Prem Gali ati Sankari - 26 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 26

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

प्रेम गली अति साँकरी - 26

26---

============

उत्पल वाकई बहुत श्रद्धा व लगन से काम कर रहा था | उसका एनीमेशन का काम छूट गया था लेकिन उसने इस प्रकार की वीडियोज़ बनाने में इतना हुनर हासिल कर लिया था कि सच में उसकी कल्पनाशीलता की दाद देनी पड़ती | कर्मठ तो था ही वह ! कैसी कैसी टेक्नीक्स प्रयोग में लाता था वह कि दर्शक देखते ही रह जाएं | जब से वह संस्थान में जुड़ा था तब से ही यह काम शुरू हुआ था | नृत्य सीखने वाली छात्राओं के अभिभावक अपनी बच्चियों की वीडियोज़ लेना चाहते थे | उन्हें अपनी बेटियों के सुंदर वीडियोज़ चाहिए थे, उलटे-सीधे नहीं| 

उत्पल की कल्पनाशीलता से सब प्रभावित थे | पहले छात्राओं के माता-पिता अम्मा से बात करते थे इस विषय में !अब अम्मा ने यह सब उत्पल को सौंप दिया था | ऑफ़िस के पास ही एक स्टूडियो तैयार करवा दिया गया था | उसने अपनी एक टीम बना ली थी जिसे वह गाइड करता था| उत्पल कला को समर्पित था और उसे पता ही नहीं चलता कि कब और कितने लंबे समय तक वह भूख-प्यासा एडीटिंग में लगा रहता | उसका स्टाफ़ उसे अपना किया हुआ काम सौंपकर अपने समय में निकल जाता लेकिन उत्पल के काम का कोई समय कहाँ होता था| वह कभी भी स्टूडियो में बैठा, काम करता दिख जाता | उसकी फोटोग्राफ़ी में एक अजीब सा नशा था | 

या महक थी ? ? क्या मैं पगला गई थी या मुझे उसकी प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे? फोटोग्राफ़ी में महक का अर्थ मेरी समझ से परे था कितु मुझे उसकी कला में एक नशा महसूस होता जिसमें ऐसी महक पसरती नज़र आती जिसमें मैं डूबती-उतरती रहती| मुझे लग रहा था कि मैं इन मशीनों का मानवीकरण करने लगी हूँ और मेरे मन में अनायास ही हँसी आ जाती | मैं जब स्टूडियो जाती, मुझे एक अलग सा सरूर महसूस होता| लगता आँखें बंद करके उसके वीडियो में डाले गए संगीत के टुकड़ों, सुरों को महसूसती रहूँ लेकिन फिर अचानक से वहीं पीछे लौट जाती मैं, किन्ही अनसुलझे जालों में !जितना सुलझाती मन किसी अनदेखे दावानल में उलझता ही जाता | मुझे न जाने कितनी बार---बार-बार लगा है कि मैं एक नॉर्मल इंसान नहीं हूँ !

जिसके पास ज़रूरत से अधिक सब-कुछ हो, किसी चीज़ की कमी न हो, वह तो न जाने कब की अपने मन के महल की रानी बन सरगोशियों में खोई रहती लेकिन ऐसा नहीं था और इसीलिए परिवार के लोग, जुड़े हुए लोग और मैं खुद कहीं फँसकर रह गए थे| मेरे सामने बड़े प्रोजेक्टर पर उत्पल ने किसी कार्यक्रम की फिल्म लगा रखी थी, यह फिल्म कला-संस्थान की थी और अम्मा के साथ यू.के जानी थी | लेकिन मेरा चेहरा उसे देखते हुए उसकी किसी भी तरह की प्रशंसा नहीं प्रदर्शित कर रहा था | शब्द तो बाद में निकलते हैं, पहले तो हाव-भाव ही हमारे भीतर के भावों को बयान कर देते हैं | मेरे सपाट चेहरे को देखते हुए वह न जाने क्या सोच रहा था? 

“आपको ठीक नहीं लगा? आप कह रही थीं न कि कुछ बदलवाना है, आपने कोई सजेशन भी नहीं दिया--| ”उत्पल ने कहा तो मेरा दिमाग उसकी ओर गया| उसने पूरी फिल्म दिखा दी थी और मुझे पता ही नहीं चला था| 

“तुम अंतरा को जानते हो ? ” अचानक मैंने उत्पल से पूछा | 

“अरे ! बीच में अंतरा कहाँ से टपक गई, आप तो इस वीडियो के बारे में बात करना चाहती थीं न ? ”

“तुम अंतरा को जानते हो ? ” मैंने उससे फिर वही सवाल दोहराया | स्वाभाविक था, उसकी समझ में आ ही नहीं रहा था कि मैं आखिर उससे ये बेसिर पैर की बातें आखिर कर क्यों रही थी ? 

