था उसकी मेहनत रंग लाई बहुत जल्दी ही वह स्वर्णकार के कार्य एव व्यवसायिक बारीकियों को समझ गया सेठ सालिक उसके काम से बहुत खुश रहते और उसे अपने व्यक्तिगत कार्य भी समय समय पर सौंपते या यूं कहें कि सेठ सालिक भौमिक को परख रहे थे धीरे धीरे भौमिक सेठ सालिक का सबसे काबिल भरोसे मंद बन गया सेठ सालिक राम के दो बेटे थे एव एक बेटी बेटी का विवाह कर दिया था बेटी सौम्या अपने पति एव परिवार के साथ अमेरिका में बस गयी थी उसके पति सहर्ष का अमेरिकन डायमंड का बड़ा कारोबार था ।बेटों में सत्कार बडा था और शिवांश छोटा दोनों का विवाह हो चुका था दोनों ही सेठ सालिक पर अपनी वसीहत के लिये बराबर दबाव बनाते और आपस मे भी लड़ते झगड़ते रहते जिसके कारण सेठ सालिक सभी सुख सुविधा होते हुये भी अक्सर दुखी रहते ।सत्कार और शिवांश की पत्नियां क्रमशः शालिनी और प्रिया थी जो उच्चशिक्षित और विलासी जीवन कि आदि थी जिसके कारण उनके पतियों के खर्चे बहुत होते और समय नही मिल पाता कि पिता सालिक के साथ व्यवसाय में सहयोग कर सके सेठ सालिक की आयु सत्तर पर कर चुकी थी और अनेक बीमारियों ने घेर रखा था व्यवसाय में सेठ सालिक ने बैंक से क्रेडिट लोन पंद्रह सौ करोड़ का ले रखा था सत्कार और शिवांश ने व्यवसाय के रोकड़ में भी मनमानी हेराफेरी करना शुरू कर दिया था दोनों भाईयों को जहाँ जब अवसर मिलता सेठ सालिक को चुना लगाने से नही चूकते सालिक ने कारोबार को सीमित करना शुरूकर दिया और बैंक की रकम चुकाने का फैसला कर लिया सालिक के पास सिर्फ एक ही विश्वास पत्र भौमिक था बाकी या तो सेठ सालिक की नौकरी छोड़ चुके थे या सेठ ने बड़ी विनम्रता से माफी मांग लिया था। सेठ ने बैंक के लाकर में लगभग दो हज़ार करोड़ के सोने चांदी के आभूषण आदि रखें थे जिसके आधार पर बैंक से क्रेडिट लोन मिलता रहता सेठ ने उनको बेचने का फ़ैसला कर लिया और भौमिक के साथ बैंक गए जब बैंक पहुंचे और अपने गोदाम को खोलकर रखें आभूषण बेचकर बैंक को कर्ज की राशी चुकाने का अनुरोध महालक्ष्मी बैंक से किया तो बैंक द्वारा बताया गया कि उनके दोनों बेटों ने गोदाम का सारा माल बहुत पहले ही निकल लिये है ।सेठ सालिक के सामने पूरा ब्रह्मांड घूम गया उनकी समझ मे यह नही आ रहा था कि जो संपत्ति उनके दोनों बेटों की ही होनी थी उन्हें क्या जल्दी आ गयी कि बाप को धोखा देना पड़े उनके दिमाग मे स्वर्गीय पत्नी दमयंती के शब्द गूंजने लगे वो कहा करती थी कि देखो जी आप बहुत सीधे हो जमाना बदल रहा है अब बेटे ना तो श्रवण कुमार है ना ही राम उन पर भी आंख कान खोल कर भरोसा करो ।सेठ सालिक राम घर लौटे और सीधे अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गए थोड़ी देर बात सेठ सालिक के दोनों बेटे सत्कार और शिवांश और बहुये शालिनी और प्रिया आयी और बिना कोई हाल चाल पूछे सत्कार ने कहा बाबूजी हम लोंगो ने घर बेच दिया है क्योंकि हम बेल्जियम और शिवांश स्विट्जरलैंड अपना व्यवसाय करेंगे और वही बस जाएंगे सेठ सालिक पर तो बज्रपात हो गया उनमे इतनी भी शक्ति नही रही कि कुछ भी बोल सके सत्कार और शिवांश सेठ सालिक के फार्म में पार्टनर थे एव मकान माँ के नाम से था जिसके मरने के बाद दोनों ने मालिकाना हक अपने नाम करा लिया था बड़ी हिम्मत जुटा कर सालिक सेठ बोले बेटे तुम्हारा दोष हम कैसे दे सकते है मेरे ही परिवश का