navratron ka vasant in Hindi Spiritual Stories by गायत्री शर्मा गुँजन books and stories PDF | नवरात्रों का वसंत

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नवरात्रों का वसंत

नवरात्रों का वसंत


अनुराधा वैसे तो धर्म पुण्य में कुछ खास दिलचस्पी नहीं लेती अपने मन की मालकिन जो ठहरी ! वहीं नवरात्रे पर बाजार आहा ! क्या खूब सजा है रंगीन गेंदे, गुलाब ,चमेली की माला , दूसरी तरफ खाने की चीजें कुट्टू , साबूदाना , चिप्स, और भी बहुत कुछ यह सब देख कर मन बाग बाग हो गया । अनुराधा ने अपनी मां को कहा मां..." मुझे भी नवरात्रे करना है मुझे मना तो नहीं करोगी । बेटी की श्रद्धा और 9 दिन सात्विक तपस्या से घबड़ाई मां ने पहले हां कह दिया किंतु भीतर ही भीतर व्रत और बेटी के शरीर में खाने की पूर्ति को लेकर चिंता में थी । वहीं अनुराधा खुशी से फूले ना समाई ऐसा लगा कि पतझड़ के बाद का वसंत उसके दिल आंगन में उतर आया हो और वो वसंत का दिल खोलकर स्वागत करने को आतुर है । हां नवरात्रे रूपी वसंत से आज मन प्रफुल्लित है अनुराधा ने तकरीबन खरीददारी पूरी कर ली मां अम्बे की चुनरी, जौ , मिट्टी, घड़ा, नारियल, आम के पत्ते , चौकी , नौ दुर्गे की फोटो , व्रत का पैकेट बंद प्रिजर्वेटिव खाना , पीतल का दीया , बाती, घी । अब घर लौटने की बारी है । तभी अनुराधा की बहन कल्पना ने कहा छोटी... ' अनुराधा सिर्फ मार्केट को निहारती हुई अपनी मौज में चल रही थी उसने बहन की आवाज नहीं सुनी , कल्पना ने फिर आवाज लगाया छोटी सुन मेरी बात मैं क्या कह रही हूं कि ..... .. अब वह रुक गई अनुराधा ने कहा क्या हुआ बोल तो अब रुक क्यों गई .......? कल्पना हंसने लगी और बोली वो देख सामने मशहूर गोलगप्पे टिक्की चाट की दुकान एक बार खायेगी तो 9 दिन याद रखेगी । अनुराधा शर्माते हुए हां दिखा! तू ज्यादा मत बोल, खा लूंगी ! फिर मन ही मन सोचने लगी आखिर अच्छा ही हुआ आज तो सब अच्छा हो रहा है और जी भरकर पेट पूजा किया वही तीखा और चटपटा बर्गर , टिक्की, गोलगप्पे वाह .....!! आनंद आ गया अब और कुछ खाने की हिम्मत नहीं रही । कल्पना ने फिर कहा देख ले बहन फिर कल से सब बैन । सोच ले , अनुराधा हंसते हुए बोली कोई बात नहीं 9 दिन यूं ही निकल जायेंगे । अनुराधा की जिंदादिली और चुलबुले स्वभाव को देखकर मां भी हंस पड़ी। दोनो लड़किया चुपचाप अपने कमरे में चली गई। और अनुराधा ने थोड़ा सांस लिया थकान मिटाई और फिर चपड चपड़ करने लगी। यूं कहो कि उसी से घर में रौनक बनी रहती है हां पर आईस्क्रिम खाने को जी मचला और बालकनी में खड़ी अनुराधा आईस्क्रिम वाले को जाते देख काफी देर से बताया कि आईस्क्रिम भी खाना है जब तक आवाज लगाती वह काफी दूर निकल चुका था । कल्पना और सूरज हंसते हंसते लोटपोट हो गए । और सूरज बोला अब इसका मन पूजा में नहीं आईस्क्रिम में लगेगा। खैर अब रुख बदला अनुराधा की थकान मिटी और खाने का टाइम हो चला , तकरीबन रात के 9 बज चुके थे खाना परोसने की देरी थी कि हिदायतें शुरू..........


