Tamacha - 32 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 32 (श्रेय )

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तमाचा - 32 (श्रेय )

"दोस्तों , इस चुनाव को कोई साधारण चुनाव न समझना । कॉलेज में केवल प्रवेश लेना ही पर्याप्त नहीं होता। कॉलेज के माध्यम से हमारा और हमारे माध्यम से कॉलेज का सर्वांगीण विकास करना हमारा कॉलेज में रहते हुए परम् ध्येय होना चाहिए। कॉलेज में किस व्यवस्था की कमी है और विद्यार्थियों को क्या समस्याएं है? इन सबका निवारण ही हमारा लक्ष्य है। अब इस कॉलेज की और साथ में आपके सुनहरे भविष्य की , चाबी आपके हाथ में है। आप हमारे चुनाव चिन्ह ताले पर अपना अमूल्य वोट देकर हमें विजयी बनाये। और हम आपका भविष्य।"
बिंदु ने भीड़ के सामने अपना रटा-रटाया भाषण बड़ी ओजस्वी वाणी में बोला।

आज सभी प्रत्याशियों की किस्मत डिब्बे में कैद होने वाली थी। जिसका फैसला एक दिन बाद होने वाला था।
प्रत्याशी चुनाव में अपना पूरा जोर लगा रहे थे। तेजसिंह को जब पता चला कि उपाध्यक्ष के पद के लिए पार्टी की ओर से राकेश को प्रत्याशी बनाया गया है; उसको एक जोरदार झटका लगा पर उसने जैसे तैसे अपने क्रोध पर काबू रख ,युवा अध्यक्ष के पद की ओर अपना ध्यान लगा दिया उसने सोच लिया कि वह एक बार विधायक का भरोसा जीत ले फिर उससे भी निपट लेगा।
चुनाव से पहले सभी विद्यार्थियों ने प्रत्याशियों के भंडारे का पेट में बची अंतिम जगह के भरने तक सामना किया। वे इतनी भीड़ के बावजूद एक-एक गुलाब जामुन के लिए अपने हृदय की अंतरतम गहराइयों से प्रयत्न कर रहे थे। अगर इतने ही दिल से प्रयत्न वह अपने अध्ययन में कर ले ,तो उनको सफ़ल होने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता। पर विडम्बना यह है कि जो बुनियाद ही लालच पर टिकी है उसके ऊपर सत्य का टिकना कहाँ तक संभव है? यह छोटी-छोटी लेकिन बहुत बड़ी रिश्वतें है, जो भ्रष्टाचार की नींव की ईंटे है। इस उम्र से पहले वे बालपन में लालच में आकर कार्य कर ले तो उनको माफ़ भी किया जा सकता है। पर जब वही बच्चा कॉलेज में पहुंच जाता है तो उसकी समझ इतनी होनी चाहिए कि यही लालच है ,जो आगे चलकर देश के महत्वपूर्ण चुनावों में अपना रूप विकराल कर लेगा। अगर अभी से वे अपने नेता का चुनाव बिना लालच के कर ले तो आगे चलकर संभव है वे किसी चुनाव में भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त और सात्विक नेता प्रदान कर भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बना ले ।

विद्यार्थियों को उनके कमरों, होस्टलों और यहाँ तक कि आज-पास के गाँव से स्पेशल गाड़ियों में लाया गया। दूर के गाँव वाले विद्यार्थियों को दुगुना किराया दिया गया।

इस चुनाव में भी आख़िर पैसों की जीत होनी ही थी।वैसे तो दोनों तरफ़ पैसों के बल पर ही चुनाव लड़ा जा रहा था। पर दिव्या अपने सभी प्रत्याशियों के साथ विजयी बनी। कॉलेज के साथ ही शहर भी ढोल-नगाड़ों की आवाज से गूंज उठा। शहर में इनकी विजयी रैली निकाली गई। पार्टी ऑफिस में शानदार पार्टी की तैयारियां की जाने लगी। आज तो महाभोज के दौरान पहले से बहुत ज्यादा भीड़ थी क्योंकि पहले जो सामने वाली पार्टी के कार्यालय भोजन करने जाते थे; वह भी आज तो खाने का आनंद लेने विजयी दल की तरफ़ आने ही थे। वोट चाहे जिसको दिया हो पर आज की पार्टी पर सभी ने अपना पूरा -पूरा हक रखा। दिव्या और उसकी पार्टी के जयकारों से भवन गुंजायमान हो उठा।
तेजसिंह जिसने ना चाहते हुए भी इस चुनाव में इतनी भाग दौड़ की। उसको न खाने की सुध रही न पीने की। सभी तेजसिंह के इस तरह कार्य करने से आश्चर्यचकित थे। तेजसिंह अपने मन में तूफानों को दबाएं आज सभी की जीत पर निश्चित हो गया कि अब उसे जल्द ही अध्यक्ष पद का दायित्व मिलेगा साथ ही इस चुनाव को जिताने में अहम भूमिका निभाने के कारण उसको सम्मान दिया जाएगा। वह सोच रहा था कि इस जीत का श्रेय उसे ही मिलेगा । पर होना तो कुछ और ही था। विजयी होने के बाद पार्टी ऑफिस में जश्न के दौरान जब पार्टी की जीत की चर्चा हुई तो उसका श्रेय तेजसिंह को न देकर किसी और को ही दिया गया। स्वयं तेजसिंह सोच में पड़ गया कि आखिर यह कैसे हो गया?


क्रमशः....