खोट होगा अब तो कुछ बचा नही इतना कहते ही सेठ सालिक बेहोश हो गए किसी तरह नायलायक बच्चों ने अस्पताल में भर्ती कराया डॉक्टरों ने जांच के उपरांत बताया कि सेठ को गंभीर हृदयाघात हुआ है बचना मुश्किल है भौमिक प्रतिदिन बांके बिहारी की मंदिर में सेवा दान देता और अस्पताल में सेठ सालिक की सेवा करता लगभग छ महीने अस्पताल में भर्ती रहने के उपरांत स्वस्थ होकर सालिक सेठ घर आये एक महीने सब कुछ ठीक ठाक चला उसके बाद फिर दोनों बेटों ने वही राग अलापना शुरू किया अबकी बार सेठ सालिक ने हिम्मत से कहा तुम दोनों मकान बेचकर जल्दी से जहाँ जाना है चले जाओ मैं पिता होने के नाते तुम दोनों को एव बहुओं को हृदय से आशिर्वाद देता हूँ। इतना सुनते ही सालिक के बेटे बहुओं की खुशी का ठिकाना नही रहा लगभग एक माह की आवश्यक कानूनी कार्यवाही के बाद घर बिक गया सत्कार शालिनी और शिवांश प्रिया बेल्जियम और स्विट्जरलैंड चले गए औपचारिकता बस दोनों ने पिता को साथ चलने का आग्रह किया मगर सेठ सालिक ने इनकार कर दिया बेटे बहुओं के जाने के बाद सेठ सालिक और भौमिक बांके बिहारी जी के मंदिर में आ गए अब सत्तर बहत्तर की उम्र में सेठ सालिक के पास जाने कहां से ऊर्जा आ गयी सुबह सेठ सालिक और भौमिक दोनों साथ उठते और सुधांशु जी महाराज के आशीर्वाद लेते महाराज भी बृद्ध हो चुके थे भौमिक को बच्चे की तरह पाला था अब उन्हें एक वरिष्ठ की मर्यादा की चिंता सताए जा रही थी उपर से बैंक का पंद्रह सौ करोड़ का कर्ज कुछ भी संमझ में नही आ रहा था कि बांके बिहारी जी को क्या मंजूर है ।दिन बीतते गए बैंक ने अपनी वसूली के लिये कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी सुधांशु जी महाराज बहुत चिंतित थे कि क्या होगा अगर उम्र के इस पड़ाव में सेठ जेल जाएंगे तो शायद ही लौट कर आये समय तेजी से गुजरता जा रहा था भौंमिक और सेठ सालिक बांके बिहारी जी को सेवा दान देते और जो कुछ मिलता खाते भौंमिक आभूषण बनाने की कम्पनी में दिन रात काम करता और बड़ी मेहनत के बाद दो तीन लाख रुपये महीने कमा लेता लगभग आठ माह में उसने पैंतीस लाख की रकम इकठ्ठा कर ली थी समय अपनी चाल से चलता जा रहा था एकएक एक दिन बांके बिहारी जी के यहां हाजिरी देने आयरलैंड में बसे हीरे के व्यवसायी अनिवासी भारतीय सूरज मल पहुंचे वो सुधांशु जी महाराज के पुराने शिष्य भी थे बांकेबिहारी जी की हाजिरी के बाद सुधांशु जी के पास आशीर्वाद एव गुरुवंदन के लिये गए गुरुवंदन के बाद महाराज के पास बैठे भौंमिक और सालिक सेठ के विषय मे पूछा सुधांशु जी महाराज ने दोनों के विषय मे सारी जानकारी सेठ सूरज मल्ल को बताई सेठ सूरज मल्ल ने जब सालिक सेठ के विषय मे जाना तय उझल पड़े बोले महाराज सेठ सालिक का नाम कौन नही जानता सालिक ज्वेलर्स एक ब्रांड नाम है सारे विश्व के स्वर्ण बाज़ार में सेठ सालिक की ईमानदारी एक मिशाल है इनकी यह दशा अपने बेटों ने ही कर दी कितनी गिरावट आ गयी है समाज मे खैर कोई बात नही महाराज जी शायद बांके बिहारी जी का आदेश एक नए इतिहास के लिए मुझे प्रेरित करके बुलाया है ।