आज से लहसुन प्याज हम बंद कर देंगे और पूर्ण सात्विकता का ध्यान रखेंगे । कोई भूल चूक नहीं हो इसलिए पापा को बोल देंगे कि सलाद के लिए अब सिर्फ टमाटर मिलेगा प्याज बंद।


अनुराधा की बातें सुनकर एक बार फिर कल्पना ठहाके मारकर हंसने लगी और बोली " अरे छोटी मतलब व्रत तेरा है खाना तेरा बंद हुआ तो तू तो सब पर जुल्म ढा रही है। ये गूगल ज्ञान ज्यादा खतरनाक होता है


अब अनुराधा ने मां से शिकायत कर दी । मां भी हंसने लगी और कहा ठीक है थोड़ा सांस ले ले अब बता क्या चाहती है। उसने कहा सबके खाने का जायका लहसुन प्याज आज से बंद होना चाहिए।


कल्पना नीचे पहुंच गई उसे यह लॉजिक कुछ ठीक नहीं। लगा क्योंकि आज तक घर में कोई भी रोक टोक नहीं हुई किसी के खाने को लेकर सिवाय मांसाहार के।


अब अनुराधा दूसरों को देख सुनकर वही बातें कर रही है तो कल्पना ने प्यार से समझाया देख छोटी मैं श्रद्धा रखती हूं प्रसाद खाती हूं तीर्थ भी करते ही हैं हम सारे। पर खाने वाली हिदायतें मानना यह मंजूर नहीं ।


अनुराधा ने लहसुन प्याज का पौराणिक प्रसंग बताया शायद किसी से सुना होगा कि तामसिक आहार में आता है ।


कल्पना ने बड़े ध्यान से सुना और अपना तर्क रखा कि लहसुन प्याज समाधि सिद्ध करने की दिशा में खाना वर्जनीय है क्योंकि जब एक योगी रोज साधना करता है फिर भी सिद्धि नहीं प्राप्त कर पाता तो उसी सिद्धि को सिद्ध करने के लिए नवरात्रों का महत्व है इस समय नौ दुर्गा को प्रसन्न करके साधक अपनी सिद्धि को प्राप्त करता है वहीं सांसारिक लोग मनवांछित फल पाने के लिए पूजा करते हैं पर एक योगी अंतर्मुखी होकर पूजा करता है इस प्रक्रिया में प्राणों की गति को रोककर प्राणायाम द्वारा माता के दिव्य स्वरूप में आत्म को लगाने की सहज प्रक्रिया होती है और सुगंधित खाद्य पदार्थ , प्याज लहसुन भोजन से लगाव बढ़ाते हैं तो भोजन से प्रीति बढ़ने पर साधक प्राणायाम नहीं कर पाता है। उसका ध्यान खाने में चला जायेगा ।इन्ही कारणों से यह सब खाद्य पदार्थ तीखा चटपटा , स्वाद मना किया गया है इसलिए कंद मूल खाकर सात्विक वृति से नौ दुर्गा की उपासना की जाती है तो जो व्रत करने वाला है उसके लिए मना है बाकी संसारी लोगो के लिए नहीं ।


अनुराधा बड़े ध्यान से सुन रही है इसके तर्क समाप्त हो गए कल्पना अपनी बात जारी रखती है वह कहती है कि भावना को पवित्र रखो यही माता की भक्ति है उन लोगो को देखो जो नौ दिन अज्ञानतावश लहसुन प्याज खाना छोड़ देते हैं और जैसे ही अष्टमी नवमी सम्पूर्ण हुआ तो मांसाहारी जिन्होंने मांस मच्छी लहसुन प्याज सब छोड़ दिया था वे वापस मिर्च मसाले भूनकर जीवों की हत्या करके उनके मांस को पकाकर बड़े चाव से खाते हैं क्या वो वर्जित नहीं होना चाहिए?? क्या उन्हे उनके भक्ति का पुण्य मिलना चाहिए ?? या मिलेगा तुम्ही बताओ ??


