Kahaniyon Ka Rachna Sansar - 3 in Hindi Short Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | कहानियों का रचना संसार - 3 - कहानी नयी बहू

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कहानियों का रचना संसार - 3 - कहानी नयी बहू


नयी बहू

डोला परिछन के बाद नयी बहू के रूप में ससुराल पहुंचने वाली रामेश्वरी को ससुराल वालों ने हाथों हाथ लिया।मुंह दिखाई के लिए मोहल्ले की औरतों की भीड़ लग गई। यूनिवर्सिटी से एमएससी अंतिम वर्ष की परीक्षा दे चुकी रामेश्वरी के बारे में पहले से ही लोगों को ज्ञात था कि पढ़ी लिखी बहू आ रही है। सुंदर नाक, नक्श और गौरवर्णा रामेश्वरी को देखकर औरतें उसकी सास से कहती ‘बहुत चुनकर बहू लाई हो फूलबती' 'तुम्हारी बहू तो बड़ी सुंदर है' 'बातचीत में भी व्यावहारिक है।' अपनी बहू की ऐसी प्रशंसा सुनकर फूलवती खुश हो जाती। यह सुनकर रामेश्वरी का चेहरा भी दर्प से दमकने लगता लेकिन बार-बार उसका ध्यान कॉलेज के समय के अपने दोस्त विकास की ओर चला जाता था। इसी बीच किसी न किसी बहाने से उसका पति राजेश भी कमरे में आता लेकिन साधारण सूरत और औसत कद काठी के अपने पति को मन से वह स्वीकार नहीं कर पाई थी।उसे लगता था कि यह जोड़ी बेमेल है और उसके पिता ने जबरन उसे केवल राजेश की नौकरी के आधार पर उसके गले बांध दिया है। कंकन मौर छूटने की रस्म के बाद अब रामेश्वरी चौके में जाकर पहली बार खाना बनाने लगी। राजेश किचन का भी एक दो चक्कर लगाता लेकिन खाना बना रही रामेश्वरी उसे अनदेखा कर देती थी।उसे लगता एक ओर कहां सुदर्शन व्यक्तित्व का धनी विकास और कहां यह औसत सा राजेश। यह मेरी जोड़ का बिल्कुल नहीं है ।अब पता नहीं इसके साथ जीवन कैसे बीत पाएगा।

रामेश्वरी और राजेश की गृहस्थी की शुरुआत हुई लेकिन दोनों में तालमेल नहीं बैठ पाया।कहाँ विवाह के बाद के सतरंगी सपने,मानो समय पंख लगाकर उड़ने लगता है और पति-पत्नी भविष्य के सुनहरे सपनों में खो जाते हैं, वहीं इन दोनों के बीच सब कुछ केवल गृहस्थ धर्म की रस्म अदायगी तक ही सीमित। रामेश्वरी थी तो संस्कारिक घर की कन्या और विकास से संबंध भी केवल स्वस्थ मित्रता और कॉलेज की दोस्ती तक सीमित रहने वाला था।इसके बाद भी वह इस एंगल से भी सोचने लगी थी कि विकास जैसे इंटेलिजेंट और केयरिंग लड़के के साथ जिंदगी बिताने के बारे में भी सोचा जा सकता है।अभी वह इस रिश्ते में कुछ गंभीर हो पाती इससे पहले ही उसके पिता ने उसकी शादी करवा दी।रामेश्वरी ने विकास के साथ अपने संबंधों के बारे में सोचने के लिए थोड़ा वक्त पाने के लिए अपने पापा से यह कहा भी कि अपनी पूरी पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रविष्ट होने के बाद इस बारे में निर्णय लेगी। इस पर पिता ने उसकी दादी के खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया और कहा कि वह तुम्हारी शादी अपनी आंखों के सामने देखना चाहती है और पिता के इस तर्क के आगे वह निरुत्तर हो गई।

शादी के बाद अगले दो दिनों में रामेश्वरी को मोहल्ले और नगर के देवी देवताओं की पूजा के लिए भी ले जाया गया। विकास ने एक दो बार उससे बाहर चलने का भी आग्रह किया लेकिन वह टालती गई।वास्तविक कारण यह था कि वह विकास को भूल नहीं पा रही थी। एमएससी की पढ़ाई के दौरान नोट्स का आदान-प्रदान, पुस्तकालय में बैठकर डिस्कस करना,कॉलेज की कैंटीन में साथ चाय पीना ऐसी अनेक बातें उसे याद आती रहीं। शादी के एक हफ्ते के अंदर मेहमानों से खचाखच भरा घर पूरी तरह खाली हो गया और राजेश ने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली। इस बीच रामेश्वरी बुरी तरह बीमार पड़ गई। शुरू के दो दिन तो राजेश पूरी रात पत्नी के सिरहाने बैठा रहा और उसके बुखार की बार-बार जांच करता रहा और अंततः तीन-चार दिनों में रामेश्वरी पूरी तरह स्वस्थ हो गई।राजेश की निःस्वार्थ सेवा ने उसे गहरे तक प्रभावित किया लेकिन कहीं न कहीं विकास के प्रति आकर्षण का तीर था जो उसके हृदय में कहीं भीतर धंसा हुआ था और वह उसे बाहर नहीं निकाल पा रही थी। उसकी बीमारी के बाद लेकिन परिवर्तन यह हुआ कि अब वह अपने पति के सेवाभावी व्यक्तित्व और पवित्र ह्रदय से अच्छी तरह परिचित हो गई।