मेरा सौभाग्य की आपका आशीर्वाद भी मिला मैं सालिक सेठ के कर्जे की गारंटी लूंगा बशर्ते सालिक सेठ सालिक ज्वेलर्स फार्म को पुर्नजीवित करे क्योंकि सालिक ज्वेलर्स एक ब्रांड है जल्दी ही अपनी पुराने ऊंचाई को पा लेगा अंधे को क्या चाहिये दो आंखे दूसरे दिन बैंक जाकर सेठ सूरज मल्ल ने सेठ सालिक की बैंक गारन्टी की औपचारिकता पूरी की बैंक ने समाचार पत्रों एव मीडिया में सालिक ज्वेलर्स के पक्ष में बयान जारी किया सालिक ज्वैलर्स की आर्थिक स्तिथि मजबूत दिवालिया का कोई प्रश्न ही नही उठता सलीक ज्वेलर्स के सभी शो रूम के शटर खुल गए और नए जोश खरोश से कार्य शुरू हो गया जिन पुराने कारीगरों को आर्थिक तंगी के कारण बाहर कर दिया गया था उन्हें बड़े सम्मान के साथ दोगुने पगार पर बुलाया गया आभूषण के निर्माण की इकाई भी चलने लगी अब सेठ सालिक के पास भौंमिक जैसा
ईमानदार बेटों से ज्यादा भरोसे मंद साथ था सेठ सूरज मल ने सालिक ज्वैलर्स को तीन हज़ार करोड़ का विदेशी आर्डर भी दिलवाले में मदद की तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद सालिक ज्वेलर्स नई ताकत के साथ बाज़ार में मजबूती के साथ खड़ा हो गया सेठ सालिक ने भौंमिक का विवाह कर दिया और अपनी वसीहत में लिखा मेरी एक ही औलाद है भौंमिक जिसका अधिकार मेरी प्रत्येक संपत्ति पर मेरे बाद रहेगा यहां तक कि मुझे मुखग्नि देने का अधिकार भी सिर्फ भौंमिक को ही होगा धीरे धीरे समय बीत रहा था सेठ सालिक की उम्र पच्चासी वर्ष हो गयी थी सारा कारोबार भौंमिक ही देखते उधर बेल्जियम में सत्कार का व्यवसाय शुरू होते दम दौड़ने लगा और समाप्त हो चुका था और किसी तरह जीवन यापन सम्भव हो पाता यही हालात स्विट्ज़रलैंड में शिवांश की थी दोनो ही लापरवाह ग़ैर जिम्मेदार और फिजूल ख़र्जी जो थे एकाएक दोनों भाई और उनकी पत्नियां अपने बच्चों के साथ भारत लौट आए और पिता सेठ सालिक के सामने दया क्षमा की भीख के लिये गिड़गिड़ाने लगे सेठ सालिक का कलेजा पत्थर जैसा हो गया था उनके मन सत्कार शिवांश शालिनी और प्रिया के लिये कोई भाव नही थे मगर भौंमिक ने कहा बाबूजी ये आपके खून है माना कि इन्होंने आपको खून के आंसू रुलाया है मगर है तो आपकी ही औलाद भौंमिक के समझाने पर सेठ ने तीन शर्तो पर बेटे बहुओं को साथ रखने के लिये अनुमति देने का नीर्णय लिया पहला सभी बांके बिहारी जी को एक दिन में कम से कम चार घण्टे सेवा दान करेंगे दूसरी शर्त पांच साल तक सालिक ज्वेलर्स में नौकरी करेंगे जैसे सारे लोग करते है तीसरा सालिक ज्वेलर्स में इनकी कोई हिस्सदारी नही होगी मरता क्या नही करता सत्कार शिवांश शालिनी प्रिया को सारी शर्ते मंजूर थी अब सत्कार शिवांश शालिनी प्रिया प्रतिदिन बांके बिहारी की सेवा में मंदिर की साफ सफाई आदि करते फिर सालिक ज्वेलर्स की इकाई में नौकरी करते सेठ सालिक ने एक दिन भौंमिक को बुलाया और बोले बेटे मेरे जाने का समय आ गया है मैंने सौ सौ करोड़ की पूंजी सत्कार और शिवांश के लिये सुरक्षित कर दी है मेरे मरने के बाद उनको दे देना इस शर्त के साथ कि वे दोनों अपना अलग फर्म खोलेंगे सालिक ज्वेलर्स में उनको कभी हिस्सदारी नही मिलेगी दूसरे दिन सेठ सालिक के प्राण पखेरू उड़ गए भौंमिक ने उनको मुखग्नि दी और उनके नाम से अनेको स्कूल ,अस्पताल, अनाथालय ,आदि खोले और उधर सत्कार और शिवांश ने पिता से प्राप्त सौ करोड़ से सत्कार एव शिवांश ज्वेलर्स फार्म खोली सेठ सालिक और भौंमिक कि कहानी आज भी लोग अपने बच्चों को सुनाते और नशीहत देते है।।
कहानीकार--नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर प्रदेश