अनुराधा बोली " शायद नहीं! कल्पना ने फिर पूछा कि क्यों नहीं फल मिलना चाहिए आखिर नौ दिन पूजा तो सात्विक होकर किया है फिर??


अनुराधा की जिज्ञासा बढ़ती गई वह बोली आप बताओ मैं सुन रही हूं ।


कल्पना मुस्कुराते हुए छोटी को कहती है कि उस मांसाहारी को भी पुण्य का फल मिलेगा और जो पाप किया है उसका भी फल मिलेगा ।यही कुदरत का न्याय है जिस प्रकार रामावतार युग में बड़े बड़े राक्षस ऋषि मुनियों के खून पी जाते थे उनकी हड्डियों को तोड़कर खेलते थे , यज्ञ हवन में खून गिरा देते थे , आश्रमों को तोड़ देते थे तब भी उनके पास शक्ति कैसे होती थी कि वो इतना आतंक मचा सकें ?? रावण , मेघनाद, महिषासुर इनके पास शक्ति कैसे होती थी । वो उनके पूजा पाठ और सिद्धि पाने की लालसा में घोर तपस्या का परिणाम था कि रावण को भगवान शिव ने अपनी ही स्वर्णलंका भेंट की , मेघनाद को ब्रह्मास्त्र , शिवाष्ट्र, विष्णु अस्त्र सब मिल गया था जिसका प्रयोग लक्ष्मण पर किया था क्यों इतने शक्तिशाली थे ।


अतः उन्होंने पूजा करके सिद्धि पाई और मिलते ही संभाल ना पाए उनके अहंकार ने उन्हे गिरा दिया और नियति ने उनके पुण्य का भी फल दिया और पाप का भी दंड दिया और हिरण्यकश्यप नरसिंह द्वारा , रावण राम द्वारा मारा गया । इसलिए कर्मकांड इंसान के लिए बने हैं तो उनके लॉजिक को समझो फिर उन्हे मानो अंधा अनुसरण करना ठीक नहीं होता । और माता की पूजा में हम सब तुम्हारा साथ देंगे क्योंकि होश संभालने के बाद यह तुम्हारा पहला नवरात्रे हैं । हमारे पुण्य का हमे प्रतिफल जरूर मिलता है याद रखना । वर्जित करना है तो झूठ को करो , मांसाहार वर्जन करो , और अपने ईमान पर रहो बाकी जिंदगी में मस्त रहो क्योंकि दुनिया में इतने कर्मकांड हैं कि तुम्हारी उम्र बीत जायेगी सब कुछ करना चाहो तो एक और जन्म लेना पड़ेगा । खाने का टेबल विभिन्न व्यंजनों से सज गया सलाद में फिर वही प्याज के कतरे , लहसुन फ्राई दाल , चपाती और कद्दू की मीठी सब्जी वाह बहुत लजीज खाना है सब खाने की तारीफ कर रहे थे वहीं अनुराधा कुट्टू के आटे और आलू की पूड़ी एक किनारे बैठ रूखी खा रही थी उसे फल फ्रूट से एलर्जी जो थी चटपटी चीजों पर बैन जो लग गया पर व्रत तो संपन्न करना ही है कल्पना की सहनशक्ति देखकर उसकी मां दंग रह गई तभी पापा ने कहा ये वही चुलबुली है जो लजीज खाने पर टूट पड़ती थी आज धर्म कर्म में इतना लगाव कि खाने से परहेज कर लिया वाह कमाल कर दिया बेटा !! मेरा मन बहुत प्रसन्न है इसलिए तुम्हे कहता हूं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा । एक बार फिर नवरात्रों के वसंत ने हृदय को भक्ति प्रेम और प्रसन्नता से बाग बाग कर दिया।