राजेश और रामेश्वरी की गृहस्थी की गाड़ी मंथर गति से आगे बढ़ने लगी । राजेश ने कई बार रामेश्वरी से पूछा भी कि कहीं और कोई बात तो नहीं है जो तुम अपनी गृहस्थी में और नए घर में समायोजित नहीं हो पा रही हो,लेकिन उसने बार-बार यही कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है ।वह राजेश को दुखी नहीं करना चाहती थी। दोनों बौद्धिक,पढ़े-लिखे और सुलझे हुए थे इसलिए तू-तू, मैं-मैं की कहीं गुंजाइश नहीं थी।बस वे अपना-अपना कार्य कर रहे थे और एक तरफ से अच्छे गृहस्थ होने का दिखावा कर रहे थे। इसी तरह 3 महीने बीत गए। रामेश्वरी का रिजल्ट आया और उसे गोल्ड मेडल मिला। 15 दिनों बाद विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह भी होने वाला था। इस बीच विकास से उसका संपर्क टूट गया था। शुरू में तो एक दो बार विकास का मैसेज आया लेकिन बाद में उसने एक तरह से उपेक्षा का रवैया अख्तियार कर लिया।उसे कम से कम यह उम्मीद थी कि एमएससी का रिजल्ट आने के बाद विकास उसे गर्मजोशी से बधाई देगा लेकिन अभी तक न उसका फोन आया न संदेश।

दीक्षांत समारोह की औपचारिकता पूरी करने के लिए रामेश्वरी राजेश के साथ विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन पहुंची। यूनिवर्सिटी कैंपस में आते ही उसे अपने पुराने दिन याद आ गए और उसने राजेश से आग्रह किया-चलो, एक बार कैंटीन चलते हैं। दोनों कैंटीन पहुंचे। कैंटीन के दरवाजे पर ही रामेश्वरी ने विकास को यूनिवर्सिटी की ही एक और लड़की के साथ बेतकल्लुफी से कॉफी पीते हुए देख लिया।वे हँसकर बातें कर रहे थे। रामेश्वरी पर तुषारापात हुआ। एकबारगी उसे लगा कि वह विकास की उपेक्षा कर दे और आगे बढ़ जाए लेकिन कुछ सोचकर उसने विकास से राजेश को एक बार मिलवाने का निर्णय लिया। वह दोनों उस टेबल की ओर बढ़े,जहां विकास और वह लड़की बैठे थे। टेबल के पास पहुंचते-पहुंचते रामेश्वरी को जो आखिरी वाक्य सुनाई पड़ा, वह विकास का था।विकास उस लड़की से कह रहा था -नीता मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।हम नई जिंदगी शुरु करेंगे।

रामेश्वरी को झटका तो लगा लेकिन गहरा संतोष भी हुआ कि विकास ने अपने जीवन में सब कुछ एडजस्ट कर लिया है और वह नाहक उसे लेकर इमोशनल और परेशान हो रही है।रामेश्वरी ने परिचय दिया-राजेश ये हैं मेरे दोस्त विकास।रामेश्वरी और उसके पति को अचानक देखकर विकास चौंक गया लेकिन जैसे अपने पुराने परिचय को सिरे से नकारते हुए उसने हल्के से जवाब दिया- हां हम साथ पढ़ते थे। रामेश्वरी को दूसरा झटका लगा। उसने इसी क्षण दृढ़निश्चय कर लिया कि अब उसे अपनी गृहस्थी की नैया पर ही सवारी करनी है। परिचय की औपचारिकता के बाद रामेश्वरी और राजेश जल्द ही दूर कोने वाली टेबल पर गए। कॉफी की चुस्कियां लेते हुए रामेश्वरी ने राजेश से कहा-चलो आज अपने शहर लौटने से पहले फिल्म देखने चलें। राजेश मुस्कुराने लगा।आज दोनों के जीवन में सच्चे प्रेम ने दस्तक दी।

योगेन्द्र