oh my god - movie review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | ओह माय गॉड - फिल्म रिव्यू

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ओह माय गॉड - फिल्म रिव्यू

२०१२ में आई हुई इस फिल्म का रिव्यू अभी क्यूं? क्योंकि इस फिल्म का दूसरा संस्करण आने वाला है और उससे पहले हम इस फिल्म के प्रथम संस्करण को पुनः स्मरण करना आवश्यक समझते है। यह फिल्म एक सफर है नास्तिक से आस्तिक का। कुछ लोगों को ये फिल्म इसलिए पसंद नहीं आई क्योंकि इस में कुछ धर्मगुरों को धर्म के नाम पर व्यवसाय करते दिखाया गया और कुछ लोगों को इसलिए पसंद आई क्योंकि इस फिल्म में धर्म के वास्तविक रूप पर दलीलें प्रस्तुत की गईं। बहुत विवादित इस फिल्म ने लागत से २ गुना कमा लिया है।

कहानी है कानजी लालजी मेहता की। एक गुजराती नास्तिक व्यापारी। कानजी अपने परिवार के साथ मुंबई में रह रहे हैं और हिंदू धार्मिक सामग्री और मूर्तियों वगैरह का व्यापार करते हैं। पर उनके लिए बस यह व्यापार है, उनकी किसी देवी देवता और धर्म में श्रद्धा नहीं है। वे मूर्तियों को बेचते समय खरीदार को भावुक करने में माहिर हैं। उनकी धर्मपत्नी बहुत धार्मिक है, उनके बच्चों को उनकी पत्नी धर्म की बात सुनाती हैं और लालजी उन्हें हर बात में टोकते हैं। कई बार धार्मिक भावना को चोट पहुंचे वैसे संवाद हैं। उनके जीवन में एक घटना बन जाती है जिससे कानजी को खुद के विचारों को ही चुनौती देने का अवसर प्राप्त होता है।

कानजी की दुकान एक भूकंप में खंडित हो जाती है। अब आश्चर्य की बात यह ये है की उनके आस पास अन्य दुकानों को कुछ भी नहीं होता, केवल उन्हीं की दुकान टूट कर खंडहर हो गई। धर्मपत्नी का मानना है की यह भगवान का कानजी के प्रति दंड व्यवहार है, कानजी एक नास्तिक हैं और जाने अनजाने में उनसे भगवान का अपमान हुआ है और भगवान ने उन्हें दंड दे दिया। कानजी इस बात को नहीं मानते, वे अपनी बीमा कंपनी से इस हादसे का मुआवजा मांगते हैं। उनकी बीमा कंपनी मुआवजा इसलिए नहीं देती क्योंकि यह दुकान ईश्वरीय प्रक्रिया मतलब ऐक्ट ऑफ़ गॉड है और उसकी भरपाई बीमा कंपनी नहीं करती।

बीमा कंपनी मुआवजा नहीं दे रही, कानजी का धंधा बंद और उनके सिर पर कुछ कर्जे हैं और उस दुकान को खरीदने के लिए भी कोई तैयार नहीं क्योंकि मीडिया में खबर फैली थी की उनकी दुकान भगवान ने गिराई है इसलिए वह अशुभ है। कानजी इस बात को बिल्कुल नहीं मानते की भगवान ऐसा कर सकते हैं। उनके परिवार में घमासान और ये हुआ कहानी में ट्विस्ट। कानजी को जब कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने कोर्ट केस करने की ठानी , पर किस पर केस किया जाए? बीमा कंपनी पर या भगवान पर?
और कानजी भगवान पर केस करने की ठानते हैं, भगवान पर केस कैसे होगा? तो भगवाने के बड़े मंदिर और मठों पर केस डाल दिया गया और साथ ही बीमा कंपनी पर भी केस डाल दिया गया। क्योंकि कानजी का मानना है की इन दोनो की वजह से ही कानजी के जीवन में कठिनाई आई है।

कोर्ट केस डालने से कानजी का जीवन अधिक मुश्किलों से घिरा। उनके परिवार पर धार्मिक संगठनों ने निशाना साधा और आखिर उनकी धर्मपत्नी बच्चों सहित अपने मायके चली गई। अब कानजी हो गए अकेले और भगवान पर और अधिक क्रोध करने लगे और उन्हें भगवान ही उनके जीवन के विलन लगने लगे। पर फिर हुई एंट्री एक पात्र की। जिन्हें कानजी के मकान को बेच दिया गया था। यह पात्र खुद को बताते हैं कृष्ण वासुदेव यादव।

क्या कृष्ण वासुदेव यादव हैं साक्षात ईश्वर? क्या ये करेंगे कानजी के जीवन में उद्धार? क्या ये निकाल पाएंगे कानजी को उनकी परेशानियों से? कैसे लड़ते हैं कानजी कोर्ट केस?
कौन है उनकी दुकान तोड़ने वाला? क्या कानजी बनेंगे आस्तिक?

