बूढ़ी अम्मा चुपचाप बैठी हुई कुछ सोच रही थी।शायद...जीवन की कुछ बीती हुई यादें ताजा हो गई हो।उम्र की अस्सी बसन्त झेल रही थी।किंतु,उसे जीवन से कोई शिकायत नहीं थी,और वैसे भी बूढ़ी अम्मा शिकायत करके भी क्या करती?उसे चार बेटे थे।सब केवल नाम के थे।कभी भी प्रेम से अपनी बूढ़ी अम्मा के पास नहीं बैठते थे।हाँ, चार वक्त की रोटी खिला देते थे और उसी को अपनी कर्तव्य मान रहे थे।इसी बीच बूढ़ी अम्मा की आँखें नम हो गई।वह अपनी लाठी की सहारे से उठकर खड़ी हो गई और धीरे-धीरे बरामदे में रखी गई खटिया पर लेट गई।
उसे नींद नहीं आ रही थी।इसी बीच बूढ़ी अम्मा फिर यादों में खो गई।जब वह नई नवेली दुल्हन बनकर आई थी।कितना हँसता-खेलता परिवार था।उसके पति मोहनलाल उसे कितना प्रेम करते थे।किसी भी चीज की कमी नहीं होने देते थे।किंतु,आज....आज वह एक-एक वस्तु के लिए तरस जाती है।इसी बीच उसका ध्यान टूटा।उसका बड़ा लड़का विनोद गुस्से से चिल्लाते हुए अपनी पत्नी से कह रहा था"कितनी बार तुमसे कहा है की बूढ़ी अम्मा की खटिया बरामदे से हटाकर किसी दूसरी तरफ रख दो।मेरे दोस्त आते-जाते रहते हैं।शिकायत महसूस होती है मुझे।"तभी उसकी पत्नी बोली"तो मैं क्या करूँ?यह काम तुम्हारा है।और,हाँ मुझपर चीखने चिल्लाने की जरूरत नहीं है।उस बुढ़िया को समझाओ।"
विनोद कुछ नहीं बोला।सब कुछ सुनकर बूढ़ी अम्मा शांत रही।आज वह अपने बेटों के लिए बस बोझ बन चुकी थी।
शाम को विनोद के कुछ दोस्त आए।विनोद से छोटे तीनो भाई महेश,अमन और गोपाल भी उसके दोस्तों के साथ बैठे हुए थे।पार्टी चल रही थी।खूब चाय-नाश्ता हो रहा था।हसीं-मजाक का सिलसिला जारी था।मगर..... बूढ़ी अम्मा की चिंता किसी को भी नहीं थी।वह बरामदे की खटिया पर लेटी हुई आसमान की तरफ देख रही थी।आसमान में चाँद को देखकर उसे लगा की चाँद भी उसी की भांति बिल्कुल अपनो में बेगाना बन गया है।उसे जोरो की भूख लग रही रही।बूढ़ी अम्मा एक दो बार अपनी पतोहूओ को आवाज दी,मगर उसकी उसकी आवाज बरामदे में ही रह गई,क्योंकि बरामदे से आगे की कमरों में जश्न मनाया जा रहा है।
इसी बीच बूढ़ी अम्मा को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तब वह उठकर जाने की कोशिश करने के क्रम में बड़े जोर से गिर पड़ी।गिरने की आवाज सुनकर सभी लोग दौड़ पड़े।विनोद,महेश, अमन और गोपाल वहाँ आ गए।विनोद बूढ़ी अम्मा को उठाते हुए गुस्से से बोला"अम्मा, तुमको क्या जरूरत थी यहाँ से उठने की,किसी चीज की जरुरत होती तो आवाज दिया होता।सारा मजा तूने बिगाड़ दिया है।"खैर, बूढ़ी अम्मा कुछ नहीं बोली।गोपाल भी गुस्से से उसको खटिया पर बैठा दिया।सारे दोस्त भी चले गए।थोड़ी देर बाद गोपाल की पत्नी खाना लेकर आई और बूढ़ी अम्मा को देकर चली गई।खाना खाने के बाद जब वह सोने गई,तब उसकी कमर में दर्द हुआ।वह कराहने लगी।उसकी कराहने की आवाज सुनकर बगल के कमरे में सो रहे महेश और उसकी पत्नी की नींद टूटी।"पता नहीं यह बुढ़िया कब मरेगी?सोना भी मुश्किल हो गया है।"महेश झुंझलाते हुए बोला।"महेश की पत्नी केवल गुस्सा करके रह गई।बूढ़ी अम्मा कराहती रही,मगर कोई उठकर नहीं आया।
सुबह सब जगे,मगर बूढ़ी अम्मा नहीं जगी।विनोद बोला"बुढ़िया मर गई,बोझ टला।बरामदे की सफाई करदो।"
:कुमार किशन कीर्ति,बिहार।