Naina ka badla - 2 in Hindi Fiction Stories by Vandan Patel books and stories PDF | नैना का बदला. - 2

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नैना का बदला. - 2

"कृपया यात्री गण ध्यान दे मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म न. 3 से रवाना होने वाली हैं।" "अरे यार लगता हे, ट्रैन निकलने वाली हे। अब मुझे बैठ जाना चाहिए। चल फिर मिलते हे!" राजू। "हाँ प्रेम", अपना ख्याल रखना और पोहचते ही फ़ोन ज़रूर करना, राजु मुश्कुराके बोला। "चलो खैर अब फ़िलहाल डब्बे में पोहच ही गया हूँ! तो क्यों न कुछ पढ़ लिया जाये" प्रेम मन में सोचते हुए बोला। ट्रैन निकल पड़ी। राजू ने ये सुनते ही की चैन सांस ली अब मेरा दोस्त अपने घर पहुँच जायेगा। साथ में प्रेम भी खुश था की अपने परिवार से मिल पाएगा। हवाके मस्त ठण्डे झोंके प्रेम के बाल को ऐसे सहेंला रहे थे, कि मानो माँ अपने बेटे के सर पे हाँथ गुमा रही हो!यह सोच के प्रेम मन ही मन में खुश हुआ।

अरे रे इसी भाग दौड़ की चक्कर मे भूल गया! मुझे पानी पीना था कब से प्यास लगी थी। कहा गयी मेरी बोतल, हाँ मिल गई। तो कब से यहाँ छुपी हुई थी, तुमे आखिर ढूंढ ही लिया। प्रेम बड़बड़ाते हुए बोला। जैसे ही बोतल का ढक्कन वो खोलने जाता है, तो उसे जोर का झटका लगते ही बोतल गिर जाती हैं। What the hell is going on? प्रेम के मुंह से अचानक निकल जाता है।

जैसे ही पीछे मुड़ के देखता है तो एक लड़की अचानक से टकराव की वजह से गिर जाती है। एक लड़की जो जमीन पर गिरी हुई है। उसे कुछ भी बोलने की समझ नहीं थी, क्योंकि वह बहुत घबरा रही है, और पूरी तरह से हाफ रही थी। प्रेम सोचते हुए "क्या हो रहा है? क्या हुआ होगा?" प्रेम उसको उठाने की कोशिश करता है। उससे पहले नैना उठकर चली जाती है। प्रेम बड़बड़ाते! हुए फिर अपने काम में मशगूल हो जाता है पर बुक पढ़ना चालू करता है। पर उसका मन पढ़ने में कहां लगने वाला था? वह तो किसी और के ख्यालों में खोया हुआ था। बार-बार उसके आंखों के सामने नैना की वही तस्वीर आ रही थी।वह सोचता ही रहता था। क्या फिर उससे मुलाकात कैसे होगी मैं उसको कैसे ढूंढ पाऊंगा? यहां सोचते सोचते नींद ने प्रेम को अपनी बाहों में ऐसे जकड़ा कि वह सो गया।

रात के करीब 7 बज चुके थे। ट्रैन रुक चुकी थी, आगे सिग्नल जाम था। प्रेम को भूख भी लगी थी तो आँख खुल गई। अब क्या खाया जाये, यही सोचने मे ही आधा घंटा निकल गया। कोई आ भी नहीं रहा खाना बेचने वाला। तभी पीछे से एक आवाज आती है। टिकिट प्लीज... टिकिट प्लीज... अरे ऐ तो टी-टी है। "सर ये ट्रैन कब तक चलेगी"। प्रेम ने बड़े विनम्र से पूछा। "कुछ बता नहीं सकते भाई यह गवर्नमेंट खाता जो ठहरा"। टी-टी कहा। और दोनों हसने लगे।

नैना छुपते छुपाते स्लीपर कोच में पहुँचती है। जहाँ वो प्रेम से टकराई थी। और आगे जैसे बढ़ने की कोशिश करती हे। तो प्रेम उसे देख लेता है। उसके पास जाकर पानी के लिए पूछता की वो वहाँ से चली गई। सामने फिर नैना को देखकर उसकी भूख चली गई थी। वो नैना के पीछे जाता है देखता है, तो नैना छुपी हुई थी। वो देखकर प्रेम चौक उठता है। जैसी ही नैना के कंधे पे हाथ रखता है की वो चिल्ला के उसको मरने लगती है। प्रेम उसका हाथ पकड़ते हुए " शांत हो जाओ मोहतरमा" में कोई चोर नहीं हुँ। नैना को रियेक्ट करना समझ नहीं आया और कुछ मिनट शांत होकर देखने लगी। फिर बोली " मुझे माफ़ कर देना"। "तुम कुछ मत बोलो पहले पानी पिलो और अपना हुलिया ठीक करो" प्रेम
केहता है।