यह कहानी आपको न आस्तिक बनाएगी न नास्तिक। पर आपको धर्म के आड में हो रहे पाखंड का सीधा दर्शन करवा देगी। कानजी के कोर्ट के संवाद धार्मिक व्यक्ति को व्यथित कर सकते हैं पर व्यवहारिक व्यक्ति को धर्म की एक नई परिभाषा प्रधान हो सकती है। धर्म गुरुओं का व्यंग के माध्यम से चरित्र चित्रण इस फिल्म की बढ़ी उपलब्धि माना जा सकता है। वहीं कुछ अज्ञानी फिल्म में दिखाई बातों का दुरुपयोग करके किसी विद्वान व्यक्ति का अपमान भी करते दिखे गए हैं।

यह कहानी एक व्यक्ति के अपने और सामाजिक हक की लड़ाई के लिए खुद को समर्पित करने की कहानी है, कानजी को मार डालने के प्रयास बहुत प्रबल थे और यही शायद इस समाज में और इस देश में हो भी रहा होगा। जिसने भी धर्म जाति से परे उठकर अपने हक के लिए आवाज उठाई उस आवाज़ को शांत कर दिया गया है। पर इस फिल्म का अंत सुखद है।

कानजी लालजी हैं परेश रावल, वे फिल्मों में अपने पात्रों में नया उत्साह भर देते हैं। हेरा फेरी, संजू, मालामाल विकली, हलचल, गोलमाल, नायक फिल्म में उनके किरदार यादगार बनें। अक्षय कुमार हैं कृष्ण वासुदेव यादव। अक्षय की सफलता गिनने बैठें तो फिल्में गिनते हुए थक जाएंगे। हेरा फेरी, भूल भूलैया, होलोडे, बेबी, एयर लिफ्ट, पैड मैन, केसरी फिल्में आपने नहीं देखीं तो सिनेमा का एक युग आपने खो दिया है। अन्य कलाकार हैं मिथुन चक्रवर्ती जिन्हें धर्म गुरु लीलाधर महाराज का पात्र दिया गया है। मिथुन अब अभिनय की प्रतिक्रिया की सीमाओं से बहुत ऊंचे उठ चुके हैं। गोविंद नामदेव हैं सिद्धेश्वर महाराज। गोविंद बहुत ही मंझे हुए अदाकार हैं जिन्हें बॉलीवुड का डार्क हॉर्स कहा जा सकता है।

निर्देशन है उमेश शुक्ला का , उन्होंने अन्य कोई यादगार फिल्में नहीं दीं हैं। कहानी ली गई थी एक गुजराती नाटक से जिसका नाम था कानजी विरुद्ध कानजी। जिसमे टिकू तलसानिया कानजी लालजी का अभिनय कर चुके हैं।
सौम्य जोशी ने भी इस फिल्म के डायलॉग लिखे हैं जिन्होंने १०२ नॉट आउट फिल्म लिखी है। गीतकार शिवानंद किरकिरे, समीर, राकेश कुमार और सुब्रात सिन्हा हैं। फिल्म के गीत बहुत ही ह्रदय स्पर्शी और हिमेश रेशमिया का संगीत कर्ण प्रिय है।

फिल्म में गाने भी बहुत ही स्थितप्रज्ञ हैं। प्रभु देवा और सोनाक्षी का डांस किमियो अच्छा रहा। फिल्म जियो सिनेमा पर उपलब्ध है। नहीं देखी हो तो दूसरे संस्करण से पहले देख लें।

फिल्म प्रश्न खड़े करती हैं आस्था पर, इश्वर के अस्तित्व पर, हमारे आपके धर्म के ज्ञान और अज्ञान पर और पाखंड वाले बाबाओं पर। फिल्म आपको गीता, कुरान, बाइबल इन सब के संदेश पर पुनः विचार करने पर प्रेरित करेगी।

मैने इस फिल्म को ११ बार देखा है और हर बार देखने पर मुझे खुद को और मेरे विचारों को केंद्रित करने में सहायता प्राप्त होती है।

– महेंद्र शर्मा २६.०३.२०२३