“हाँ---अच्छी तरह से---हम साथ स्कूल में पढे हैं ---”

“अचानक उसकी याद कैसे आ गई ? ” उत्पल ने पूछा | 

“नहीं---बस, यूँ ही---तुम उसकी उम्र के हो ? ”शायद मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि मुझे क्या चाहिए ? मुझे क्या पूछना है और क्यों? ”

अंतरा कीर्ति मौसी के बहुत वर्षों बाद पैदा हुई थी जब वे अपने यहाँ किसी बच्चे की कोई आस छोड़ चुके थे तब उसका जन्म हुआ था| चीज़ों को जब होना होता है, तब ही तो होंगी | हमारे हाथ में तो कुछ है नहीं सो---

“बताइए तो, काम करते–करते अंतरा कैसे याद आ गई ? ”उत्सव के मन में उत्कंठा थी | 

“वैसे कोई खास बात नहीं है, अभी जब मौसी कुछ कह रही थीं तब पता नहीं क्यों लगा कि वे अपनी बेटी के बारे में बात करने लगी थीं | हम लोगों को देखकर चुप हो गईं ---”मैं अनमनी सी बोल रही थी | 

“तो, इसमें क्या हुआ---उनको जो कहना होगा या बताना होगा, अब बता देंगी न!”

“हाँ, वो तो है---चलो, चलते हैं वहीं ---”

“आप मुझे बैकग्राउंड में बदलाव का कुछ सजेशन देने वाली थीं –वो---? ” उत्पल वाकई अजीब सा हो गया था| वह समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर मुझे अचानक हो क्या गया था ? अच्छी-भली तो मैं उसके साथ डिस्कस कर रही थी| ये अचानक ----

“शायद, मौसी अंतरा की शादी के बारे में कोई बात करना चाहती थीं, पता नहीं मुझे कुछ ऐसा लग रहा है| ”

“हाँ, वह तो जर्मनी में है न ? ” उत्पल के मुख से निकला | 

“हाँ, वहीं का लड़का उसने पसंद कर लिया है ---”

“ओह !अच्छा, यह तो मुझे नहीं मालूम था | दरअसल, काफ़ी समय हो गया मिले हुए भी इन सबसे –”

“लेकिन –आप –अचानक ---? ? ” बेचारे उत्पल को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं क्यों इतना अजीब सा व्यवहार कर रही हूँ ? 

“चलो, चलते हैं | कुछ देर उन लोगों के पास बैठते हैं ---”मैंने कहा तो उसे मेरे साथ आना ही था | 

“आपको कुछ तो परेशानी है, मुझे बताइए न ---” अचानक ‘वाइन्ड-अप’ करते हुए उसने मेरा हाथ पकड़ लिया| 

“आप नहीं जानतीं, मैं आपको कितना पसंद करता हूँ | आपको परेशान देखकर मैं---”

“क्या कह रहे हो उत्पल ? जानते हो कितने छोटे हो मुझसे ? ” मैंने उसका हाथ छिटक दिया फिर अचानक ही मुझे बुरा भी लगा | 

उसने कुछ नहीं कहा लेकिन उसका मुँह उतर गया था और उसने अपना सब सामान अपने स्टूडियो में व्यवस्थित रखकर उसे बंद कर दिया | वह मेरे साथ चुपचाप चलने लगा | अब वह बिलकुल शांत था और मुझे कहीं अपना व्यवहार खराब लग रहा था, अफ़सोस हो रहा था | बेकार ही बेचारे को झिड़क दिया | 

“बुरा मान गए उत्पल ? ” मैंने उसकी ओर देखकर पूछा| 

वह सीधी दृष्टि रखकर चुपचाप चलता रहा | 

“बोलो, बुरा मान गए उत्पल---” मुझे भी उसके न बोलने से बेचैनी सी हो रही थी| अगर उसके न बोलने से मुझे बेचैनी हो रही थी तो क्यूँ भला? मेरे मन में प्रश्न भी उठ रहा था | 

“नहीं, आपकी बात का क्या बुरा मानूँगा ? लेकिन आप ही बताओ, पसंद करने में उम्र की बात कहाँ से बीच में आ गई | बात तो ठीक थी उसकी | 

मैं सच में सोचने के लिए बाध्य हो गई कि वह सच ही तो कह रहा है, भला इसमें बुरा मानने की क्या बात है ? लेकिन इसमें मुझे उम्र का जिक्र भी तो नहीं करना चाहिए था | यह कुछ मेरे मन की ही कमज़ोरी है जो उसको परेशान कर गई थी | मेरा व्यवहार मुझे ही कुछ अजीब सा लगने लगा था लेकिन जब कुछ कर जाती उसके बाद अहसास होता | 

हम जब तक वहाँ पहुँचे, मौसी –मौसा जी जा चुके थे| यह डाइनिग-हॉल था और इसमें ताज़े व्यंजनों की सुगंध पसरी हुई थी जो मेहमानों के आने पर महाराज ने बनाए होंगे | अब टेबल साफ़ थी लेकिन सुगंध अब भी बरकरार थी | 

“दीदी ! कॉफ़ी पीएंगी----अभी बना लाता हूँ---| ”

मैंने उत्पल के उतरे हुए, चुप्पी भरे हुए चेहरे को ताका| उसने कुछ नहीं कहा, कुर्सी सरकाकर वहीं बैठ गया | महाराज समझ गए थे और रसोईघर की ओर बढ़ गए थे | मैं भी उत्पल के सामने कुर्सी पर बैठ गई लेकिन मज़े की बात थी कि हम दोनों में कोई बात नहीं हो रही थी | मन ही मन में हम दोनों शायद स्वयं से या फिर आपस में भी वार्तालाप कर रहे थे लेकिन शब्द नदारद थे | 

कुछ ही देर में महाराज दो प्याले एस्प्रेसो के साथ मेरी फेवरेट कुकीज़ ले आया था|