"तुम्हारा नाम नहीं पूछा मेने क्या नाम है तुम्हारा" प्रेम पूछता है। "क्यूंकि बताया ही नहीं तो" नैना ने कहा। "नैना नाम है मेरा" उतने में ही " प्रेम नाम है मेरा नाम तो सुना ही होगा"। "दोनों हसने लगे।" दूसरी तरफ पप्पू सफारी भी बोखला गया था। "आखिर कहा गई ये लड़की आज बचनी नहीं चाहिए वरना मेरी खेर नहीं" बड़बड़ते हुए ढ़ूढ़ने लगा। वो भी वही केबिन में आ जाता है। नैना की नज़र जैसे ही पप्पू पर पड़ते ही गभराकर छुप जाती है। प्रेम यह सब देख कर कुछ बात तो समझ जाता है।

पप्पू भी नैना को देखा तो उसके पास जाने लगा पर वहां भीड़ और प्रेम के होने की वजह से वो जा नहीं सका और युक्ति सोचने लगा। आज रात को इसका खेल तमाम करना पड़ेगा। प्रेम कब से पप्पू को देख रहा था और समझ गया की कुछ तो करेगा यह बदमाश। ट्रेन चल पड़ी। करीब 12 बज चुके थे। और पप्पू अँधेरे का फायदा देख कर वहां से कपडे में लपटी हुयी नैना को ले जाता है। 5 मिनट के बाद जैसे सुरंग गई तो सामने बैठा शख्स देखता है की सामने कोई नहीं है। और वो चिलाने लगता है। वहां दूसरी और पप्पू जितनी तेज हो सके उतनी तेज दूसरे डब्बे में जाके मुँह खोलने की तैयारी कर रहा था। आवाज़ सुनके वो समझ गया की सब को पता लग गया की कोई भाग गया। जैसे ही वो मुँह खोलता है तो अचानक से अंदर से एक बूढी औरत निकलती है। और चिलाने लगती है। "तेरा सत्यानाश जाये कमिने"। पप्पू के होश उड़ जाते है किसी उठा लाया वो। नैना आखिर बूढी केसे हो गई! उतने में उसका बेटा वहाँ आ पहुँचता है और पप्पू सफारी की तो सफारी निकल देता है। साथ में और लोग भी मारने लगे। बिचारा अकल का मारा धूल गया। जैसे तैसे करके वो भगा। नैना प्रेम को थैंक यू बोलती है। "अगर तुमने मुझे जगाया नहीं होता तो ये मुझे पकड़ लेता"। "अरे तो मेरा फर्ज था" प्रेम ने कहा। "पर यह तुम्हारे पीछे क्यों पड़े थे" प्रेम ने आश्चर्य से पूछा। "अरे बहुत लंबी कहानी है" नैना ने कहा। "हमारे पास भी तो बहुत वक्त है बता भी दो" प्रेम ने उत्सुकता से पूछा। नैना उसको पूरी कहानी बताती है। उतने में ही मुंबई आ जाता है।

"अच्छा चलो मुंबई आ गया। मैं निकलता हूं। कुछ काम हो तो प्रेम याद में नाम तो मेरा।" प्रेम ने कहा। "पर तुम मुंबई में रहोगी किसके साथ कोई है तुम्हारे जान पहचान वाला या अकेली हो" प्रेम ने बड़े विनम्र से पूछा। "नहीं मैं अकेली और नई हूं यहां पर किसी को नहीं जानती मैं" नैना ने कहा। "अच्छा तो एक काम करो मेरे साथ चलो मेरे दोस्त का एक कैफे है वहां तो मैं काम भी मिल जाएगा और रहने का भी इंतजाम मैं कर दूंगा" प्रेम ने दया भाव दिखाते हुए कहा। "पर..पर तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं होगी ना" नैना ने आश्चर्य से पूछा। "अरे नहीं नहीं वह मेरा दोस्त है मैं जो बोलता हूं वह करता ही है" प्रेम मुस्कुराते हुए बोला। चलो तुम्हे में वहां ले चलता हुँ। दोनों निकल पड़े।