Gangaur in Hindi Spiritual Stories by Captain Dharnidhar books and stories PDF | गणगौर

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गणगौर

इस पर्व पर स्त्रियां शिव जी और गौरा की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गीत गाती हैं :-
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा , गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय ,
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो

इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में बोलें : एक-लो , दो-लो ……..सोलह-लो।

इस दिन पूजन के समय रेणुका ( मिट्टी) की गौर बनाकर उस पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है।
गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।

होलिका दहन दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर। यह माना जाता है कि माता गौरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं ,चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।

गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है।

गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।

गणगौर पर्व के नृत्य में कन्याएँ एक दूसरे का हाथ पकडे़ वृत्ताकर घेरे में गौरी माँ से अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हुई नृत्य करती हैं। इस नृत्य के गीतों का विषय शिव-पार्वती, ब्रह्मा-सावित्री तथा विष्णु-लक्ष्मी की प्रशंसा से भरा होता है।

विशेषकर देखा जाये तो यह त्योहार नव विवाहिताओ व कुँवारी कन्याओं को गृहस्थी चलाने का प्रशिक्षण देने का काम भी करता है । इस त्योहार पर बुजुर्ग महिलाए गृहस्थ धर्म की अनूठी बाते गीतो के माध्यम से बता देती हैं ।

विवाहिताओ में अपने पति के प्रति अनुराग को बढाने वाला पर्व है यह गणगौर । महिलाओ की मस्ती का पर्व है यह गणगौर । मनचाहा वर प्राप्ति की साधना का पर्व है यह गणगौर। अखंड सौभाग्य बनाये रखने की विधा सिखाने वाला है यह पर्व गणगौर।